Sangatkar Class 10 | Class 10 Hindi Sangatkar | Class 10 Hindi Sangatkar Explanation | संगतकार Class 10
संगतकार
कविता का सार
प्रश्न- 'संगतकार' शीर्षक कविता का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर - ‘संगतकार’ कविता में कवि ने मुख्य गायक का साथ देने वाले संगतकार की भूमिका पर प्रकाश डाला है। कवि ने बताया है कि दृश्य माध्यम की प्रस्तुतियाँ; यथा - नाटक, फिल्म, संगीत नृत्य के बारे में तो यह बिल्कुल सही है। किंतु समाज और इतिहास में भी हम ऐसे अनेक उदाहरण देख सकते हैं। नायक की सफलता में अनेक लोगों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। प्रस्तुत कविता में कवि ने यही संदेश दिया है कि हर व्यक्ति की अपनी-अपनी भूमिका होती है, अपना-अपना महत्त्व होता है। उनका सामने न आना उनकी कमज़ोरी नहीं, अपितु मानवीयता है । युगों से संगतकार अपनी आवाज़ को मुख्य गायक से मिलाते आए हैं। जब मुख्य गायक अंतरे की जटिल तान में खो जाता है या अपने सरगम को लाँघ जाता है, तब संगतकार ही स्थायी पंक्ति को संभालकर आगे बढ़ाता है। ऐसा करके वह मुख्य गायक के गिरते हुए स्वर को ढाँढस बँधाता है। कभी-कभी उसे यह भी अहसास दिलाता है कि वह अकेला नहीं है, उसका साथ देने वाला है। जो राग पहले गाया जा चुका है, उसे फिर से गाया जा सकता है। वह सक्षम होते हुए भी मुख्य गायक के समान अपने स्वर को ऊँचा उठाने का प्रयास नहीं करता। इसे उसकी असफलता नहीं समझनी चाहिए। यह उसकी मानवीयता है, वह ऐसा करके मुख्य गायक के प्रति अपना सम्मान प्रकट करता है।
पद्यांशों के आधार पर अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
1. मुख्य गायक के चट्टान जैसे भारी स्वर का साथ देती
वह आवाज़ सुंदर कमज़ोर काँपती हुई थी
वह मुख्य गायक का छोटा भाई है
या उसका शिष्य
या पैदल चलकर सीखने आने वाला दूर का कोई रिश्तेदार
मुख्य गायक की गरज में
वह अपनी गूँज मिलाता आया है प्राचीन काल से
शब्दार्थ-संगतकार = मुख्य गायक के साथ गायन करने वाला या कोई वाद्य बजाने वाला। मुख्य गायक = प्रधान गायक । शिष्य = चेला। गरज = ऊँची गंभीर आवाज़ | गूँज = स्वर । प्राचीन काल = पुराना समय ।
प्रश्न – (क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) प्रस्तुत पद्यांश का प्रसंग लिखिए ।
(ग) प्रस्तुत काव्यांश की व्याख्या कीजिए ।
(घ) मुख्य गायक की आवाज़ का साथ कौन देती है?
(ङ) संगतकार का स्वर कैसा है?
(च) संगतकार का काम क्या है?
(छ) मुख्य गायक की आवाज़ की प्रमुख विशेषता क्या है ?
