Badal ko Ghirte Dekha hai Important Question Answer | Class 11 Hindi Chapter Badal ko Ghirte Dekha hai Important Question Answer | बादल को घिरते देखा है Class 11 Important Questions

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Badal ko Ghirte Dekha hai Important Question Answer | Class 11 Hindi Chapter Badal ko Ghirte Dekha hai Important Question Answer | बादल को घिरते देखा है Class 11 Important Questions 


 प्रश्न 1. कविता में चित्रित प्रकृति एवं जन-जीवन को अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर - कवि नागार्जुन द्वारा रचित कविता ‘बादल को घिरते देखा है’ में प्रकृति के साथ-साथ जन-जीवन का भी सुंदर चित्रण हुआ है। कवि कहता हैं कि मैने हिमालय की ऊँची बर्फीली निर्मल एवं सफ़ेद चोटियों पर बादलों को घिरते देखा है। उन्होंने मानसरोवर झील के साथ हिमालय में स्थित अन्य बड़ी-छोटी झीलों का भी सुंदर वर्णन किया है। वसंत ऋत्तु में संपूर्ण पर्वतीय क्षेत्र फूलों से भर जाता है। मंद-मंद समीर बहती है। सूर्य की किरणें बर्फ़ीली चोटियों पर जब पड़ती हैं तो उन्हें भी स्वर्णिम बना देती हैं। रात-भर एक-दूसरे से अलग रहने के कारण चकवा-चकई पुनः जब सुखा मिलते हैं तो वे ‘प्रणय-कलह’ की अनेक क्रियाएँ करते है। कैलाश पर्कत के गगनचुंबी शिखरों पर मूसलाधार एवं भीषण वर्षा का भी कवि ने सुंदर एवं स्वाभाविक चित्रण किया है। हिमालय से निकलने वाले सौ छोटे-बड़े झरने देवदार के जंगलों में कल-कल करते हुए बहते हैं। इन्हीं देवदार के जंगलों में किन्नर जाति के लोग भोज पत्रों की कुटिया बनाकर रहते हैं। किन्नर जाति की स्त्रियाँ रंग-बिंगे फूलों की मालाएं बनाकर अपने बालों में गुँथती हैं। इंदनील की मणियों की मालाएँ उन्होंने अपने सुंदर एवं सुघड़ गलों में डाल रखी हैं। कानों में नील कमल के कुंडल लटकाए हुए हैं। लाल कमलों से अपनी वेणी को गुँथा हुआ है। दूसरी ओर नर चाँदी और मणियों से बनी सुराही में अंगूरों की शराब भरकर चंदन की तिपाई पर रखकर बाल कस्तूरी मृगों की छालों पर पालथी मारकर बैठे है। उनकी आँखों में शराब की मस्ती है। कवि कहता है कि ये मदमस्त किन्नर और किन्नरियां अपनी कोमल अँगुलियों को बांसुरी पर फेरकर मधुर तान छेड़ते है। इस प्रकार कवि ने प्रकृति के साथ पर्कतीय क्षेत्रों में जन-जीवन का बहुत ही सुंदर एवं स्वाभाविक चित्रण किया है।

     

प्रश्न 2. निम्नलिखित पंक्तियाँ किन-किन ऋतुओं से संबंधित हैं ?

(क) तिक्त-मधुर विसतंतु खोजते हंसों को तिरते देखा है।

(ख) निशाकाल से चिर अभिशापित प्रणय-कलह छिड़ते देखा है।

(ग) महामेघ को झंझानिल से गरज-गरज भिड़ते देखा है।

उत्तर - (क) उपर्युक्त पंक्तियों में कवि ने वर्षा क्तु का वर्णन किया है। जब समतल देशों में गर्मी के कारण उमस हो जाती है तो इसी उमस से व्याकुल होकर पक्षियों के समूह हिमालय की ओर पलायन कर जाते हैं। हिमालय में अनेक छोटी-बड़ी झीलें हैं। वहाँ मौसम बहुत ही सुहावना होता है। वहाँ ये पक्षी झीलों में खिले कमल की नाल के कड़वे-मीठे तंतु खाते हैं।

