Camere me Band Apahij Class 12 | Class 12 Hindi Camere me Band Apahij | कैमरे में बंद अपाहिज

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Camere me Band Apahij Class 12 | Class 12 Hindi Camere me Band Apahij | कैमरे में बंद अपाहिज


कैमरे में बंद अपाहिज

कविता का सार

प्रश्न- - रघुवीर सहाय द्वारा रचित कविता 'कैमरे में बंद अपाहिज' का सार अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर - 'कैमरे में बंद अपाहिज' कविता रघुवीर सहाय द्वारा रचित 'लोग भूल गए हैं' काव्य संग्रह में संकलित है। इस कविता में कवि ने साधारण भाषा-शैली में अपाहिज व्यक्ति की विडंबना को पकड़ने का प्रयास किया है। विकलांगता निश्चय से मनुष्य को कमजोर तथा दुखी कर देती है। परंतु हमारा आज का मीडिया दुखदायी विकलांगता को अपनी लोकप्रियता का माध्यम बनाना चाहता है। इसका प्रमुख कारण यह है कि मीडिया में लोकप्रियता प्राप्त करने की स्पर्धा लगी हुई है । वे विकलांग व्यक्ति को मीडिया के समक्ष रखकर उससे इस प्रकार के प्रश्न पूछते हैं कि जवाब देना भी कठिन हो जाता है । संवेदनहीन कार्यक्रम संचालक विकलांग की वेदना को और अधिक बढ़ा देता है । जब विकलांग की वेदना फूट पड़ती है तो दर्शक भी उसे देखकर रोने लगते हैं। ऐसी स्थिति में कार्यक्रम संचालक यह देखकर प्रसन्न हो जाता है कि उसका कार्यक्रम सफल रहा। मीडिया के कर्मचारियों को विकलांग व्यक्ति की पीड़ा और कष्ट, मात्र एक कार्यक्रम ही नज़र आता है।

यह कविता दूरदर्शन तथा स्टूडियो की भीतरी दुनिया को रेखांकित करती है। कवि यह संदेश देना चाहता है कि पर्दे के पीछे तथा पर्दे के बाहर पीड़ा का व्यापार नहीं होना चाहिए। हमें उस स्थिति से बचना चाहिए जो दूसरों के मर्म को आहत करती है। विकलांग व्यक्ति के प्रति संवेदना तथा सहानुभूति रखनी चाहिए ताकि उसके आहत हृदय में आत्मविश्वास उत्पन्न हो सके।

पद्यांशों की सप्रसंग, व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

सप्रसंग व्याख्या

हम दूरदर्शन पर बोलेंगे

हम समर्थ शक्तिवान

हम एक दुर्बल को लाएँगे

एक बंद कमरे में

उससे पूछेंगे तो आप क्या अपाहिज हैं?

तो आप क्यों अपाहिज हैं ?

आपका अपाहिजपन तो दुख देता होगा

देता है ?.

(कैमरा दिखाओ इसे बड़ा बड़ा )

हाँ तो बताइए आपका दुख क्या है

जल्दी बताइए वह दुख बताइए

बता नहीं पाएगा,


शब्दार्थ- समर्थ = शक्तिशाली शक्तिवान = ताकतवर दुर्बल = कमज़ोर। अपाहिज = विकलांग ।


प्रसंग - प्रस्तुत पंद्य भाग हिंदी की पाठ्यपुस्तक 'आरोह भाग 2' में संकलित कविता 'कैमरे में बंद अपाहिज' से अवतरित है। इसके कवि रघुवीर सहाय हैं। यह कविता उनके काव्य-संग्रह 'लोग भूल गए हैं' में से ली गई है। इस कविता में कवि ने दूरदर्शन कर्मियों की संवेदनहीनता तथा क्रूरता पर प्रकाश डाला है। इस पद्यांश में कवि दूरदर्शन के संचालक की क्रूरता का वर्णन करते हुए कहता है- 


