Yah Danturit Muskan Class 10 | यह दंतुरित मुसकान Class 10 | Fasal Class 10 | Class 10 Hindi Fasal | फसल Class 10

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Yah Danturit Muskan Class 10 | यह दंतुरित मुसकान Class 10 | Fasal Class 10 | Class 10 Hindi Fasal | फसल Class 10 



 1. यह दंतुरित मुसकान

कविता का सार

प्रश्न- 'यह दंतुरित मुसकान' नामक कविता का सार लिखें।

उत्तर- 'यह दंतुरित मुसकान' नागार्जुन की प्रमुख कविता है। इसमें उन्होंने छोटे बच्चे की अत्यंत आकर्षक मुसकान को देखकर मन में उमड़े हुए भावों को विविध बिंबों के माध्यम से अभिव्यक्त किया है। कवि के मतानुसार इस सुंदरता में जीवन का संदेश है। बच्चे की उस मधुर मुसकान के सामने कठोर-से-कठोर हृदय भी पिघल जाता है। उसकी मुसकान में अद्भुत शक्ति है जो किसी मृतक में भी नया जीवन फूँक सकती है। धूल मिट्टी में सना हुआ बच्चा तो ऐसा लगता है मानो वह कमल का कोमल फूल है, जो तालाब का जल त्यागकर उसकी झोंपड़ी में खिल उठा हो । उसे छूकर तो पत्थर भी जल बन जाता है। उसे छूकर शेफालिका के फूल झड़ने लगते हैं। छोटा-सा शिशु कवि को पहचान नहीं सका। इसलिए वह उसकी ओर टकटकी लगाकर देखता रहता है। कवि मानता है कि वह उस मोहिनी सूरत वाले बालक और उसके सुंदर दाँतों को उसकी माँ के कारण ही देख सका था। वह माँ धन्य है और बालक की मधुर मुसकान भी धन्य है । वह इधर-उधर घूमने वाले प्रवासी के समान था। इसलिए उसकी पहचान नन्हें बच्चे के साथ नहीं हो सकी थी। जब वह कनखियों से कवि की ओर देखता तो उसकी छोटे-छोटे दाँतों से सजी मुसकान कवि का मन मोह लेती थी ।


पद्यांशों के आधार पर अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर 

[1] तुम्हारी यह दंतुरित मुसकान

मृतक में भी डाल देगी जान

धूलि-धूसर तुम्हारे ये गात...

छोड़कर तालाब मेरी झोंपड़ी में खिल रहे जलजात

परस पाकर तुम्हारा ही प्राण,

पिघलकर जल बन गया होगा कठिन पाषाण

छू गया तुमसे कि झरने लग पड़े शेफालिका के फूल

बाँस था कि बबूल ?


शब्दार्थ- दंतुरित = बच्चों के नए-नए दाँत । मृतक = मरा हुआ। जान डाल देना = जीवित कर देना। धूलि धूसर

धूल में सना हुआ। गात = शरीर । जलजात = कमल का फूल। परस = स्पर्श। कठिन पाषाण = कठोर पत्थर । 

प्रश्न - (क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।

(ख) प्रस्तुत पद का प्रसंग स्पष्ट कीजिए।

(ग) प्रस्तुत पद की व्याख्या कीजिए।

(घ) 'दंतुरित मुसकान' किसकी है ?

(ङ) बच्चे का शरीर किससे सना हुआ है ?

(च) कवि की झोंपड़ी में नन्हा बच्चा किस रूप में है ?

(छ) मृतक में जान डालने का सामर्थ्य किसमें है ? मृतक में जान डालने का क्या अभिप्राय है ?

(ज) धूल से सने बच्चे को देखकर कवि को क्या अनुभव हुआ ?

(झ) 'पिघलकर जल बन गया होगा कठिन पाषाण' पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए ।

(ञ) शेफालिका के फूल क्यों और किससे झरने लगे ? 'बाँस और बवूल' किसको कहा गया है ?

