Chota Mera Khet Class 12 | Bagulo ke Pankh Class 12 | Umashankar Joshi Chota Mera Khet | Class 12 Hindi Chapter Bagulon ke Pankh | छोटा मेरा खेत | बगुलों के पंख कविता
छोटा मेरा खेत
कविता का सार
प्रश्न - उमाशंकर जोशी द्वारा रचित 'छोटा मेरा खेत' कविता का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर- इस कविता में कवि ने रूपक का सहारा लेते हुए कवि कर्म को कृषक कर्म के समान सिद्ध किया है। किसान पहले अपने खेत में बीज बोता है। बीज फूटकर पौधा बन जाता है और फिर पुष्पित-पल्लवित होकर पक जाता है। तत्पश्चात् उसकी कटाई करके अनाज निकाला जाता है। जिससे लोगों का पेट भरता है। कवि के अनुसार कागज़ उसका खेत है जब उसके मन में भावनाओं की आंधी आती है तो उसमें बीज बोया जाता है। कल्पना का आश्रय पाकर बीज रूपी भाव विकसित हो जाता है। शब्दों के अंकुर निकलते ही रचना अपना स्वरूप ग्रहण करती है। इस रचना में एक अलौकिक रूप होता है जो अनंत काल तक पाठकों को आनंद प्रदान करती रहती है। कवि की खेती का रस कभी समाप्त नहीं होता ।
पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
सप्रसंग व्याख्या
1. छोटा मेरा खेत चौकोना
कागज़ का एक पन्ना,
कोई अंधड़ कहीं से आया
क्षण का बीज वहाँ बोया गया ।
कल्पना के रसायनों को पी
बीज गल गया निःशेष;
शब्द के अंकुर फूटे,
पल्लव-पुष्पों से नमित हुआ विशेष।
शब्दार्थ–चौकोना = चार कोने वाला । अंधड़ = आँधी का तेज झोंका। क्षण = पल | रसायन = खाद | निःशेष = पूरी तरह से। अंकुर = छोटा पौधा | पल्लव-पुष्प = कोमल पत्ते और फूल । नमित = झुका हुआ।
प्रसंग - प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक 'आरोह भाग 2' में संकलित कविता 'छोटा मेरा खेत' में से उद्धृत है। इसके कवि उमाशंकर जोशी हैं। इन पंक्तियों में कवि ने कवि-कर्म की तुलना किसान-कर्म से की है।
व्याख्या - कवि कहता है कि मैं भी एक किसान हूँ। कागज़ का एक पन्ना मेरे लिए चौकोर खेत के समान है। अंतर केवल इतना है कि किसान ज़मीन से फसल उगाता है और मैं कागज़ पर कविता उगाता हूँ। जिस प्रकार किसान चौकोर खेत में बीज बोता है; उसी प्रकार मेरे मन में भावना की आँधी ने कागज़ के पन्ने पर क्षण का बीज बो दिया। यह भाव रूपी बीज पहले मेरे मन रूपी खेत में बोया जाता है। जिस प्रकार खेत में बोया गया बीज विभिन्न प्रकार के रसायनों अर्थात् हवा, पानी, खाद आदि लेकर स्वयं को पूरी तरह से गला देता है और उसमें से अंकुरित पत्ते और फूल फूट कर निकलते हैं, उसी प्रकार कवि के मन के भाव कल्पना रूपी रसायन को पीकर सर्वजन का विषय बन जाते हैं। वे भाव मेरे न रहकर सभी पाठकों के भाव बन जाते हैं। उन भावों में से शब्द रूपी अंकुर फूटते हैं और ये भाव रूपी पत्तों से लदकर कविता विशेष रूप से झुक जाती है और सभी के आगे नतमस्तक हो जाती है. अर्थात् उसे जो चाहे पढ़ सकता है।
विशेष - (1) यहाँ कवि ने रूपक के द्वारा कवि-कर्म की तुलना किसान के कर्म के साथ की है।
(2) संपूर्ण पद में सांगरूपक अलंकार का सार्थक प्रयोग किया गया है।
(3) ‘पल्लव-पुष्प’ में रूपकातिशयोक्ति अलंकार है। इसी प्रकार 'पल्लव-पुष्प', 'गल गया' और 'बोया गया' में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग हआ है।
(4) अंधड़ शब्द इस बात का द्योतक है कि कविता कभी भी पूर्व-नियोजित नहीं होती। अचानक कोई भाव कवि के मन में प्रस्फुटित होता है और वह कविता का रूप धारण कर लेता है।
(5) सहज, सरल साहित्यिक हिंदी भाषा का सफल प्रयोग है।
(6) ‘बीज गल गया निःशेष' यह सूचित करता है कि कवि के हृदय का भाव जब तक अहम्मुक्त नहीं होता तब तक कविता का रूप धारण नहीं कर सकता।
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पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर-
प्रश्न – (क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) कवि ने अपनी तुलना किसके साथ और क्यों की है?
