Khanabadosh Class 11 Hindi Important Questions | Class 11 Hindi Khanabadosh Important Question | खानाबदोश पाठ के Important Questions

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Khanabadosh Class 11 Hindi Important Questions | Class 11 Hindi Khanabadosh Important Question | खानाबदोश पाठ के Important Questions 


 प्रश्न 1. ‘खानाबदोश’ कहानी के आधार पर सुकिया का चरित्र-चित्रण कीजिए।

उत्तर - ‘खानाबदोश’ कहानी ओमप्रकाश वाल्मीकि द्वारा रचित है। इस कहानी में सुकिया शोषित समाज का प्रतिनिधित्व करता है। वह गाँव छोड़कर अपनी पत्नी मानो के साथ भट्ठे पर काम करता है।

(i) परिश्रमी – सुकिया एक मेहनती मजदूर है। वह काम करने से जी नहीं चुरता। भट्टे का मालिक मुखतार सिंह उसके एक सप्ताह के काम से प्रसन्न होकर उसे ईँटं बनाने के लिए साँचा दे देता है जिससे उसकी दिहाड़ी बढ़ जाती है यह उसकी मेहनत का फल था।

(ii) ईमानदार – सुकिया बहुत ईमानदार है। वह अपना सारा काम ईमानदारी से करता है। जल्दी उठकर वह सुबह अपने काम में लग जाता है और शाम तक लगा रहता है। वह इधर-उधर खाली नहीं बैउता।

(iii) यथार्थवादी – सुकिया को यथार्थ में जीना आता था। वह सपने नहीं देखता था क्योंकि उसे अपने हालात पता थे। जब मानो घर बनाने का सपना देखती है तो सुकिया उसे ऐसा सपना देखने के लिए मना करता है क्योंकि घर दो-चार रुपयों से नहीं बनता। उसके लिए ढेर सारा पैसा चाहिए जो उसके पास नहीं है। यदि वह सारी उम्र भी मेहनत करे तब भी घर बनाने के लिए पैसे नहीं जोड़ सकता।

(iv) सहनशील – सुकिया अपने मालिक के अत्याचारों को सहन करता है। उसे पता है कि मालिक की ताकत के सामने उसका कोई अस्तित्व नहीं है, इसलिए वह उसकी छोटी बदतमीजी को भी सहन करता है।

(v) स्वाभिमानी – सुकिया अपना स्वाभिमान खोकर जीना नहीं चाहता। जब सूबे सिंह उसकी पली मानो को सेवाटहल के लिए अपने दफ्तर में कुलाता है तो वह उसे जाने से रोकता है और उसकी जगह स्वरं जाने के लिए तैयार हो जाता है। कह मानो की इज्ज़त बचाने के लिए भट्ठा छोड़ने को तैयार हो जाता है लेकिन सूबे सिंह के गलत इरदों के सामने झुक्ता नहीं।

(vi) जात – पात में विश्वास करने वाला-सुकिया निम्न जाति का है। उसे पता है कि उच्व जाति के लोग उनके हाथ का बना तो दूर, छुआ भी नही खा सकते। इसलिए वह मानो को जसदेव के लिए रोटी ले जाने के लिए मना करता है क्योंकि जसदेव जाति का ब्राहमण था।

इस प्रकार पता चलता है कि सुकिया परिश्रमी, ईमानदार, सहनशील तथा स्वाभिमानी है वह परदेश में अपनी पत्नी की इज्ज़त करना जानता है।


प्रश्न 2. ‘खानाबदोश’ कहानी के आधार पर मानो का चरित्र-चित्रण कीजिए।

उत्तर - ‘खानाबदोश’ कहानी में मानो सुकिया की पत्ली है वह सुकिया के साथ गाँव छोड़कर भट्ठे पर काम करने आती है।