(ज) इस काव्यांश के भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए ।
(झ) प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों में निहित शिल्प-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर - (क) कवि का नाम - मंगलेश डबराल कविता का नाम - संगतकार ।
(ख) प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'क्षितिज' भाग 2 में संकलित 'संगतकार' नामक कविता से उद्धृत है। इसके रचयिता श्री मंगलेश डबराल हैं। कवि ने इस कविता में मुख्य गायक के साथ गाने वाले संगतकार की भूमिका का वर्णन करते हुए उसके महत्त्व को प्रतिपादित किया है। संगतकार के बिना मुख्य गायक अधूरा-सा लगता है।
(ग) कवि का कथन है कि जब गायक मंडली का मुख्य गायक अपनी चट्टान जैसी भारी-भरकम आवाज़ में गाता था तो उसका संगतकार सदा उसका साथ देता था। संगतकार की आवाज़ बहुत सुंदर, कमज़ोर और काँपती हुई सी थी । वह संगतकार ऐसा लगता था मानो मुख्य गायक का छोटा भाई हो या उसका कोई शिष्य हो या फिर कोई दूर का संबंधी हो जो पैदल चलकर उसके पास संगीत सीखने आता है। कहने का भाव है कि संगतकार मुख्य गायक से छोटा एवं महत्त्वहीन-सा लगता था । ऐसा उसके व्यवहार से जान पड़ता था । यह संगतकार आज से नहीं प्राचीन काल से मुख्य गायक की गरज में अपना स्वर मिलाता आया है।
(घ) मुख्य गायक की भारी-भरकम आवाज़ का साथ संगतकार की आवाज़ देती है।
(ङ) संगतकार का स्वर सुंदर, कमज़ोर और काँपता हुआ था ।
(च) संगतकार का काम है - मुख्य गायक की गरजदार आवाज में अपनी मधुर-सी गूँज मिलाना । इस प्रकार मुख्य गायक की आवाज को और अधिक बल देकर उसे ऊपर उठाना ।
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(छ) मुख्य गायक की आवाज भारी-भरकम होती हुई भी कड़क और गरजदार है। उसमें चट्टान जैसा भारीपन है।
(ज) मुख्य गायक गाकर अपनी गायन कला का प्रदर्शन करता है। किंतु संगतकार उसकी आवाज़ में अपनी आवाज़ मिलाता ही नहीं, अपितु वह मुख्य गायक के स्वर और दिशा को भी संभालता है। उसे स्वरों से दूर भटकने से रोकता है। इस प्रकार कवि ने इस पद्यांश में संगतकार के महत्त्व को प्रतिपादित किया है।
(झ) ● कवि ने संगीतकार व गायक के साथ-साथ संगतकार के महत्त्व पर प्रकाश डाला है।
● खड़ी बोली का प्रयोग किया गया है।
● सामान्य बोलचाल के शब्दों का सार्थक एवं सटीक प्रयोग किया गया है।
● भाषा प्रसाद गुण संपन्न है।
● उपमा एवं अनुप्रास अलंकारों का प्रयोग हुआ है।
2. गायक जब अंतरे की जटिल तानों के जंगल में
खो चुका होता है या अपने ही
सरगम को लांघकर चला जाता है भटकता हुआ एक अनहद में
तब संगतकार ही स्थायी को सँभाले रहता है
जैसे समेटता हो मुख्य गायक का पीछे छूटा हुआ सामान
जैसे उसे याद दिलाता हो उसका बचपन
जब वह नौसिखिया था
शब्दार्थ–अंतरा = स्थायी टेक को छोड़कर गीत का शेष चरण । जटिल तान = कठिन आलाप | सरगम = स्वरों को उठाना । लाँघकर = पार करके । अनहद = असीम, बहुत दूर, बहुत ऊँचा | स्थायी = गीत की मुख्य टेक, लय । समेटना = इकट्ठा करना । नौसिखिया = जिसने अभी सीखना आरंभ किया हो।
प्रश्न - ( क ) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) इस पद्यांश का प्रसंग लिखिए ।
(ग) प्रस्तुत काव्यांश की व्याख्या कीजिए ।
(घ) 'अंतरे की जटिल तानों के जंगल' से क्या तात्पर्य है?
(ङ) 'सरगम को लाँघने' का अर्थ स्पष्ट करें।
(च) ‘अनहद' का कविता के संदर्भ में क्या अर्थ है ?
(छ) संगतकार मुख्य गायक को नौसिखिया की स्थिति कैसे याद दिलाता है ?
(ज) स्थायी को संभालने का क्या अभिप्राय है ?
