Dopahar ka Bhojan Important Question | Dopahar ka Bhojan Class 11 Important Questions | दोपहर का भोजन Class 11 Important Questions
उत्तर - अमरकांत द्वारा रचित कहानी ‘दोपहर का भोजन’ में सिद्धेश्वरी केंद्रीय पात्र है। पूरी कहानी के केंद्र में रहने के कारण कहानी की कथा का विकास सिद्धेश्वरी के चरित्र से ही होता है। सभी पात्रों के भावों की प्रतिक्रिया सिद्धेश्वरी ही झेलती है। घर की अभावग्रस्तता, निर्धनता एवं तनाव की भोक्ता भी वही है। सिद्धेश्वरी के चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
(i) ममतामयी – सिद्धेश्वरी की अथाह ममता, सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार तथा आत्म-त्याग की पराकाष्ठा ही सारे परिवार को बाँध रखने का साधन है। वह सारी पीड़ा और अभावों को स्वयं पी जाना चाहती है, जिससे परिवार के अन्य सदस्य प्रसन्न रह सकें। वह रामचंद्र के सामने मोहन की प्रशंसा करती है तो मोहन के सामने रामचंद्र की। मुंशी जी के सामने रामचंद्र की प्रशंसा करके सबको बांधकर रखना चाहती है। किराया नियंत्रण-विभाग से निकाले गए मुंशी चंद्रिका प्रसाद की पत्नी सिद्धेश्वरी तीन बच्चों की माँ भी है। बड़े लड़के की बेकारी की पीड़ा को वह समझती है। उसकी कटुता को अपनी ममता से शांत करना चाहती है। मँझला बेटा मोहन पढ़ाई में साधारण है, परंतु वह दोनों भाइयों को निकट लाने के लिए एक-दूसरे के सामने उनकी प्रशंसा करती है। छ: वर्षीय प्रमोद की दुरावस्था की सारी पीड़ा भी वही झेलती है। रोगी एवं कुपोषण का शिकार उसका प्रमोद नाम का ही प्रमोद है, वरना उसकी हालत देख कर ही सिद्धेश्वरी को रोना आता है।
(ii) कुशल गृहिणी – सिद्धेश्वरी कुशल गृहिणी है। वह अभाव में भी घर में शांति बनाए रखती है। सबकी आवश्यकताओं का ध्यान रखती है। सबकी मनचाही बातें कहकर उन्हें प्रसन्न करती है। अपनी पीड़ा को छुपाकर मुसकराहट का रूप देने का प्रयास करती है।भारतीय गृहिणी का आदर्श रूप उसमें है, भले ही यह परंपरागत रूप आज की स्थितियों से मेल नहीं खाता। वह भूखे रहने पर भी पानी पी कर गुजारा कर लेती है। अपने हिस्से की एक रोटी में से आधी रोटी नन्हें प्रमोद के लिए बचाकर रख लेती है। इस प्रकार उसकी अथाह ममता का परिचय मिलता है। वह पूरा प्रयत्न करती है कि बुरे दिनों में भी घर का कोई सदस्य उपेक्षित या अपमानित अनुभव न करे।
(iii) समझौतावादी – सिद्धेश्वरी ने निर्धनता से समझौता कर लिया है। वह फटे-पुराने, पैबंद लगे वस्त्र पहनती है। अपनी इच्छाओं या आवश्यकताओं को लेकर उसे कोई शिकायत नहीं। उसे केवल इस बात का दुख है कि उसका पति तथा उसकी संतान रसोई में से भूखे उठ जाते हैं।
(iv) सहनशीलता – आत्म-निर्वासन अथवा आत्म-त्याग की चरम सीमा सिद्धेश्वरी के चरित्र को ऊँचा उठा देते हैं। वह पतिव्रत धर्म का पूरा पालन करती है तथा पति के बेकार होने पर भी उसका निरादर नहीं करती और न ही उससे हर समय अभावों का रोना रोती है। सिद्धेश्वरी के चरित्र में धरती की-सी सहनशीलता है। उसका जीवन परिवार को पूरी तरह समर्पित है। संक्षेप में कह सकते हैं कि सिद्धेश्वरी एक आदर्श नारी के रूप में हमारे सामने आती है। वह कुशल गृहिणी, ममतामयी माँ, कर्तव्यपरायण पत्ली तथा समझदार महिला है। निर्धनता तथा अभावों से वह हँसकर जूझती है और घोर निर्धनता में भी हार नहीं मानती। उसका चरित्र आदर्श भारतीय नारी का चरित्र है।
प्रश्न 2. लेखक ने ‘दोपहर का भोजन’ कहानी में परिवार की विपन्तता का कैसे चित्रण किया है ?