व्याख्या - दूरदर्शनकर्मी स्वयं को समर्थ और शक्तिशाली समझते हैं, क्योंकि वे अपनी बात को सब लोगों तक पहुँचाने में समर्थ हैं। दूरदर्शन का संचालक अपने साथियों से कहता है कि हम स्टूडियो के बंद कमरे में एक कमजोर तथा मजबूर व्यक्ति को लेकर आएँगे। वह व्यक्ति एक विकलांग होगा जो अपनी आजीविका नहीं चला सकता। बंद कमरे में हम उससे पूछेंगे कि क्या आप विकलांग हो-? इससे पहले कि वह हमारे प्रश्न का उत्तर दे, इस पर हम एक और प्रश्न दाग देंगे कि आप विकलांग क्यों हुए? हमारा यह प्रश्न बेतुका होगा और वह अपाहिज कुछ समय तक चुप रहेगा। फिर से हम उसे कुरेदकर पूछेंगे कि आपका विकलांग होना आपको दुख तो देता होगा।वह बेचारा इस पर भी चुप रहेगा। हम पुनः वही प्रश्न पूछेंगे कि आपको अपाहिज होना क्या सचमुच दुख देता है? बताइए, क्या सचमुच आप विकलांग होने से दुखी हैं ?

इस प्रश्न के साथ ही दूरदर्शन संचालक अपने साथी से कहेगा कि वह अपाहिज के दुखी चेहरे को और बड़ा करके दिखाए ताकि लोग उसके दुखी चेहरे को आसानी से व ध्यान से देख सकें। विकलांग को पुनः उत्तेजित करके पूछा जाएगा कि हाँ, उसे बताओ कि आपका दुख क्या है? समय बीता जा रहा है, हमें जल्दी से अपने दुख के बारे में बताओ। अन्ततः संचालक को लगेगा कि यह अपाहिज अपने दुख के बारे में कुछ नहीं बता सकता ।


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विशेष (1) प्रस्तुत पद्यांश में दूरदर्शनकर्मियों की संवेदनहीनता तथा हृदयहीन कार्य-शैली का यथार्थ वर्णन किया गया है।

(2) दूरदर्शन के चैनलों की बढ़ती स्पर्धा का वर्णन किया गया है जो अपाहिज की वेदना को कुरेदकर अपने कार्यक्रम को • अधिक रोचक बनाना चाहते हैं।

(3) सहज, सरल तथा सामान्य भाषा का प्रयोग किया गया है।

(4) शब्द चयनं सर्वथा उचित एवं भावाभिव्यक्ति में सहायक है।

(5) संपूर्ण पद्य में प्रश्नालंकारों की छटा दर्शनीय है।

(6) नाटकीय शैली का सफल प्रयोग हुआ है।

(7) मुक्त छंद का सफल प्रयोग हुआ है।


पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर-

प्रश्न- (क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।

(ख) इस कविता के माध्यम से किस पर व्यंग्य किया गया है?

(ग) अपाहिज से पूछे गए प्रश्न क्या सिद्ध करते हैं?"

(घ) समर्थ शक्तिवान लोग कौन हैं? और वे दूरदर्शन पर निर्बल को क्यों लाते हैं?


उत्तर - (क) कवि का नाम - रघुवीर सहाय                  कविता का नाम- कैमरे में बंद अपाहिज ।


(ख) इस कविता के माध्यम से दूरदर्शन कर्मियों की संवेदनहीनता और क्रूरता पर करारा व्यंग्य किया गया है। ये लोग अपने कार्यक्रम को आकर्षक और प्रभावशाली बनाने के लिए विकलांगों की पीड़ा से खिलवाड़ करते हैं तथा उनसे बेतुके सवाल पूछकर उनकी भावनाओं से खेलते हैं।


(ग) अपाहिज से पूछे गए प्रश्न यह सिद्ध करते हैं कि उनसे पूछे गए प्रश्न बेकार और व्यर्थ हैं तथा जो अपाहिजों को संवेग प्राप्त करने के स्थान पर उनको पीड़ा पहुँचाते हैं।


(घ) समर्थ शक्तिवान लोग दूरदर्शन के संचालक हैं। वे विकलांगों तथा दुर्बलों की पीड़ाओं को दर्शक के सामने रखकर अपने कार्यक्रम को इसलिए रोमांचित बनाते हैं ताकि वे अधिक-से-अधिक पैसा कमा सकें ।


सप्रसंग व्याख्या

सोचिए

बताइए

आपको अपाहिज होकर कैसा लगता है

कैसा

यानी कैसा लगता है

( हम खुद इशारे से बताएँगे कि क्या ऐसा ?)

सोचिए

बताइए

थोड़ी कोशिश करिए

( यह अवसर खो देंगे ? )

आप जानते हैं कि कार्यक्रम रोचक बनाने के वास्ते

हम पूछ-पूछकर उसको रुला देंगे।

इंतज़ार करते हैं आप भी उसके रो पड़ने का

करते हैं ?

