Patang Class 12 Hindi | Class 12 Patang | Class 12 Patang Explanation | पतंग Class 12 | पतंग क्लास 12

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 पतंग

कविता का सार

प्रश्न - आलोक धन्वा द्वारा रचित कविता 'पतंग' का सार अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर - प्रस्तुत कविता आलोक धन्वा कवि के एकमात्र काव्य संग्रह 'दुनिया रोज़ बनती है' में से संकलित है। यह पूरी कविता न होकर 'पतंग' नामक कविता का एक अंश मात्र है। इसमें कवि ने पतंग के माध्यम से बच्चों की उमंग, उल्लास तथा खुशियों का मनोहारी वर्णन किया है । यह कविता दृश्य एवं श्रव्य बिंबों के लिए प्रसिद्ध है। कवि लिखता है कि भादो के महीने के बीत जाने के बाद शरद ऋतु का सवेरा होता है। आकाश से काले बादल छँट जाते हैं। शरद ऋतु मानों नई चमकीली साइकिल चलाकर बच्चों को पतंग उड़ाने का निमंत्रण देती है। बच्चों के पास ऊर्जा है और पतंग उनके सपनों का प्रतीक है। पतंग के समान बच्चों के सपने बड़े हलके होते हैं। शीघ्र ही पतंग उड़ाने वाले बच्चों का एक समूह साकार हो उठता है । पतंग उड़ाने वाले बच्चे जन्म से ही कोमल तथा हलके शरीर वाले होते हैं । पृथ्वी उनके पैरों के पास घूमती हुई आती है तथा वे अपनी मस्ती में छतों तथा दीवारों पर पतंग उड़ाते हुए नज़र आते हैं। छतों की कठोरता उनके लिए नरम हो जाती है। बच्चों को गिरने का भय नहीं होता। यदि वे कहीं गिर भी जाते हैं तो उनमें क्षमता और अधिक मजबूत हो जाती है। ऐसा लगता है मानों वे अपनी पतंग की डोर के सहारे पतंगों के साथ उड़ते नज़र आते हैं। वे उन्मत्त होकर आगे बढ़ते हैं और अपने सपनों को पूरा करने के लिए उड़ान भरते रहते हैं। पतंग उड़ाने से बच्चों का आत्मविश्वास और अधिक बढ़ जाता है ।


[1] पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

सप्रसंग व्याख्या

सबसे तेज़ बौछारें गयीं भादो गया

सवेरा हुआ

खरगोश की आँखों जैसा लाल सवेरा

शरद आया पुलों को पार करते हुए

अपनी नयी चमकीली साइकिल तेज़ चलाते हुए

घंटी बजाते हुए ज़ोर-ज़ोर से

चमकीले इशारों से बुलाते हुए

पतंग उड़ाने वाले बच्चों के झुंड को

चमकीले इशारों से बुलाते हुए और

आकाश को इतना मुलायम बनाते हुए 

कि पतंग ऊपर उठ सके-

दुनिया की सबसे हलकी और रंगीन चीज़ उड़ सके

दुनिया का सबसे पतला कागज़ उड़ सके -

बाँस की सबसे पतली कमानी उड़ सके-

कि शुरू हो सके सीटियों, किलकारियों और

तितलियों की इतनी नाज़ुक दुनिया


शब्दार्थ – भादो = एक महीना जिसमें मूसलाधार वर्षा होती है। शरद = सर्दी का प्रथम माह । झुंड मुलायम = कोमल। किलकारी खुशी से चिल्लाना। नाज़ुक = कोमल।


प्रसंग - प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक, 'आरोह भाग 2' में संकलित कविता 'पतंग' से अवतरित है। इसके आलोक धन्वा हैं। यह कविता कवि के एकमात्र संग्रह 'दुनिया रोज़ बनती है' में संकलित है । इस कविता में कवि ने वर्षा ऋतु के पश्चात् बच्चों द्वारा पतंग उड़ाने के उत्साह का सजीव वर्णन किया है । 


