Class 11 Hindi Meera ke Pad Explanation | Meera Ke Pad Class 11 | मीरा के पद Class 11

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Class 11 Hindi Meera ke Pad Explanation | Meera Ke Pad Class 11 | मीरा के पद Class 11


 पद-1

पद का सार

प्रश्न- 'मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई' शीर्षक पद का सार लिखिए।

उत्तर -प्रस्तुत पद में मीरा ने भगवान श्रीकृष्ण को अपने जीवन का सर्वस्व मानते हुए उनके प्रति अपनी भक्ति-भावना को अभिव्यक्त किया है । जिस कृष्ण के सिर पर मोर के पंखों से निर्मित मुकुट है, वही मेरा पति है। उसने लोक-लाज को त्यागकर और कुल मर्यादा के बंधनों को तोड़कर संतों की संगति कर ली है। उसने अपने आँसुओं रूपी जल से सींचकर प्रभु श्रीकृष्ण के प्रेम रूपी बेल को बढ़ाया है। उसे श्रीकृष्ण का प्रेम मक्खन के समान मूल्यवान प्रतीत होता है और यह संसार मक्खन निकालने के पश्चात् बची हुई छाछ के समान मूल्यहीन लगता है । अंत में मीरा ने बताया है कि वह भक्तों को देखकर प्रसन्न होती है और जगत की अर्थात् सांसारिक प्राणियों की दयनीय दशा को देखकर रोना आता है।


पद की सप्रसंग व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबधी प्रश्नोत्तर

{1}, मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरों न कोई

जाके सिर मोर -मुकुट, मेरो पति सोई

छांड़ि दयी कुल की कानि, कहा करिहै कोई?

संतन ढिंग बैठि-बैठि, लोक-लाज खोयी

अंसुवन जल सींचि -सींचि, प्रेम-बेलि बोयी

अब त बेलि फैलि गयी, आणंद -फल होयी

दूध की मथनियाँ बड़े प्रेम से विलोयी

दधि मथि घृत काढ़ि लियो, डारि दयी छोयी

भगत देखि राजी हुयी, जगत देखि. रोयी।

दासी मीरा लाल गिरधर! तारो अब मोही ॥


शब्दार्थ-गिरधर = गिरि (पर्वत) को धारण करने वाले । गोपाल = गौओं की रक्षा करने वाले। कुल की कानि = कुल की मर्यादा। कहा = क्या। करिंहै = करेगा। ढिग = पास। लोक लाज = समाज की लज्जा। अंसुवन जल = आँसुओं रूपी जल। प्रेम-बेलि = प्रेम रूपी बेल । आणंद = आनंद । मथनियाँ = मथानी। बिलोइ - मथना। दधि = दही। काढ़ि लियो - निकाल लियो। डारि दयी = डाल दी, फेंक दी। राजी = प्रसन्न। रोयी = रोना, निराश होना। मोही = मुझे।


प्रसंग-प्रस्तुत पद हमारी हिंदी की पाठ्य-पुस्तक 'आरोह' भाग-1 में संकलित एवं श्रीकृष्ण भक्तिन मीरा के द्वारा रचित पदों में से लिया गया है। इसमें मीरा की श्रीकृष्ण के प्रति अटूट भक्ति व्यक्तं हुई है। मीरा श्रीकृष्ण को अपना सब कुछ मानती है, वे उसके प्रति इस प्रकार समर्पित हैं कि उसने भक्ति के मार्ग में बाधा डालने वाले अपने सगे-संबंधियों को भी त्याग दिया है।


