Important Questions Class 9th- वाख ~ Vaakh Extra Questions
प्रश्न 1. 'ललद्यद ने संकीर्ण मतभेदों के घेरों को कभी स्वीकार नहीं किया'-इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-ललद्यद की शैवधर्म में आस्था थी पर उसने संकीर्ण मतवादों के घेरों को कभी स्वीकार नहीं किया था। उसने जो कहा वह सार्वभौम महत्त्व रखता था। किसी धर्म या संप्रदाय विशेष को अन्य धर्मों या संप्रदायों से श्रेष्ठ मानने की भावना का उसने खुलकर विरोध किया। वह उदात्त विचारों वाली उदार संत थी। उसके अनुसार ब्रह्म को चाहे जिस नाम से पुकारो-वह ब्रह्म ही रहता है। सच्चा संत वही है जो प्रेम और सेवा भाव से सारी मानव जाति के कष्टों को दूर करे तथा ईश्वर को मतभेद से दूर होकर स्वीकार करे।
प्रश्न 2. ललद्यद के क्रांतिवादी व्यक्तित्व पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर-ललद्यद में विभिन्न धर्मों के विचारों को समन्वित करने की अद्भुत शक्ति थी। वह धार्मिक रूढ़ियों, अंधविश्वासों, रीति-रिवाजों पर कड़ा प्रहार करती थी। धर्म के नाम पर ठगने वाले लोग उसकी चोट से तिलमिला उठते थे। वह मानती थी कि धार्मिक बाह्याडंबरों का धर्म और ईश्वर से कोई संबंध नहीं है। तीर्थ यात्राओं और शरीर को कष्ट देकर की जाने वाली तपस्याओं से ईश्वर की प्राप्ति नहीं होती। बाहरी पूजा एक ढकोसला मात्र है। वह देवी- देवताओं के लिए पशु-बलि देना सहन नहीं करती थी।
प्रश्न 3. कवयित्री किस 'घर' में जाना चाहती है? उसके हृदय में बार-बार हूक क्यों पैदा हो रही है?
उत्तर-कवयित्री परमात्मा के पास जाना चाहती है। उसे लगता है कि यह संसार उसका असली घर नहीं है। उसका असली घर तो वह है जहाँ परमात्मा निवास करते हैं। इसीलिए उसके हृदय में बार-बार यहीं हूक पैदा होती है कि वह परमात्मा की शरण प्राप्त करे। इस जीवन को त्याग दे, पर ऐसा संभव नहीं हो रहा है। वह इसके लिए निरंतर प्रयास कर रही है। अपनी असफलता पर उसका हृदय विचलित हो रहा है।
प्रश्न 4. 'पानी टपके कच्चे सकोरे' से क्या आशय है?
उत्तर–पानी टपके कच्चे सकोरे से कवयित्री का आशय यह है कि मानवीय शरीर धीरे-धीरे कच्चे सकोरे की तरह कमज़ोर हो रहा है और एक दिन वह नष्ट हो जाएगा। जिस प्रकार कच्चे सकोरे से धीरे-धीरे पानी टपकने से वह नष्ट हो जाता है, उसी प्रकार उसका शरीर भी धीरे-धीरे अपनी निश्चित आयु को प्राप्त हो कमज़ोर हो रहा है। यह प्राकृतिक नियम है और प्राणी को यह पता भी नहीं चलता है कि उसकी आयु समाप्त हो जाती है।
प्रश्न 5. कवयित्री ने 'न खाकर बनेगा अहंकारी' कहकर किस तथ्य की ओर संकेत किया है?
उत्तर-'न खाकर बनेगा अहंकारी' में कवयित्री ने इस बात की ओर संकेत किया है कि मानव परमात्मा को प्राप्त करने के लिए तरह-तरह के बाह्य आडंबर करता है। भूखे रह कर व्रत करता है परंतु उसे वह स्वयं को संयमी और शरीर पर नियंत्रण रखने वाला मान लेता है। इससे उसके मन में अहंकार उत्पन्न हो जाता है। वह स्वयं को योगी पुरुष मान लेता है।
प्रश्न 6. 'खा-खा कर' कुछ प्राप्ति क्यों नहीं हो पाती?