(i) आजाकारी – मानो सुकिया की प्रत्येक बात को उसकी आज्ञा समझकर मानती है। मानो सुकिया से गाँव में अपनों के बीच चलने की बात करती है क्योंकि उसका मन भट्टे पर नहीं लगता। सुकिया उसे गाँव की नरक वाली जिंदगी की याद दिलाता है और यदि कुछ पाना चाहती हो तो कुछ छोड़ना तो पड़ेगा। सुकिया की बात सुनकर वह फिर कभी गाँव जाने की बात नहीं करती।

(ii) परिश्रमी – सुकिया की तरह मानो भी परिश्रमी है। वह भट्ठे पर दिन-रात कमर तोड़ मेहनत करती है जिससे वह अपने भविष्य के लिए कुछ पैसे जोड़ ले।

(iii) ईमानदार – वह सुकिया और अपने काम के प्रति ईमानदार है। वह अपने काम से काम रखती है। बेकार में इधर-उधर की बात नहीं करती। वह सुकिया के सिवाय किसी और के बारे में नहीं सोचती।

(iv) सपने देखनेवाली – मानो अन्य औरतों की तरह अपने घर का सपना देखती है। जिसमे उसका परिवार उसके साथ रहे तथा खुशी-खुशी अपना जीवन व्यतीत करे। भट्ठे पर रहते हुए वह लाल-लाल पक्की ईंटों के घर का सपना देखती है।

(v) कर्मठता में विश्वास – वह अपने देखे हुए सपने को पूरा करने में विश्वास रखती है उसके लिए वह अपने पति सुकिया के साथ मिलकर मेहनत करती है। उसे अपनी मेहनत से अपना घर बनाना है इसलिए वह आलस नहीं करती। दिन-रात मेहनत करने पर भी थकावट अनुभव नर्ही करती।

(vi) आत्म – सम्मान की रक्षा करनेवाली-मानो अपनी इज्जत की रक्षा करना जानती है। वह अपने सपने पूरा करने के लिए अपनी इज्जत का सौदा नहीं करती। क्योंक वह किसनी नहीं बनना चाहती, जिसने सूबे सिंह के दिखाए चमक-दमक वाले जाल में फैसकर अपना सब खो दिया और सबकी नज्ञरों से गिर गई। वह अपनी इजज़त बचाने के लिए भट्ठा छोड़ने को भी तैयार है।

(vii) ममतामयी – मानो ममतामयी औरत है। वह औरत होने के कारण जात-पात में विश्वास नहीं रखती। इसीलिए निम्न जाति के होते हुए वह घायल जसदेव के लिए रोटी बनाकर ले जाती है। वह यह नहीं देख सकती कि उसके होते हुए उसके बराबर वाली झोंपड़ी में कोई भूखा सोए।

(viii) सहनशील – जब मानो सूबे सिंह के गलत इरादों के साथ समझौता नहीं करती तो सूबे सिंह उन्हें तंग करना आरंभ कर देता है। छोटी-छोटी गलतियों के लिए उनकी मज़दूरी काट लेता है। मानो पर इसका कोई खास प्रभाव नहीं पड़ता, वह अपने काम से मतलब रखते हुए चुपचाप सब सहन करती है।

(ix) भावुक – मानो बात-बात पर बहुत भावुक हो जाती है वह भट्ठे से निकली लाल-लाल इंटों को देखकर भावुक हो जाती है और पक्की ईटों के घर का सपना देखने लगती है। जब उसकी बनाई ईंटों को रात के समय कोई तोड़ जाता है तो वह उनको देखकर पागलों की तरह रोने लगती है क्योंकि इटं टूटने से उसके सपने भी टूट जाते हैं। मानो एक आम औरत की तरह होते हुए भी अलग है। वह सपने देखती है, उन्हें पूरा करने के लिए मेहनत करती है अपने पति के दुख-सुख की साथिन भी है। सबसे बड़ी बात बह है कि वह इक़जत का सौदा नहीं करती। इज्ज़त बचाने के लिए उसे सपनों को टूटते हुए देखना स्वीकार है।


प्रश्न 3. भट्ठे पर रहनेवालों का जीवन कैसा था ?

