Kaidi aur Kokila Class 9 Hindi Explanation | Class 9 Hindi Kaidi aur Kokila | कैदी और कोकिला Class 9
कविता का सार
प्रश्न- पाठ्यपुस्तक में संकलित 'कैदी और कोकिला' शीर्षक कविता का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर- ‘कैदी और कोकिला' श्री माखनलाल चतुर्वेदी की सुप्रसिद्ध कविता है । इसमें कवि ने अंग्रेजी शासकों द्वारा भारतीयों पर किए गए जुल्मों का सजीव चित्रण किया है। प्रस्तुत कविता भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के साथ अंग्रेज अधिकारियों द्वारा जेल में किए गए दुर्व्यवहारों एवं यातनाओं का मार्मिक साक्ष्य प्रस्तुत करती है। प्रस्तुत कविता के माध्यम से एक ओर भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के द्वारा किए गए संघर्षों का वर्णन है तो दूसरी ओर अंग्रेज सरकार की शोषणपूर्ण नीतियों को उजागर किया गया है।
कवि स्वयं महान स्वतंत्रता सेनानी है । वह स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के कारण जेल में बंद है। वह वहाँ के एकाकी एवं यातनामय जीवन से उदास एवं निराश है। कवि रात को कोयल की ध्वनि सुनकर जाग उठता है । वह कोयल को अपने मन का दुःख, असंतोष और आक्रोश सुनाता है । वह कोयल से पूछता है कि तुम रात्रि के समय किसका और क्या संदेश लाती हो। मैं यहाँ जेल की ऊँची और काली दीवारों में डाकुओं, चोरों और लुटेरों के बीच रहता हूँ। यहाँ कैदियों को भरपेट भोजन भी नहीं दिया जाता। यहाँ अंग्रेजों का कड़ा पहरा है । अंग्रेज शासन भी गहन अंधकार की भाँति काला लगता है। तुम बताओ कि रात के समय पीड़ामय स्वर में क्यों बोल उठी हो ? क्या तुझे कही जंगल की भयंकर आग दिखाई दी जिसे देखकर तुम कूक उठी हो ? क्या तुम नहीं देख सकती कि यहाँ कैदियों को जंजीरों से बाँधा हुआ है।
मैं दिन भर कुएँ से पानी खींचता रहता हूँ किंतु फिर भी दिन में करुणा के भाव चेहरे पर नहीं आने देता। रात को ही करुणा गजब ढाती है। तुम बताओ कि तुम रात के अंधकार को अपनी ध्वनि से बेंधकर मधुर विद्रोह के बीज क्यों बोती होती हो ? इस समय यहाँ हर वस्तु काली है- तू काली, रात काली, अंग्रेज शासन की करनी काली, यह काली कोठरी, टोपी, कंबल, जंजीर आदि सब काली हैं। तू काले संकट-सागर पर अपने मस्ती भरे गीतों को क्यों तैराती हो। तुझे तो हरी-भरी डाली मिली है और मुझे काली कोठरी । तू आकाश में स्वतंत्रतापूर्वक घूमती है और मैं दस फुट की काल कोठरी में बंद हूँ। मेरी और तेरी विषम स्थिति में बहुत अंतर है। अतः कवि को लगता है कि कोयल भी पूरे देश को कारागार के रूप में देखने लगी है। इसीलिए वह आधी रात को कूक उठी है।
अर्थग्रहण एवं सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर
1. क्या गाती हो ?
क्यों रह-रह जाती हो ?
कोकिल बोलो तो!
क्या लाती हो ?
-संदेशा किसका है?
कोकिल बोलो तो!
ऊँची काली दीवारों के घेरे में.
डाकू, चोरों, बटमारों के डेरे में,
जीने को देते नहीं पेट भर खाना,
मरने भी देते नहीं, तड़प रह जाना !
जीवन पर अब दिन-रात कड़ा पहरा है,
शासन है, या तम का प्रभाव गहरा है?