(ग) अंधड़ किसका प्रतीक है? स्पष्ट करो ।
(घ) इस पद्यांश के आधार पर कवि की रचना प्रक्रिया क्या है ? स्पष्ट करें।
उत्तर - (क) कवि - उमाशंकर जोशी कविता- 'छोटा मेरा खेत'
(ख) कवि ने अपनी तुलना एक किसान के साथ की है। जिस प्रकार किसान अपने खेत में बीज बोता है फिर उसे जल, खाद देकर फसलें उगाता है उसी प्रकार कवि भी कागज़ के पन्ने पर भाव रूपी बीजों को उगाकर कविता की रचना करता है।
(ग) अंधड़ कवि के मन में अचानक उत्पन्न भावना का प्रतीक है। जिस प्रकार आँधी के साथ कोई बीज उड़कर खेत में गिरता है और अंकुरित होकर पौधा बन जाता है, उसी प्रकार कवि के हृदय में अचानक कोई भाव उमड़ता है जिससे जन्म लेती है।
(घ) कविता की रचना-प्रक्रिया फसल उगाने के समान है। सर्वप्रथम कवि के मन में बीज रूपी भाव उमड़ता है। वह भाव कल्पना के रसायन से रंग-रूप धारण करता है । तब वह अह्ममुक्त होकर संप्रेषणीय बन जाता है। फिर कवि शब्दों के द्वारा अपनी भावनाओं को व्यक्त करता है और इस प्रकार कविता की रचना होती है।
सप्रसंग व्याख्या
2. झूमने लगे फल,
रस अलौकिक
अमृत धाराएँ फूटतीं
रोपाई क्षण की,
कटाई अनंतता की
लुटते रहने से जरा भी नहीं कम होती ।
रस का अक्षय पात्र सदा का
छोटा मेर खेत चौकोना ।
शब्दार्थ-अलौकिक = दिव्य । अमृत धाराएँ = रस की धाराएँ । रोपाई = बुआई। अनंतता अक्षय = कभी नष्ट न होने वाला । पात्र = बर्तन |
प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2' में संकलित कविता 'छोटा मेरा खेत' में से अवतरित है । इसके कवि उमाशंकर जोशी हैं। यहाँ कवि स्पष्ट करता है कि कविता किसी विशेष क्षण में उपजे भाव से उत्पन्न होती है।
व्याख्या—कवि कहता है कि जब कवि के हृदय में पलने वाला भाव कविता रूपी फल के रूप में पक जाता है और झूमने लगता है तो उससे एक दिव्य रस टपकने लगता है। इससे आनंद की धाराएँ फूटने लगती हैं। भावों की बुआई तो एक क्षण भर में हुई थी, लेकिन कविता की कटाई अनंतकाल तक चलती रहती है अर्थात् अनंतकाल तक पाठक कविता के रस का आनंद प्राप्त करते रहते हैं। कविता रूपी फसल का आनंद अनंत है। उस रस को जितना भी लुटाओ कभी खाली नहीं होता अर्थात् कविता युगों-युगों तक रस प्रदान करती रहती है। कवि इसे रस का अक्षय पात्र कहता है । यह कविता कवि का चार कोनों वाला छोटा-सा खेत है। जिसमें नश्वर रस समाया हुआ है अर्थात् कविता शाश्वत होती है ।
विशेष—(1) यहाँ कवि ने स्पष्ट किया है कि कविता का आनंद शाश्वत होता है। अनंतकाल तक कविता से रसानुभूति प्राप्त की जा सकती है।
(2) रस शब्द में श्लेष अलंकार का प्रयोग हुआ है।
(3) तत्सम प्रधान संस्कृतनिष्ठ साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग है।
(4) शब्द चयन उचित और भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
(5) मुक्त छंद का सफल प्रयोग किया गया है। संपूर्ण पद में चाक्षुष बिम्ब की सुंदर योजना हुई है।
पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर-
प्रश्न - (क) कवि ने छोटा मेरा खेत चौकोना किसे और क्यों कहा है?