उत्तर - इस कहानी में लेखक ने परिवार की दयनीय दशा का सजीव चित्रण किया है । घर की स्थिति इतनी दयनीय है कि सबको भरपेट भोजन भी नसीब नहीं हो रहा। रामचंद्र इंटर पास है फिर भी उसे कहीं काम नहीं मिल रहा। रामचंद्र को खाना-खिलाते वह पूछती है, “वहाँ कुछ हुआ क्या ?” रामचंद्र भावहीन आँखों से माँ की ओर देखकर कहता है, “समय आने पर कुछ हो जाएगा।” जब रामचंद्र मोहन के बारे में माँ से पूछता है तो वह रामचंद्र के सामने यही कहती है कि अपने किसी साथी के घर पढ़ने गया है। मुंशी चंद्रिका प्रसाद के पास पहनने के लिए तार-तार बनियान है। आँगन की अलगनी पर कई पैबंद लगी गंदी साडियाँ टँगी हुई हैं। दाल पनिभौला बनती है। प्रमोद अध-टूटे खटोले पर सोया है। वह हड्डियों का ढाँचा मात्र रह गया है। मुंशी जी पँतालीस के होते हुए भी पचास-पचपन के लगते हैं। कहानी के अंत में भी वहाँ मक्खियाँ और गंदगी दिखाई पड़ती है। अलगनी पर पैबंद लगी गंदी साडियों, पानी भरी दाल और गिनती की रोटियों से गरीबी की भयानकता बढ़ती जाती है। इस प्रकार इस कहानी में लेखक ने निम्न मध्यर्गीय परिवार की विपन्नता का सजीव चित्रण किया है।
प्रश्न 3. सिद्धेश्वरी रोटी लेने के लिए रामचंद्र, मोहन और मुंशी जी से जो इसरार करती है, उसके मर्म का वर्णन कीजिए।
उत्तर - जब रामचंद्र घर खाना खाने आता है तो सिद्धेश्वरी उसे खाना देती है। माँ के कहने पर भी वह और रोटी नहीं लेता क्योंकि वह जानता है कि अभी औरों को भी खाना है। मोहन को भी वह दो रोटी, दाल और तरकारी देती है और वह भी और रोटी लेने से मना कर देता है, पर दाल माँग कर पी लेता है। अंत में मुंशी जी आते हैं। उन्हें भी वह दो रोटी, दाल और चने की तरकारी देती है। जब और रोटी के लिए पूछती है तो वे घर की दशा से परिचित होने के कारण रोटी लेने से मनाकर देते हैं, किंतु गुड़ का ठंडा रस पीने के लिए माँगते हैं। जितनी बार सिद्धेश्वरी किसी को एक और चपाती खाने का आग्रह करती है तो उतनी बार लगता है कि अब समस्या विकराल हो जाएगी। परिवार के सदस्यों कें एक अदृश्य-सा समझौता है। कोई भी दो रोटी से अधिक की माँग नहीं करता और न ही इससे अधिक चपाती खाने का अधिकार रखता है। एक माँ और पत्नी के नाते वह उन्हें और रोटी लेने के लिए बार-बार अनुरोध करती है। इस कहानी का कथानक निम्न-मध्यमवर्गीय परिवार की आर्थिक विपन्नता को लेकर चला है। परिवार के सारे सदस्य फटे-पुराने कपड़े पहने, आधा-पेट खाकर रसोई से उठ जाते हैं। सिद्धेश्वरी इस स्थिति में भी सभी सदस्यों को प्रसन्न करने का प्रयत्ल करती है। वह सभी सदस्यों से वहीं बातें करती हैं जिनसे उन्हें प्रसन्नता मिले। उसका यह प्रयत्न सफल भी रहता है। भूखे रहने की पीड़ा को वे कुछ समय के लिए भूल भी जाते हैं। इससे सिद्धेश्वरी को भी क्षणिक सुख की अनुभूति होती है, जो उसके स्वयं खाना खाने के लिए बैठने पर आँसुओं में परिवर्तित हो जाती है-यह सोचकर कि वह अपने परिवार को पेट-भर खाना भी नहीं खिला सकती।