( यह प्रश्न नहीं पूछा जाएगा)


शब्दार्थ- अपाहिज  = विकलांग | यानी = अर्थात् अवसर = मौका । रोचक = दिलचस्प | इंतज़ार = प्रतीक्षा ।


प्रसंग-प्रस्तुत पद्य भाग हिंदी की पाठ्यपुस्तक 'आरोह भाग 2' में संकलित कविता' 'कैमरे में बंद अपाहिज' से अवतरित है। इसके कवि रघुवीर सहाय हैं। यह कविता उनके काव्य संग्रह 'लोग भूल गए हैं' में से ली गई है। इस पद्य में कवि उस स्थिति का वर्णन करता है जब कार्यक्रम संचालक अपने कार्यक्रम को रोचक बनाने के लिए अपाहिज से बेतुके सवाल पूछता है।


व्याख्या– कार्यक्रम-संचालक अपाहिज से पूछता है कि आप अच्छी प्रकार सोचकर हमें बताइए कि आपको विकलांग होना कैसा लगता है? अर्थात् क्या आपको विकलांग होने का दुख है, यदि है तो यह कैसा दुख है? आप सोचकर दर्शकों को बताइए कि आपको कितना दुख है और यह कितना बुरा लगता है। इस पर विकलांग व्यक्ति चुप रह जाता है । वह कुछ बोल नहीं पाता। वह मन-ही-मन बड़ा दुखी है। तब कार्यक्रम संचालक बेहूदे इशारे करके पूछता है कि आपका दुख कैसा है? फिर वह कहता है कि आप तनिक अच्छी तरह सोचिए, सोचने की कोशिश कीजिए तथा सोचकर हमें बताइए कि आपका दुख कैसा है? यदि आप ऐसा नहीं करेंगे तो यह मौका आपके हाथ से निकल जाएगा।

कार्यक्रम संचालक पुनः कहता है कि हमें तो अपने कार्यक्रम को रोचक बनाना है। इसलिए यह जरूरी है कि हम अपाहिज की पीड़ा को अच्छी तरह समझें और लोगों को खुलकर बताएँ। इसलिए हम उससे इतने प्रश्न पूछेंगे कि वह रोने लगेगा। इस प्रकार दूरदर्शन के व्यक्ति विकलांग व्यक्ति के रो पड़ने की प्रतीक्षा करते हैं। वे उस क्षण का इंतज़ार करते हैं जब अपाहिज अपनी पीड़ा बताते-बताते रो पड़े, क्योंकि दर्शक भी यही सब देखना चाहते हैं ।


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विशेष—(1) इस पद्य में कवि ने दूरदर्शनकर्मियों की हृदयहीनता तथा क्रूरता का यथार्थ वर्णन किया है । 

(2) दूरदर्शन के चैनलों की बढ़ती प्रतिस्पर्धा का वर्णन किया है जो विकलांगों से बैतुके प्रश्न पूछकर अपने कार्यक्रम को रोचक बनाना चाहते हैं।

(3) सहज, सरल तथा सामान्य भाषा का सफल प्रयोग हुआ

(4) शब्द-योजना सटीक तथा भावानुकूल है।

(5) संपूर्ण पद्य में प्रश्नालंकारों का सफल प्रयोग किया गया है।

(6) मुक्त छंद का प्रयोग है तथा प्रसाद गुण है।

(7) कोष्ठकों में वाक्यों का प्रयोग करना एक अभिनव प्रयोग है।



पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर-

प्रश्न - (क) यह कविता कवि के किस काव्य संग्रह में संकलित है ?

(ख) कार्यक्रम-संचालक अपाहिजों के दुख को बार-बार प्रश्न पूछकर गंभीर क्यों बनाना चाहता है ?

(ग) कार्यक्रम संचालक श्रोताओं को क्या विश्वास दिलाता है।

(घ) अपाहिजों के कार्यक्रम में दर्शक किस बात की प्रतीक्षा करते हैं ?

(ङ) इस पद्यांश में कवि ने दूरदर्शन के संचालकों पर क्या व्यंग्य किया है?