उत्तर - भट्टा शहर से दूर खेतों में था। दिन में वहाँ बहुत शोर रहता था। रात होते ही दिन का शोर सन्नाटे में डूब जाता था। भट्ठे पर तीस मज़दूर काम करते थे। भट्ठे का जीवन बहुत अजीब था। वहाँ पर काम करनेवाले अलग-अलग जगह से आए हुए थे। उनमें जात-पाँत का भेदभाव भी था। दिन में एक जगह, एक-दूसरे का हाथ बँटाने वाले मज़दूरों के मन में भी जात-पांत की भावना थी। धीरे-धीरे मज़दूरों की संख्या बढ़ने से गाँव जैसा वातावरण बन रहा था। रात के समय वहॉँ की जिंदगी नीरस और बेरंग हो जाती थी। भट्ठे पर थोड़ी देर के लिए ताज़गी का अनुभव होता था, जब झोपड़ी के बाहर चूल्हों पर बनते हुए खाने से महक उठती थी। सारा दिन कड़ी मेहनत करनेवाले लोगों के लिए भोजन भी पर्याप्त मात्रा में नहीं होता था। वे लोग अधिकतर गुड़ या मिर्च की चटनी से खाना खाते थे। सब्जी तो बहुत कम बनती थी। यदि भट्ठे पर कोई बीमार या घायल हो जाए तो वहाँ दवाई का प्रबंध नहीं था। मज्जदूर लोग मिट्टी लगाकर ही घाव भर लेते थे। फिर भी मज़दूर वहॉँ दिनभर कड़ी मेहनत के बाद भी अपनी छोटी-छोटी बातों में खुशी दूँढ़ लेते हैं तथा वे अपने आनेवाले भविष्य के सुनहरे सपने देखते हैं जो शायद एक दिन पूरे हो जाएँ।।


प्रश्न 4. भट्ठा छोड़ते हुए मानो की मानसिक दशा कैसी धी ?

उत्तर - मानो ने भट्ठे पर रहते हुए पक्के मकान का सपना देखा था। उसका सपना सूबे सिंह ने अपने पैरों के नीचे रौंद दिया था। जब मानो और सुकिया के सूबे सिंह के अत्याचारों को सहने की सीमा समाप्त हो गई तो उन्होने भट्ठा छोड़ने का निर्णय लिया। मानो सुकिया का हाथ पकड़े उसके पीछे-पीछे चल रही थी लेकिन कदम उठ नहीं रहे थे क्योंकि उसके सपने पीछे छूट रहे थे। उसे सभी पराए लग रहे थे। उसने जसदेव की तरफ़ भी देखा, उसे लगा कि जसदेव उन्हें रोक लेगा लेकिन जसदेव भी चुप रहा। इससे वह और भी टूट गई। टूटे हुए सपने लिए दुखी मन से बिना कुछ शब्द बोले वह अपने पति के साथ अगले पड़ाव के लिए चल दी थी जिसका पता उसके पति को भी नहीं था।


प्रश्न 5. उस दिन की घटना के बाद सूबे सिंह ने किस प्रकार उन्हें भट्ठा छोड़ने को मजबूर कर दिया ?