(ख) फल, रस और अमृत धाराएँ किसका प्रतीक हैं ?
(ग) कवि ने रस का अक्षय पात्र किसे और क्यों कहा है?
(घ) 'रोपाई क्षण की कटाई अनंतता' का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर- (क) यहाँ कवि ने अपनी काव्य-रचना को छोटा मेरा खेत चौकोना कहा है। जिस प्रकार किसान चार कोनों वाले खेत में फसलें उगाता है, उसी प्रकार कवि कागज पर अपनी कविता लिखता है ।
(ख) फल, रस और अमृत धाराएँ काव्य-रचना से प्राप्त होने वाले आनंद और रस का प्रतीक हैं।
(ग) कवि ने कविता को ही रस का अक्षय पात्र कहा है। कारण यह है कि कविता का रस अनंत है। वह कभी समाप्त नहीं होता। किसी भी युग अथवा काल का व्यक्ति उसे पढ़कर आनंद प्राप्त कर सकता है। इसीलिए वह रस का अक्षय पात्र कही गई है।
(घ) कविता अचानक भावनामय क्षण में लिखी जाती है परंतु वह अनंतकाल तक पाठकों को आनंदानुभूति प्रदान करती रहती है। कविता का आनंद चाहे जितना भी लुटाया जाए वह कभी समाप्त नहीं होता।
2. बगुलों के पंख
कविता का सार
प्रश्न- उमाशंकर जोशी द्वारा रचित 'बगुलों के पंख' कविता का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर- इस लघु कविता में कवि ने प्रकृति सौंदर्य का मनोरम वर्णन किया है। आकाश में काले-काले बादल दिखाई दे रहे है। उन बादलों में सफेद पंखों वाले बगुले पंक्तिबद्ध होकर उड़े जा रहे हैं। ऐसा लगता है कि सायंकाल में कोई श्वेत काया तैर रही है। बगुलों की पंक्तियों का यह सौंदर्य कवि की आँखों को अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। कवि चाहता है कि वह इन बगुलों को निरंतर देखता रहे। परंतु बगुले तो उड़े जा रहे हैं। यदि उन्हें कोई रोक ले तो कवि इस सौंदर्य को निरंतर देखता रह सकता है।
सप्रसंग व्याख्या
नभ में पाँती-बँधे बगुलों के पंख,
चुराए लिए जातीं वे मेरी आँखें।
कजरारे बादलों की छाई नभ छाया,
साँझ की सतेज श्वेत काया।
हौले हौले जाती मुझे बाँध निज माया से।
उसे कोई तनिक रोक रक्खो।
वह तो चुराए लिए जाती मेरी आँखें
नभ में पाँती-बँधी बगुलों की पाँखें।
शब्दार्थ - नभ = आकाश। पाँती = पंक्ति = कजरारे = काले । साँझ = सायंकाल । श्वेत = सफेद | सतेज = चमकीला । माया = जादू । तनिक = कुछ देर के लिए, थोड़ा ।
प्रसंग - प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक 'आरोह भाग 2' में संकलित 'बगुलों के पंख' नामक कविता में से उद्धृत है। इसके कवि उमाशंकर जोशी हैं। यहाँ कवि ने प्रकृति के आलंबन रूप का मनोहारी वर्णन किया है।
