आत्मकथ्य (पठित काव्यांश)

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आत्मकथ्य (पठित काव्यांश)






काव्यांश पर आधारित प्रश्न
 

प्रश्न 1. निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-             2015

छोटे से जीवन की कैसे बड़ी कथाएँ आज कहूँ ।
क्या यह अच्छा नहीं कि औरों की सुनता मैं मौन रहूँ?
सुनकर क्या तुम भला करोगे मेरी भोली आत्म-कथा?
अभी समय भी नहीं, थकी सोई है मेरी मौन व्यथा।

(क) कवि अपनी आत्म-कथा क्यों नहीं लिखना चाहता?
(ख) कवि ने अपनी आत्म-कथा को भोली क्यों कहा है?
(ग) आत्म-कथा सुनाने के संदर्भ में अभी समय नहीं है' कवि ऐसा क्यों कहता है?
(घ) कवि अपनी कथा कहने के बजाय क्या करना चाहता है?
(इ) 'थकी सोई है मेरी मौन व्यथा' का भावार्थ स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:
(क) कवि अपनी आत्मकथा इसलिए नहीं लिखना चाहता क्योंकि उसको लगता है कि उसके जीवन की ऐसी कोई महान उपलब्धि नहीं है जिसकी सराहना की जा सके।

(ख) कवि ने अपनी आत्मकथा को भोली इसलिए कहा है क्योंकि उसे अपनी गाथा सरल, साधारण लगती है, जिसकी उसने कभी पूर्व अभिव्यक्ति नहीं की और साथ ही उसे यह भी लगता है कि उसकी आत्मकथा में ऐसा कुछ कहने को नहीं है जो दूसरों का मार्गदर्शन कर सके या प्रेरणा दे सके। उसकी भोली कथा में केवल उसके हृदय की मौन व्यथा छिपी हुई है।

(ग) आत्मकथा सुनाने के संदर्भ में अभी समय नहीं है' कहकर कवि यह स्पष्ट करना चाहता है कि अभी तक उसने अपने जीवन में कोई भी ऐसी उपलब्धि प्राप्त नहीं की है, जो दूसरों की प्रेरणा स्रोत बन सके। वह यह भी कहना चाहता है कि अभी वह उस अवस्या (जीवन के उत्तराय) में नहीं पहुँचा है जिस अवस्था में प्रायः आत्मकथा लिखी जाती है।

(घ) कवि अपनी कथा कहने की बजाए मौन रहकर दूसरों की आत्मकथा सुनना चाहता है। उसके जीवन में व्यथा-ही-व्यथा भरी हुई है जिसे वह अपने मन में छुपाए रखना चाहता है, दूसरों के सामने व्यक्त नहीं करना चाहता। ऐसी स्थिति में उसे लगता है कि वह औरों की सुनता रहे और स्वयं मौन रहे।

(ङ) “थकी सोई है मेरी मौन व्यथा'- पक्ति के द्वारा कवि यह कहना चाहता है कि उसने अपने जीवन में अनेक कष्ट सहन किए हैं। उन कष्टों की अभिव्यक्ति उसने किसी से नहीं की है। उसके हृदय को कटोचने वाली ये व्यथाएँ अभी सुप्तावस्था में हैं। थककर सोई हुई इन व्यथाओं को जागृत करना, उसे उचित प्रतीत नहीं होता। इसलिए वह स्वयं भी मौन रहना चाहता है।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-


जिसके अरुण-कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में।
अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।
उसकी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की।
सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्यों मेरी कंथा की?

(क) कवि किसकी स्मृति को ताज़ा कर रहा है?
(ख) कवि की प्रेयसी के कपोलों की क्या विशेषता थी?
(ग) कवि शेष जीवन-यात्रा किसके सहारे व्यतीत करना चाहता है?
(घ) पद्यांश में किस बात को सच्चाई के साथ अभिव्यक्त किया गया है?
(ङ) रचना में रचनाकार किसके पक्ष में नहीं है?

उत्तर:
(क) कवि अपने प्रिय (अदृष्ट, अलौकिक) की स्मृति को ताज़ा कर रहा है।

(ख) कवि की प्रेयसी के कपोल अरुणिम हैं। उसके कपोलों की आभा ऐसी लग रही है जैसे उषा काल की अरुणिमा ने अनुराग युक्त अपना सौंदर्य प्रदान कर दिया हो ।

(ग) कवि शेष जीवन-यात्रा अपने प्रिय के साथ व्यतीत किए सुखद क्षणों की स्मृति के आधार पर बिताना चाहता है।

(घ) कवि ने अतीत में कुछ पल अपनी प्रेयसी के संयोग में सुखद एवं आनंदपूर्ण ढंग से बिताए हैं। इस बात को सच्चाई के साथ व्यक्त किया है।

(ङ) रचना में रचनाकार आत्मकथा लिखने के पक्ष में नहीं है क्योंकि वह अपने अतीत को कुरेद कर फिर से व्यथित होना नहीं चाहता।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-


उसकी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की।
सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्यों मेरी कंथा की?
छोटे से जीवन की कैसी बड़ी कथाएँ आज कहूँ?
क्या यह अच्छा नहीं कि औरों की सुनता मैं मौन रहूँ?
सुनकर क्या तुम भला करोगे मेरी भोली आत्म-कथा?
अभी समय भी नहीं, थकी सोई है मेरी मौन व्यथा।