व्याख्या - कवि कहता है कि भादो का महीना अब बीत गया है। उसके साथ-साथ मूसलाधार वर्षा भी अब बंद हो गई है। अब अंधेरे के बाद एक नवीन सवेरा हो गया है अर्थात् अब आकाश साफ है । खरगोश की आँखों के समान शरदकालीन लाल-भूरा सवेरा हो गया है। शरद ऋतु आरंभ हो चुकी है। चारों ओर उमंग तथा उत्साह का वातावरण फैल गया है। पुलों को पार करते हुए, नई चमकीली साइकिलों पर सवार होकर बच्चे ज़ोर-ज़ोर से घंटियाँ बजाते हुए बड़ी तीव्र गति से चले आ रहे हैं । वे बड़े ही आकर्षक इशारों से पतंग उड़ाने वाले बच्चों को निमंत्रण देते हुए आकाश को अत्यधिक कोमल बना रहे हैं। भाव यह है कि बच्चे साइकिलों पर सवार होकर एक-दूसरे को पतंगबाज़ी के लिए बुला रहे हैं। बच्चों में अद्भुत उत्साह और उमंग है । धूप चमक रही है। बच्चे बड़े खुश नज़र आ रहे हैं और एक-दूसरे को पतंग उड़ाने के लिए बुला रहे हैं ।

शरद ऋतु रूपी बालक ने आकाश को अत्यधिक कोमल और उज्ज्वल बना दिया है, ताकि आकाश की ऊँचाइयों को पतंग स्पर्श कर सकें। आकाश भी चाहता है कि पतंग ऊपर उठ कर हवा के साथ तैरने लगे। पतंग संसार की सर्वाधिक हलकी और रंगीन वस्तु है जो कि बहुत ही पतले कागज़ से बनाई जाती है । आकाश रूपी बालक चाहता है कि वह उड़कर ऊपर उठे और उसके साथ बाँस की पतली कमानी भी उड़ने लगे। जब आकाश में पतंग उड़ने लगी तो बच्चे खुशी के मारे सीटियाँ बजाएँगे और किलकारियाँ मारने लगेंगे। सारा आकाश पतंगों से भर जाएगा। तब ऐसा लगेगा मानों रंग-बिरंगी कोमल तितलियों का संसार आकाश में उड़ रहा है। तात्पर्य यह है कि सारा आकाश रंग-बिरंगी पतंगों से भर जाएगा और बच्चे सीटियाँ बजाकर तथा किलकारियाँ मारकर एक-दूसरे का उत्साह बढ़ाएँगे ।


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विशेष - (1) कवि ने शरद ऋतु में बच्चों द्वारा पतंग उड़ाने के दृश्य का मनोरम वर्णन किया है ।

(2) 'खरगोश की आँखों जैसा लाल' में उपमा अलंकार का प्रयोग है

(3) प्रकृति का सुंदर मानवीकरण किया गया है।

(4) संपूर्ण पद्य में दृश्य, श्रव्य तथा स्पर्श बिंवों की सुंदर योजना हुई है ।

(5) 'ज़ोर-ज़ोर से' में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार का प्रयोग है।

(6) सहज, सरल तथा आडम्बरहीन सामान्य हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है ।

(7) शब्द प्रयोग सर्वथा उचित एवं भावाभिव्यक्ति में सहायक है।

(8) संपूर्ण पद्य में मुक्त छंद की सुंदर योजना है।


पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर-

प्रश्न - ( क ) कवि तथा कविता का नाम बताइए।

(ख) कवि ने शरद ऋतु के आगमन को किस प्रकार प्रस्तुत किया है ?

(ग) कवि ने पतंग की क्या-क्या विशेषताएँ बताई हैं?

(घ) शरद ऋतु के आने पर बच्चे किस प्रकार की क्रियाएँ करते हैं?

(ङ) तितलियों की नाज़ुक दुनिया से कवि का क्या अभिप्राय है?


