Barahmasa Class 12 Question Answer |Class 12 Hindi Barahmasa Question Answer | बारहमासा Class 12 Question Answer
प्रश्न 1. अगहन मास की विशेषता बताते हुए विरहिणी (नागमती) की व्यथा-कथा का चित्रण अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर - अगहन मास में दिन छोटे हो जाते हैं और रातें लंबी हो जाती हैं। विरहिणी नायिका के लिए ये लंबी रातें काटनी अत्यंत दुःखदायी होती हैं। रात के समय वियोग की पीड़ा अधिक कष्टदायक प्रतीत होती है। नागमती को तो दिन भी रात के समान प्रतीत होते हैं। वह तो विरहागिन में दीपक की बत्ती के समान जलती रहती है। अगहन मास की ठंड उसके हुदय को कँपा जाती है। इस ठंड को प्रियतम के साथ तो झेला जा सकता है, पर उसके प्रियतम तो बाहर चले गए हैं। जब वह अन्य स्त्रियों को सं-बिंगे वस्त्रों में सजी-धजी देखती है तब उसकी व्यथा और भी बढ़ जाती है। इस मास में शीत से बचने के लिए जगह-जगह आग जलाई जा रही है, पर विरहिणियों को तो विरह की आग ज़ला रही है। नागमती के हृदय में विरह की अग्नि जल रही है और उसके तन को दग्ध किए दे रही है।
प्रश्न 2. ‘जीयत खाइ मुएँ नहि छाँड़ा’ पंक्ति के संदर्भ में नायिका की विरह-दशा का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर - नागमती (नायिका) विरह को बाज के समान बताती है। बाज नोंच-नोंच कर खाता है। यह विरह रूपी बाज भी नायिका के शरीर पर नजर गढ़ाए हुए है। वह उसे जीते-जी खा रहा है। उसे लगता है कि उसके मरने पर भी यह उसका पीछा नहीं छोड़ेगा। नायिका विरह-दशा को झेलते-झेलते तंग आ चुकी है। अब इसे सहना कठिन हो गया है। शीत में अकेले काँप-काँप कर वह मरी जा रही है। इस विरह के कारण नायिका के शरीर का सारा रक्त बहता चला जा रहा है। उसका सारा मांस गल चुका है और हड्डुयाँ शंख के समान सफेद दिखाई देने लगी हैं। वह प्रिय-प्रिय रटती रहती है। वह मरणासन्न दशा में है। वह चाहती है कि उसका पति आकर उसके पंखों को तो समेट ले।
प्रश्न 3. माघ महीने में विरहिणी को क्या अनुभूति होती है?
उत्तर - माघ मास में शीत चरमसीमा पर होता है। अब पाला पड़ने लगता है। दिरहिणी के लिए माघ मास के जाड़े में विरह को झेलना मृत्यु के समान प्रतीत होता है। पति के आए बिना माघ मास का जाड़ा उसका पीछा नहीं छोड़ेगा। अब विरहिणी नायिका के मन में काम भाव उत्पन्न हो रहा है, अतः उसे प्रिय-मिलन की इच्छा हो रही है। माघ मास में वर्षा भी होती है। वर्षा के कारण नायिका के कपड़े गीले हो जाते हैं और वे बाण के समान चुभते हैं। वियोग के कारण न तो वह रेशमी वस्त्र पहन पा रही है और न गले में हार पहन पाती है। विरह में वह सूखकर तिनके की भाँति हो गई है। विरह उसे जलाकर राख बनाकर उड़ा देने पर तुला प्रतीत होता है।
प्रश्न 4. वृक्षों से पत्तियाँ तथा वनों से ढाँखें किस माह में गिरते हैं ? इससे विरहिणी का क्या संबंध है ?