उत्तर - (क) प्रस्तुत कविता रघुवीर सहाय के लोग भूल गए हैं' काव्य संग्रह से संकलित है।


(ख) कार्यक्रम संचालक अपाहिज के दुखों के बारे में प्रश्न पूछकर उनके दुख को इसलिए गंभीर बनाना चाहता है ताकि वह अपने कार्यक्रमों को अधिक रोचक बना सके और कार्यक्रम द्वारा अधिकाधिक धन कमा सके।


(ग) कार्यक्रम का संचालक श्रोताओं को यह विश्वास दिलाता है कि विकलांग से इस प्रकार के प्रश्न पूछेगा कि वह अपनी पीड़ा को याद करके रोने लगेगा।


(घ) दर्शक दूरदर्शन पर अपाहिजों के कार्यक्रमों की प्रतीक्षा करते हैं कि विकलांग व्यक्ति रो पड़े ताकि वे कार्यक्रम को देखकर संवेदनशील हो सकें।


(ङ) इस पद्यांश के द्वारा कवि ने दूरदर्शन के कार्यक्रम संचालकों की कार्यशैली पर करारा व्यंग्य किया है। उनके मन में अपाहिजों के प्रति कोई संवेदनशीलता नहीं है। वे तो अपाहिजों से तरह-तरह के बेतुके प्रश्न पूछकर अपने कार्यक्रम को रोचक बनाना चाहते हैं ताकि वे अधिकाधिक धन प्राप्त कर सकें और लोकप्रियता अर्जित कर सकें।


सप्रसंग व्याख्या

फिर हम परदे पर दिखलाएँगे

फूली हुई आँख की एक बड़ी तसवीर

बहुत बड़ी तसवीर

और उसके होंठों पर एक कसमसाहट भी

( आशा है आप उसे उसकी अपंगता की पीड़ा मानेंगे )

एक और कोशिश

दर्शक

धीरज रखिए

देखिए

हमें दोनों एक संग रुलाने हैं

• आप और वह दोनों

(कैमरा

बस करो

नहीं हुआ

रहने दो

परदे पर वक्त की कीमत है).

अब मुस्कुराएँगे

आप देख रहे थे सामाजिक उद्देश्य से युक्त कार्यक्रम

(बस थोड़ी ही कसर रह गई)

धन्यवाद ।



शब्दार्थ- कसमसाहट पीड़ा, छटपटाहट | सामाजिक उद्देश्य = समाज को बेहतर बनाने का लक्ष्य युक्त |अपंगता= अपाहिज होना | धीरज = धैर्य जुड़ा हुआ। कसर = कमी।


प्रसंग- प्रस्तुत पद हिंदी की पाठ्यपुस्तक 'आरोह भाग 2' में संकलित कविता 'कैमरे में बंद अपाहिज' से अवतरित है। इसके कवि रघुवीर सहाय हैं। यह कविता उनके काव्य संग्रह 'लोग भूल गए हैं' में से ली गई है। इस पद्यांश में कार्यक्रम संचालक अपाहिज की पीड़ा और व्यथा को उभारकर दर्शकों को दिखाने का प्रयास करता है। इस संदर्भ में कवि कहता है-


व्याख्या- पहले तो कार्यक्रम संचालक अपाहिज व्यक्ति से तरह-तरह के प्रश्न पूछकर उसकी पीड़ा से दर्शकों को अवगत कराना चाहते हैं। बाद में वे दूरदर्शन के पर्दे पर अपाहिज की सूजी आँख की बहुत बड़ी तस्वीर दिखाने का प्रयास करते हैं। ये वस्तुतः अपाहिज की पीड़ा को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाना चाहते हैं और वे उसके होंठों पर विद्यमान मजबूरी और छटपटाहट को भी उभारकर दिखाना चाहते हैं। उनका लक्ष्य होता है कि दर्शक अपंग व्यक्ति की पीड़ा को समझें। इसके बाद संचालक कहते हैं कि हम एक और कोशिश करके देखते हैं। वे दर्शकों से धैर्य रखने की अपील करते हैं। 