(ठ) प्रस्तुत पद का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए ।

(ड) प्रस्तुत पद्यांश में निहित शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।


उत्तर - (क) कवि का नाम-नागार्जुन। कविता का नाम - यह दंतुरित मुसकान ।


(ख) प्रस्तुत काव्य-पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक 'क्षितिज' भाग 2 में संकलित, 'यह दंतुरित मुसकान' नामक कविता में से ली गई हैं। इस कविता के रचयिता श्री नागार्जुन हैं। इस कविता में उन्होंने छोटे बच्चे के प्रति अपने भावों को विविध बिंबों के माध्यम से व्यक्त किया है। जब कवि ने अपने छोटे से बच्चे के मुसकराते हुए मुख में दो दाँत देखे तो उसकी खुशी का ठिकाना न रहा। कवि ने उन भावों को ही इन शब्दों में व्यक्त किया है।


(ग) कवि अपने छोटे-से मुस्कुराते हुए बच्चे को देखकर कहता है कि तुम्हारी मुसकान इतनी मनमोहक है कि वह मुर्दे में भी जान डाल देती है अर्थात् यदि कोई जीवन से निराश हुआ व्यक्ति भी तुम्हारी इस भोली-सी हँसी को देख ले तो वह भी प्रसन्न हो उठेगा। मैं जब तुम्हारे इस धूल से सने हुए शरीर को देखता हूँ तो ऐसा लगता है कि कमल का जो फूल तालाब के जल में खिलता है वह मानों तालाब जल को छोड़कर मेरी झोंपड़ी में खिल गया है। कवि के कहने का भाव है कि धूल में सना हुआ यह नन्हा-सा बालक कमल के फूल के समान कोमल एवं सुंदर है।

कवि पुनः कहता है कि हे शिशु ! तुम ऐसे प्राणवान एवं सुंदर हो कि तुम्हें छूकर ही ये कठोर चट्टानें पिघलकर जल की धारा बनकर बहने लगी हैं। कवि के कहने का अभिप्राय है कि बच्चे की मधुर एवं निश्छल हँसी को देखकर कठोर एवं निर्दयी व्यक्ति का हृदय भी द्रवित हो जाता है। इस शिशु के सामने चाहे बाँस का पेड़ हो अथवा बबूल का वृक्ष, शेफालिका के फूल बरसाने लगता है। कहने का भाव है कि बच्चे की मुसकान के सामने बुरे से बुरा व्यक्ति भी सरस बन जाता है। एक क्षण के लिए वह भी अपनी बुराई त्यागकर मुसकाने लगता है।


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(घ) दंतुरित मुसकान उस छोटे बच्चे की है जिसके मुख में अभी-अभी दो नए दाँत उगे हों।


(ङ) बच्चे का शरीर धूल मिट्टी से सना हुआ है।


(च) कवि की झोंपड़ी में नन्हा बच्चा क समान सुंदर एवं कोमल फूल के रूप में है।


(छ) नए-नए दाँत निकालने वाले नन्हें बच्चे की हँसी में मृतक में जान डालने की शक्ति व सामर्थ्य होता है। मृतक में जान डालने का अभिप्राय है-निराश और उदास व्यक्ति के मन में प्रसन्नता को उत्पन्न करना ।


(ज) धूल से सने बच्चे को देखकर कवि को ऐसा अनुभव हुआ मानो उसकी झोंपड़ी में कमल का फूल खिल उठा हो । कहने का भाव है कि बच्चे की सुकोमलता को देखकर कवि का मन प्रसन्न हो उठता है।


(झ) कवि ने नन्हें से बच्चे की पावन हँसी को देजेफर कल्पना की है कि छोटे बच्चे की हँसी में इतना आकर्षण होता है कि पत्थर की भाँति कठोर हृदय वाले व्यक्ति के मन में भी बच्चे की इस हँसी को देखकर सहज एवं सरस भाव उत्पन्न हो जाते हैं। वह उसे देखकर अपनी कठोरता व निर्दयता को कुछ क्षणों के लिए त्याग देता है।


(ञ) नन्हें शिशु के स्पर्श से बाँस व काँटेदार वृक्ष बबूल के समान बुरे व्यक्ति के मन में शेफालिका के फूल के समान सरस एवं सुंदर भाव उत्पन्न हो जाते हैं ।