प्रश्न 4. सिद्धेश्वरी और मुंशी जी के संवादों को विवरण के रूप में लिखिए।
उत्तर - मुंशी जी ने दाल सुड़कते हुए सिद्धेश्वरी से बड़के के बारे में पूछा, तो उसने बताया कि वह अभी खाना खाकर गया है और आप की प्रशंसा कर रहा था। वह कह रहा था कि कुछ ही दिनों में उसकी नौकरी लग जाएगी। मुंशी जी यह सुनकर बहुत प्रसन्न होते हैं और बड़के को ‘पगला है’ कहते हैं। तब सिद्धेश्वरी बड़के को होशियार तथा समझदार बताती है जिसकी मोहन भी इज्ज़त करता है। मुंशी जी बड़के को बचपन से ही होनकार मानते हैं। कुछ देर बाद सिद्धेश्वरी वर्षा नहीं होने की संभावना व्यक्त करती है तो मुंशी जी मविखयों के होने पर चिंता जताते हैं। सिद्धेश्वरी उन्हें एक रोटी और लेने के लिए कहती है परंतु वे मना कर देते हैं और गुड़ का ठंडा रस बनाने के लिए कहते हैं।
प्रश्न 5. कहानी के प्रारंभ में सिद्धेश्वरी की मन:स्थिति का विवरण अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर - कहानी के प्रारंभ में सिद्धेश्वरी खाना बनाने के बाद चूल्हा बुझाकर दोनों घुटनों के बीच सिर रखकर विचारों में खो जाती है। वह सोचती है कि उसका घर-संसार कैसे चलेगा, क्योंक उसके पति की नौकरी छूट गई थी। प्यास लगने पर वह पानी पीती है तो खाली पेट पानी पीने से पानी उसके कलेजे में जाकर लगता और वह कुछ देर जमीन पर लेट जाती है। वह आधे घंटे तक ऐसे ही पड़ी रहती है कि अचानक सोए हुए प्रमोद पर भिनभिनाती हुई मक्खियाँ देखती है। वह उठती है और उसके मुँह पर अपना फ़ा हुआ गंदा ब्लाउज डाल देती है। जैसे ही वह बाहर किवाड़ की आड़ से गली में देखती है कि तेज धूप है और बारह बज चुके हैं तो वह इस चिंता से व्यग्र हो उठती है कि घर के सदस्य अब तक खाना खाने क्यों नहीं आए।
प्रश्न 6. सिद्धेश्वरी ने ओसारे में अध-दूटे खटोले पर क्या देखा ?
उत्तर - सिद्धेश्वरी ने ओसारे में अध-टूटे खटोले पर सोए अपने छह वर्षीय पुत्र प्रमोद को देखा, जो नंग-धड़ंग पड़ा था। उसके गले तथा छाती की हड्डियाँ साफ़ दिखाई दे रही थीं। उसके हाथ-पैर बासी ककड़ियों की तरह सूखे तथा बेजान पड़े थे। उसका पेट हँडिया की तरह फूला हुआ था। उसका मुँह खुला हुआ था। उस पर अनगिनत मक्खियाँ भिनभिना रही थीं।
प्रश्न 7. कहानी में रामचंद्र कौन है तथा उसका सिद्धेश्वरी से क्या संबंध है?
