सवैया और कवित्त (पठित काव्यांश)

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सवैया और कवित्त (पठित काव्यांश)






काव्यांश पर आधारित प्रश्न


प्रश्न 1. निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए।                 2013

पाँयनि नूपुर मंजु बजै, कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई।
साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई।।
माथे किरीट बड़े दृग चंचल, मंद हँसी मुखचंद जुन्हाई।
जै जग-मंदिर-दीपक सुंदर, श्रीब्रजदूलह 'देव' सहाई॥

(क) कवि ने ‘श्रीब्रजदूलह' शब्द किसके लिए प्रयोग किया है?
(ख) श्रीकृष्ण के पैरों और कमर में कौन-से आभूषण मधुर ध्वनि में बज रहे हैं?
(ग) सवैये के आधार पर बालकृष्ण के सौंदर्य का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
(घ) किसे संसार रूपी मंदिर का दीपक कहा गया है? तथा क्यों?
(ङ) श्रीकृष्ण की मंद हँसी किसके समान लग रही है?

उत्तर:
(क) कवि ने 'श्रीब्रजदूलह' शब्द का प्रयोग 'श्रीकृष्ण' के लिए किया है।

(ख) श्रीकृष्ण के पैरों में पाजेब है, जिसके नुपूर मधुर ध्वनि कर रहे हैं और कमर में करधनी (तगड़ी) है, जिसकी ध्वनि बहुत मधुर है।

(ग) श्रीकृष्ण का सौंदर्य बहुत ही अनुपम है। उन्होंने पैरों में नुपूर तथा कमर में करधनी पहनी हुई है। जिसकी ध्वनि बहुत ही मधुर है। उन्होंने पीले वस्त्र धारण किए हुए हैं, गले में बनमाला सुशोभित है और माथे पर मुकुट शोभायमान है। उनके नेत्र बड़े एवं चंचल है तथा चंद्रमुख पर मुस्कुराहट चाँदनी के समान बिखरी है। वास्तव में इस अद्भुत सौंदर्य को धारण किए हुए वे 'ब्रज' के 'दूलहा' के रूप में दिखाई दे रहे हैं।

(घ) श्रीकृष्ण को संसार रूपी मंदिर का दीपक कहा है। जैसे मंदिर में दीपक का प्रकाश चारों तरफ फैलकर वहाँ के अंधकार को दूर करता है, वैसे ही श्रीकृष्ण का अद्भुत अलौकिक सौंदर्य संसार को आनंद के प्रकाश से आलोकित कर देता है।

(ङ) श्रीकृष्ण की मंद हँसी चंद्रमा की उज्ज्वल चाँदनी के समान लग रही है।


प्रश्न 2.
निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-


डार द्रुम पलना बिछौना नव पल्लव के,
सुमन झिंगूला सोहै तन छवि भारी दै।
पवन झूलावे, केकी-कीर बतरावें 'देव',
कोकिल हलावै-हुलसावै कर तारी दै।
पूरित पराग सों उतारो करै राई नोन,
कंजकली नायिका लतान सिर सारी दै।
मदन महीप जू को बालक बसंत ताहि,
प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै ॥

(क) कवि ने बसंत को किस रूप में प्रस्तुत किया है?
(ख) बसंत रूपी बालक का बिछौना कहाँ बिछा है?
(ग) राई-नोन से नज़र उतारने का क्या आशय है?
(घ) बसंत रूपी बालक ने कैसे वस्त्र धारण किए हैं?
(ङ) पवन, मोर, तोता बालक के साथ क्या क्रीडाएँ कर रहे हैं?

उत्तर:
(क) कवि ने बसंत को बालक के रूप में प्रस्तुत किया है।

(ख) बसंत रूपी बालक का बिछौना पेड़ की डाल पर बिछा है।

(ग) राई-नोन से नज़र उतारने का आशय है- नवजात बसंत रूपी बालक को नज़र से बचाना। कमल-कली रूपी नायिका अपने सिर को लताओं रूपी साड़ी से ढके हुए, पराग कणों रूपी राई-नोन को उड़ा रही है। इससे ऐसे लगता है। कि वह राई-नोन से बालक की नज़र उतार रही है।

(घ) बसंत रूपी बालक ने फूलों से सुसज्जित झिंगोला पहन रखा है।

(ङ) पवन बालक बसंत के पालने को झुला रहा है। मोर और तोता बसंत रूपी बालक से बातें कर रहे हैं।


प्रश्न 3.
निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-


डार द्रुम पलना बिछौना नव पल्लव के,
सुमन झिंगूला सोहै तन छबि भारी दै।
पवन झुलावै, केकी-कीर, बतरावै 'देव',
कोकिल हलावै–हुलसावै कर तारी दै॥
पूरित पराग सों उतारो करै राई नोन,
कंजकली नायिका लतान सिर सारी दै।
मदन महीप जू को बालक बसंत ताहि,
प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै॥

(क) बसंत को मदन महीप का बालक क्यों कहा गया है? उसका पलना, बिछौना और झिंगूला किन्हें कहा गया है?
(ख) उस बालक को झुलाने, बतराने और हुलसाने का कार्य कौन, कैसे संपन्न कर रहे हैं?
(ग) “राई नोन उतारने की क्रिया क्यों की जाती है? यहाँ यह क्रिया किसके द्वारा संपन्न की जा रही है?