(ट) कवि ने यहाँ बाँस व बबूल नीरस, रूखे, निर्दयी एवं कठोर स्वभाव वाले पुरुष को कहा है।


(ठ) प्रस्तुत पद में कवि की बच्चे के प्रति अत्यंत कोमल एवं सरस भावों की कलात्मक अभिव्यक्ति हुई है। कवि अपने बच्चे के मुसकाने पर उसके मुख में उत्पन्न दो नए-नए उगे हुए दाँतों को देखकर अत्यंत प्रसन्न हो उठता है। पिता के अपने नन्हें से बच्चे के प्रति अत्यंत कोमल भावों का मनोरम वर्णन किया गया है। बच्चे की मधुर, निश्छल एवं पावन हँसी के प्रभाव का अत्यंत सजीव चित्रण भी देखते ही बनता है। कवि को अनुभव होता है कि बच्चे की कोमल हँसी में अपार सुंदरता एवं प्रभाव छुपा हुआ है।


(ड) ●कवि ने अपने कोमल भावों को कल्पना के सहयोग से अत्यंत मधुर वाणी में व्यक्त किया है।

● तद्भव एवं तत्सम शब्दावली के मिश्रित प्रयोग से भाषा अत्यंत रोचक एवं व्यावहारिक बन पड़ी है।

● अभिधा शब्द-शक्ति का प्रयोग किया गया है।

● प्रतीकों एवं बिंबों का सुंदर प्रयोग किया गया है।

● प्रश्न, अनुप्रास एवं अतिशयोक्ति अलंकारों का प्रयोग हुआ है।

● अतुकांत छंद है।


[2] तुम मुझे पाए नहीं पहचान ?

देखते ही रहोगे अनिमेष

थक गए हो?

आँख लूँ में फेर ?

क्या हुआ यदि हो सके परिचित न पहली बार ?

यदि तुम्हारी माँ न माध्यम बनी होती आज

मैं न सकता देख

मैं न पाता जान

तुम्हारी यह दंतुरित मुसकान


शब्दार्थ-अनिमेष = निरंतर देखना, बिना पलक झपकाए देखना परिचित = जाने पहचाने माध्यम = साधन ।


प्रश्न - (क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।

(ख) इस कवितांश का प्रसंग लिखें।

(ग) इस पद की व्याख्या कीजिए।

(घ) कवि ने ऐसा क्यों कहा कि 'तुम मुझे पाए नहीं पहचान' ?

(ङ) कवि नन्हें बालक को क्यों नहीं पहचान पाया ?

(च) कवि बालक की मधुर मुसकान किसके माध्यम से देख सका ? 

(छ) नन्हा बालक कवि की ओर एकटक क्यों देख रहा था ?

(ज) इस काव्यांश का भाव-सौंदर्य लिखिए।

(झ) उपर्युक्त पद्यांश के शिल्प-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।


उत्तर - (क) कवि का नाम-नागार्जुन । कविता का नाम - यह दंतुरित मुसकान ।


(ख) प्रस्तुत कवितांश श्री नागार्जुन द्वारा रचित सुप्रसिद्ध कविता 'यह दंतुरित मुसकान' से लिया गया है। कवि जब कई मास के पश्चात् घर लौटता है तो उनकी दृष्टि अपने छोटे बच्चे की निश्छल मुसकान पर पड़ती है। कवि उस मुसकान से अत्यंत प्रभावित होता है। कवि के मन में वात्सल्य भाव जागृत होते हैं, जिनका वर्णन इन पंक्तियों में किया गया है।


(ग) कवि अपने नन्हें बालक को देखकर उससे पूछता है कि क्या तुम मुझे पहचान गए हो ? क्या तुम मुझे इस प्रकार एकटक देखते ही रहोगे। क्या तुम इस प्रकार मेरी ओर निरंतर देखते हुए थक बह बच्चे की ओर नं देखे । कवि पुनः कहता है कि क्या हुआ कि यदि कि वह अभी बहुत छोटा है किंतु बहुत भोला और सुंदर है। 