उत्तर - रामचंद्र सिद्धेश्वरी का बड़ा पुत्र है। उसकी उम्र लगभग इक्कीस वर्ष है। उसका कद लंबा है। वह दुबला-पतला, गोरे रंग का है। उसकी अँखें बड़ी-बड़ी है तथा होंठों पर झुर्रियाँ हैं। वह एक स्थानीय दैनिक समाचार पत्र के दफ्तर में प्रूफ-रीडरी का काम सीखता है। पिछले वर्ष उसने इंटर की परीक्षा पास की थी।
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प्रश्न 8. सिद्धेश्वरी ने अपने कौन-से पुत्र के लिए रामचंद्र से झूठ बोला और क्या बोला ?
उत्तर - सिद्धेश्वरी ने अपने मँझले पुत्र मोहन के लिए रामचंद्र से झूठ बोला। उसने रामचंद्र से झूठ-मूठ कहा कि वह किसी लड़के के यहाँ पढ़ने गया है, आता ही होगा। दिमाग उसका बड़ा तेज़ है और उसकी तबीयत चौबीसों घंटे पढ़ने में ही लगी रहती है। हमेशा उसी की बात करता रहता है।
प्रश्न 9. मोहन के बारे में आप क्या जानते हैं? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर - मोहन सिद्धेश्वरी का मँझला लड़का है। वह रामचंद्र का छोटा भाई है। उसकी आयु अट्ठारह वर्ष की है। वह कुछ साँवला है। उसकी आँखें छोटी हैं। उसका शरीर रामचंद्र की तरह दुबला-पतला है। उसका कद छोटा है। वह उम्र की अपेक्षा कहीं अधिक गंभीर और उदास दिखाई देता है। इस वर्ष वह हाई स्कूल का प्राइवेट इम्तिहान देने की तैयारी कर रहा है।
प्रश्न 10. कहानी में मुंशी चंद्रिका प्रसाद कौन हैं ? वर्णन कीजिए।
उत्तर - कहानी में मुंशी चंद्रिका प्रसाद सिद्धेश्वरी के पति हैं। वह प्रमोद, मोहन और रामंचद्र के पिता हैं। उनकी आयु पैतालीस वर्ष के लगभग है, किंतु वे पचास-पचपन के लगते हैं। शरीर का चमड़ा अब झूलने लग गया है। उनके सिर के बाल झड़ गए हैं। सिर आईने की भौंति चमकने लगा है। उनकी गंदी धोती के ऊपर अपेक्षा कुछ साफ़ बनियान के तार लटक रहे हैं।
प्रश्न 11. कहानी में प्रयोग किए गए देशज शब्दों को सूचीबद्ध कीजिए।
उत्तर - ‘दोपहर का भोजन’ कहानी में कहानीकार अमरकांत ने देशज शब्दों का अत्यधिक मात्रा में प्रयोग किया है, जो निम्नलिखित हैं-गगरे, ओसारे, खटोले, हैंडिया, किवाड़, आड़, गमछा, बड़कू, खड़खड़िया, इक्के, बड़का, बड़बड़ाना, तरकारी, सुड़-सुड, खस-खस, चुभला-चबा, सुड़कते, जुगाली, धम से, सरकना, लीपना-पोतना, उचका, झट से, पनियाई, छिपुली, कनखी, मँझला धड़तले, पुक-पुक, सबक, बर्राक, पंडूक, ठहाका, बटलोई, उँड़ोल आदि।
प्रश्न 12. अमरकांत की कहानियों का परिचय दें।9
उत्तर - अमरकांत प्रेमचंद्र की परंपरा पर चलने वाले कहानीकार हैं। इनकी अधिकतर कहानियों के कथानक दु:खपूर्ण होते है। इनकी कहानियाँ यथार्थवादी होती हैं। इनकी कहानियौँ जीवन के कठोर धरातल से होकर गुजरती हैं। इनकी कहानियों में रोचकता और प्रभावात्मकता की कहीं कमी देखने को नहीं मिलती। इनके कथानक सरल, संक्षिप्त तथा सार्थक होते हैं।