हिमकर निराश कर चला रात भी काली,
इस समय कालिमामयी जगी क्यूँ आली ?
शब्दार्थ - घेरे में बंधन में । बटमार = रास्ते में यात्रियों को लूटने वाला । तम = अंधकार । हिमकर = चंद्रमा । कालिमामयी = काले रंग वाली । आली = सखी ।
प्रश्न (1) कवि एवं कविता का नाम लिखिए ।
(2) प्रस्तुत काव्यांश का संदर्भ स्पष्ट कीजिए |
(3) प्रस्तुत पद की व्याख्यां एवं भावार्थ लिखिए ।
(4) प्रस्तुतं पद का भाव-सौंदर्य अपने शब्दों में लिखिए।
(5) प्रस्तुत काव्य - पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए ।
(6) अंग्रेज सरकार का स्वतंत्रता सेनानियों के प्रति कैसा व्यवहार था ?
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उत्तर-(1) कवि-माखनलाल चतुर्वेदी । कविता - कैदी और कोकिला ।
(2) संदर्भ- प्रस्तुत काव्यांश श्री माखनलाल चतुर्वेदी की प्रमुख काव्य रचना 'कैदी और कोकिला' में से उद्धृत है। कवि को स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के कारण कारागार में बंद कर दिया गया था। वहाँ एकाकी और यातनामय वातावरण के कारण उसके मन में निराशा भर गई है। रात को कोयल की ध्वनि सुनकर वह जाग जाता है और अपने मन के दुःख और ब्रिटिश शासन के प्रति अपने आक्रोश को व्यक्त करता हुआ कोयल से ये शब्द कहता है ।
(3) व्याख्या-कवि कोयल की ध्वनि सुनकर उससे पूछता है कि इस समय तुम रह-रहकर क्या गाती हो ? अपनी इस ध्वनि के माध्यम से तुम किसके लिए और क्या संदेश लाती हो । मुझे इसके विषय में बताओ। कवि अपने विषय में उसे बताता है कि मैं यहाँ कारागार की ऊँची-ऊँची काली दीवारों के घेरे में डाकुओं, चोरों तथा रास्ते में दूसरों को लूटने वाले बटमारों के बीच बंद हूँ। दूसरी ओर, अंग्रेज सरकार जीने के लिए भर पेट खाना भी नहीं देती। यहाँ ऐसी दशा बना दी गई है कि न हम मर सकते हैं और न ही भली-भाँति जी सकते हैं, बस तड़पते रहते हैं । यहाँ हमारे जीवन पर दिन-रात कठोर पहरा लगाया गया है । अंग्रेजी शासन का प्रभाव गहरे अंधकार के प्रभाव के समान है। कहने का भाव है कि जिस प्रकार अंधकार में कुछ नहीं सूझता; उसी प्रकार अंग्रेजी शासन में किसी के साथ सही न्याय नहीं होता। अब रात काफी बीत चुकी है। चंद्रमा भी मानों निराश होकर चला गया है और उसके जाने के पश्चात रात पूर्णतः अंधकारमयी हो गई है। इस कालिमामयी अर्थात काले रंग वाली कोयल तू इस अंधेरी रात में क्यों जाग गई। तुझे क्या गम या चिंता है ।
भावार्थ - इन काव्य- पंक्तियों में जहाँ एक ओर कवि के मन की निराशा का वर्णन है तो दूसरी ओर अंग्रेज शासन के अत्याचारों को उजागर किया गया है ।
(4) प्रस्तुत पद में कवि ने जहाँ अपने मन के निराश भावों को अभिव्यक्त किया है वहीं अंग्रेज सरकार के द्वारा भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के साथ किए गए दुर्व्यवहारों एवं शोषण का यथार्थ चित्रण किया है । अंग्रेज सरकार द्वारा किए गए अन्याय एवं अत्याचारों को उजागर करना ही इस काव्यांश का मूल भाव है ।
(5) (क) भाषा सरल, सहज एवं भावानुकूल है।
(ख) लक्षणा शब्द-शक्ति के प्रयोग के कारण विषय में रोचकता एवं चमत्कार का समावेश हुआ है।
(ग) चाँद का मानवीकरण किया गया है।
(घ) तत्सम शब्दों का सुंदर एवं सार्थक प्रयोग हुआ है ।
(ङ) 'रह-रह' में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है ।
(च) भाषा प्रसादगुण संपन्न है ।
(छ) कवितांश में लय, तुक एवं संगीत का सुंदर समन्वय है।
(6) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने बताया है कि अंग्रेज सरकार भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों पर झूठे मुकद्दमे चलाकर उन्हें कारागार में बंद कर देती थी। उन्हें भर पेट खाना भी नहीं देती थी । वे न तो जी सकते थे और न ही मर सकते थे। उन पर दिन-रात कठोर पहरा लगाया जाता था ।
2. क्यों हूक पड़ी?
