Class 9 Kshitiz Hindi Chapter Sakhiya Avam Shabad Important Questions/Extra Questions | Class 9 साखियाँ एवं सबद Important Questions
प्रश्न 1. साखी का क्या अर्थ है? कबीर के दोहे साखी क्यों कहलाते हैं?
उत्तर-'साखी' शब्द 'साक्षी' का तद्भव रूप है, जिस का शाब्दिक अर्थ है-आँखों से देखा गवाह या गवाही। कबीर अशिक्षित थे, जिसे उन्होंने 'मसि कागद छुऔ नहिं, कलम गहि नहिं हाथ' कह कर स्वयं स्वीकार किया है। उन्होंने अपने परिवेश में जो कुछ घटित हुआ उसे स्वयं अपनी आँखों से देखा और उसे अपने ढंग से व्यक्त किया। इसे साक्षात्कार का नाम भी दिया जा सकता है। स्वयं कबीर के शब्दों में 'साखी आँखी ज्ञान की', 'कबीर के दोहे साखी इसलिए कहलाते हैं क्योंकि इनमें कबीर की कल्पना मात्र का उल्लेख नहीं है बल्कि केवल दो-दो पंक्तियों में जीवन का सार व्यंजित किया गया है। उनका साखियों में व्यंजित ज्ञान 'पोथी पंखा' नहीं है प्रत्युत' आँखों देखा' है। यह भी माना जाता है कि इन की साखियों का सीधा संबंध गुरु के उपदेशों से है। कबीर ग्रंथावली में साखियों को अनेक उपभोगों में बांटा गया है।
प्रश्न 2. 'पद के लिए' 'सबद' का प्रयोग कबीर की वाणी में किन अर्थों में हुआ है? कबीर के पदों में किन्हीं दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-कबीर के 'बीजक' में सबद भाग पदों में कहा गया है। ये सभी गेयता के गुणों संपन्न हैं और इन की रचना विभिन्न राग-रागिनियों के आधार पर हुई है। इन में कबीर के दर्शन-चिंतन का विस्तृत अंकन हुआ है। 'सबद' का प्रयोग दो अर्थों में हुआ है-एक तो पद के रूप में और दूसरा परम तत्व के अर्थ में।
पदों के द्वारा कबीर के दृष्टिकोण बड़े सुंदर ढंग से व्यंजित हुए हैं। इनमें उन्होंने आत्मा के ज्ञान की प्राप्ति के लिए गुरु के प्रति श्रद्धा को आवश्यक बतलाया है क्योंकि-'श्रद्धावान् लभते ज्ञानम्।' इन्होंने पदों में माया संबंधी विचारों को गंभीरतापूर्वक व्यक्त किया है और गुरु को गोविंद से भी बड़ा माना है। पदों में ब्रह्म संबंधी विचारों को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है। पदों में कबीर ने रहस्यवाद के प्रकाशन के साथ-साथ तत्कालीन समाज की झलक भी प्रस्तुत की गई है।
प्रश्न 3. कबीर की भाषा पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-कबीर अशिक्षित थे-ऐसा उन्होंने स्वयं 'मसि कागद छुओ नहिं' कहकर स्वीकार किया है। संभवतः इसीलिए उन्होंने किसी परिनिष्ठित भाषा का प्रयोग अपनी काव्य रचना के लिए नहीं किया। उन्होंने कई भाषाओं के शब्दों को अपने काव्य में व्यवहृत किया, जिस कारण उनकी भाषा को सधुक्कड़ी अथवा खिचड़ी कहा जाता है।
कबीर की भाषा के विषय में विद्वानों में पर्याप्त मतभेद हैं। कबीर ने स्वयं अपनी भाषा के विषय में कहा है-
बोली हमारी पूरब की, हमैं लखै नहिं कोय।
हमको तो सोई लखे, धुर पूरब का होय॥