व्याख्या - कवि कहता है कि आकाश में बगुले अपने पंख फैलाकर पंक्तिबद्ध होकर उड़े चले जा रहे हैं। वे इतने आकर्षक और मनोहारी हैं कि मेरी आँखें एकटक उन्हीं को देख रही हैं। लगता है ये मेरी आँखों को चुराकर ले जा रहे हैं। आकाश में काले बादलों की छाया फैली हुई है। उसे देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि मानो सायंकाल की श्वेत, चमकीली काया आकाश में तैर रही है। यह साँझ धीरे-धीरे आकाश में विहार कर रही है और मुझे अपने जादू में बाँधे हुए है। कवि के मन में अचानक यह भय पैदा होता है कि कहीं यह रमणीय दृश्य उसकी आँखों से ओझल न हो जाए। इसीलिए वह कहता है कि कोई इसे थोड़ी देर तक रोक कर रखो। मैं इस सुंदर दृश्य को थोड़ी देर तक देखना चाहता हूँ। आकाश में पंक्तिवद्ध बगुलों के पंख मेरी आँखों को चुरा कर ले जा रहे हैं। मैं एकटक उन्हें देख रहा हूँ। इन्हें रोक लो । ताकि मैं इस सुंदर दृश्य का आनंद ले सकूँ ।
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विशेष - (1) यहाँ कवि ने प्रकृति के आलंबन रूप का चित्रण करते हुए साँझ के आकाश में बगुलों की पंक्ति का मनोरम चित्रण किया है ।
(2) प्रकृति का सुंदर मानवीकरण किया गया है। अतः मानवीकरण अलंकार है। पुनरुक्ति प्रकाश, अनुप्रास तथा उत्प्रेक्षा अलंकारों का सुंदर प्रयोग है।
(3) 'आँखें चुराना' मुहावरे का सुंदर प्रयोग है।
(4) तत्सम प्रधान साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है। शब्द-चयन भावानुकूल और अर्थ की अभिव्यक्ति में सक्षम है।
(5) 'पाँती बाँधी' 'हौले हौले' आदि प्रयोग विशेष रूप से कोमल बन पड़े हैं ।
(6) संपूर्ण पद में चाक्षुष बिंब की सुंदर योजना हुई है।
पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर-
प्रश्न - (क) कवि और कविता का नाम लिखिए।
(ख) कवि किस दृश्य पर मुग्ध हो गया है ?
(ग) 'आँखें चुराने' का अर्थ क्या है?
(घ) कवि किसे रोके रखना चाहता है और क्यों ?
उत्तर - (क) कवि - उमाशंकर जोशी कविता - बगुलों के पंख
(ख) कवि काले बादलों की छाई घटा में सायंकाल के समय आकाश में उड़ने वाले बगुलों की पंक्ति देखकर उस पर मुग्ध हो गया है, क्योंकि प्रकृति का यह दृश्य मनोहारी बन पड़ा है।
(ग) ‘आँखें चुराने' का अर्थ है- ध्यान को आकृष्ट कर लेना जिससे देखने वाला व्यक्ति दृश्य पर मुग्ध हो जाए।
(घ) कवि सायंकाल में काले बादलों के बीच आकाश में उड़ते हुए बगुलों की पंक्तियों के दृश्य को रोकना चाहता है ताकि वह इस दृश्य को निरंतर निहार सके। प्रकृति के इस मनोरम दृश्य ने कवि को अपनी ओर भावुक कर लिया है ।


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ReplyDelete👍👍👍
DeleteVery nice it's very helpful for us . thanks 🙏
ReplyDeletenice explanation👍🏼💗
ReplyDeleteVery nice 🙂
ReplyDeleteVery nice 🙂
ReplyDeleteExcellent sir 👍🏻👍🏻 and thank you 🙂
ReplyDeleteExcellent sir bahut achha padhate ho 👍🏼
ReplyDeleteThankyouu so much sir😊 it is very helpful ✨
ReplyDeleteThank you sir bhot accha explaination tha 😊😊
ReplyDeleteVery very very good explanation sir thank you so much
ReplyDeleteBoss tussi great hu taufaa kubul karo
ReplyDeleteGreat!! Thank you so much sir !!!😁😄
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