क्या मैं तुम्हारी ओर से अपना मुँह फेर लूँ अर्थात् मुझे पहली बार न पहचान सका। कहने का तात्पर्य है कवि पुनः कहता है कि हे सुंदर दाँतों वाले मेरे बच्चे ! यदि तुम्हारी माँ मेरे और तुम्हारे बीच माध्यम न बनी होती तो मैं कभी भी तुम्हारे सुंदर कोमल रूप और तुम्हारी मधुर मुसकान को देख न पाता। कवि के कहने का भाव है कि संतान और पिता के बीच संबंध जोड़ने का माध्यम माँ ही होती है।


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(घ) नन्हा बच्चा अनजान व्यक्ति को सामने पाकर उसे टकटकी लगाकर देखने लगा। बच्चे की आँखों में उत्सुकता और अजनबीपन का भाव था। इसलिए कवि ने बच्चे के इस अनोखे भाव को देखकर ये शब्द कहे थे।


(ङ) कवि लंबे समय के पश्चात् घर लौटा था बच्चे का जन्म उनकी अनुपस्थिति में हुआ होगा और कवि ने पहली बार बच्चे को देखा होगा इसलिए कवि बच्चे को पहचान नहीं पाया था।


(च) कवि शिशु की मधुर मुसकान शिशु की माँ के माध्यम से ही देख पाया था। जब तक बच्चा कवि के लिए अनजान था तब तक मौन एवं स्थिर बना रहा, किंतु जब उसकी माँ ने बच्चे का कवि से परिचय करवाया तभी वह मुसकाने लगा ।


(छ) नन्हें बालक ने कवि को पहली बार देखा था। वह कवि को पहचानने का प्रयास कर रहा था। कवि कई मास के पश्चात् घर लौटा था। इसलिए बच्चा उसे अजनबी समझकर उसे पहचानने का प्रयास कर रहा था ।


(ज) कवि अपनी घुमक्कड़ प्रवृत्ति के कारण अपने परिवार के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह भली-भाँति नहीं कर पा रहा था। इसलिए कवि के मन का अपराध बोध व्यक्त हो रहा है। दूसरी ओर, बालक की मधुर एवं निश्छल मुसकान के प्रभाव का भी सजीव चित्रण हुआ है।


(झ) ●प्रस्तुत कवितांश में कवि ने अपने भावों का उल्लेख अत्यंत सरल भाषा में किया है।

●भाषा सरल, सहज, आडंबरहीन एवं भावाभिव्यक्ति में पूर्णतः सक्षम है।

● संबोधन शैली के कारण विषय रोचक बन पड़ा है।

● संस्कृतनिष्ठ शब्दावली के साथ-साथ तद्भव एवं देशज शब्दों का भी सार्थक प्रयोग किया गया है।


[3] धन्य तुम, माँ भी तुम्हारी धन्य !

चिर प्रवासी में इतर, मैं अन्य !

इस अतिथि से प्रिय तुम्हारा क्या रहा संपर्क

उँगलियाँ माँ की कराती रही है मधुपर्क

देखते तुम इधर कनखी मार

और होतीं जब कि आँखें चार

तब तुम्हारी दंतुरित मुसकान

मुझे लगती बड़ी ही छविमान!


शब्दार्थ - धन्य = सम्मान के योग्य, भाग्यशाली चिर प्रवासी = देर तक घर से बाहर दूर देश में रहने वाला | इतर = अन्य, दूसरा | संपर्क = संबंध मधुपर्क = दही, घी, शहद, जल और दूध का मिश्रण, जिसे पंचामृत कहा जाता, आत्मीयता से परिपूर्ण वात्सल्य । कनखी मार = तिरछी नज़रों से। आँखें चार होना = प्रेम होना, नज़रें मिलना । छविमान = सुंदर |

प्रश्न - ( क ) कवि एवं कविता का नाम बताइए।

(ख) प्रस्तुत कवितांश का प्रसंग लिखिए ।

(ग) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या कीजिए ।

(घ) कवि ने किसे और क्यों धन्य कहा है ?

(ङ) कवि ने अपने आपको चिर प्रवासी क्यों कहा है ?

(च) मधुपर्क से क्या अभिप्राय है ? मधुपर्क का सांकेतिक अर्थ क्या है ?

(छ) कविता में किस-किसकी आँखें चार हुई हैं ?