भाषा का निर्णय प्रायः शब्दों के आधार पर नहीं किया जाता। इसका आधार क्रियापद संयोजक शब्द तथा कारक चिह्न हैं, जो वाक्य विन्यास के लिए आवश्यक होते हैं। कबीर की भाषा में केवल शब्द ही नहीं, क्रियापद, कारक आदि भी अनेक भाषाओं के मिलते हैं, इनके क्रियापद प्रायः ब्रजभाषा और खड़ी बोली के हैं; कारक चिह्न अवधी, ब्रज और राजस्थानी के हैं। वास्तव में उनकी भाषा भावों के अनुसार बदलती दिखाई देती है। डॉ० हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार, "भाषा पर कबीर का ज़बरदस्त अधिकार था। वे वाणी के डिक्टेटर थे। जिस बात को उन्होंने जिस रूप में प्रकट करना चाहा उसे उसी रूप में भाषा से कहलवा दिया।" परंतु डॉ० रामकुमार वर्मा को इनकी भाषा में कोई विशेषता दिखाई नहीं देती। उनके अनुसार, “कबीर की भाषा बहुत अपरिष्कृत है, उसमें कोई विशेष सौंदर्य नहीं है।"
भाषा में भाव उत्पन्न करने वाली अन्य शक्तियों में शब्द, अलंकार, छंद, गुण, मुहावरे, लोकोक्ति आदि प्रमुख हैं। कबीर की भाषा में वही स्वर व्यंजन प्रयुक्त हुई हैं जो आदि भारतीय आर्य भाषा में चले आए हैं। इन्होंने तत्सम शब्दों का पर्याप्त प्रयोग किया पर तद्भव शब्दों का प्रयोग अपेक्षाकृत अधिक किया है। क्योंकि ये साहित्य के नहीं, जनसाधारण के कवि थे। इनके श्रोता साधारण वर्ग के थे। कबीर घुमक्कड़ प्रकृति के थे। अतः इन्होंने देशज शब्दों का काफ़ी प्रयोग किया है। पंजाबी और राजस्थानी के बहुत अधिक शब्दों को इन्होंने प्रयोग किया। साथ ही सामाजिक परिस्थितियों के कारण अरबी और फ़ारसी के बहुत-से शब्दों का प्रयोग किया।
प्रश्न 4. कबीर की दृष्टि में 'मान सरोवर' और 'सुभर जल' का क्या अर्थ है?
उत्तर-कबीर जी के अनुसार 'मानसरोवर' से अभिप्राय है कि किसी भक्त का मन है जो भक्ति रूपी जल से पूरी तरह भरा हुआ है। 'सुभर जल' से अभिप्राय यह है कि भक्त का मन भक्ति के भावों से परिपूर्ण रूप से भर चुका है। वहाँ अब और किसी प्रकार के भावों की कोई जगह नहीं है। भक्ति के भावों से घिरे व्यक्ति के लिए सांसारिक विषय वासनाएँ कोई स्थान नहीं रखती हैं।
प्रश्न 5. "मुकुताफल मुकता चुगै, अब उड़ि अनत न जाहिं॥" पंक्ति में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर-यह पंक्ति कबीर द्वारा रचित है। इसमें दोहा छंद है। जिसमें स्वरमैत्री का सहज प्रयोग है इसी कारण लयात्मकता की सृष्टि हुई है। अनुप्रास और रूपक का सहज स्वाभाविक प्रयोग सराहनीय है। लक्षणा शब्द शक्ति के प्रयोग ने कवि के कथन को गंभीरता और भाव प्रवगता प्रदान की है। शांत रस विद्यमान है। तद्भव शब्दों की अधिकता है।
प्रश्न 6. विष कब अमृत में बदल जाता है?
उत्तर-मानव में छिपे पाप, बुरी भावना, विषय वासना रूपी विष उस समय अमृत बन जाते हैं, जब एक परम भक्त दूसरे परम भक्त से मिल जाता है। उस समय सभी प्रकार के अंधेरे समाप्त हो जाते हैं, मन के विकार दूर हो जाते हैं। इस तरह उनका विषय वासना रूपी विष समाप्त हो जाता है और वे अमृत समान हो जाते हैं।
प्रश्न 7. कवि ने संसार के किस व्यवहार को अनुचित और उचित माना है?