कार्यक्रम-संचालक कहते हैं कि हमें अपाहिज के दर्द को इस प्रकार दिखाना है कि एक साथ अपाहिज और दर्शक रो पड़ें। परंतु ऐसा हो नहीं पाता। कार्यक्रम संचालक अपने लक्ष्य में असफल रह जाते हैं। इसलिए वे कैमरामैन को आदेश देते हैं कि वह कैमरे को बंद कर दे। यदि अपाहिज रो नहीं सका तो न सही, क्योंकि पर्दे पर समय का अत्यधिक महत्त्व है। यहाँ तो एक-एक क्षण मूल्यवान होता है। समय के साथ-साथ धन का भी व्यय हो जाता है। इसलिए वे अपाहिज को दूरदर्शन के पर्दे पर दिखाना बंद कर देते हैं और दर्शकों से कहते हैं कि अब हम मुस्कुराएंगे और दर्शकों से कहेंगे कि आप इस समय सामाजिक पीड़ा को दिखाने वाला कार्यक्रम देख रहे थे! इतका लक्ष्य घा कि हम और आप दोनों अपाहिजों की पीड़ा को समझें और अनुभव करें। लेकिन वे कार्यक्रम संचालक मन-ही-मन सोचते होंगे कि उसका कार्यक्रम पूर्णतया सफल नहीं हो सका क्योंकि वे अपाहिज और दर्शकों को संग-संग रुला नहीं सके।

यदि दोनों एक-साथ रो पड़ते तो निश्चय से उसका कार्यक्रम सफल हो जाता। अंत में कार्यक्रम संचालक दर्शकों को धन्यवाद करके कार्यक्रम समाप्त कर देते हैं। इसके पीछे भी कवि का करारा व्यंग्य है। वह कार्यक्रम संचालक की हृदयहीनता को स्पष्ट करना चाहता है।


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विशेष—(1) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने दूरदर्शनकर्मियों की हृदयहीनता पर करारा व्यंग्य किया है और दूरदर्शन के सामाजिक कार्यक्रमों का पर्दाफाश किया है।

(2) दूरदर्शनकर्मी किसी सामाजिक समस्या को उभारने के चक्कर में निर्मम और कठोर हो जाते हैं और अपंग व्यक्ति की पीड़ा की समझ नहीं पाते।

(3) 'बहुत बड़ी तसवीर' में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग हुआ है।

(4) सहज, सरल तथा सामान्य हिंदी भाषा का सफल प्रयोग किया गया है।

(5) शब्द-योजना सर्वथा सटीक एवं भावाभिव्यक्ति में सहायक है।

(6) प्रस्तुत पद्यांश में नाटकीय, संबोधनात्मक तथा व्यंग्यात्मक शैलियों का सफल प्रयोग किया गया है।

(7) प्रसाद गुण है तथा मुक्त छंद का प्रयोग हुआ है।


पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर-

प्रश्न - (क) प्रस्तुत पद्यांश में किस पर व्यंग्य किया गया है?

(ख) कार्यक्रम संचालक पर्दे पर अपाहिज व्यक्ति की फूली हुई आँख की तसवीर बड़ा करके क्यों दिखाता  है?

(ग) कार्यक्रम-संचालक एक साथ किसे और क्यों रुलाना चाहता है ?

(घ) क्या कार्यक्रम संचालक अपने लक्ष्य में सफल रहा? यदि नहीं तो क्यों?


उत्तर- (क) इस पद्यांश में दूरदर्शन के कार्यक्रम संचालकों की हृदयहीनता पर करारा व्यंग्य किया गया है। वे अपंगों तथा दीन-दुखियों की पीड़ा को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाना चाहते हैं ताकि उनका कार्यक्रम रोचक्र तथा लोकप्रिय बन सके तथा वे अधिक-से-अधिक धन कमा सकें।


(ख) कार्यक्रम संचालक पर्दे पर अपाहिज व्यक्ति की फूली हुई आँख को बड़ा करके इसलिए दिखाता है ताकि वह लोगों के सामने अपाहिजों के दुख-दर्द को बढ़ा-चढ़ाकर दिखा सके और अपने कार्यक्रम को प्रभावशाली बना सके।


(ग) कार्यक्रम संचालक अपाहिज तथा दर्शकों को एक साथ रुलाना चाहता है ताकि वह अपने कार्यक्रम को लोकप्रिय बना सके और लोगों में अपाहिजों के प्रति सहानुभूति उत्पन्न कर सके ।


(घ) कार्यक्रम-संचालक अपनी अनेक कोशिशों के बावजूद भी पर्दे पर अपाहिज को रोते हुए न दिखा सका। न उसकी आँखों में आँसू आए, न ही वह ज़ोर-ज़ोर से रोया । कारण यह था कि अपाहिज व्यक्ति भली प्रकार जानता था कि दूरदर्शनकर्मियों का उसके दुख-दर्द से कोई लेना-देना नहीं है, न ही उनके मन में अपाहिजों के प्रति सच्ची सहानुभूति की भावना है।


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