उत्तर-मनुष्य को लगातार खान का जीवन जितना अधिक भोग-विलास में डूबता जाता है, उतना ही भगवान से दूर हो जाता है। उसका मन ईश्वर की भक्ति में नहीं लगता है और ईश्वर की प्राप्ति के बिना इस दुनिया से पार हो संभव नहीं है। इसलिए खा-खाकर भी कुछ प्राप्त होने वाला नहीं है।
प्रश्न 7. कवयित्री क्या प्रेरणा देना चाहती है?
उत्तर-कवयित्री मनुष्य को यह प्रेरणा देना चाहती है कि बाहरी आडंबरों से कुछ भी संभव नहीं है। मानव को अपने जीवन में सहजता बनाए रखनी चाहिए। संयम का भाव श्रेष्ठ होता है। और इसी से वह परमात्मा को प्राप्त कर सकता है।
प्रश्न 8. 'गई न सीधी राह' से क्या तात्पर्य है?
उत्तर -'गई न सीधी राह' से कवयित्री का तात्पर्य है कि परमात्मा ने उसे जब संसार में भेजा था तो वह सीधी राह पर चल रही थी परंतु संसार के मायात्मक बंधनों ने उसे अपने बस में कर लिया और वह चाहकर भी परमात्मा को प्राप्त करने के लिए भक्ति मार्ग पर नहीं बढ़ सकी। दुनियादारी में उलझकर सद्कर्म नहीं किया।
प्रश्न 9. मनुष्य मन ही मन भयभीत क्यों हो जाता है?
उत्तर-परमात्मा जब मनुष्य को धरती पर भेजता है, उसका मन साफ होता है उसे दुनियादारी से कोई मतलब नहीं होता है परंतु धीरे-धीरे वह संसार के मोह-माया के बंधनों में उलझ जाता है। वह सद्कर्मों से दूर हो जाने पर मन ही मन भयभीत होता है कि अब उसका समय पूरा होने वाला है, उसे परमात्मा के पास वापिस जाना है, परमात्मा जब उसके कर्मों का लेखा-जोखा देखेगा, वह क्या बताएगा। भव सागर से पार जाने के लिए मनुष्य के सद्कर्म ही उसके काम आते हैं। यही सोच मनुष्य को मन ही मन भयभीत करती रहती है।
प्रश्न 10. ईश्वर वास्तव में कहाँ है? उसकी पहचान कैसे हो सकती है?
उत्तर-ईश्वर वास्तव में संसार के कण-कण में समाया हुआ है। वह तो प्रत्येक मनुष्य के भीतर है इसलिए उसे कहीं बाहर ढूँढ़ने की आवश्यकता नहीं है। उसे तो अपने भीतर से ही पाने की कोशिश की जानी चाहिए। ईश्वर के सच्चे स्वरूप की पहचान अपनी आत्मा को पहचानने से संभव हो सकती है। आत्मज्ञान ही उसकी प्राप्ति का एकमात्र रास्ता है।
प्रश्न 11. 'भेद न कर क्या हिंदू-मुसलमां' में निहित अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-'भेद न कर क्या हिंदू-मुसलमां' इस पंक्ति में कवयित्री यह कहना चाहती है कि सभी के लिए परमात्मा एक है। चाहे हिंदू हो या मुसलमान उनके लिए परमात्मा के स्वरूप के प्रति कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए। कवयित्री ने अपनी वाणी से यह स्पष्ट किया है कि धर्म के नाम पर परमात्मा के प्रति आस्था नहीं बदलनी चाहिए।
Very good
ReplyDeleteBest
ReplyDeleteIt's way too hard plus this level questions doesn't come in exam
ReplyDeletethanks a lot sir
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