वेदना बोझ वाली - सी;
कोकिल बोलो तो!
क्या लूटा ? :
मृदुल वैभव की
रखवाली-सी,
कोकिल बोलो तो!
क्या हुई बावली ?
अर्द्धरात्रि को चीखी,
कोकिल बोलो तो !
किस दावानल की
ज्वालाएँ हैं दीखीं ?
कोकिल वोलो तो !
शब्दार्थ- हूक बोलना | वेदना पीड़ा। दावानल = जंगल की आग । ज्वालाएँ - लपटें |कोमल मधुर वैभव धन-संपत्ति
प्रश्न ( 1 ) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
( 2 ) प्रस्तुत काव्यांश की व्याख्या लिखिए ।
( 3 ) प्रस्तुत पद्यांश का भावार्थ स्पष्ट कीजिए |
(4) प्रस्तुत काव्य - पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य / शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए ।
(5) प्रस्तुत पंक्तियाँ कौन किससे कह रहा है ?
(6) कवि ने अर्द्धरात्रि में कोयल के बोलने के कौन-कौन से कारणों की कल्पना की है ?
उत्तर - (1) कवि – श्री माखनलाल चतुर्वेदी । कविता- कैदी और कोकिला |
(2) व्याख्या - कविवर माखनलाल चतुर्वेदी अर्द्धरात्रि के समय कोयल की पीड़ा भरी आवाज सुनकर उससे पूछते हैं, हे कोयल! तू इस प्रकार पीड़ा के बोझ से दबी हुई- सी आवाज में क्यों बोल उठी है ? बताओ तो सही, तूने क्या किसी को लूटते हुए देखा है। तू सदा मधुर ध्वनि में बोलने के कारण मधुरता के ऐश्वर्य की रक्षक-सी लगती थी, किंतु आज ऐसी वेदनायुक्त आवाज में क्यों बोल रही हो ? हे कोयल! क्या तुम पगला गई हो जो आधी रात के समय इस प्रकार कूकने लगी हो । क्या तुझे कहीं जंगल में लगी आग की लपटें दिखाई दी हैं जिन्हें देखकर तुम इस प्रकार कूक रही हो ।
(3) प्रस्तुत पद्यांश में कवि रात्रि के समय कोयल की कूकने की ध्वनि को सुनकर आशंकित हो उठता है और उससे इस प्रकार रात को कूकने का कारण जानना चाहता है, क्योंकि कवि को कोयल की ध्वनि में मृदुलता की अपेक्षा पीड़ा अनुभव होती है।
(4) (क) प्रस्तुत पद प्रश्न शैली में रचित है। इससे जहाँ कवि के मन की जिज्ञासा का बोध होता है, वहीं काव्य-सौंदर्य में वृद्धि हुई है।
(ख) तत्सम और तद्भव शब्दों का सार्थक प्रयोग किया गया है।
(ग) भाषा सरल एवं प्रवाहमयी है ।
(घ) 'बोलो तो' शब्दों की आवृत्ति से कवि की जिज्ञासा का बोध होता है ।
(ङ) भाषा प्रसाद गुण संपन्न है ।
(5) प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि कोयल से कह रहा है।
(6) कवि ने कोयल के अर्द्धरात्रि के समय कूकने से किसी के लुटने, कोयल के पगला जाने, जंगल में आग लगने से लपटों को देखना आदि कारणों की कल्पना की है।
3. क्या ? - देख न सकती जंजीरों का गहना ?