(ख) उपर्युक्त पंक्तियों में कवि ने वसंत ऋत्तु का वर्णन किया है। पर्वतीय क्षेत्रों में बसंत में मंद-मंद हवा बह रही है। उदय होते सूर्य की कोमल किरणें शिखरों के बीच से निकल रही हैं। चकवा और चकई दोनों रात-भर एक-दूसरे से अलग रहने के कारण दु:खी थे, परंतु सुबह होते ही उनका पुनर्मिलन होता है। वे खुशी और दु:ख के कारण ‘प्रण्य-कलह’ की क्रीड़ाएँ करते हैं।

(ग) उपर्युक्त पंक्तियों में शरद ॠतु में होनेवाली वर्षा का वर्णन किया गया है। कवि कहते हैं कि कैलाश पर्वत की चोटियों पर बादल आपस में टकरा-टकराकर घनघोर वर्षा करते हैं।


प्रश्न 3. निम्नलिखित पद्यांशों का आशय स्पष्ट कीजिए –

(क) एक-दूसरे से विरहित प्रणय-कलह छिड़ते देखा है।

(ख) अलख नाभि से उठने वाले अपने पर चिढ़ते देखा है।

(ग) बूंढ़ा बहुत परंतु लगा क्या जाने दो, वह कवि कल्पित था।

(घ) मैंने तो भीषण जाड़ों में गरज-गरज भिड़ते देखा है।

उत्तर - (क) कवि कहता हैं कि वसंत ॠतु में पर्वतीय क्षेत्रों में मौसम अत्यंत सुहावना हो जाता है। चकवा-चकई रात-भर अलग-अलग रहकर दुखी हैं। वे रातभर क्रंदन करते हैं परंतु जैसे ही सुबह होती है वे दोनों एक बार फिर मिलते हैं तथा झील में स्थित शैवाल की दरी पर ‘प्रणयकलह’ करते हैं अर्थात बिहुड़े की पीड़ा और पुनर्मिलन की खुशी उन्हें उद्वेलित कर देती है।

(ख) कवि के अनुसार हिमालय पर्वत पर सैकड़ों हजारों फुट ऊँचाई पर स्थित दुर्गम घाटी में अनेक प्रकार के फूल खिले हुए हैं। संपूर्ण घाटी खुशबू से लबालब है। कस्तूरी मृग फूलों की सुगंध को पकड़ना चाहता है, परंतु वह उसे नहीं पकड़ सकता जबकि उसकी नाभि में कस्तूरी की सुगंध होती है। वह सुगंध न पकड़ने से बेचैन हो जाता है। उसे इधर-उधर दौड़ते देखकर ऐसा लगता है जैसे वह स्वयं ही चिढ़ रहा हो।

(ग) कवि जब हिमालय पर्वत में जाड़ों की मूसलाधार घनषोर वर्षो को देखता हैं तो उसे लगता है कि देखता है कवित कालिदास ने भी अपने मेघदूत में ऐसा ही वर्णन किया है। वे पर्वतीय क्षेत्र में मेघदूत को ढूँढतेत हैं परंतु कालिदास का मेघदूत उन्हें कहीं दिखाई नहीं पड़ता इसलिए कवि इसे कालिदास की कल्पना मानकर छोड़ देते हैं।

(घ) कवि हिमालय पर शरद ॠत्तु में घनघोर वर्षा का वर्णन करते हुए कहता हैं कि मैं कैलाश पर्वत की ऊँंची चोटियों पर महामेघ को झंझावात करते तथा आपस में टकरा-टकराकर बरसते देखा है अर्थात् कवि ने कैलाश पर्कत पर आपस में टकराकर गरजते बादलों का स्वाभाविक चित्रण किया है।


प्रश्न 4. ‘बादल को घिरते देखा है’ कविता में कवि ने प्रकृति के जिन उपकरणों का प्रयोग किया है, उनपर प्रकाश डालिए।