उत्तर - वृक्षों से पत्तियाँ तथा वनों से ढाँखें फागुन मास में गिरते हैं। इससे विरहिणी का यह संबंध है कि उसकी उदासी भी दुगुनी हो जाती है। उसकी आशाएँ भी पत्तों के समान झड़ती चली जा रही हैं। विरहिणी शरीर भी पत्ते के समान पीला पड़ता जा रहा है। विरहिणी नागमती का दु:ख तो दुगुना हो गया है। फागुन मास के अंत में वृक्षों पर तो नए पत्ते और फूल आ जाएँगे पर उस विरहिणी के जीवन में खुशियाँ कब लौट पाएँगी, यह अनिश्चित है।
प्रश्न 5. निम्नलिखित पंक्तियों की व्याख्या कीजिए –
(क) पिय सो कहेहु संदेसरा ऐ भँवरा ऐ काग।
सो धनि बिरहें जरि गई तेहिक धुआँ हम लाग।।
(ख) रकत ढरा माँसू गरा हाड़ भए सब संख।
धनि सारस होइ ररि मुई आइ समेटहु पंख।।
(ग) तुम्ह बिनु कंता धनि हरुई तन तिनुवर भा डोल।
नेहि पर बिरह जराई कै चहै उड़ावा झोल।।
(घ) यह तन जारौं छार कै कहौं कि पवन उड़ाउ।
मकु तेहि मारग होइ परौं कंत धरें जहँ पाउ।।
उत्तर - (क) विरहिणी नागमती भौंरा और कौए के माध्यम से अपनी विरह-व्यथा का हाल प्रियतम तक ले जाने का आग्रह करती है। वह कहती है कि मेरे प्रियतम (राजा रत्नसेन) से जाकर कहना कि तुम्हारी पत्नी तो तुम्हारे विरह की अगिन में जल मरी। उसी आग से जो धुआँ उठा उसी के कारण हमारा रंग काला हो गया है। (अतिशयोक्ति)
(ख) विरहिणी नायिका नागमती कहती है कि विरह के कारण मेरे शरीर का सारा रक्त ढर गया (बह गया), मेरे शरीर का सारा मांस गल चुका है और सारी हड्डियाँ शंख के समान हो गई हैं। मैं तो सारस की जोड़ी की भाँति प्रिय को रटती हुई मरी जा रही हूँ। अब मैं मरणावस्था में हूँ। अब तो मेरे प्रिय यहाँ आकर मेरे पंखों को समेट लें।
(ग) विरहिणी नायिका अपनी दीन दशा का वर्णन करते हुए कहती है कि हे प्रिय! तुम्हारे बिना, मैं विरह में सूखकर तिनके के समान दुबली-पतली हो गई हूँ। मेरा शरीर वृक्ष की भाँति हिलता है। इस पर भी यह विरह की आग मुझे जलाकर राख बनाने पर तुली है। यह इस राख को भी उड़ा देना चाहता है अर्थात् मेरे अस्तित्व को मिटाने पर तुला है।
(घ) नागमती त्याग भावना को व्यंजित करने हुए कहती है कि पति के लिए मैं अपने शरीर को जलाकर राख बना देने को तैयार हूँ। पवन मेरे शरीर की राख को उड़ाकर ले जाए और मेरे पति के मार्ग में बिछा दे ताकि मेरा प्रियतम मेरी राख पर अपने पैर रख सके। इस प्रकार मैं भी उनके चरणों का स्पर्श पा जाऊँगी।
यह पेज आपको कैसा लगा ... कमेंट बॉक्स में फीडबैक जरूर दें...!!!
प्रश्न 6. प्रथम दो छंदों में से अलंकार छाँटकर लिखिए और उनसे उत्पन्न काव्य-सौंदर्य पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर - प्रथम दो छंदों में आए अलंकार प्रथम पद सियरि अगिनि बिरहिनि जिय जारा। सुलगि सुलगि दगधै भै छारा। ‘अग्न को सियरि ठंडी’ बताने में विरोधाभास अलंकार का प्रयोग है क्योंकि अग्नि शीतल नहीं होती।
दूभर दुख – अनुप्रास अलंकार
किमि काढ़ी – अनुप्रास अलंकार
घर-घर – पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार
‘जिय जारा’ में अनुप्रास अलंकार है। (‘ज’ वर्ण की आवृत्ति)
‘सुलगि सुलगि’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
‘जरै बिरह ज्यौं दीपक बाती ‘ में उत्प्रेक्षा अलंकार है।
दूसरा पद –
बिरह सैचान (विरह रूपी बाज)-रूपक अलंकार (विरह को बाज के रूप में दर्शाया गया है।)
‘रकत ‘संख’ में अतिशयोक्ति अलंकार है। (वियोग की पीड़ा का बढ़-चढ़कर वर्णन है।)
‘सौर सुपेती,’ ‘बासर बिरह’ में अनुप्रास अलंकार है।
कंत कहाँ – अनुप्रास अलंकार
‘कॅपि काँप’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।


If you have any doubts, Please let me know