व्याख्या-मीरा अत्यंत निर्भीक और स्पष्ट रूप से कहती है कि श्रीकृष्ण के बिना मेरा संसार में कोई नहीं है। वह श्रीकृष्ण जिसने गिरि को धारण किया था उनके अतिरिक्त इस जगत में मेरा दूसरा कोई नहीं है। मेरा पति तो केवल यही है जिसने मोर के पंखों से बना मुकुट सिर पर धारण किया हुआ है। उसे छोड़कर मेरा अन्य माता-पिता, भाई- बहन, सगे-संबंधी कोई नहीं हैं। मैंने सबको त्याग दिया है। मुझे तो केवल श्रीकृष्ण का ही सहारा है। मैंने कुल की मर्यादा को भी त्याग दिया है । अब भला मेरा कोई क्या बिगाड़ लेगा। मेरे रक्षक तो केवल भगवान अर्थात् श्रीकृष्ण हैं। मैंने माया से विरक्त संतों के साथ बैठ-बैठकर रही सही लोक-लाज भी खो दी है। मैंने तो अश्रुजल से सींच-सींच कर प्रेम रूपी बेल बोई है जो इस समय बहुत बढ़ चुकी है । अब तो उस प्रेम-बेल पर आनंद रूपी फल भी लगने लगे हैं अर्थात् मीरा को प्रभु श्रीकृष्ण के प्रेम में आनंद की अनुभूति होने लगी है। मीरा पुनः कहती है कि मैंने मथानी डालकर दही को बड़े प्रेम से बिलोया (मथा) है। मैंने उसमें से मक्खन तों निकाल लिया है और छाछ को छोड़ दिया है। कहने का भाव यह हैं कि मैंने खूब सोच-विचार करने के बाद यह निष्कर्ष निकाला है कि ईश्वर की भक्ति ही इस संसार का सार तत्त्व है और शेष संसार या सांसारिकता छाछ के समान है। मैं भक्तों को देखकर प्रसन्न होती हूँ क्योंकि उन्होंने संसार के बंधन को त्याग दिया है और संसार को देखकर रोती हूँ जोकि माया के मोह में फँसा हुआ है। मीरा अपने प्रभु श्रीकृष्ण से विनम्र प्रार्थना करती है कि मैं आपकी दासी हूँ । इसलिए मुझे इस संसार रूपी सागर से पार उतार दो।


विशेष- (1) मीरा की भगवान श्रीकृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम एवं भक्ति भावना व्यक्त हुई है ।

(2) उन्होंने सामाजिक व पारिवारिक मर्यादाओं को अपनी प्रेम-भक्ति में बाधक समझकर उनका विरोध किया है।

(3) वह संसार को मिथ्या, और प्रभु भक्त को सार तत्व बताती है।

(4) संपूर्ण पद संगीत पर आधारित हैं।

(5) प्रेम बेल', 'आनंद फल' आदि में रूपक अलंकार है।

(6) संपूर्ण पद में अनुप्रास अलंकार की छटा है।

(7) बैठि-बैठि, , सींचि-सींचि में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

(8) गिरधर, गोपाल, लाल आदि श्रीकृष्ण के लिए सुंदर विशेषणों का प्रयोग किया गया है।

(9) शांत रस का परिपाक हुआ है।

(10) राजस्थानी भाषा के शब्दों का प्रवोग किया गया है।


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अर्थग्रहण सबधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न (1) कविता एवं कवयित्री का नाम लिखिए।

(2) मीरा ने अपना पति किसे कहा है और वह कैसा है ?

(3) मीरा ने लोक लाज और कुल - मर्यादा को कैसे गवाँ दिया था ?

(4) भगत देखि राजी हुई ज़गत देखि रोयी' पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।

(5) इस पद्यांश के काव्य सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।


उत्तर-(1) कविता का नाम-पद- ।     कवयित्री का नाम-मीरा।


(2) मीरा ने श्रीकृष्ण को अपना पति कहा है। वह श्रीकृण्ण जिसके सिर पर मोर के पंखों से बना मुकट है।


(3) मीरा ने संतों की संगति करके लोक लाज को त्याग दिया था अर्थात् उस समय राज परिवार की स्त्रियों को संतों की संगति में बैठने की अनुमति नहीं थी। इसलिए मीरा ने लोक और कुल मर्यादा दोनों को गवाँ दिया था।


