Class 12 Hindi Important Questions Vitan Chapter 2 जूझ | जूझ Class 12 Important Extra Questions Hindi Vitan Chapter 2 | जूझ (अति महत्त्वपूर्ण प्रश्न)
जूझ (अति महत्त्वपूर्ण प्रश्न)
प्रश्न 1:
लेखक के दादा का पढ़ाई के प्रति जो दृष्टिकोण था उसे आप कितना उपयुक्त पाते हैं? ऐसे लोगों के दृष्टिकोण में बदलाव लाने के लिए आप क्या प्रयास कर सकते हैं?
उत्तर –
लेखक चाहता था कि वह भी अन्य बच्चों के साथ पाठशाला जाए, पढ़ाई करे और अच्छा आदमी बने। पाठशाला जाने के लिए उसका मन तड़पता था, पर उसके दादा का पढ़ाई के प्रति दृष्टिकोण स्वस्थ न था। वे चाहते थे कि लेखक पढ़ाई करने की बजाय खेती में काम करे और जानवरों को चराए। किसी दिन खेत में काम करने के लिए न जाने पर वे लेखक को बुरी तरह डाँटते। एक बार वे लेखक से कह रहे थे, “हाँ, यदि नहीं आया किसी दिन तो देख, गाँव में जहाँ मिलेगा, वही कुचलता हूँ कि नहीं, तुझे। तेरे ऊपर पढ़ने का भूत सवार हुआ है। मुझे मालूम है, बालिस्टर नहीं होने वाला है तू?” बच्चे को पढ़ाई से विमुख करने वाला, बच्चों की शिक्षा में बाधक बनने वाला ऐसा दृष्टिकोण किसी भी कोण से उपयुक्त नहीं है। ऐसे लोगों का दृष्टिकोण बदलने के लिए मैं निम्नलिखित प्रयास करूंगा –
# लेखक के दादा जैसे लोगों को शिक्षा का महत्त्व बताऊँगा।
# शिक्षा से वंचित बच्चे मजदूर बनकर रह जाते हैं। यह बात उन्हें समझाऊँगा।
# शिक्षा व्यक्ति के जीविकोपार्जन में साधन का कार्य करती है। इस तथ्य से उन्हें अवगत कराऊँगा।
# पढ़े-लिखे सभ्य लोगों के उन्नत जीवन का उदाहरण ऐसे लोगों के सामने प्रस्तुत करूँगा।
प्रश्न 2:
आज भी समाज को दत्ता जी राव जैसे व्यक्तित्व की आवश्यकता है। इससे आप कितना सहमत हैं और क्यों? यदि आप दत्ता जी राव की जगह होते तो क्या करते?
उत्तर
दत्ता जी राव नेक दिल, उदार एवं गाँव के प्रतिष्ठित व्यक्ति थे। वे बच्चों एवं महिलाओं से विशेष स्नेह करते थे। वे हरेक व्यक्ति की सहायता करते थे। लेखक और उसकी माँ ने जब उनको अपनी पीड़ा बताई तो शिक्षा के प्रति स्वस्थ दृष्टिकोण रखने वाले दत्ता राव जी ने उन्हें मदद का आश्वासन दिया और लेखक के दादा को बुलवाया। जब वे राव जी के पास गए तो उन्होंने बच्चे को स्कूल न भेजने के लिए दादा जी को खूब डाँटा-फटकारा। उन्होंने बच्चे का भविष्य खराब करने की बात कहकर बच्चे को स्कूल भेजने का वायदा ले लिया और स्कूल न भेजने पर लेखक को पढ़ाने का जिम्मा स्वयं लेने की बात कही। राव जी की डाँट से लेखक के दादा कुछ न कह सके और पढ़ाई के लिए स्वीकृति दे दी। इसके बाद लेखक स्कूल जाने लगा। आज भी बहुत-से बच्चे विभिन्न कारणों से स्कूल का मुँह देखने से वंचित हो जाते हैं या पढ़ाई बीच में ही छोड़ देते हैं। ऐसे बच्चों को पढ़ाई से जोड़ने के लिए राव जी जैसे व्यक्तित्व की आज भी आवश्यकता है। इससे मैं पूर्णतया सहमत हूँ। इसका कारण यह है कि इससे बच्चे पढ़-लिखकर योग्य और समाजोपयोगी नागरिक बन सकेंगे। वे पढ़-लिखकर देश की उन्नति में अपना योगदान दे सकेंगे। यदि मैं दत्ता जी राव की जगह होता तो लेखक को स्कूल भेजने के लिए हर संभव प्रयास करता और फिर भी उसके दादा उसे स्कूल भेजने के लिए न तैयार होते तो मैं लेखक को अपने पास रखकर पढ़ाता और उसकी हर संभव मदद करता।