(झ) इस पद्यांश के भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए ।
(ञ) प्रस्तुत पद्यांश के शिल्प-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर - (क) कवि का नाम - मंगलेश डबराल | कविता का नाम - संगतकार ।
(ख) प्रस्तुत काव्य-पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक 'क्षितिज' भाग 2 में संकलित 'संगतकार' नामक कविता से ली गई हैं। इस कविता के रचयिता श्री मंगलेश डबराल हैं। इसमें मुख्य गायक के साथ-साथ सम्मान से वंचित सहायकों की भूमिका के महत्त्व पर प्रकाश डाला गया है। भले ही लोग उनका नाम तक लेते हों, किंतु सच्चाई यह है कि मुख्य गायक की सफलता इनके सहयोग पर ही निर्भर करती है।
(ग) कवि कहता है कि मुख्य गायक जब स्वर को लंबा खींचकर अंतरे की कठिन तानों के जंगल में खो जाता है अर्थात् मुख्य गायक जब गीत की मुख्य पंक्ति को गाने के पश्चात् गीत की अन्य पंक्तियों को गाने लगता है तो वह टेढ़े-मेढ़े स्वरों में उलझ जाता है और मुख्य स्वर से भटक जाता है। वह अपने निश्चित स्वरों की सीमा को लाँघकर गहरी संगीत साधना में लीन हो जाता है, असीम-सी मस्ती में डूब जाता है । तब संगतकार ही गीत की मुख्य टेक के स्वर को अलापता रहता है तथा उसे सँभाले रखता है। इस प्रकार वह मुख्य गायक को मूल स्वर में लौटा लाता है। ऐसा लगता है कि मानो वह मुख्य गायक के पीछे छूटे हुए सामान को सँभालने में लगा हो। मानो वह मुख्य गायक को उसके बचपन की याद दिला रहा हो । जब वह नया-नया संगीत सीख रहा था तथा अकसर मूल स्वर को भूल जाता था, तब उसने संगीत में निपुणता प्राप्त नहीं की थी ।
(घ) अंतरे की जटिल तानों के जंगल से तात्पर्य है कि गीत की मुख्य टेक के अतिरिक्त गीत के चरण की अन्य पंक्तियाँ, जिनके स्वर बहुत कठिन एवं अधिक होते हैं ।
(ङ) सरगम को लाँघने का अर्थ है- गीत की मुख्य लय या स्वर की सीमा को भूलकर और अधिक कठिन आलापों में खो जाना और मुख्य स्वर से अधिक ऊँचा स्वर उठाना ।
(च) 'अनहद' का शाब्दिक अर्थ है- असीम, सीमाहीन, अनंत । 'अनहद' का आध्यात्मिक अर्थ है- आध्यात्मिक मस्ती। कविता के संदर्भ में इसका अर्थ है - असीम मस्ती ।
(छ) कभी-कभी मुख्य गायक गीत गाने में इतना डूब जाता है कि गीत के लय व स्वर को भूल जाता है अथवा जटिल तानों में खो जाता है। इससे गीत की मुख्य तान में आघात पहुँचता है । संगतकार उसे वापस मूल स्वर में लौटा लाता है। यही स्थिति किसी नए-नए गीत सीखने वाले की होती है, जो गीत गाते-गाते मुख्य स्वर को भूल जाता है, उस्ताद उसे फिर मुख्य स्वर में लाता है। संगतकार मुख्य गायक को गीत के स्वर में लौटा लाता है। ऐसी स्थिति बचपन में मुख्य गायक की होती थी। इस प्रकार संगतकार मुख्य गायक को उसके बचपन में ले जाता है।