(4) इस पंक्ति के माध्यम से मीरा ने स्पष्ट किया है कि जब वह ईश्वर के भक्तों को देखती है जिन्होंने संसार के मोह को त्याग दिया है तो वह बहुत प्रसन्न होती है, किन्तु जव बह संसार के लोगों को देखती है जो यह जानते हुए भी की संसार नश्वर है, माया का मोह भी झूठा है, किन्तु फिर भी. वे उनका त्याग नहीं करते तो मीरा को बहुत दुःख होता है।


(5) (i) इस पद्यांश में मीरा की श्रीकृष्ण की अनन्य भक्ति- भावना की अभिव्यंजना हुई है।

(ii) यह पद संगीत और मधुरता के कारण मनोरम बन पड़ा है।

(iii) रूपक, अन्योक्ति, पुनरुक्ति प्रकाश एवं अनुप्रास अलंकारों का प्रयोग किया गया है ।

(iv) राजस्थानी भाषा के शब्दों का प्रयोग हुआ है।


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पद-2

पद का सार

प्रश्न- 'पग घुँघरू बाँध मीरा नाची' शीर्षक पद का सार लिखिए।

उत्तर-प्रस्तुत पद में मीरा ने बाह्याडंबरों और लोक-लाज को त्यागकर श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन रहने का उल्लेख किया है। मीरा अपने पाँवों में घुँघरू बाँधकर श्रीकृण्ण के समक्ष नाचते हुए अपनी भक्ति -भावना को प्रदर्शित करती है। लोग मीरा के इस व्यवहार को देखकर उसे पागल बताते हैं। कुल के लोग तो कुल को कलौंकित करने वाली कहकर उसकी निंदा भी करते हैं। राजा मीरा के प्रभु-प्रेम को सहन नहीं कर सकता और उसे मारने के लिए विष का प्याला भी भेजता है जिसे मीरा अमृत समझकर पी जाती है। मीरा श्रीकृष्ण को अपना प्रभु मानती है और कहती है कि वे भक्तों को बडी सरलता एवं सहजता से प्राप्त हो जाते हैं। जो भी प्रभु के प्रति प्रेम भाव रखता है वे उसके सभी काम पूर्ण करते हैं।


पद की सप्रसंग व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

पग घुँघरू बाँधि मीरा नाची,

मैं तो मेरे नारायण सूं, आपहि हो गई साची

लोग कहै, मीरा भइ बावरी; न्यात कहै कुल-नासी

विस का प्याला राणा भेज्या, पीवत मीरा हाँसी

मीरा के प्रभु गिरधर नागर, सहज मिले अविनासी ॥


शब्दार्थ - नारायण = परमात्मा। साची = सच्ची। बावरी = पागल। न्यात = कुटुंब के लोग। कुल नासी = कुल का नाश करने वाली। विस = जहर। हाँसी = हँस पड़ी। अविनासी = कभी नप्ट न होने वाले।


प्रसंग-प्रस्तुत पद हमारी हिंदी की पाठ्य-पुस्तक 'आरोह' भाग-1 में संकलित एवं भक्तिकालीन कृष्ण काव्यथारा की महान कवयित्री मीरा द्वारा रचित है। इसमें उन्होंने हर प्रकार के दिखावे को त्यागकर निडरतापूर्वक प्रभु-भजन करने की प्रेरणा दी है।