हथकड़ियाँ क्यों? यह ब्रिटिश राज का गहना,
कोल्हू का चर्रक चूँ?-जीवन की तान,
गिट्टी पर अँगुलियों ने लिखे गान!
हूँ मोट खींचता लगा पेट पर जूआ,
खाली करता हूँ ब्रिटिश अकड़ का कुँआ ।
दिन में करुणा क्यों जगे, रुलानेवाली,
इसलिए रात में गज़ब ढा रही आली ?
शब्दार्थ- गहना = आभूषण। चर्रक चूँ = कोल्हू के चलने पर निकलने वाली ध्वनि। मोट खींचना पुर, चरसा (चमड़े का डोल जिससे कुएँ आदि से पानी निकाला जाता है ।) जुआ = बैल के कंधों पर रखी जाने वाली लकड़ी । गज़ब ढाना = जुल्म
प्रश्न (1) कवि एवं कविता का नाम लिखिए ।
(2) प्रस्तुत काव्यांश की व्याख्या एवं भावार्थ अपने शब्दों में लिखिए ।
(3) प्रस्तुत काव्यांश के भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए ।
(4) प्रस्तुत पद में निहित काव्य-सौंदर्य / शिल्प-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए ।
(5) प्रस्तुत काव्यांश के आधार पर अंग्रेज सरकार द्वारा भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों पर किए गए अत्याचारों का उल्लेख कीजिए ।
(6) दिन में करुणा...... ढा रही आली ? - पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर - (1) कवि - श्री माखनलाल चतुर्वेदी । कविता - कैदी और कोकिला |
(2) व्याख्या - कवि ने कोयल से पूछा है कि क्या वह देख नहीं सकती कि अंग्रेजी सरकार ने उन्हें जंजीरों के गहने पहनाए हुए हैं। ये हथकड़ियाँ जो हमने पहनी हुई हैं यही तो ब्रिटिश राज्य के गहने हैं जो वह भारतीयों को पहनाता है। कहने का भाव है ब्रिटिश शासक भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के पैरों में बेड़ियाँ और हाथों में हथकड़ियाँ डाल देते थे ।
कवि पुनः कहता है कि कैदियों से कोल्हू चलवाया जाता था उससे जो चर्रक चूँ की ध्वनि निकलती है, वह मानो हमारे जीवन की तान हो । यहाँ कारागार में रहते हुए स्वतंत्रता सेनानी भी मिट्टी पर अपनी अँगुलियों से ही देश भक्ति के गीत लिखते हैं। मैं अपने पेट पर जूआ लगाकर मोट खींचता हूँ अर्थात् कुएँ से पानी निकालता हूँ। मुझे उस समय ऐसा लगता है कि मैं कुएँ से पानी नहीं, अपितु ब्रिटिश शासन की अकड़ (अहंकार) के कुएँ को खाली कर रहा हूँ । कवि पुनः कोयल को संबोधित करता हुआ कहता है कि दिन में रुलाने वाली करुणा क्यों जगे अर्थात् दिन में हम करुणा के भाव को चेहरे पर व्यक्त नहीं करते ताकि अंग्रेज शासक यह न समझ लें कि हम टूट चुके हैं। इसलिए तू भी रात को करुणा जगाने वाली ध्वनि करके गजब ढा रही है ।
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भावार्थ - इन काव्य-पंक्तियों में जहाँ एक ओर कवि के मन की निराशा का वर्णन है तो दूसरी ओर अंग्रेज शासन के अत्याचारों को उजागर किया गया है ।
