NCERT Solutions for Class 9 Hindi Kshitiz Chapter 10 वाख | वाख (अभ्यास प्रश्न)
वाख (अभ्यास प्रश्न)
प्रश्न 1. रस्सी यहाँ किसके लिए प्रयुक्त हुआ है और वह कैसी है?
यहाँ कवयित्री ने रस्सी शब्द का प्रयोग कमजोर एवं नष्ट होने वाले सहारो के लिए किया है यह रस्सी बड़ी कमजोर है जो कभी भी टूट सकती है। इस रस्सी पर किसी भी प्रकार का विश्वास नहीं किया जा सकता।
प्रश्न 2. कवयित्री द्वारा मुक्ति के लिए किए जाने वाले प्रयास व्यर्थ क्यों हो रहे हैं?
कवयित्री साँस रूपी रस्सी से जीवन रूपी नौका को भवसागर से पार ले जाना चाहती है लेकिन उसके शरीर रूपी कच्चे सकोरे से जीवन रूपी पानी टपकता ही जा रहा है। जिससे मुक्ति पाने के लिए किए जा रहे प्रयास व्यर्थ सिद्ध हो रहे हैं क्योंकि मनुष्य मोह माया में फंस कर रह गया है।
प्रश्न 3. कवयित्री के 'घर जाने की चाह' से क्या तात्पर्य है?
कवयित्री के 'घर जाने की चाह' से तात्पर्य है कि वह वास्तविक घर जाना चाहती है जहाँ ईश्वर का निवास है। जीवात्मा उस ईश्वर से अलग होकर इस धरती पर जन्म लेती है या मानव शरीर धारण करती है और नश्वर शरीर को त्यागने के बाद ईश्वर के पास चली जाती है। कवयित्री भी उसे ईश्वर के पास जाना चाहती है जहाँ से वह आई है।
प्रश्न 4. भाव स्पष्ट कीजिए-
(क). जेब टटोली कौड़ी ने पाई।
(क) इन पंक्तियों से कवयित्री का आशय है कि जैसे दिन खत्म होकर संध्या आ जाती है; वैसे ही उनका जीवन भी खत्म हो गया है और उसकी भी संध्या आ चुकी है। अब जब उन्होंने अपने पूरे जीवन का लेखा-जोखा देखा तो पाया कि उनके पास तो कुछ भी नहीं है। वे तो बिल्कुल दरिद्र है क्योंकि उन्होंने अपने जीवन में कोई पुण्य या परोपकार किया ही नहीं है। लेखिका को इस बात की चिंता है कि जब प्रभु उनके जीवन की नैया को पार लगाएंगे, तब उनसे किराए के रूप में उनके पुणे व सुकर्म मांगें जाएंगे और उनके पास तो कुछ भी नहीं है क्योंकि उन्होंने अपना पूरा जीवन तो बेफिजूल की हठ में व नश्वर वस्तुओं को पाने की भागदौड़ में ही व्यर्थ गवां दिया है।
(ख). खा-खाकर कुछ पाएगा नहीं,
न खाकर बनेगा अहंकारी।
(ख) अगर सिर्फ भोग ही किया जाए तो जीवन में कुछ भी हासिल नहीं किया जा सकता और अगर पूर्ण त्याग कर दिया जाए, तब भी व्यक्ति पर इसका विपरीत असर पड़ेगा और वह संपूर्ण त्याग करने से अहंकारी बन जाएगा; इसलिए ये दोनों ही रास्ते सही नहीं है और व्यक्ति को अपने नाश से बचने के लिए और प्रभु प्राप्ति के लिए संतुलन बनाए रखना चाहिए।
प्रश्न 5. बंद द्वार की साँकल खोलने के लिए ललद्यत ने क्या उपाय सुझाया है?
कवयित्री ललद्यद का कहना है कि मनुष्य को अपने मन का नियंत्रण करना चाहिए। जब मनुष्य तन मन से ईश्वर को प्राप्त कर लेता है तब उसके मन की शक्ति व्यापक हो जाती है। इस स्थिति पर पहुँचकर ही आत्मा के द्वार पर लगी हुई अहंकार और अज्ञान की साँकल खुल जाती है।
प्रश्न 6. ईश्वर प्राप्ति के लिए बहुत से साधक हठयोग जैसी कठिन साधना भी करते हैं, लेकिन उससे भी लक्ष्य प्राप्ति नहीं होती। यह भाव किन पंक्तियों में व्यक्त होता है?
आई सीधी राह से, गई न सीधी राह।
सुषुम-सेतु पर खड़ी थी, बीत गया दिन आह!
जेब टटोली, कोड़ी ने पाई।
मांझी को दूं, क्या उतराई?
प्रश्न 7. ज्ञानी से कवयित्री का क्या अभिप्राय है ?
जो बाह्य आडंबर को त्यागकर सच्चे मन से अपनी आत्मा को खोजने का प्रयास नहीं करता है ऐसा व्यक्ति कभी भी माया में फंस सकता है। जो जात-पात के भेदभाव को त्यागकर सद्गुणों में लीन रहता है ऐसा व्यक्ति कवयित्री के अनुसार ज्ञानी है।
It is very useful for final exam and school home work
ReplyDeletesahi kaha lode
Deletetumko bhi de baghvan
DeleteJaat
ReplyDeletesaalo padho gye nhi to ashixhh bhi kuch nhi krr paayega
ReplyDeletebeta 3rd time revision ho rha hai, tumhe hi aisa lg rha hai ki koi padh nhi rha quki tumhi nhi padh rhe hoo sirf!
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