व्याख्या-मीरा ने बताया है कि वह प्रभु-भक्ति में इतनी लीन है कि समाज की परवाह किए बिना पाँवों में घुँघरू बाँध कर नाचती है। मीरा कहती है कि मैं अपने नारायण अर्थात् श्रीकृष्ण के समक्ष अपने प्रेम व भक्ति का प्रदर्शन करके स्वयं ही उनके सामने सच्ची हो गई हैं। मीरा ने अपने प्रेम की सच्चाई को अपने प्रभु के समक्ष नाच-नाच कर व्यक्त किया है तो लोगों ने मीरा को पागल अथवा बावली कहा। समाज की दृष्टि में विवाहिता मीरा का श्रीकृष्ण के प्रेम में ऐसे नाचना अनुचित था। उसके संबंधियों ने उसे कुल का नाश कने वाली स्त्री बताया। उनके अनुसार मीरा के इस आचरण से कुल की मर्यादाएँ नष्ट हुई हैं। मीरा की श्रीकृष्ण भक्ति से ईर्ष्यावश राणा ने उसे विष से भरा हुआ प्याला भेजा ताकि वह उसे पीकर मृत्यु की नींद में सो जाए। मीरा ने उसे अमृत समझकर पी लिया। मीरा कहती है कि मेरे प्रभु तो पर्वत को धारण करने वाले श्रीकृष्ण हैं। वे अनश्वर हैं। वे अपने भक्तों को सहज रूप में मिल जाते हैं । कहने का तात्पर्य यह है कि जो भी सच्चे मन से ईश्वर को प्रेम करता है, वे उसे बड़ी आसानी से मिल जाते हैं।


विशेष- (1) इस पद्यांश में मीरा का श्रीकृण्ण के प्रति गहन प्रेम व्यक्त हुआ है।

(2) राजस्थानी भाषा के शब्दों का प्रयोग किया गया है।

(3) शांत रस का वर्णन है।

(4) संपूर्ण पद संगीत पर आधारित है ।

(5) भाषा प्रसाद गुण संपन्न है।


अर्थग्रहण संबधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न (1) कविता एवं कवयित्री का नाम लिखिए।

(2) इस पद्यांश के प्रसंग को स्पष्ट करें।

(3) मीरा को लोग क्या कहते थे और क्यों ?

(4) इस पद्य में मीरा की कौन-सी भावना की अभिव्यंजना हुई है?

(5) प्रस्तुत पद में निहित काव्य-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।


उत्तर-(1) कविता का नाम-पद ।             कवयित्री का नाम - मीरा।

(2) प्रस्तुत पद में मीरा की अनन्य कृष्ण-भक्ति प्रकट हुई है। उन्होंने श्रीकृष्ण के प्रेम और भक्ति में सभी प्रकार की लोक लाज और की मर्यादाएँ तोड़ दी थीं। वह अपने आराध्य देव श्रीकृष्ण के प्रति अपनी भक्त भावना को प्रकट करती हुई ये शब्द कहती है।

(3) मीरा को लोग पागल कहते थे क्योंकि वह दिन-रात श्रीकृष्ण के प्रेम में लोक लाज छोड़कर नाचती-गाती रहती थी। उसकी इन्हीं गतिविधियों को देखकर लोग उसे पागल कहने लगे थे।

(4) इस पद में मीरा की श्रीकृष्ण के प्रति सच्ची भक्ति भावना व्यक्त हुई है। मीरा समाज और कुल की मर्यादा की चिंता किए बिना सदा श्रीकृप्ण की भक्ति में लीन रहती थी। उसे मारने के लिए जब जहर का प्याला भेजा गया तो वह उसे खुशी-खुशी पी गई किन्तु उसका कुछ न बिगड़ा। इससें पता चलता है कि वह श्रीकृष्ण की सच्ची भक्तिन थी।

(5) (i) इस पद में मीरा की भगवान श्रीकृष्ण के प्रति अटूट निष्ठा व्यक्त हुई है।

(ii) चित्रात्मक भाषा-शैली का प्रयोग किया गया है।

(iii) सम्पूर्ण पद में अनुप्रास अलंकार का सुन्दर एवं सहज प्रयोग हुआ है।

(iv) संगीत एवं लय से युक्त भाषा का प्रयोग हुआ है।

(v) भक्ति रस की अभिव्यंजना हुई है ।


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    Thankyou sir

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