(3) कवि के कहने का भाव है कि ब्रिटिश शासन भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के प्रति क्रूरता एवं अमानवीय व्यवहार करता था। वह उन्हें कड़ी-से-कड़ी सजा देता था । साधारण अपराधियों और स्वतंत्रता सेनानियों में उसे कोई अंतर महसूस नहीं होता था । कवि ने अंग्रेजी शासन के दुर्व्यवहार को दर्शाकर भारतवासियों में राष्ट्रीय चेतना जगाने का सफल प्रयास किया है।
(4) (क) प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों में चित्रात्मक शैली में भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के त्याग एवं बलिदान की भावना को उद्घाटित किया गया है ।
(ख) 'खाली करता........ का कुँआ' में रूपक अलंकार का प्रयोग हुआ है ।
(ग) संपूर्ण काव्यांश में प्रश्न अलंकार है ।
(घ) भाषा सरल, सहज एवं भावानुकूल है।
(ङ) 'गज़ब ढाना' मुहावरे का सफल प्रयोग किया गया है ।
(च) भाषा ओजस्वी है। संपूर्ण भाव ओजस्वी वाणी में उद्घाटित किए गए हैं।
(5) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने बताया है कि अंग्रेजी सरकार भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों पर झूठे मुकद्दमे चलाकर उन्हें कारागार में बंद कर देती थी। उनके पैरों में जंजीरें और हाथों में हथकड़ियाँ पहना देती थी। इतना ही नहीं, उन्हें पशुवंत कोल्हू और कुँओं में जोत दिया जाता था । अतः स्पष्ट है कि ब्रिटिश शासक उनके प्रति अमानवीय व्यवहार करते थे।
(6) प्रस्तुत पंक्ति में कवि का स्वाभिमान अभिव्यक्त हुआ है। स्वतंत्रता सेनानी दिन में अपने चेहरे पर करुणा के भाव नहीं आने देते थे ताकि अंग्रेज अधिकारी यह न समझ लें कि वे टूट चुके हैं। इसलिए कवि कोयल से भी यही कहता है कि तू भी दिन में न कूक-कर अब रात को ही कूकती है।
4. इस शांत समय में,
अंधकार को बेध, रो रही क्यों हो?
कोकिल बोलो तो !
चुपचाप, मधुर विद्रोह-बीज
इस भाँति बो रही क्यों हो?
कोकिल बोलो तो !
शब्दार्थ - विद्रोह - बीज = विद्रोह की भावना ।
प्रश्न ( 1 ) कवि एवं कविता का नाम लिखिए |
( 2 ) प्रस्तुत कवितांश की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए ।
( 3 ) प्रस्तुत पंक्तियों के भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
( 4 ) प्रस्तुत पद्यांश के काव्य-सौंदर्य / शिल्प-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए ।
( 5 ) "मधुर विद्रोह-बीज, इस भाँति बो रही क्यों हो ?" - पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर – (1) कवि - श्री माखनलाल चतुर्वेदी । कविता- कैदी और कोकिला ।
( 2 ) व्याख्या - कवि ने कोयल से पूछा है कि तुम रात के इस शांत समय में और गहन अंधकार को चीरती हुई क्यों रो रही हो ? इस विषय में कुछ तो बोलो। इस प्रकार अपनी मधुर भाषा के द्वारा तुम क्रांति के बीज बो रही हो। कहने का भाव है कि कोयल की ध्वनि में कवि को विद्रोह की भावना अनुभव हुई है। कवि भी अपनी मधुर भाषा में रचित कविता के द्वारा लोगों के मन में विद्रोह की भावना उत्पन्न करता है। भावार्थ-कवि के कहने का भाव है कि रात के शांत वातावरण में कोयल की ध्वनि मधुर होते हुए भी विद्रोह के भाव युक्त प्रतीत होती है ।