(ज) स्थायी को संभालने का तात्पर्य है किसी गीत की मुख्य पंक्ति या टेक के मुख्य स्वर को गाते रहना। उसकी टेक को बिखरने न देना। उसकी गति, लय आदि को कम या अधिक न होने देना ।
(झ) कवि ने मुख्य गायक के सहायक की भूमिका को अत्यंत मनोरम शब्दों में व्यक्त किया है। मुख्य गायक जब कोई गीत गाता है तो संगतकार उसमें केवल अपनी आवाज़ को ही नहीं मिलाता, अपितु गीत के स्वर को सँभालता भी है। वह उसे स्वरों से दूर भटकने से भी रोकता है तथा उसे सही दिशा में ले जाता है।
(ञ) • कवि ने संगतकार की भूमिका के महत्त्व को अत्यंत कलात्मकतापूर्ण अभिव्यक्ति प्रदान की है।
● अभिधा शब्द-शक्ति के कारण कवि का कथन अत्यंत सरल एवं सहज बन पड़ा है।
● भाषा में बोलचाल के शब्दों का प्रयोग किया गया है।
● अतुकांत छंद का प्रयोग किया गया है।
● रूपक, उत्प्रेक्षा, अनुप्रास आदि अलंकारों का प्रयोग किया गया है।
3. तारसप्तक में जब बैठने लगता है उसका गला
प्रेरणा साथ छोड़ती हुई उत्साह अस्त होता हुआ
आवाज़ से राख जैसा कुछ गिरता हुआ
तभी मुख्य गायक को ढाँढ़स बँधाता
कहीं से चला आता है संगतकार का स्वर
कभी-कभी वह यों ही दे देता है उसका साथ
यह बताने के लिए कि वह अकेला नहीं है
और यह कि फिर से गाया जा सकता है।
गाया जा चुका राग
और उसकी आवाज़ में जो एक हिचक साफ़ सुनाई देती है
या अपने स्वर को ऊँचा न उठाने की जो कोशिश है
उसे विफलता नहीं
उसकी मनुष्यता समझा जाना चाहिए ।
शब्दार्थ-तारसप्तक = सरगम के ऊँचे स्वर | प्रेरणा = आगे बढ़ने की इच्छा शक्ति । उत्साह अस्त होता हुआ = हौंसला कम होता हुआ । राख जैसा = बुझंता हुआ, कम होता हुआ । ढाँढस बँधाना = सांत्वना देना, तसल्ली देना | राग = ताल, लय-स्वर | हिचक = संकोच । विफलता = असफलता। मनुष्यता = मानवता, भलाई की भावना।
प्रश्न - ( क ) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) प्रस्तुत पद्यांश का प्रसंग लिखें।
(ग) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या कीजिए।
(घ) तारसप्तक से क्या तात्पर्य है?
(ङ) किस कारण से गायक की आवाज़ साथ नहीं देती ?
(च) मुख्य गायक को कौन धीरज बँधाता है और कैसे ?
(छ) किसकी आवाज़ में हिचक सुनाई पड़ती है और क्यों ?
(ज) संगतकार अपने स्वर को ऊँचा क्यों नहीं उठने देता ?
(झ) कवि ने किसे मानवता माना है?