(ज) कवि को क्या छविमान लगती है ?

(झ) प्रस्तुत काव्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।

(ञ) इस पद्यांश में निहित शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए ।


उत्तर - (क) कविता का नाम - यह दंतुरित मुसकान । कवि का नाम-नागार्जुन ।


(ख) प्रस्तुत कवितांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'क्षितिज' भाग 2 में संकलित 'यह दंतुरित मुसकान' से उद्धृत है। इस कविता के रचयिता नागार्जुन हैं। इस कविता में कवि ने एक नन्हें बालक की मधुर मुसकान के प्रति उत्पन्न भावों को सशक्त अभिव्यक्ति प्रदान की है। कवि लंबे समय के पश्चात् घर घौटता है। उसने अपने बच्चे के मुँह में उगे हुए नए-नए दाँतों की चमक से शोभायमान मुसकान को देखा था। इससे उसे असीम खुशी प्राप्त हुई थी ।


(ग) कवि शिशु को संबोधित करता हुआ कहता है कि तुम सौभाग्यशाली हो और तुम्हारी माँ भी अत्यंत सौभाग्यशाली है। तुम दोनों के प्रति आभारी हूँ। मैं तो बहुत लंबे समय से घर से बाहर रहा हूँ इसलिए मैं तो बाहर वाला व कोई दूसरा हूँ। मेरे प्रिय बच्चे मैं तो तुम्हारे लिए किसी अतिथि की भाँति हूँ। तुम्हारे लिए मेरा कोई संबंध नहीं रहा। तुम्हारे लिए तो मैं अनजान - सा ही हूँ। मेरी लंबे समय की अनुपस्थिति में तुम्हारी माँ ही आत्मीयतापूर्ण तुम्हारा पालन-पोषण करती रही है। तुम्हें अपनी स्नेह देती रही। वह तुम्हें पंचामृत चटाकर तुम्हारा पोषण करती रही । तुम मेरी ओर बड़ी हैरानी से कनखियों में से देख रहे थे। जब भी अचानक तुम्हारी और मेरी नज़रें मिल जाती थीं तो मुझे तुम्हारे चमकते हुए दातों से युक्त मुसकान दिखाई दे जाती है। वास्तव में, मुझे तुम्हारी दुधिया दाँतों से सजी हुई मुसकान बहुत ही सुंदर लगती है। मैं तुम्हारी इस निश्छल मुसकान पर मुग्ध हूँ।


(घ) कवि ने अपनी पत्नी और बेटे को धन्य कहा है क्योंकि उनके कारण उसे अपार प्रसन्नता प्राप्त हुई थी। वह स्वयं को भी धन्य मानने के योग्य बना था ।


(ङ) कवि ने अपने-आपको चिर प्रवासी इसलिए कहा है कि क्योंकि वह अधिकतर घर से बाहर ही रहता था और इस समय भी वह कई महीनों के पश्चात् घर आया था।


(च) मधुपर्क दूध, दही, घी, शहद और जल के मिश्रण को कहते हैं। यहाँ मधुपर्क का सांकेतिक अर्थ है- माँ की आत्मीयता भरा वात्सल्य ।


(छ) कविता में कवि और नन्हें शिशु की आँखें चार हुई हैं अर्थात् कवि की ओर शिशु टकटकी लगाए देखता रहा। शिशु कवि को देखकर मुसकराने लगता है। ।


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(ज) कवि को शिशु की नए-नए दाँतों वाली मधुर मुसकान छविमान लगती है जिससे देखकर कवि का हृदय गदगद हो उठता है।


(झ) प्रस्तुत पद्यांश में माँ और बच्चे के आत्मीय संबंध की महिमा का उल्लेख किया गया है। नए-नए उगे हुए दाँतों वाले नन्हें बच्चे की मुसकान, उसकी तिरछी नज़रों से देखना और प्रेम व्यक्त करना आदि भावों का मनोरम चित्रण किया गया है।


(ञ) ● कवि ने नन्हें शिशु की मधुर मुसकान से संबंधी भावों को अत्यंत सजीवतापूर्वक व्यक्त किया है। 