प्रश्न 13. अमरकांत की कहानियों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर - आधुनिक दौर के कहानीकारों में अमरकांत का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है। उनके द्वारा रचित कहानियाँ मध्यवर्ग की पीड़ा, विषाद तथा व्यंग्य को व्यक्त करती हैं। उनके द्वारा रचित कुछ कहानियाँ इस प्रकार से हैं-दोपहर का भोजन, ज़िंदगी और जोंक, पलाश के फूल, प्रतीक्षा, संवादन्यये, गगन बिहारी, छिपकली, डिप्टी कलक्टरी, मूस संत तुलसीदास और सोलहवाँ साल, शुभचिंता, क्यान की दो तलवारें, उधार आदि।
प्रश्न 14. ‘दोपहर का भोजन’ कहानी का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर - ‘दोपहर का भोजन’ कहानी अमरकांत द्वारा रचित है। यह यथार्थवादी शैली पर आधारित कहानी है। इस कहानी में अमरकांत ने एक मध्यवर्गीय परिवार की पीड़ा, विषाद तथा दुख का शब्द चित्र खींचा है। लेखक ने कहानी का प्रारंभ यथार्थवाद शैली को आधार बनाकर किया। उन्होने इस कहानी में मध्यवर्ग की कारूणिक गाथा का बड़ा ही सजीव वर्णन किया है। कहानीकार ने कहानी में देशज शब्दों का भरपूर प्रयोग किया है-चगरे, गमछा, बर्राक, सुड़कना, जुगाली, सुड़-सुड़, सरकना, लीपना-पोतना, धमसे, कनखी, छिपुली, पुक-पुक, उचका, झट से, मँझला, बड़का, झूठ-मूठ आदि। आम बोल-चाल की भाषा का प्रयोग करते हुए उर्दू एवं तत्सम शब्दों का भी सहारा लिया गया है। मुहावरों का भी यथासंभव प्रयोग किया गया है।
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प्रश्न 15. ‘दोपहर का भोजन’ कहानी की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
उत्तर - ‘दोपहर का भोजन’ अमरकांत द्वारा रचित एक यथार्थवादी कहानी है। इस कहानी में मध्यमवर्ग की पीड़ा, दु:ख एवं विषाद का चित्रण हुआ है। कहानीकार ने कहानी में विशुद्ध साहित्यिक भाषा का प्रयोग न करके सरल, संक्षिप्त एवं सहज स्वाभाविक भाषा का प्रयोग किया है। इनकी कहानियों में बोरियत, बोझिलता एवं जटिलता आदि का कोई स्थान नहीं है। मुहावरों की अभिव्यंजना से भाषा-शैली सटीक बन गड़ी है। व्यंग्य शैली इनकी कहानियों की प्रमुख विशेषता है। अपनी इसी शैली से अमरकांत पाठक का मन मोह लेते हैं।
प्रश्न 16. ‘दोपहर का भोजन’ कहानी में अमरकांत द्वारा प्रयोग किए गए मुहावरों को सूचीबद्ध कीजिए-
उत्तर - आधुनिक कहानीकार अमरकांत ने अपनी कहानी ‘दोपहर का भोजन’ को अधिक रोचक और मार्मिक बनाने के लिए निम्नलिखित मुहावरों का प्रयोग किया है – हाथ खींचना, तार-तार लटकना, जान देना, तबीयत उठाना, छँटा उस्ताद, कमस धरना, आँखें भर आना, सुड़-सुड़ पीना, गटगट चढ़ाना, चूल्हा-बुझाना, खाने में जुटना, खाते-खाते नाक में दम, फीकी हैसी-हैंसना, खाने में जुटना, कसम रखना, बड़बड़ाने लगना आदि।
प्रश्न 17. सिद्धेश्वरी द्वारा रोटी लेने की बात पर मुंशी जी ने क्या कहा ?
उत्तर - मुंशी जी ने पत्नी की ओर अपराधी के समान देखा और किसी घुटे उस्ताद की भौँति बोले, रोटी रहने दो, पेट काफ़ी भर चुका है। अन्न और नमकीन चीज़ों से तबीयत ऊब भी गई है। तुमने व्यर्थ में कसम दे दी। तब मुंशी जी ने उत्साह से कहा कि थोड़े गुड़ का ठंडा रस बनाओ, पीऊँगा। तुम्हारी कसम भी रह जाएगी, जायका भी बदल जाएगा, साथ-ही-साथ हाजमा भी दुरुस्त होगा।
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