उत्तर - सूबे सिंह ने मानो को अपने दफ़्तर में सेवाटहल के लिए बुलवाया था। सुकिया उसका मतलब जानता था। उसने मानो को वहाँ जाने नहीं दिया। इस बात को लेकर जसदेय और सूबे सिंह का झगड़ा भी हुआ था। सूबे सिंह को इसमें अपना अपभान अनुभव हुआ। उसने मानो और सुकिया को परेशान करना आरंभ कर दिया। सुकिया से ईंट बनाने का साँचा छीनकर उसे मोरी के काम पर लगा दिया था। मोरी का काम खतरेवाला था। जरा भी असावधानी से मृत्यु भी हो सकती थी। मानो को जसदेव के साथ काम करना पड़ता था। जसदेव में भी मानो निम्न जाति की है वाली भावना आ गई थी। वह उसपर हुक्म चलाने लगा था। सूबे सिंह ने असगर ठेकेदार से भी कह दिया था कि उससे बिना पूछे उन दोनों को मजदुरी नहीं देनी है। इस प्रकार छोटी-से-छोटी गलती पर मजदूरी कटने लगी थी, फिर भी दोनों अपना काम ईमानदारी से कर रहे थे। एक रात किसी ने मानो की बनाई ईटें तोड़ दी थीं सबको पता था यह काम किसका है लेकिन कोई कुछ नहीं बोला। असगर ठेकेदार ने भी टूटी हुई ईटों की मजदूरी देने से इनकार कर दिया। इस व्यवहार तथा वहाँ के पराएपन वाले वातावरण ने उन्हें भट्ठा छोड़ने के लिए मज़बूर कर दिया। इससे यह भी पता चलता हैं कि सूबे सिंह जैसे लोग अपनी मनमानी पूरी न होने पर मजदूरों को किस ढंग से परेशान करते हैं और उन्हैं जीवनभर भटकने के लिए मजबूर कर देते हैं।


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प्रश्न 6. ‘खानाबदोश’ कहानी के शीर्षक की सार्थकता पर अपने बिचार व्यक्त कीजिए।

उत्तर - संसार में प्रत्येक वस्तु का कोई-न-कोई नाम अवश्य होता है। बिना नाम के वस्तु की कल्पना नही की जा सकती। नाम से ही उसकी विशिष्टता बनती है। साहित्यिक क्षेत्र में भी प्रत्येक रचना का नाम उसकी अलग पहचान बनाए रखने के लिए आवश्यक होता है। कहानी का शीर्षक कहानी के मूलकध्य, पात्र, उद्देश्य आदि के अनुरूप सरल, संक्षिप्त, मौलिक तथा जिज्ञासापूर्ण होना चाहिए। कहानी का शीर्षक कहानी की कथावस्तु के अनुरूप है। मानो और सुकिया गाँव की नर्क वाली जिंदगी छोड़कर शहर में कुछ सपने लेकर आते हैं। दोनों भट्ठे पर इंटें पाथने का काम करते हैं। भट्टे का मालिक सूबे सिंह मानो के आत्म-सम्मान को चोट पहुँचाना चाहता है। मानो और सुकिया इस बात का विरोध करते हैं। सूबे सिंह उन्हें छोटी-छोटी बातों के लिए तंग करना शुरू कर देता है। भट्ठे पर काम करनेवाले मज़दूर भी जात-पाँत को लेकर एक-दूसरे से खिंचे रहते हैं। बदले मानो और सुकिया वातावरण में अपने सपने बिखरते दिखाई देते हैं। कहानी के अंत में सुकिया मानो का हाथ पकड़कर, सब कुछ छोड़कर खानाबदोश की तरह अगले पड़ाव के लिए दिशाहीन यात्रा पर चल पड़ते हैं। इस प्रकार कहानी का शीर्षक ‘खानाबदोश’ सर्वथा उचचत है।


प्रश्न 7. चूल्हे में जलती लकड़ियों की चिट-चिट से लेखक को क्या भान होता है ?

उत्तर - लेखक को चूल्हे में जलती लकड़ियों की चिट-चिट मन में फैली दुश्चिता और तकलीफ़ों की प्रतिध्वानियाँ लगती थीं जहाँ सब कुछ अनिश्चित था।

   

प्रश्न 8. सुकिया के मन में कौन-सी बात बैठ गई थी ?

उत्तर - सुकिया के मन में यह बात घर कर गई थी कि नर्क की जिदगी से निकलना है तो कुछ तो छोड़ना पड़ेगा। यदि तरक्की करनी है तो गाँव से निकलकर शहर में काम करना होगा।


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