       ● भाषा मुहावरेदार है। 'आँखें चार होना' मुहावरे का सफल प्रयोग देखते ही बनता है। ।

       ● संस्कृतनिष्ठ शब्दावली का सार्थक प्रयोग हुआ

       ● तुकांत छंद का प्रयोग किया गया है ।अ

       ● अनुप्रास अलंकार का सहज एवं स्वाभाविक प्रयोग है।



 2. फसल


 कविता का सार

प्रश्न- 'फसल' नामक कविता का सार लिखिए।

उत्तर- 'फसल' शब्द के सुनते ही लहलहाती फसल का चित्र आँखों के सामने आ जाता है। प्रस्तुत कविता 'फसल' में कवि ने बताया है कि फसल को उत्पन्न करने में विभिन्न तत्त्वों का योगदान रहता है। उनके अनुसार फसल उगाने में नदियों के पानी का, अनेक मनुष्य के हाथों की मेहनत का तथा खेतों की उपजाऊ मिट्टी का योगदान रहता है। इनके अतिरिक्त फसलों को उत्पन्न करने में सूरज की किरणों और हवा का भी योगदान अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। साथ ही कवि ने स्पष्ट किया है कि प्रकृति और मनुष्य के सहयोग से ही सृजन संभव है। आज के उपभोक्तावादी संस्कृति के युग में कवि ने कृषि-संस्कृति का जोरदार शब्दों में समर्थन किया है।


 पद्यांशों के आधार पर अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

[1] एक के नहीं,

दो के नहीं,

ढेर सारी नदियों के पानी का जादू :

एक के नहीं,

दो के नहीं,

लाख-लाख कोटि-कोटि हाथों के स्पर्श की गरिमा :

एक की नहीं,

दो की नहीं,

हज़ार-हज़ार खेतों की मिट्टी का गुण धर्म :


शब्दार्थ- पानी का जादू = पानी का प्रभाव कोटि = करोड़ों। स्पर्श = छूना गरिमा = गौरव |


प्रश्न – (क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।

(ख) इस पद्यांश का प्रसंग स्पष्ट कीजिए ।

(ग) प्रस्तुत काव्यांश की व्याख्या कीजिए ।

(घ) “एक के नहीं, दो के नहीं' से कवि का क्या तात्पर्य है ?

(ङ) 'कोटि-कोटि हाथों के स्पर्श की गरिमा का भाव स्पष्ट कीजिए ।

(च) 'मिट्टी का गुण धर्म' से कवि का क्या तात्पर्य है ?

(उ) इस पद्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।

(ज) प्रस्तुत पद्यांश के शिल्प-सौंदर्य का उल्लेख कीजिए।


उत्तर- (क) कवि का नाम-नागार्जुन | कविता का नाम- फसल ।


(ख) प्रस्तुत कवितांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'क्षितिज' भाग 2 में संकलित 'फसल' नामक कविता से उद्धृत है। इसके रचयिता नागार्जुन हैं। इस कविता में कवि ने बताया है कि फसल उत्पन्न करने के लिए मनुष्य एवं प्रकृति एक-दूसरे का सहयोग करते हैं।


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(ग) कवि कहता है कि फसल उत्पन्न करने के लिए अनेक नदियों के पानी का अपना जादू जैसा प्रभाव दिखाई देता है अर्थात्न दियों से प्राप्त पानी से ही फसलें उगाई जाती हैं। पानी से उगकर फसलें बड़ी होती हैं। फसल को उगाने के लिए करोड़ों व्यक्तियों का सहयोग होता है अर्थात् फसल उगाने के लिए करोड़ों लोग काम करते हैं। यह करोड़ों लोगों के परिश्रम का फल होता है। इसमें अनेक खेतों की उपजाऊ मिट्टी के गुणों का योगदान भी होता है। इसके पीछे मिट्टी के गुण धर्म भी छिपे रहते हैं।


(घ) कवि के इस कथन का तात्पर्य है कि फसल उगाने के लिए अनेक नदियों के जल का सहयोग रहता है। इसी प्रकार एक दो व्यक्तियों के सहयोग से नहीं, अपितु अनेकानेक लोगों की मेहनत से फसल उगाई जाती है। इसी तरह अनगिनत खेतों का भी योगदान रहता है।


