छोटा मेरा खेत, बगुलों के पंख (पठित काव्यांश)

1

छोटा मेरा खेत (पठित काव्यांश)






निम्नलिखित काव्यांशों को ध्यानपूर्वक पढ़कर नीचे दिए प्रश्नों के उत्तर दीजिए

प्रश्न 1.

छोटा मेरा खेत चौकोना!
कागज़ का एक पन्ना,
कोई अंधड़ कहीं से आया
क्ष का बीज वह बोया गया ।
कल्पना के रसायनों को दी
बीज गल गया निष
शब्द के अंकुर फुटे,
पलव-पुष्पों से नमित हुआ विशेष। 

प्रश्न
(क) कवि ने कवि-कर्म की तुलना किससे की है और क्यों ?
(ख) कविता की रचना-प्रक्रिया समझाइए।
(ग) खेत अगर कागज हैं तो बीज क्षय का विचार, फिर पल्लव-पुष्प क्या हैं?
(घ) मूल विचार को क्षण का बीज क्यों का गया है? उसका रूप-परिवर्तन किन रसायनों से होता है।

उत्तर
(क) कवि ने कवि-कर्म की तुलना खेत से की है। खेत में बीज खाद आदि के प्रयोग से विकसित होकर पीथा बन जाता है। इस तरह कवि भी भावनात्मक क्षण को कल्पना से विकसित करके रचना कर्म करता है।

(ख) कविता की रचना प्रक्रिया फसल उगाने की तरह होती है। सबसे पहले कवि के मन में भावनात्मक आवेग उमड़ता है। फिर यह भाव क्षण-विशेष में रूप ग्रहण कर लेता है। वह भाव कल्पना के सहारे विकसित होकर रचना बन जाता है तथा अनत काल तक पाठकों को रस देता है।

(ग) खेत अगर कागज है तो बीज क्षण का विचार, फिर पल्लव-पुष्य कविता हैं। यह भावरूपी कविता पत्तों व पुष्पों से लदकर झुक जाती है।

(घ) मूल विचार को 'क्षण का बीज कहा गया है क्योंकि भावनात्मक आवेग के कारण अनेक विचार मन में चलते रहते हैं। उनमें कोई भाव समय के अनुकूल विचार बन जाता है तथा कल्पना के सहारे वह विकसित होता है। कल्पना व चिंतन के रसायनों से उसका रूप परिवर्तन होता है।

प्रश्न 2. 

छोटा मोरा खेत चौकोना
कागज़ का एक पन्ना,
कोई अंधड़ कहीं से आया
क्षण का अहाँ बोया गया।
कन्यना के रसायनों को पी
बीज गल गया निशेष
शब्द के अर फूटे
पल्लव-पुष्पों से नमित हुआ विशेष।
झूमने लगे फल,
रस अलौकिक,
अमृत धाराएँ फुर्ती
रोपाई क्षण की
कटाई अनंतता की
लुटते रहने से जरा भी नहीं कम होती।
रस का अक्षय पात्र सदा का
ओटा मेरा खेत चौकोना। 

प्रश्न
(क) रस अलौकिक, अमृत धाराएँ फूटती। इस की अलौकिक धाराएँ कब, कहाँ और क्यों फूटती हैं?
(ख) लुटते रहने से भी क्या काम नहीं होता और क्यों?
(ग) 'रस का अक्षय पात्र किसे कहा गया है और क्यों?
(घ) कवि इन पंक्तियों में खेत से किसकी तुलना कर रहा है?

उत्तर-
(क) अलौकिक अमृत तुल्य रस-धाराएँ फलों के पकने पर फलों से फूट पड़ती हैं। ऐसा तब होता है जब उन पके फलों को काटा जाता है।

(ख) साहित्य का आनंद अनंत काल से लुटते रहने पर भी कम नहीं होता, क्योंकि सभी पाठक अपने-अपने ढंग से रस का आनंद उठाते हैं।

(ग) रस का अक्षय पात्र साहित्य को कहा गया है, क्योंकि साहित्य का आनंद कभी समाप्त नहीं होता। पाठक जब भी उसे पढ़ता है, आनंद की अनुभूति अवश्य करता है।

(घ) कवि ने इन पंक्तियों में खेत की तुलना कागज के उस चौकोर पन्ने से की है, जिस पर उसने कविता लिखी है। इसका कारण यह है कि इसी कागजरूपी खेत पर कवि ने अपने भावों विचारों के बीज बोए थे जो फसल की भाँति उगकर आनंद प्रदान करेंगे।



(ख) बगुलों के पंख (पठित काव्यांश)



प्रश्न 

नभ में पाँती-बाँधै बगुलों के पंख,
चुराए लिए जार्ती ने मेरा आँखें।।
कजरारे बादलों की छाई नभ छाया,
तैरती साँझ की सतेज़ श्वेत काया
हले हॉले जाती मुझे बाँध निज माया से।
उसे कोई तनिक रोक रखो।
वह तो चुराए लिए जाती मेरी आँखे
नभ में पाँती बँधी बगुलों के पाँखें।

प्रश्न
(क) कवि किस दूश्य पर मुग्ध हैं और क्यों?
(ख) उसे कोई तनिक रोक रक्खी इस पक्ति में कवि क्या कहना चाहता हैं?
(ग) कवि के मन-प्रार्यों को किसने अपनी आकर्षक माया में बाँध लिया है और कैसे?
(घ) कवि उस सौंदर्य को थोड़ी देर के लिए अपने से दूर क्यों रोके रखना चाहता हैं? उसे क्या 'भय हैं?

उत्तर-
(क) कवि उस समय के दृश्य पर मुग्ध है जब आकाश में छाए काले बादलों के बीच सफेद बगुले पंक्ति बनाकर उड़ रहे हैं। कवि इसलिए मुग्ध है क्योंकि श्वेत बगुलों की कतारें बादलों के ऊपर तैरती सॉझ की श्वेत काया की तरह प्रतीत हो रहे हैं।

(ख) इस पंक्ति में कवि दोहरी बात कहता है। एक तरफ वह उस सुंदर दृश्य को रोके रखना चाहता है ताकि उसे और देख सके और दूसरी तरफ वह उस दृश्य से स्वयं को बचाना चाहता है।

(ग) कवि के मन-प्राणों को आकाश में काले-काले बादलों की छाया में उड़ते सफेद बगुलों की पंक्ति में बाँध लिया है। पंक्तिबद्ध उड़ते श्वेत बगुलों के पंखों में उसकी आँखें अटककर रह गई हैं और वह चाहकर भी आँखें नहीं हटा पा रहा है।

(घ) कवि उस सौंदर्य को थोड़ी देर के लिए अपने से दूर रोके रखना चाहता है क्योंकि वह उस दृश्य पर मुग्ध हो चुका है। उसे इस रमणीय दृश्य के लुप्त होने का भय है।


Post a Comment

1Comments

If you have any doubts, Please let me know

Post a Comment