Vaakh Class 9 Hindi | Laldyad ke Vaakh Class 9 | Class 9 Vakh | वाख Class 9 | Vakh Class 9
कविता का सार
प्रश्न- पाठ्यपुस्तक में संकलित 'वाख' शीर्षक कविता का सार अपने शब्दों में लिखिए ।
उत्तर–ललद्यद की प्रस्तुत मानव-जीवन कच्चे धागे के समान कमजोर के लिए हठयोग जैसी भक्ति-पद्धति की अपेक्षा सहज एवं स्वाभाविक भक्ति-पद्धति पर बल दिया है। अंतिम पद में ललद्यद ने ईश्वर की सर्वव्यापकता पर प्रकाश डाला है। उनके अनुसार ईश्वर कण-कण में बसता है । उसकी दृष्टि में हिंदू और मुसलमान आदि का कोई भेदभाव नहीं है। सब ईश्वर की संतान हैं । आत्मज्ञान से ही हम स्वयं को और ईश्वर को पहचान सकते हैं । अतः स्पष्ट है कि. भक्तिकालीन अन्य संतकवियों की भाँति ही ललद्यद का काव्य भी मानव-जीवन से जुड़ा हुआ है।
अर्थग्रहण एवं सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर
1. रस्सी कच्चे धागे की, खींच रही मैं नाव ।
जाने कब सुन मेरी पुकार, करें देव भवसागर पार।
पानी टपके कच्चे सकोरे, व्यर्थ प्रयास हो रहे मेरे ।
जी में उठती रह-रह हूक, घर जाने की चाह है घेरे ॥
शब्दार्थ- रस्सी कच्चे धागे कमजोर व नाशवान सहारे । सकोरा = मिट्टी का बना छोटा कटोरा । हूक = पीड़ा ।
प्रश्न (1) कवयित्री एवं कविता का नाम लिखिए ।
(2) प्रस्तुत पद की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए।
(3) प्रस्तुत काव्यांश का भाव - सौंदर्य स्पष्ट कीजिए ।
(4) प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य / शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए ।
(5) कवयित्री ने जीवन की नश्वरता को व्यक्त करने के लिए कौन-से उदाहरण दिए हैं ?
(6) 'घर जाने की चाह है घेरे' - में कौन-से 'घर' की ओर संकेत किया गया है ?
उत्तर – (1) कवयित्री - ललद्यद । कविता – वाख।
(2) व्याख्या - कवयित्री का कथन है कि मैं अपनी जीवन रूपी नाव को कच्चे धागों के समान साधनों से खींच रही हूँ अर्थात संसार रूपी सागर से जीवन रूपी नाव को सांसारिक एवं नश्वर उपायों द्वारा पार ले जाने का प्रयास कर रही हूँ। न जाने ईश्वर कब मेरी प्रार्थना सुनकर मेरी जीवन रूपी नाव को संसार रूपी सागर से पार करेंगे । मेरा यह जीवन मिट्टी के सकोरे के समान नाशवान एवं क्षणभंगुर है। जैसे कच्ची मिट्टी का सकोरा पानी लगने से गलकर टूट जाता है; ऐसा ही मेरा जीवन नश्वर है। इसलिए जीवन की इस नाव को खींचने के मेरे सारे प्रयास व्यर्थ प्रतीत होते हैं । संसार एवं जीवन की नश्वरता को देखकर मेरे हृदय में एक तीव्र पीड़ा उठती रहती है और अपने घर अर्थात ईश्वर के पास जाने की इच्छा सदैव घेरे रहती है।
भावार्थ – कवयित्री के कहने का भाव है कि मानव जीवन नश्वर एवं क्षणिक है। उसके द्वारा संसार रूपी सागर को तब तक पार नहीं किया जा सकता जब तक ईश्वर की कृपा न हो।
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(3) प्रस्तुत काव्यांश में कवयित्री ने मानव जीवन की तुलना कच्चे धागे एवं कच्ची मिट्टी के सकोरे से करके उसकी नश्वरता एवं क्षणभंगुरता को व्यक्त किया है। साथ ही कवयित्री ने प्रभु से अपनी मुक्ति हेतु प्रार्थना की है। प्रभु - मिलन की आत्मा की व्याकुलता को भी उद्घाटित किया गया है।.