उत्तर - कवि ने हिमालय की ऊँची बर्फीली निर्मल एवं सफेदद चोटियों पर बादलों को घिरते देखा है। उसने मानसरोवर झील के साथ हिमालय में स्थित अन्य बड़ी-छोटी झीलों का भी सुंदर वर्णन किया है। वसंत ऋ्तु में संपूर्ण पर्वतीय क्षेत्र फूलों से भर जाता है। मंद्द-मंद समीर बहती है। सूर्य की किरणें बर्फीली चोटियों पर जब पड़ती हैं तो उन्हें भी स्वर्णिम बना देती हैं। रात-भर एक-दूसरे से अलग रहने के कारण चकवा-चकई पुन: जब सुबह मिलते हैं तो वे ‘प्रणय’ की अनेक क्रियाएँ करते हैं। कैलाश पर्वत के गगनवुंबी शिखरों पर मूसलाधार एवं भीषण वर्षा का भी कवि ने सुंदर एवं स्वाभाविक चित्रण किया है। हिमालय से निकलने वाले सौकड़ों छोटे-बड़े झरने देवदार के जंगलों में कल-कल करते हुए बहते हैं।


प्रश्न 5. कवि ने प्रस्तुत कविता में बादल को किस ॠतु में घिरते देखा है ? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर - कवि ने बादल को वर्षा ऋतु में घिरते देखा है। कवि ने अपनी इस कविता में इस संदर्भ में स्पष्ट किया है कि जब समतल क्षेत्रों में उमस हो जाती है तो पक्षी हिमालय की ओर जाते हैं। कवि ने लिखा है 

‘पावस की उमस से आकुल, तिक्त-मधुर वसतंतु खोजते,

हंसों को तिरते देखा है, बादल को घिरते देखा है।’


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प्रश्न 6. कविता में ‘चकवा-चकई’ के प्रसंग द्वारा कवि क्या कहना चाहता है? विस्तारपूर्वक स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- ‘चकवा-चकई’ के से कवि यह कहना चाहता है कि जब प्रेमी और प्रेमिका अथवा नायक और नायिका आपस में सच्चा प्रेम करते हैं और किसी कारणवश उन्हें बिद्ुड़ान पड़ता है तो वे जब अलग-अलग होते हैं, तो उन्हें विरह-वेदना में दिन व्यतीत करने पड़ते हैं। परंतु जब वे एक बार फिर मिलते हैं तो वे प्यार व्यक्त करने के साथ-साथ एक-दूसरे के प्रति गुस्सा भी प्रकट करते हैं। उनका यही प्यार और गुस्सा ‘प्रणय-कलह’ कहलाता है। कवि ने प्रस्तुत कविता में चकवा और चकई के माध्यम से यही दर्शाया है। चकवा और चकई रात होते ही एक-दूसरे से बिछुड़ जाते हैं तथा सुबह होते ही एक-दूसरे को एक बार फिर जाते हैं और जब वे मिलते हैं तो ‘ ‘र्रणय-कलह’ की क्रिया से गुजरते हैं।


प्रश्न 7. बादल के घिरते समय वातावरण कैसा था ? स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर - बादलों के घिरते समय हिमालय पर्वत की चोटियाँ स्वच्छ और निर्मल बर्फ से ढकी हुई थीं। मैदानी क्षेत्रों की उसम से व्याकुल होकर पक्षी हिमालय की झीलों में तैरने लगे थे। मानसरोवर में खिले हुए कमलों पर बादलों से निकलने कर पड़नेवाली बूँदे मोतियों जैसी लग रही थीं।



प्रश्न 8. कविता में किन्नर-किन्नरियों की वेषभूषा और साज-सज्जा का चित्रण अपने शब्दों में कीजिए।

उत्तर - इन्हीं देवदार के जंगलों में किन्नर जाति के लोग भोज पत्रों की कुटिया बनाकर रहते हैं। किन्नर जाति की स्त्रियाँ रंग-बिंगे फूलों की मालाएँ बनाकर अपने बालों में गूँथती हैं। इंद्रनील की मणियों की मालाएँ उन्होने अपने सुंदर एवं सुषड़ गलों में छल रखी हैं। कानों में नील कमल के कुंडल लटकाए हुए हैं। लाल कमलों से अपनी वेणी को गूँथा हुआ है। नर चाँदी और मणियों से बनी सुराही में अंगूरों की शराब भरकर चंदन की तिपाई पर रखकर बाल कस्तूरी मृरों की छालों पर पालथी मारकर बैठे हैं। उनकी आँखों में शराब की मस्ती है। कवि कहता हैं कि ये मदमस्त किन्नर और किन्नरियाँ अपनी कोमल अंगुलियों को बाँसुरी पर फेर्रकर मधुर तान छेड़ते हैं।


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