(ञ) इस पद्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए ।
(ट) प्रस्तुत काव्यांश में निहित शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए ।
उत्तर - (क) कवि का नाम-मंगलेश डबराल । कविता का नाम - संगतकार ।
(ख) प्रस्तुत काव्यांश श्री मंगलेश डवराल द्वारा रचित सुप्रसिद्ध कविता 'संगतकार' से उद्धृत है। इसमें कवि ने मुख्य गायक के साथ-साथ उसके सहायक के कार्य के महत्त्व को भी उजागर किया है। संगतकार मुख्य गायक के महत्त्व को बढ़ाने में अपनी योग्यता एवं शक्ति को लगा देता है। कवि ने उसकी इसी मनुष्यता को उजागर किया है।
(ग) कवि कहता है कि तारसप्तक को गाते हुए जब उतार-चढ़ाव के कारण मुख्य गायक का गला बैठने लगता है, तो उसकी आवाज़ भी उसका साथ नहीं देती। गाते-गाते उसकी साँस भी उखड़ने लगती है। उसके मंद पड़ते उत्साह को संगतकार ही अपनी आवाज़ का सहारा देकर उसे उबारता है । वह उसे सांत्वना देता है और उसका धैर्य बँधाता है वह कहता है कि तुम अकेले नहीं हो अपितु में भी तुम्हारे साथ हूँ। जिस राग को वह गा रहा है, उसे कोई और भी फिर से गा सकता है अर्थात् संगतकार मुख्य गांयक के गाए हुए राग को उसके पीछे-पीछे दोहराकर बता देना चाहता है कि कोई भी उसे गा सकता है। इससे मुख्य गायक का हौंसला बढ़ता है। कवि कहता है कि संगति करने वाले गायक की आवाज़ में एक संकोच स्पष्ट रूप से अनुभव किया जा सकता है कि वह अपने स्वर को उस्ताद के स्वर से नीचे ही रखता है। इसको उसकी कमज़ोरी न समझकर उसकी मनुष्यता या मानवता ही समझना चाहिए।
(घ) ऊँचे स्वर में गाए गए सरगम को तार सप्तक कहते हैं ।
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(ङ) ऊँचे स्वर में गाते रहने के कारण मुख्य गायक का गला बैठने लगता है, आवाज़ डूबने लगती है। गाने की इच्छा भी नहीं होती। इससे गायक की आवाज़ उसका साथ छोड़ देती है ।
(च) मुख्य गायक को संगतकार धीरज बँधाता है । वह उसके पीछे-पीछे लगातार गाता रहता है । वह उसके डूबते स्वर को सँभाले रहता है।
(छ) मुख्य गायक संगतकार की आवाज़ में हिचक साफ सुनाई देती है क्योंकि वह जान-बूझकर मुख्य गायक की आवाज़ की भाँति खुलकर नहीं गाना चाहता ताकि मुख्य गायक का स्वर उभरकर आ सके ।
(ज) संगतकार अपने स्वर को मुख्य गायक के स्वर से ऊँचा इसलिए नहीं उठाता क्योंकि यह उसका धर्म है। वह मुख्य गायक के स्वर को ऊँचाई और शक्ति देने की भूमिका निभाता है। मुख्य गायक के स्वर से ऊँचे स्वर में गाना उसके लक्ष्य के विरुद्ध है।
(झ) कवि संगतकार द्वारा अपने स्वर को मुख्य गायक के स्वर से कम रखना ही उसकी मनुष्यता मानता है। अपने-आपको पीछे या भूमिका में रखते हुए दूसरों के महत्त्व को बढ़ावा देना ही सच्ची मानवता है।
(ञ) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने संगतकार के माध्यम से बताया है कि मुख्य गायक के सहायक गायक भी महानता में सम्मिलित हैं । वे मुख्य गायक को ऊँचा उठाने की कोशिश में अपने स्वर को और अपने आपको कुछ नीचा रखते हैं । कवि के अनुसार उनका यह त्याग ही उनकी महानता का संकेत है।
(ट) ● भाषा गद्यात्मक किंतु लययुक्त है।
● भाषा सुगम, सरल एवं सुव्यवस्थित है।
● उत्साह अस्त होना, राख जैसा कुछ गिरना आदि प्रतीकात्मक प्रयोग दृष्टव्य हैं ।
● अनुप्रास अलंकार की छटा है ।
● छंद युक्त कविता है।
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ReplyDeleteThank you sir for these questions it really helped me a lot in my pre boards🙏
ReplyDeleteTHANKYOU sir plz RBSE k liye bhi vdeo baana digye PLZZ SIR
ReplyDeleteThank you hindi adhyapak jii 🙌❤️
ReplyDeleteTHANK YOU SIR
ReplyDeleteMere pure ke pure sahi 12/12
ReplyDeleteSir app bhut acchi video banate ho gym bhi Jaya kero aur hamare liye most important q ki video bnao kam se kam 50 question ki Jo direct aaye ussse help milegi byee
ReplyDeleteHindi ka ek sample paper ka video
ReplyDeleteSir pure hindi revise karva do dobara jese chapter na bhule
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