(3) रात के गहन अंधकार एवं शांत वातावरण में जब संपूर्ण संसार सोया हुआ है तब कोयल अपनी ध्वनि द्वारा एक हलचल उत्पन्न करना चाहती है। इसी प्रकार कवि अंग्रेजों के शासन में व्याप्त अंधकार अर्थात् अन्याय के प्रति जनता को सचेत करने का संदेश देना चाहता है ।
(4) (क) संपूर्ण काव्यांश सरल, सहज एवं प्रवाहमयी भाषा में रचित है
(ख) मधुर विद्रोह-बीज में विरोधाभास अलंकार है।
(ग) शब्द-चयन भावानुकूल है।
(घ) कवितांश में तुक, लय एवं संगीत का समन्वय है।
(5) प्रस्तुत पंक्ति में कवि ने बताया है कि विद्रोह की भावना केवल ओजस्वी भाषा में ही नहीं, अपितु मधुर वाणी में भी उत्पन्न की जा सकती है ।
5. काली तू, रजनी भी काली,
शासन की करनी भी काली,
काली लहर कल्पना काली,
मेरी काल कोठरी काली,
टोपी काली, कमली काली,
मेरी लौह-शृंखला काली,
पहरे की हुंकृति की ब्याली,
तिस पर है गाली, ऐ आली !
इस काले संकट - सागर पर
मरने की, मदमाती !
कोकिल बोलो तो!
अपने चमकीले गीतों को
क्योंकर हो तैराती !
कोकिल बोलो तो!
शब्दार्थ- रजनी := रात । करनी काली = बुरे कर्म । लौह-शृंखला = लोहे की जंजीर । हुंकृति = हुँकार । ब्याली = सर्पिणी । आली = सखी । मदमाती मस्ती ।
प्रश्न (1) कवि एवं कविता का नाम लिखिए ।
(2) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए ।
(3) प्रस्तुत पद्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए ।
(4) प्रस्तुत काव्य - पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य / शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए ।
(5) ब्रिटिश शासन की करनी के विषय में कवि ने क्या कहा है ?
(6) प्रस्तुत प्रद्यांश के प्रमुख विषय पर प्रकाश डालिए ।
उत्तर – (1) कवि - श्री माखनलाल चतुर्वेदी । कविता - कैदी और कोकिला ।
( 2 ) व्याख्या - प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने अंग्रेजी शासन द्वारा भारतीयों पर किए गए अन्याय एवं अत्याचारों का उल्लेख किया है। कैदी रूपी कवि कोयल से कहता है कि तू काली है और रात भी काली है। इतना ही नहीं, ब्रिटिश शासन के कर्म भी काले हैं अर्थात् उसके द्वारा किए गए सभी कार्य बुरे हैं। उसकी कल्पना भी काली है अर्थात् वे बुरा ही सोचते हैं। जिस कोठरी में मुझे बंद किया गया है, वह भी काली है। मेरी टोपी काली है। मुझे जो कंबल दिया गया है, वह भी काला है। जिन जंजीरों से मुझे बाँधा गया है, उनका रंग भी काला है । हे कोयल ! उनके द्वारा बिठाए गए पहरे की हुंकार सर्पिणी की भाँति काली है। हे सखी! इतना कुछ होने पर भी वे गाली देकर बोलते हैं, किंतु इस काले संकट रूपी सागर के लहराने पर अर्थात् जीवन पर संकट मंडराते रहने पर भी हमें मरने की अर्थात् बलिदान देने की मस्ती छाई रहती है । हे कोयल! तू बता कि अपने चमकीले गीतों को इस काले वातावरण पर किस प्रकार तैराती हो । मुझे इसका भेद बता दो ।