(4) (क) प्रस्तुत पद्य 'वाख' शैली में रचित है।
(ख) 'नाव' तथा 'भवसागर' में रूपक अलंकार है।
(ग) 'रह-रह' में वीप्सा अलंकार का प्रयोग है।
(घ) भाषा सरल, सहज एवं भावानुकूल है।
(ङ) संपूर्ण पद में संगीतात्मकता है।
(5) कवयित्री ने जीवन की नश्वरता को उजागर करने के लिए कच्चे धागे और सकोरे के उदाहरण प्रस्तुत किए हैं ।
( 6 ) प्रस्तुत काव्यांश में कवयित्री ने आत्मा के वास्तविक घर परमात्मा के पास जाने का संकेत किया है ।
2. खा-खाकर कुछ पाएगा नहीं,
न खाकर बनेगा अहंकारी।
सम खा तभी होगा समभावी,
खुलेगी साँकल बंद द्वार की ।
शब्दार्थ-अहंकारी = घमंडी | सम ( शम) = अंतःकरण एवं बाह्य- इंद्रियों का निग्रह (इंद्रियों को उनके विषयों से विमुख करके ईश्वर में लगाना)। समभावी = समानता की भावना। खुलेंगी साँकल बंद द्वार की = चेतना व्यापक होगी, मन मुक्त होना।
प्रश्न (1) कवयित्री एवं कविता का नाम लिखिए ।
(2) प्रस्तुत पद की व्याख्या एवं भावार्थ अपने शब्दों में लिखिए।
(3) प्रस्तुत पद के भाव - सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(4) प्रस्तुत पद में निहित काव्य-सौंदर्य / शिल्प-सौंदर्य लिखिए।
(5) व्यक्ति समभावी कैसे बन सकता है ?
(6) 'खुलेगी साँकल बंद द्वार की' पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर - ( 1 ) कवयित्री - ललद्यद । कविता - वाख ।
(2) व्याख्या–प्रस्तुत पंक्तियों में कवयित्री ने मनुष्य को चेतावनी देते हुए कहा है कि इस जीवन में सांसारिक सुखों को भोगने पर कुछ भी प्राप्त नहीं होगा और यदि तू सांसारिक वस्तुओं अर्थात धन-दौलत को जोड़ेगा तो तेरे मन में धन-दौलत का उत्पन्न हो जाएगा। कहने का अभिप्राय है कि सांसारिक सुखों को भोगना व धन-दौलत को एकत्रित करना, दोनों ही मनुष्य की मुक्ति के मार्ग में बाधक हैं। कवयित्री ने इनसे बचने के उपाय की ओर संकेत करते हुए कहा है कि मनुष्य को अंतःकरण एवं बाह्य-इंद्रियों का निग्रह करना चाहिए। सांसारिक साधनों के प्रति समभाव बनाए रखना चाहिए, तभी मनुष्य समभावी बन सकता है। ऐसा क़रने पर उसकी चेतना का विकास होगा और उसे मुक्ति प्राप्त होगी अर्थात मनुष्य को सांसारिक मोह-माया के बंधनों से मुक्ति मिल सकेगी।
भावार्थ-कवयित्री के कहने का अभिप्राय है कि मानव को सुख-दुख में समभाव बनाए रखना चाहिए। इसमें ही उसकी मुक्ति संभव है ।
(3) मनुष्य को समभाव रखते हुए जीवन व्यतीत करना चाहिए। अपनी इंद्रियों को वश में करके उन्हें ईश्वर की भक्ति में लगाने का प्रयास करना चाहिए, तभी वह मोक्ष को प्राप्त कर सकेगा ।
(4) (क) 'वाख 'शैली का सुंदर एवं सफल प्रयोग किया गया है।
(ख) भाषा सरल, सहज एवं भावानुकूल है।
(ग) 'खा-खाकर' में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है ।
(घ) 'सम' में यमक अलंकार है ।
(ङ) 'बंद द्वार' अवरुद्ध चेतना का प्रतीक है ।
(5) कवयित्री के अनुसार सम खाने से अर्थात अंतःकरण एवं बाह्य-इंद्रियों का निग्रह करने पर ही व्यक्ति समभावी बन सकता है।
(6) प्रस्तुत पंक्ति में बताया गया है कि समभाव अपनाने से मनुष्य की चेतना का विकास होगा और सांसारिक मोह-माया के बंधन से मुक्ति या मोक्ष प्राप्त होगा।
3 आई सीधी राह से, गई न सीधी राह ।
सुषुम-सेतु पर खड़ी थी, बीत गया दिन आह !