(ङ) इस पंक्ति का भाव है कि फसल उगाने में देश के करोड़ों किसान अपने हाथ से काम करते हैं। फसल उगाने में करोड़ों किसानों के श्रम का गौरव सम्मिलित है।


(च) 'मिट्टी का गुण धर्म' का तात्पर्य है कि मिट्टी की उपजाऊ शक्ति व विशेषताएँ। हमारे देश में कई प्रकार की मिट्टी पाई जाती है तथा हर प्रकार की मिट्टी की विशेषताएँ व गुण अलग-अलग होते हैं। इसलिए मिट्टी के इन्हीं गुणों के कारण यहाँ भिन्न-भिन्न प्रकार की फसलें होती हैं।


(छ) प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने फसल उगाने अथवा कृषि के क्षेत्र में किए जाने वाले श्रम के महत्त्व को उजागर किया है। कवि ने देश की विभिन्न नदियों, विभिन्न प्रकार की मिट्टी, वातावरण एवं मानव श्रम से संबंधी अपने भावों को सशक्त भाषा में अभिव्यक्त किया है।


● प्रस्तुत कविता में कवि ने फसलें उगाने वाली सभी शक्तियों व साधनों का काव्यात्मक उल्लेख किया है। 'एक नहीं दो नहीं' की आवृत्ति के कारण, जहाँ कविता की भाषा में प्रवाह का संचार हुआ है वहाँ भाव को सर्वव्यापकता भी मिली है।


● 'पानी का जादू' प्रयोग से पानी के महत्त्व व गुणों की ओर संकेत किया गया है। पुनरुक्ति प्रकाश एवं अनुप्रास अलंकारों का सहज एवं सफल प्रयोग किया गया है। भाषा सरल, सहज एवं विषयानुकूल है। तत्सम, तद्भव एवं देशज शब्दों का प्रयोग किया गया।


[2] फसल क्या है ?

और तो कुछ नहीं है वह

नदियों के पानी का जादू है वह

हाथों के स्पर्श की महिमा है

भूरी-काली - संदली मिट्टी का गुण धर्म है

रूपांतर है सूरज की किरणों का

सिमटा हुआ संकोच है हवा की थिरकन का!


शब्दार्थ-महिमा = यश संदली = एक विशेष प्रकार की मिट्टी रूपांतर बदला हुआ रूप संकोच = सिमटा हुआ रूप । थिरकन = नाचना, लहराना ।


(क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।

(ख) पद्यांश का प्रसंग लिखिए।

(ग) प्रस्तुत काव्यांश की व्याख्या कीजिए ।

(घ) प्रस्तुत पयांश में कवि ने किसका वर्णन किया है ?

(ङ) 'हाथों के स्पर्श की महिमा' किसे कहा है और क्यों ?

(च) फसलों को सूर्य की किरणों का रूपांतर कहना कहाँ तक उचित है ?

(छ) मिट्टी के लिए 'संदली' शब्द का प्रयोग किस संदर्भ में किया गया है ?

(ज) प्रस्तुत काव्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।

(झ) इस पद्यांश में निहित शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए ।


उत्तर- (क) कवि का नाम-नागार्जुन। कविता का नाम- फसल।


(ख) प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'क्षितिज' भाग 2 में संकलित 'फसल' नामक कविता से उद्धृत है। इस कविता के रचयिता श्री नागार्जुन हैं। उन्होंने बताया है कि फसल उगाना मनुष्य और प्रकृति का सम्मिलित प्रयास है।