भावार्थ-कवि ने रात, कोयल और अंग्रेज शासक के कारनामों के रंग में साम्यता दशांते हुए ब्रिटिश शासन की काली करतूतों को उजागर किया है ।
(3) प्रस्तुत पंद्यांश में कवि ने भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के प्रति किए गए दुर्व्यवहार एवं अन्याय को उद्घाटित किया है। वे (स्वतंत्रता सेनानी) संकटकाल की चिंता न करके अपने जीवन का बलिदान करने की मस्ती में झूमते रहते थे । कवि ने उनकी बलिदान की भावना के माध्यम से भारतीयों में देश-प्रेम व राष्ट्रीय चेतना जगाने का प्रयास किया है ।
(4) (क) संपूर्ण कवितांश में सरल, सहज एवं प्रवाहमयी भाषा का प्रयोग किया गया है ।
(ख) 'काली' शब्द की आवृत्ति के द्वारा अंग्रेजों के काले कारनामों एवं अत्याचारों को प्रभावशाली ढंग से उजागर किया गया है।
(ग) 'संकट-सागर' में रूपक अलंकार है
(घ) संबोधन शैली का प्रयोग किया गया है।
(ङ) संपूर्ण पद में 'क' वर्ण की आवृत्ति के कारण अनुप्रास अलंकार है ।
(5) ब्रिटिश शासन की करनी के विषय में बताया गया है कि उनकी करनी बहुत बुरी थी अर्थात् वे भारतीयों के प्रति निर्दयतापूर्वक व्यवहार करते थे। वें निर्दोष भारतीयों को जंजीरों में जकड़कर कारागार में बंद कर देते थे। इतना ही नहीं, उनके प्रति गाली-गलौच करके अमानवीय व्यवहार का प्रदर्शन भी करते थे। इसलिए कवि ने ब्रिटिश शासन की करनी काली और कल्पना काली आदि कहा है ।
(6) प्रस्तुत कवितांश का प्रमुख विषय अंग्रेजी शासन की शोषणपूर्ण नीतियों एवं भारतीयों की देश भक्ति की भावना को उजागर करना है। भारतीय स्वतंत्रता सेनानी अंग्रेजी शासन की क्रूरता की चिंता न करके अपने जीवन का बलिदान करने की तत्परता में रहते थे ।
6. तुझे मिली हरियाली डाली,
मुझे नसीब कोठरी काली !
तेरा नभ-भर में संचार
मेरा दस फुट का संसार!
तेरे गीत कहावें वाह,
रोना भी है मुझे गुनाह !
देख विषमता तेरी मेरी,
बजा रही तिस पर रणभेरी !
इस हुंकृति पर,
अपनी कृति से और कहो क्या कर दूँ?
कोकिल बोलो तो!
मोहन के व्रत पर,
प्राणों का आसव किसमें भर दूँ!
कोकिल बोलो तो !
शब्दार्थ–डाली = टहनी, शाखा। नसीब = भाग्य । संचार = घूमना-फिरना, उड़ना । दस फुट का संसार = दस फुट की लंबी कोठरी, जिसमें कवि बंद है । कहावें वाह = प्रशंसा प्राप्त करना । गुनाह = अपराध | विषमता = अंतर | रणभेरी = युद्ध का नगाड़ा। हुंकृति = हुँकार । कृति = रचना ( काव्य ) | मोहन = मोहनदास कर्मचंद गांधी । आसव= दस (आनंद) ।
प्रश्न (1) कवि एवं कविता का नाम लिखिए ।
(2) प्रस्तुत पद की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए ।
(3) प्रस्तुत काव्य - पंक्तियों के भाव-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए ।
(4) प्रस्तुत कवितांश में निहित काव्य-सौंदर्य / शिल्प-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए ।
(5) कैदी और कोकिला के जीवन में क्या अंतर बताया गया है ?
(6) कवि ने मोहन के किस व्रत की ओर संकेत किया है ?