जेब टटोली, कौड़ी न पाई ।
माझी को दूँ, क्या उतराई ?
शब्दार्य - सुषुम-सेतु = सुषुम्ना नाड़ी रूपी पुल (हठयोग में शरीर की तीन प्रधान नाड़ियों में से एक नाड़ी सुषुम्ना है, जो के मध्य भाग ब्रह्मरंध्र में स्थित है ) । माझी = नाविक, ईश्वर, गुरु । उतराई = सत्कर्म रूपी मेहनताना आत्मालोचन किया। कौड़ी न पाई = कुछ भी प्राप्त न हुआ।
प्रश्न (1) कवयित्री एवं कविता का नाम लिखिए
(2) प्रस्तुत पद की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए ।
(3) प्रस्तुत पद का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(4) प्रस्तुत पद में निहित काव्य-सौंदर्य शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(5) जेब टटोलना का क्या तात्पर्य है ?
(6) प्रस्तुत पद में किस भक्ति - पद्धति का विरोध किया गया है ?
उत्तर - (1) कवयित्री - ललद्यद । कविता - वाख।
(1) व्याख्या - प्रस्तुत पद में कवयित्री ने बताया है कि प्राणी इस संसार में सीधे मार्ग से आता है। उस समय उसके मन किसी प्रकार की कोई बुराई नहीं होती, किन्तु संसार में आकर वह ईश्वर-विमुख मार्ग पर चलने लगता है और अंत तक उसी मार्ग में पर चलता रहता है । कवयित्री पुनः कहती है कि मैं हठयोग आदि विभिन्न उपायों के माध्यम से ईश्वर प्राप्ति का प्रयास करती रही, किन्तु संपूर्ण जीवन बीत गया, पर ईश्वर की प्राप्ति नहीं हुई। तत्पश्चात उसने अपनी जेब टटोली अर्थात आत्मालोचन किया तो पता चला कि मेरे पास तो अपने माझी ( गुरु, ईश्वर व नाविक ) को देने के लिए कुछ भी नहीं है।
भावार्थ-कहने का तात्पर्य है कि मनुष्य इस संसार से अपने साथ कुछ भी नहीं ले जाता । इसलिए उसे सांसारिक लोभ अथवा मोह में नहीं बँधना चाहिए।
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(3) प्रस्तुत पद में कवयित्री ने मानव को सीधे मार्ग अर्थात ईश्वर- भक्ति के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी है। मानव को ईश्वर - प्राप्ति का सहज मार्ग अपनाना चाहिए । आत्मालोचन भी अनिवार्य है, क्योंकि इससे अपने हृदय में विद्यमान गुण-दोषों का बोध हो जाता है।
(4) (क) प्रस्तुत पद 'वाख' शैली में रचित है ।
(ख) भाषा सरल, सहज एवं भावानुकूल है।
(ग) 'जेब टटोली' एवं 'कौड़ी न पाई' पदों का लाक्षणिक प्रयोग देखते ही बनता है ।
(घ) स्वर-मैत्री का प्रयोग है ।
(5) 'जेब टटोलना' का तात्पर्य आत्मालोचन करना है, क्योंकि आत्मालोचन से ही मनुष्य अपने गुण-दोषों को पहचान
सकता है ।
(6) इस पद में कवयित्री ने हठयोग-पद्धति का विरोध किया है।
4. थल-थल में बसता है शिव ही,
भेद न कर क्या हिंदू-मुसलमां ।
ज्ञानी है तो स्वयं को जान,
वही है साहिब से पहचान ॥
शब्दार्थ - थल-थल = सब जगह। शिव = ईश्वर। साहिब ईश्वर, स्वामी ।
प्रश्न (1) कवयित्री एवं कविता का नाम लिखिए ।
(2) प्रस्तुत पद का संदर्भ स्पष्ट कीजिए ।
(3) प्रस्तुत पद की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए ।
(4) प्रस्तुत पद में निहित काव्य-सौंदर्य / शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(5) कवयित्री के अनुसार ईश्वर कहाँ बसता है ?