(क) कवि ने किसको पाथेय माना है?
(ख) कंथा किसे कहते हैं?
(ग) कवि के जीवन में ऐसा क्या घटा? जिसे वह कहने में असमर्थ है।

उत्तर:
(क) कवि ने स्वप्न में देखे गए सुख की स्मृति को 'पाथेय' माना है।

(ख) 'कंथा' का अर्थ है- अंतर्मन अथवा गुदड़ी। कवि आत्मकथा लिखने के लिए प्रेरित करने वालों को यह कहना चाहता है कि उसके जीवन की गुदड़ी की सीवन उधेड़कर देखोगे, तो दर्द के अतिरिक्त जीवन में और कुछ भी विशेष दिखाई नहीं देगा। उनके अंतर्मन में व्यथा के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है।

(ग) कवि का जीवन असीम दुखों से भरा है। परंतु उसके जीवन में कुछ ऐसे भी क्षण आए जब उसे अरुण-कपोलों वाली प्रेयसी के सान्निध्य का सुख प्राप्त हुआ। उसी सुख के आलिंगन की कामना में वह बाहें फैलाए रहा, परंतु सुख मुस्कराहट बिखेर कर पीछे हट गया। क्षणिक सुख उसके जीवन का आधार रहा, जिसे कहने में वह असमर्थ है।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-


उसकी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की।
सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्यों मेरी कंथा की?
छोटे से जीवन की कैसे बड़ी कथाएँ आज कहूँ?
क्या यह अच्छा नहीं कि औरों की सुनता मैं मौन रहूँ?
सुनकर क्या तुम भला करोगे मेरी भोली आत्मकथा ?
अभी समय भी नहीं, थकी सोई है मेरी मौन ब्यथा।

(क) "उसकी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की'- पंक्ति का आशय है?
(ख) कवि ऐसा क्यों कहता है कि मेरी भोली आत्मकथा सुनकर क्या करोगे?
(ग) “कंथा' शब्द का प्रयोग किसके लिए हुआ है।

उत्तर:
(क) 'उसकी स्मृति पाथेय बनी है, थके पथिक की पंधा की पंक्ति के द्वारा कवि यह कहना चाहता है कि उसका अधिकांश जीवन पीड़ा में व्यतीत हुआ है। उसके जीवन में केवल कुछ ही क्षण आनंद के आए थे जो उसने अपने प्रिया के साथ बिताए थे। अब उन क्षणों की स्मृतियाँ ही शेष हैं जो थके हुए पथिक के लिए संबल रूपी पाथेय बनी हुई हैं। वही अब उसके जीवन का आधार है।

(ख) कवि आत्मकथा को सरल, भोली और साधारण कह रहा है। उसे लगता है कि उसकी आत्मकथा को सुनकर क्या करोगे क्योंकि उसके जीवन में ऐसा कुछ विशेष नहीं है जिसे जानकर किसी को प्रेरणा मिले या किसी भी प्रकार से दूसरों का भला हो सके।

(ग) 'कंथा' का अर्थ है- गुदड़ी, अंतर्मन। 'कंथा' का प्रयोग कवि के अंतर्मन से जुड़ी पीड़ा से संबंधित है। कवि यह कहना चाहता है कि उसके जीवन की गुदड़ी की सीवन उधेड़कर देखोगे तो दर्द, पीड़ा के अतिरिक्त जीवन में कुछ भी विशेष दिखाई नहीं देगा। उसका अंतर्मन जीवन के दुखों से भरा हुआ है।


प्रश्न 5.
निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-


मधुप गुन-गुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी,
मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ देखो कितनी आज घनी।
इस गंभीर अनंत-नीलिमा में असंख्य जीवन-इतिहास
यह लो, करते ही रहते हैं अपना व्यंग्य-मलिन उपहास
तब भी कहते हो- कह डालू दुर्बलता अपनी बीती।

(क) कवि ने मधुप के रूप में किसकी कल्पना की है? वह गुन-गुना कर क्या कह रहा है?
(ख) मुरझाकर गिरती हुई पत्तियाँ किस तथ्य की ओर संकेत का रही हैं?
(ग) “गंभीर अनंत नीलिमा' से कवि का क्या अभिप्राय है? उसमें जीवन के असंख्य इतिहास लिखे जाने का क्या तात्पर्य है?

उत्तर: 
(क) कवि ने मधुप के रूप में मन की कल्पना की है। कवि का मन भंवरे के समान उनके अतीत की घटनाओं को गुन-गुना कर सुना रहा है।

(ख) कवि के जीवन में नकारात्मकता व निराशा का भाव अत्यधिक है। जिस प्रकार उपवन की शोभा को बढ़ाने वाली पत्तियों मुरझाकर वृक्ष से पृथक हो जाती हैं उसी प्रकार उनके जीवन से खुशियाँ दूर होती गई। मुरझाकर गिरती हुई पत्तियाँ खुशियों की समाप्ति की ओर संकेत करती हैं।

(ग) गंभीर अनंत नीलिमा से कवि का अभिप्राय है, गंभीर, अनंत आकाश की नीलिमा में अनेक इतिहास लिखे गए अर्थात् अनेक लोगों ने इस अंतहीन आकाश में ही अपने जीवन वृत को लिखा। उनके जीवन वृत्त का अस्तित्व आज भी होगा।


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