उत्तर – (1) कवि-श्री माखनलाल चतुर्वेदी । कविता – कैदी और कोकिला ।
(2) व्याख्या - प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने कैदी और कोकिला के जीवन की स्थितियों के अंतर को स्पष्ट करते हुए कैदी के जीवन के प्रति सहानुभूति अभिव्यक्त की है। कैदी कोयल से कहता है कि तुझे बैठने के लिए हरी-भरी टहनी मिली है और मुझे काल-कोठरी मिली हुई है अर्थात् वह कारागार में बंद है। तेरे उड़ने के लिए सारा आकाश है, जबकि मेरे लिए केवल दस फुट की काल-कोठरी है अर्थात् कैदी को दस फुट की छोटी-सी कोठरी में बंद किया हुआ है। इतना ही नहीं, लोग तेरे गीतों को सुनकर वाह-वाह कर उठते हैं अर्थात् तेरे गीतों की सराहना की जाती है किंतु मेरा तो रोना भी अपराध माना जाता है अर्थात् मैं तो रो भी नहीं सकता। हे कोयल ! तेरे-मेरे जीवन में कितना बड़ा अंतर है। तू इस विषमता को देखते हुए भी युद्ध का नगाड़ा बजा रही है। कवि कोयल से पुनः प्रश्न पूछता है कि इस हुँकार पर मैं अपनी रचना में क्या कर सकता हूँ अर्थात् अपनी काव्य-रचनाओं के माध्यम से अंग्रेजी शासन के विरुद्ध भारतीय जनता में विद्रोह की भावना ही भर सकता हूँ । हे कोयल! तू ही बता कि महात्मा गाँधी (मोहनदास कर्मचंद गाँधी) के स्वतंत्रता-प्राप्ति के व्रत पर प्राणों का आनंद किस में भर दूं।
भावार्थ- कवि के कहने का तात्पर्य है कि कुछ लोगों के लिए समूचा संसार रहने के लिए है और कुछ को कैद में बंद किया गया है। यहाँ तक कि संपूर्ण भारत ही कारागार जैसा लगता है। अंग्रेजी शासन के इस अन्याय को समाप्त करने के लिए गांधी जी ने सत्य व्रत धारण किया हुआ है। हमें उसमें सम्मिलित होकर उनका साथ देना चाहिए ।
(3) प्रस्तुत कवितांश में कवि ने कैदी और कोयल के जीवन की परिस्थितियों के अंतर को स्पष्ट करते हुए कैदी के जीवन के प्रति भारतीयों के मन में सहानुभूति उत्पन्न की है। साथ ही कवि ने महात्मा गाँधी के स्वतंत्रता प्राप्ति के दृढ़ निश्चय को भी उजागर किया है ।
(4) (क) तुलनात्मक शैली से विषय आकर्षक बन पड़ा है ।
(ख) नसीब, गुनाह आदि, उर्दू शब्दों का सार्थक प्रयोग किया गया है।
(ग) संपूर्ण पद में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग हुआ है ।
(घ) शब्द-चयन विषयानुकूल है ।
(5) कवि ने कैदी और कोकिला के जीवन का अंतर स्पष्ट करते हुए बताया है कि कोयल हरी-भरी टहनी पर बैठी थी और कैदी के भाग्य में काल-कोठरी है। इसी प्रकार कोयल खुले आकाश में उड़ान भर सकती है, जबकि कैदी दस फुट लंबी कोठरी में बंद है। कोयल की ध्वनि को सुनकर लोग उसकी प्रशंसा करते हैं, जबकि कैदी अपने दुःख को भी व्यक्त नहीं कर सकता । इस प्रकार कैदी और कोयल के जीवन में अत्यधिक विषमता है।
(6) कवि ने मोहन (महात्मा गाँधी) के देश को स्वतंत्र कराने के व्रत की ओर संकेत किया है ।
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