उत्तर:
(क) बसंत को मदन महीप अर्थात् कामदेव का बालक इसलिए कहा है क्योंकि कामदेव सौंदर्य का देवता है और बसंत के आगमन पर संपूर्ण प्रकृति सौंदर्य से भर गई है। कोमल पत्तों, पुष्पों से हरा-भरा, रंग-बिरंगा सौंदर्य का साम्राज्य फैल गया है। इसलिए बसंत कामदेव के शिशु के समान सुंदर प्रतीत हो रहा है। पेड़ों की डालियाँ इस बसंत रूपी शिशु का पालना है। नई-नई कोमल पत्तियां उसका बिछौना है और सुंदर फूल उसका झिंगूला हैं।

(ख) उस बालक को झुलाने का कार्य मंद-मंद बहने वाली पवन कर रही है। मोर और तोता उससे बातें कर रहे हैं तथा कोयल बालक को हिलाकर तथा ताली बजाकर प्रसन्न कर रही है।

(ग) “राई नोन' उतारने की क्रिया नवजात-शिशु की नज़र उतारने के लिए की जाती है। यहाँ पर कंजकली (कमल की कली) नायिका लताओं की साड़ी सिर पर ओढ़े बसंत रूपी शिशु की नज़र उतारने के लिए राइ-नोन रूपी पराग-कणों को उड़ा रही है।


प्रश्न 4.
निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए।


डार द्रुम पलना बिछौना नव पल्लव के,
सुमन झिंगूला सोहै तन छबि भारी दै।
पवन झुलावै, केकी-कीर, बतरावै 'देव',
कोकिल हलावै–हुलसावै कर तारी दै॥
पूरित पराग सों उतारो करै राई नोन,
कंजकली नायिका लतान सिर सारी दै।
मदन महीप जू को बालक बसंत ताहि,
प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै॥

(क) प्रस्तुत पद में वसंत को किसका राजकुमार कहा है और क्यों ?
(ख) राई नोन उतारने का क्या आशय है? राजकुमार पर राई नोन कौन, कैसे उतारता है?
(ग) बालक वसंत को झूले में लाने और बाल-क्रीड़ाएँ कराने का काम कैसे संपन्न होता है?

उत्तर:
(क) प्रस्तुत पद में वसंत को कामदेव का राजकुमार कहा है क्योंकि वसंत के आते ही प्राकृतिक सौंदर्य अपने यौवन पर दिखाई देता है। डालों के ऊपर नवकिसलय, नवीन पत्र दिखाई देते हैं। सुगंधित कुसुम सभी दिशाओं को सुगंधमय कर देते हैं। कोयल की मीठी कूक सुनाई देती है। प्रकृति के इन सब कोमल उपादानों को देखकर लगता है जैसे किसी नन्हें राजकुमार का अभिनंदन हो रहा है।

(ख) राई-नोन उतारने का आशय है ‘नज़र उतारना' । कमल-कली रूपी नायिका लताओं की साड़ी से सिर ढककर पराग-कणों से कामदेव के राजकुमार वसंत की नज़र उतार रही है, ताकि बुरी नज़र से उसका बचाव हो सके।

(ग) मोर व शुक वसंत राजकुमार से बातें करते हैं, पवन उसे झूला झुलाती है। कोयल करतल ध्वनि से उसे प्रसन्न करती है। गुलाब के फूल प्रातः चुटकी बजाकर उसे जगाते हैं। बालक वसंत पेड़ की शाखा के पालने में प्रसन्न है।


प्रश्न 5.
निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-


फटिक सिलानि सौं सुधायौ सुधा मंदिर,
उदधि दधि को सो अधिकाइ उमगे अमंद।
बाहर ते भीतर लौं भीति न दिखेए 'देव',
दूध को सो फेन फैल्यो आंगन फरसबंद।
तारा सी तरुनि तामें ठाढ़ी झिलमिली होति,
मोतिन की जोति मिल्यो मल्लिका को मकरंद।
आरसी से अंबर में आभा सी उजारी लगे,
प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद॥

(क) सुधा मन्दिर किस प्रकार की शिलाओं से बना हुआ है? वह किसकी तरह प्रतीत हो रहा है?
(ख) सुधा मन्दिर के आँगन और वहाँ खड़ी सुंदरी के बारे में क्या कल्पना की गई है?
(ग) आरसी से अंबर में आभा सी उजारी लगै, प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद ॥' काव्य-पंक्ति का आशय समझाइए।

उत्तर:
(क) सुधा मंदिर स्फटिक शिलाओं को तराशकर बनाया गया है। इस मंदिर को देखकर ऐसा लगता है। जैसे दही का सागर उमंग व उत्साह से उमड़ रहा है। इस मंदिर में बाहर से भीतर तक कोई दीवार दिखाई नहीं देती।

(ख) आकाश मंदिर के प्रांगण में दूध की झाग सब ओर फैली हुई हैं जिसे देखकर ऐसा लगता है जैसे मोतियों की ज्योति व मल्लिका के फूलों के रस से सुशोभित सफेद फ़र्श के बीच तारा के समान युवती खड़ी झिलमिला रही है।

(ग) आकाश दर्पण के समान स्वच्छ व निर्मल है उसमें चाँद खिला है। कवि ने चाँद में राधा की कल्पना की है। जिस प्रकार राधा अनेक गोपियों के बीच प्रकाश पुंज के समान प्रतीत होती है उसी प्रकार चाँद अनेक तारों के बीच अपनी छटा बिखेर रहा है।

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