उत्तर - (क) कवि का नाम - आलोक धन्वा ।             कविता का नाम- 'पतंग'


(ख) शरद ऋतु का आगमन बच्चों में एक नवीन उत्साह व उमंग भर देता है । इस ऋतु में चारों ओर चहल-पहल बढ़ जाती है। बच्चे साइकिलों पर सवार होकर घंटियाँ बजाते हुए एक-दूसरे को पतंग उड़ाने के लिए इशारे करते हैं।


(ग) पतंग रंग-बिरंगे तथा पतले कागज़ से बनी होती है, उनमें बांस की सबसे पतली कमानी लगी रहती है और वे सुंदर तितलियों के समान आकाश में उड़ती हैं ।


(घ) शरद ऋतु के आते ही चारों ओर बच्चों की चहल-पहल मच जाती है। वे खेल-कूद करते हैं और नई-नई साइकिलों पर सवार होकर घंटियाँ बजाते हैं । पतंग उड़ाते समय किलकारियाँ मारते हैं तथा सीटियाँ बजाते हैं । इस ऋतु में बच्चों को आकाश बड़ा ही कोमल और सुंदर लगता है।


(ङ) तितलियों की नाज़ुक दुनिया से कवि का अभिप्राय है- रंगीन पतंगों का आकर्षक संसार। रंगीन पतंगें कोमल आकाश में तितलियों की तरह मँडराती हैं और हवा में लहराती हैं ।


सप्रसंग व्याख्या

[2] जन्म से ही वे अपने साथ लाते हैं कपास.

पृथ्वी घूमती हुई आती है उनके बेचैन पैरों के पास

जब वे दौड़ते हैं बेसुध

छतों को भी नरम बनाते हुए

दिशाओं को मृदंग की तरह बजाते हुए

जब वे पेंग भरते हुए चले आते हैं

डाल की तरह लचीले वेग से अकसर

छतों के खतरनाक किनारों तक-

उस समय गिरने से बचाता है उन्हें

सिर्फ़ उनके ही रोमांचित शरीर का संगीत

पतंगों की धड़कती ऊँचाइयाँ उन्हें थाम लेती हैं महज़ एक धागे के सहारे

पतंगों के साथ-साथ वे भी उड़ रहे हैं

अपने रंध्रों के सहारे

शब्दार्थ- कपास = कोमल तथा गद्देदार अनुभूतियाँ | बेसुध = मस्त और लापरवाह | नरम = कोमल। मृदंग = एक वाद्य यंत्र जिसकी ध्वनि बड़ी मधुर होती है। पेंग भरना = झूले झूलना । लचीले वेग = लचीली चाल । रोमांचित प्रसन्न संगीत = मस्त  गति । थाम लेना = पकड़ लेना। महज = केवल | रंध्र = छिद्र ।


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प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक 'आरोह भाग 2' में संकलित कविता 'पतंग' से अवतरित है। इसके कवि आलोक धन्वा हैं। यह कविता कवि के एकमात्र संग्रह 'दुनिया रोज़ बनती है' में संकलित है। इस कविता में कवि ने लाक्षणिक भाषा का प्रयोग करते हुए बच्चों की क्रियाओं पर प्रकाश डाला है


व्याख्या-कवि कहता है कि बच्चे जन्म से ही अपने साथ कपास जैसी कोमलता लेकर आते हैं। भाव यह है कि उनके शरीर हर प्रकार की चोट और खरोंच सहन करने की शक्ति होती है। उनके पैरों में एक बेचैनी होती है जिसके कारण वे संपूर्ण पृथ्वी को नाप लेना चाहते हैं। जब बच्चे बेपरवाह होकर दौड़ने लगते हैं तो वे छतों को भी कोमल समझने लगते हैं। उनकी गति के कारण दिशाएँ मृदंग के समान मधुर ध्वनि उत्पन्न करने लगती हैं। जब वे तीव्र गति के साथ झूला झूलते हुए चलते हैं, तो वे पेड़ की शाखा समान ढीले पड़ जाते हैं। उस समय उनकी गति में एक प्रखर वेग होता है, उन्हें किसी प्रकार का डर नहीं होता । छतों के खतरनाक किनारों पर भी वे कदम रखते हुए आगे बढ़ते हैं । उस समय उनका प्रसन्न शरीर ही उन्हें गिरने से बचाता है । पतंग उड़ाते समय उनका संपूर्ण शरीर रोमांचित हो उठता है । पतंग की ऊपर जाती धड़कनें उन्हें गिरने से रोक लेती हैं । उस समय ऐसा प्रतीत. होता है मानों पतंग का केवल एक धागा बच्चों को संभाल लेता है और वे नीचे गिरने से बच जाते हैं । यहाँ कवि पतंग उड़ाने वाले बच्चों का वर्णन करता हुआ कहता है कि कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि बच्चे भी पतंगों के साथ उड़ने लगे हैं। वे अपने शरीर के रोम-कूपों से निकलने वाले संगीत का सहारा लेकर उड़ने लगते हैं।