उत्तर-कवि ने संसार के उस व्यवहार को अनुचित माना है जो व्यर्थ ही दूसरों की आलोचना करता रहता है। वह अपने इस व्यवहार के कारण अच्छे-बुरे में भेद नहीं कर पाता है। उस मानव का व्यवहार उचित है जो दूसरों के बुरे व्यवहार को अनदेखा करके, अपना वक्त बर्बाद किए बिना, भक्ति मार्ग पर आगे बढ़ते हैं तथा सबके साथ एक समान व्यवहार करता है।
प्रश्न 8. 'स्वान रूप संसार है'-ऐसा क्यों कहा गया है? हमें क्या करना चाहिए?
उत्तर-कवि ने इस संसार को स्वान कहा है अर्थात् कुत्ते के समान कहा है क्योंकि इस संसार में मनुष्य का व्यवहार कुत्ते के समान है। वह स्वयं को ठीक मानता है और दूसरों को बुरा भला कहता है। वे उनकी आलोचना करता रहता है।
हमें दूसरों के द्वारा की जाने वाली निंदा उपहास की परवाह नहीं करनी चाहिए। अपने मन में आए भक्ति और साधना के भावों पर स्थिर रहकर कर्म करना चाहिए।
प्रश्न 9. पखापखी क्या है? इसमें डूब कर सारा संसार किसे भूल रहा है?
उत्तर-पखापखी से अभिप्राय यह है कि मनुष्य के मन में छिपे तेरे-मेरे, पक्ष-विपक्ष और परस्पर लड़ाई-झगड़े हैं। मनुष्य इस पखापखी के चक्कर में पड़कर ईश्वर के नाम और भक्तिभाव को भूल जाता है, मनुष्य को यह नहीं भूलना चाहिए कि उसकी भक्ति और सद्कर्म उसके साथ जाएँगे।
प्रश्न 10. कवि ने हिंदू-मुसलमान को मरा हुआ क्यों मान लिया है और उनके अनुसार जीवित कौन है?
उत्तर-कवि ने हिंदू-मुसलमान दोनों को मरा हुआ माना है क्योंकि दोनों ही ईश्वर के वास्तविक सच को समझे बिना आपसी भेद-भाव में उलझकर ईश्वर के नाम को भूल गए हैं। कवि के अनुसार केवल वही मनुष्य जीवित है, जो धार्मिक भेद-भावों से दूर रहकर, प्रत्येक प्राणी के हृदय में बसने वाले चेतन राम और अल्लाह का स्मरण करता है।
प्रश्न 11. कबीर ने किस बात का विरोध किया है और मनुष्य को किस बात की प्रेरणा दी है?
उत्तर-कबीर ने अपनी रचना में इस बात का विरोध किया है कि ईश्वर के रूप, नाम, स्थल अनेक हैं, उनको मानने वाले भी अलग-अलग हैं। वास्तव में ईश्वर एक है उसमें कोई अंतर नहीं है। इसीलिए उन्होंने मनुष्य को यह प्रेरणा दी है कि आपस में हिंदू-मुसलमान का आपसी भेदभाव मिटाकर, ईश्वर के सच्चे रूप की भक्ति करने की प्रेरणा दी है।
प्रश्न 12. ऊँचे कुल से क्या तात्पर्य है? कबीर ने किस व्यक्ति को ऊँचा नहीं माना? कोई व्यक्ति किस कारण से महान बन सकता है?
उत्तर-ऊँचे कुल से तात्पर्य है कि आर्थिक और सामाजिक रूप से श्रेष्ठ और प्रतिष्ठित परिवार वाले व्यक्ति को ऊँचे कुल का माना जाता है। कबीर जी के अनुसार ऊँचे कुल से जन्म लेने पर कोई व्यक्ति ऊँचा नहीं बन जाता है। ऊँचा और महान बनने के लिए व्यक्ति को सत्कर्मों और अपने सद्गुणों के काम करने चाहिए तथा अपने जीवन को दुर्गुणों से बचाना चाहिए।
Not hel
ReplyDelete