दत्ता जी राव नेक दिल, उदार एवं गाँव के प्रतिष्ठित व्यक्ति थे। वे बच्चों एवं महिलाओं से विशेष स्नेह करते थे। वे हरेक व्यक्ति की सहायता करते थे। लेखक और उसकी माँ ने जब उनको अपनी पीड़ा बताई तो शिक्षा के प्रति स्वस्थ दृष्टिकोण रखने वाले दत्ता राव जी ने उन्हें मदद का आश्वासन दिया और लेखक के दादा को बुलवाया। जब वे राव जी के पास गए तो उन्होंने बच्चे को स्कूल न भेजने के लिए दादा जी को खूब डाँटा-फटकारा। उन्होंने बच्चे का भविष्य खराब करने की बात कहकर बच्चे को स्कूल भेजने का वायदा ले लिया और स्कूल न भेजने पर लेखक को पढ़ाने का जिम्मा स्वयं लेने की बात कही। राव जी की डाँट से लेखक के दादा कुछ न कह सके और पढ़ाई के लिए स्वीकृति दे दी। इसके बाद लेखक स्कूल जाने लगा। आज भी बहुत-से बच्चे विभिन्न कारणों से स्कूल का मुँह देखने से वंचित हो जाते हैं या पढ़ाई बीच में ही छोड़ देते हैं। ऐसे बच्चों को पढ़ाई से जोड़ने के लिए राव जी जैसे व्यक्तित्व की आज भी आवश्यकता है। इससे मैं पूर्णतया सहमत हूँ। इसका कारण यह है कि इससे बच्चे पढ़-लिखकर योग्य और समाजोपयोगी नागरिक बन सकेंगे। वे पढ़-लिखकर देश की उन्नति में अपना योगदान दे सकेंगे। यदि मैं दत्ता जी राव की जगह होता तो लेखक को स्कूल भेजने के लिए हर संभव प्रयास करता और फिर भी उसके दादा उसे स्कूल भेजने के लिए न तैयार होते तो मैं लेखक को अपने पास रखकर पढ़ाता और उसकी हर संभव मदद करता।
प्रश्न 3:
सौंदलगेकर के व्यक्तित्व ने लेखक को किस प्रकार प्रभावित किया? आप उनके व्यक्तित्व की कौन-कौन-सी विशेषताएँ अपनाना चाहेंगे?
उत्तर –
सौंदलगेकर एक अध्यापक थे जो लेखक के गाँव में मराठी पढ़ाया करते थे। वे कविताओं को बहुत अच्छी तरह से पढ़ाते थे और कथ्य में खो जाते थे। उनके सुरीले कंठ से निकली कविता और भी सुरीली हो जाती थी। उन्हें मराठी के अलावा अंग्रेजी कविताएँ भी जबानी याद थीं। वे स्वयं कविता की रचना करते थे और छात्रों को सुनाया करते थे। लेखक उनकी इस कला और कविता सुनाने की शैली से बहुत प्रभावित हुआ। इससे पहले लेखक कवियों को किसी दूसरी दुनिया का जीव मानता था पर सौंदलगेकर से मिलने के बाद जाना कि इतनी अच्छी कविता लिखने वाले भी हमारे-उसके जैसे मनुष्य ही होते हैं। अब लेखक को लगा कि वह भी उनकी जैसी कविता गाँव, खेत आदि से जुड़े दृश्यों पर बना सकता है। वह भैंस चराते-चराते फसलों और जानवरों पर तुकबंदी करने लगा। वह राह चलते तुकबंदी करता और उसे लिखकर अध्यापक को दिखाता। बाद में निरंतर अभ्यास से वह कविता लिखना सीख गया। इस प्रकार लेखक को सौंदलगेकर के व्यक्तित्व ने बहुत प्रभावित किया और उसमें कविता-लेखन की रुचि उत्पन्न कर दी। मैं सौंदलगेकर के व्यक्तित्व की अपने कार्य के प्रति समर्पित रहने, दूसरों को प्रोत्साहित करने, यथासंभव दूसरों की मदद करने जैसी विशेषताएँ अपनाना चाहूँगा।
thanks sir
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