(6) इस पद में ज्ञानी किसे कहा गया है ?
(7) इस पद के भाव सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर - (1) कवयित्री - ललद्यद । कविता-वाख ।
(2) प्रस्तुत पद में कवयित्री ने ईश्वर के सर्वव्यापक रूप को पहचानने का उपदेश दिया है।
(3) व्याख्या - कवयित्री का कथन है कि ईश्वर (शिव) हर स्थान में विद्यमान है। प्रत्येक प्राणी के हृदय में उसका निवास है। इसलिए हिंदुओं व मुसलमानों के ईश्वर अलग-अलग नहीं हैं। ईश्वर को लेकर हमें ऐसा भेदभाव नहीं करना चाहिए। जो आत्मालोचन द्वारा स्वयं को जान लेता है, वही सच्चा ज्ञानी होता है। अपने-आपको अर्थात आत्मा को पहचानना ही ईश्वर को पहचानना है।
भावार्थ-कहने का भाव है कि ईश्वर सर्वव्यापक है और आत्मज्ञान से ही उसे प्राप्त किया जा सकता है ।
(4) (क) प्रस्तुत पद 'वाख' शैली में रचित है।
(ख) 'थल-थल' में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
(ग) भाषा सरल, सहज एवं प्रवाहयुक्त है।
(घ) शब्द-चयन विषयानुकूल है।
(5) कवयित्री के अनुसार ईश्वर प्रत्येक स्थान पर बसता है। उसे प्रत्येक प्राणी के हृदय में अनुभव किया जा सकता है।
(6) जिसे आत्मज्ञान हो, उसे ही कवयित्री ने ज्ञानी कहा है। आत्मज्ञानी ही ईश्वर को पहचान सकता है।
(7) कवयित्री ने ईश्वर की सर्वव्यापकता को स्पष्ट किया है। उनके अनुसार ईश्वर जल-थल और हर तीर्थ स्थान में भी रहता। आत्मज्ञान के द्वारा ईश्वर को जानने वाला व्यक्ति ही ज्ञानी है। अंतः हमें ईश्वरीय ज्ञान प्राप्त करना चाहिए। यही मानव-जीवन का परम लक्ष्य है।
Thanks 👍 sir
ReplyDelete😎
DeleteThank you sir 😁
ReplyDeleteNice page 💯 sir 👍
THANKYOU SIR.....🤗
ReplyDeleteOp
ReplyDeleteThank you so much sir
ReplyDeleteआपके कारण में परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त कर पाया।
thank you sir
DeleteMujhe nahi samajh aya please aap line by line artha bata dijiye
ReplyDeletenice
ReplyDeletethank you sir
ReplyDeleteThanks thanks thanks thanks thanks thanks thanks thanks thanks thanks thanks thanks thanks thanks thanks thanks thanks thanks thanks thanks thanks thanks thanks thanks thanks thanks thanks thanks thanks thanks thanks thanks thanks thanks thanks thanks thanks thanks thanks thanks thanks thanks 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏👍👍👍👍👍🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
ReplyDeletethank you sir
ReplyDeletesir ji app bahut accha pahadte ho
ReplyDeleteThankyou Sir
ReplyDeleteThank you sir 🐭!!
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