विशेष (1) इस पद्यांश में कवि ने पतंग उड़ाते हुए बच्चों की बेसुध मस्ती का सजीव वर्णन किया है।

(2) बच्चों की तीव्र गति, झूलता हुआ शरीर, उनके रोमांचित अंग तथा लचीला वेग, उनके उत्साह और उमंग को व्यक्त करता है ।

(3) 'कपास' शब्द का विशेष प्रयोग हुआ है । इस शब्द द्वारा कवि बच्चों के शरीर की लोच, नरमी तथा सहनशीलता की ओर संकेत करता है ।

(4). संपूर्ण पद्य में मानवीकरण अलंकार का सुंदर प्रयोग हुआ है; यथा-

' पृथ्वी घूमती हुई आती है उनके बेचैन पैरों के पास

पतंगों की धड़कती ऊँचाइयाँ उन्हें थाम लेती हैं ।

दिशाओं को मृदंग की तरह बजाते हुए।'


(5) संपूर्ण पद्य में दृश्य, स्पर्श तथा श्रव्य बिंबों की सुंदर योजना हुई है। कवि ने सहज, सरल अथवा सामान्य प्रवाहमयी हिंदी भाषा का प्रयोग किया है। इसमें तत्सम, तद्भव तथा उर्दू के शब्दों का सुंदर मिश्रण देखा जा सकता है।

तत्सम - पृथ्वी, मृदंग, दिशा, रोमांचित, संगीत ।

उर्दू-नरम, खतरनाक, अकसर, सिर्फ़, महज़।


(6) शब्द - योजना सटीक और भावानुकूल है।

(7) मुक्त छंद का सफल प्रयोग है।


 पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर-

प्रश्न – (क) 'जन्म से ही वे अपने साथ लाते हैं कपास' इस पंक्ति का बच्चों के साथ क्या संबंध है ?

(ख) बच्चे बेसुध होकर क्यों दौड़ते हैं ?

(ग) छतों के खतरनाक किनारों से बच्चे कैसे बच जाते हैं?

(घ) पतंगों की धड़कती ऊँचाइयाँ उन्हें कैसे थाम लेती हैं?


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उत्तर - (क) बच्चों का शरीर बड़ा ही कोमल होता है। उनका शरीर कोमलता के साथ-साथ सहनशील भी होता है। वे चोट और खरोंच लगने के आदी हो जाते हैं। उनके शरीर में लचीलापन होता है। किसी चीज से टकराने पर उन्हें बहुत कम चोट लगती है। इसलिए कवि ने बच्चों की तुलना कपास से की है।


(ख) बच्चों के मन में पतंग उड़ाने की बेचैनी होती है। पतंगबाज़ी करते समय बच्चों को धूप, गर्मी, कठोर छत आदि का ध्यान नहीं रहता। वे उछलते-कूदते और पतंग की डोर को थामे हुए पतंग उड़ाने में मस्त हो जाते हैं। इसलिए वे बेसुध होकर दौड़ते हैं ।


(ग) प्रायः सभी को दीवार से गिरने का डर लगा रहता है, परंतु बच्चे बेसुध होकर अपने शरीर को लहराते हुए छतों के किनारों पर झुक जाते हैं, इस अवसर पर उनके अन्दर का उत्साह और उमंग उनकी रक्षा करता है और वे गिरने से बच जाते हैं ।


(घ) पतंग की ऊपर उड़ती हुई धड़कनें बच्चों को गिरने से रोक लेती हैं। उस समय पतंग की डोर बच्चों के लिए सहारे का काम करती है और वे स्वयं को सँभाल लेते हैं