(ग) कवि प्रश्न करता है कि आखिर फसल क्या है? कवि अपने आप इस प्रश्न का उत्तर देता हुआ कहता है कि ये फसलें और कुछ नहीं हैं, वे तो नदियों के पानी से सिंचकर पुष्ट हुई हैं। इन फसलों पर नदियों के जल का जादू जैसा प्रभाव होता है। किसानों के हाथों का स्पर्श और श्रम पाकर फसलें खूब फलती-फूलती हैं। कवि के कहने का भाव है कि फसलों को उगाने और उनके फलने-फूलने में नदियों का पानी और किसानों की मेहनत ही काम करती है। किसानों की मेहनत से ही फसलें फली फूली हैं। ये फसलें विभिन्न प्रकार की मिट्टी में उगती हैं। कहीं काली व भूरी मिट्टी है तो कहीं संदली मिट्टी है। हर प्रकार की मिट्टी में अपना-अपना गुण होता है, उसी के अनुसार उनमें फसलें उगाई जाती हैं। कहने का भाव है कि फसलों में मिट्टी के गुण, स्वभाव और विशेषताएँ भी छिपी रहती हैं। ये फसलें सूरज की किरणों का बदला हुआ रूप हैं। सूर्य की किरणों की गर्मी से ही फसलें हैं। इसलिए कहा जा सकता है कि फसलें सूर्य की किरणों का बदला हुआ रूप हैं। ऐसा लगता है कि हवाओं की थिरकन सिमटकर इन फसलों में समा गई है अर्थात् हवा के चलने पर खेतों में खड़ी फसलें लहलहाने लगती हैं। कहने का तात्पर्य है कि फसलों को उगाने में हवाओं का भी महत्त्वपूर्ण योगदान रहता है।


(घ) इस पद्यांश में कवि ने फसलों पर विचार करते हुए उनके उगाने में पानी, किसान के परिश्रम, विभिन्न प्रकार की मिट्टी, सूर्य की गर्मी और हवाओं की भूमिका का वर्णन किया है ।


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(ङ) 'हाथों के स्पर्श की महिमा' किसान के द्वारा किए गए परिश्रम के महत्त्व को कहा गया है। किसान दिन-रात परिश्रम करता है, तब कहीं जाकर फसलें उगती हैं। बिना परिश्रम के फसलें नहीं उगाई जा सकतीं। अतः किसान की मेहनत के महत्त्व को उजागर करने के लिए ये शब्द कहे गए हैं।


(च) फसलें सूर्य की किरणों का रूपांतर अर्थात् बदला हुआ रूप हैं। सूर्य की किरणों की गर्मी से फसलें पकती हैं। अतः इन्हें सूर्य की किरणों का रूपांतर कहना उचित है।


(छ) संदली का अर्थ है - चंदन । ऐसी मिट्टी जिसमें सौंधी-सौंधी-सी गंध आती हो। ऐसी मिट्टी फसल उगाने के लिए अत्यंत उपयुक्त होती है। कवि ने मिट्टी की इसी विशेषता को प्रकट करने के लिए 'संदली' शब्द का प्रयोग किया है।


(ज) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने फसलों को उगाने वाले सभी तत्त्वों के प्रभाव और उनके महत्त्व को सफलतापूर्वक अभिव्यंजित किया है। कवि ने किसान के परिश्रम, पानी के महत्त्व, सूर्य की गर्मी के प्रभाव, हवाओं की भूमिका आदि का फसलों के संदर्भ में उल्लेख किया है ।


(झ) ●कवि ने सरल, सहज एवं प्रवाहमयी भाषा का प्रयोग करके विषय को अत्यंत ग्रहणीय बनाया है।

● 'पानी का जादू' आदि लाक्षणिक प्रयोग देखते ही बनते हैं।

● प्रश्नोत्तर शैली के प्रयोग से विषय रोचक बन पड़ा है ।

● संस्कृत के शब्दों के साथ तद्भव शब्दों का प्रयोग भी किया गया है ।

● तुकांत छंद का प्रयोग किया गया है।


आपकी स्टडी से संबंधित और क्या चाहते हो? ... कमेंट करना मत भूलना...!!! 



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2Comments

If you have any doubts, Please let me know

  1. Very good notes

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  2. SIR , IN THE SCHOOL I AM STUDYING IS VERY STRICT. THEY DIDN'T GIVE STUDY LEAVE BETWEEN THE EXAMS . TOMORROW IS MY PRE BOARD PAPER OF HINDI AND TODAY IS MY SOCIAL SCIENCE PAPER AND THERE IS NO GAP BETWEEN THEM
    I WANT TO KNOW YOUR OPINION ABOUT THIS . IS IT RIGHT OR WRONG ?
    THERE'S A LOT OF PRESSURE ON US .

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