सप्रसंग व्याख्या

[3] अगर वे कभी गिरते हैं छत के खतरनाक किनारों से

और बच जाते हैं तब तो

और भी निडर होकर सुनहले सूरज के सामने आते हैं

पृथ्वी और भी तेज़ घूमती हुई आती है ।

उनके बेचैन पैरों के पास।


शब्दार्थ- खतरनाक = भयानक। निडर = निर्भय । बेचैन = व्याकुल ।

प्रसंग - प्रस्तुत पद्य हिंदी की पाठ्यपुस्तक 'आरोह भाग 2' में संकलित कविता 'पतंग' से अवतरित है। इसके कवि आलोक धन्वा हैं। यह कविता कवि के एकमात्र काव्यसंग्रह 'दुनिया रोज़ बनती है' में संकलित है। इसमें कवि ने बच्चों द्वारा पतंग उड़ाने का बहुत ही सजीव व मनोहारी वर्णन किया है।


व्याख्या- बच्चे प्रायः पतंग उड़ाते समय कभी नहीं गिरते, परंतु दुर्भाग्य से कभी वे छतों के खतरनाक किनारों से गिर भी जाते हैं तो वे बच जाते हैं और वे अधिक निर्भय हो जाते हैं। अत्यधिक उत्साह के साथ वे सुनहले सूर्य के समान प्रकाशमान हो उठते हैं। ऐसा लगता है कि वे अपने बेचैन पैरों के साथ सारी पृथ्वी को नाप लेना चाहते हैं, वे दुगुने उत्साह के साथ घूमते-फिरते हैं और भाग-भागकर पतंग उड़ाते हैं।


विशेष–(1) कवि ने पतंग उड़ाते हुए बच्चों की उमंग तथा मस्ती का बड़ा प्रभावशाली वर्णन किया है।

(2) संपूर्ण पद्य में लाक्षणिक भाषा का सुंदर प्रयोग हुआ है।

(3) उदाहरण के रूप में 'सुनहले सूरज के सामने' आदि में लाक्षणिकता विद्यमान है।

(4) 'पृथ्वी का तेज़ घूमते हुए बच्चों के पास आना' में मानवीकरण अलंकार का प्रयोग हुआ है।

(5) ‘सुनहले सूरज’ में अनुप्रास अलंकार तथा साथ-साथ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार का सुंदर वर्णन हुआ है।

(6) सहज, सरल एवं प्रवाहमयी हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।

(7) शब्द-योजना सटीक एवं भावानुकूल है ।

(8) संपूर्ण पद्य में दृश्य बिंब की सफल योजना हुई है।

(9) मुक्त छंद का सफल प्रयोग हुआ है।


पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर-

प्रश्न - (क) कवि और कविता का नाम बताइए।

(ख) छतों के खतरनाक किनारों से बच जाने पर बच्चों पर क्या प्रभाव पड़ता है ?

(ग) सुनहले सूरज के सामने आने का क्या अर्थ है ?

(घ) पृथ्वी बच्चों के बेचैन पैरों के पास घूमंती हुई आती है, इसका आशय क्या है?


उत्तर- (क) कवि-आलोक धन्वा        कविता--'पतंग' ।


(ख) जब बच्चे छतों के खतरनाक किनारों से बच जाते हैं तो वे और अधिक निडर हो जाते हैं। उनमें किसी भी विपत्ति और कष्ट को सहन करने की शक्ति उत्पन्न हो जाती है। तब वे खुले आसमान में तपते हुए सुनहले सूर्य के समान दिखाई देने लगते हैं।


(ग) सुनहले सूर्य के सामने आने का अर्थ है--सूर्य के समान तेज़ से युक्त होकर सक्ति हो जाना। जिस प्रकार सूर्य अपना तीव्र प्रकाश पृथ्वी के कोने-कोने पर फैलाता है उसी प्रकार बच्चे भी पतंग उड़ाते हुए मौज-मस्ती में चारों ओर फैल जाना चाहते हैं । उनके मन का भय समाप्त हो जाता है।"


(घ) 'पृथ्वी तेज घूमती हुई बच्चों के बेचैन पैरों के पास आती है' का तात्पर्य है-- बच्चों के पैरों में गतिशीलता पैदा होना। बच्चे पतंग उड़ाते समय मानों सारी पृथ्वी को नाप लेना चाहते हैं।


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  1. No doubt, as you have explained very nicely.

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  2. छंद को अलग अलग लिखा करो अच्छे से समझ आता है।

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  3. Best explanation ever

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  4. You are doing too good sir i want to thank you from the bottom of my heart 💜

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  5. Sir Sanskrit aur vitan ka bhi mil jata to acha hota

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