छाया मत छूना (पठित काव्यांश)

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छाया मत छूना (पठित काव्यांश)






काव्यांश पर आधारित प्रश्न


प्रश्न 1. निम्नलिखित काव्यांश के आधार पर दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए।            2016


छाया मत दूना
मन, होगा दुख दूना।
जीवन में हैं, सुरंग सुधियाँ सुहावनी
छवियों की चित्र-गंध फैली मनभावनी,
तन-सुगंध शेष रही, बीत गई यामिनी,
कुंतल के फूलों की याद बनी चाँदनी ।
भूली-सी एक छुअन बनता हर जीवित क्षण-
छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना।



(क) “छाया मत छूना'- कवि ने ऐसा क्यों कहा?
(ख) “छवियों की चित्र-गंध फैली मनभावनी' का क्या तात्पर्य है?
(ग) “कुंतल के फूलों की याद बनी चाँदनी' में कवि को कौन-सी यादें कचोटती हैं?

उत्तर:
(क) कवि गिरिजा कुमार माथुर के अनुसार ‘छाया' से तात्पर्य भूतकाल के सुखी समय से है। कवि उसे छूने से इसलिए मना करता है क्योंकि वर्तमान समय में बीते सुखों को याद करने से कोई लाभ नहीं होता है। बीता अच्छा समय वर्तमान के दुखों को दूर करने में असमर्थ होता है। अतः हमें अपने वर्तमान को सुखी बनाने के लिए बीते अच्छे दिनों को याद नहीं करना चाहिए। विगत समय लौटकर वापस नहीं आता और न ही वह वर्तमान परिस्थितियाँ बदल सकता है।

(ख) कवि गिरिजा कुमार माथुर द्वारा रचित कविता 'छाया मत छूना' की इस पंक्ति का तात्पर्य है कि जीवन में बीते समय की सुगंध फैली रहती है। विगत में प्रिय मिलन की यादें मन को लुभाती हैं और उसकी देह की गंध ही वर्तमान में शेष रह जाती है।

(ग) “कुंतल के फूलों की याद बनी चाँदनी' में कवि को अपनी प्रेयसी के बालों में लगे सुमन-गुच्छ याद आते हैं, यही यादें चाँदनी बनकर उसके मन को उलझा कर रखती हैं।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित काव्यांश के आधार पर दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिएः


यश है या न वैभव है, मान है न सरमाया;
जितना ही दौड़ा तू उतना ही भरमाया।
प्रभुता का शरण-बिंब केवल मृगतृष्णा है,
हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है।
जो है यथार्थ कठिन उसका तू कर पूजन-
छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना।



(क) 'मृगतृष्णा' से क्या अभिप्राय है, यहाँ मृगतृष्णा किसे कहा गया है?
(ख) “हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है'-इस पंक्ति से कवि किस तथ्य से अवगत करवाना चाहता हैं?
(ग) “छाया' से कवि का क्या तात्पर्य है?

उत्तर:
(क) मृगतृष्णा अर्थात हिरन की ऐसी प्यास जो पानी की चाह में उसे भगाती रहती है। रेगिस्तान में रेत पर जब सूर्य की तेज़ किरणें पड़ती हैं, तो पानी होने का भ्रम पैदा करती हैं और हिरन उसी को पाने के लिए दौड़ लगाता है। कविता में इसका प्रयोग कवि द्वारा भौतिक वस्तुओं व सुखों के पीछे भागने से है। पूंजी व धन की प्राप्ति उसे भ्रमित करती रही। यश, वैभव व सम्मान पाने के लिए वह भटकता रहा पर इनकी प्राप्ति मृगतृष्णा ही साबित हुई।

(ख) इस पंक्ति द्वारा कवि गिरिजा कुमार माथुर बताना चाहते हैं कि हर चांदनी रात के दामन में एक काली रात छिपी है। कवि का चाँदनी से अभिप्रायः सुखों से है और काली रात दुखों का प्रतीक है। जीवन सुख-दुख का सागर है। एक के बाद दूसरे का आना निश्चित होता है। अतः दोनों को समान रूप से ग्रहण करना चाहिए।

(ग) 'छाया' से कवि का तात्पर्य विगत समय की बीती हुई सुखद यादों से है। ये सुखद यादें छाया के समान मानव के मन-मस्तिक को वर्तमान में भी झिंझोड़ती रहती हैं।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित काव्यांश के आधार पर दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए-


दुविधा-हत साहस है, दिखता है पंथ नहीं,
देह सुखी हो पर मन के दुख का अंत नहीं।
दुख है न चाँद खिला शरद-रात आने पर,
क्या हुआ जो खिला फूल रस-वसंत जाने पर?
जो न मिला भूल उसे कर तू भविष्य वरण,
छाया मत छूना,
मन, होगा दुख दूना।।



(क) 'देह सुखी होने पर भी मन के दुख का अंत नहीं'-कथन का भाव स्पष्ट कीजिए।
(ख) दुख है न चाँद खिला शरद-रात आने पर, क्या हुआ जो खिला फूल रस-बसंत जाने पर?
उक्त पंक्तियों में कवि क्या कहना चाहता है?
(ग) कवि छाया छूने से मना क्यों कर रहा है?

उत्तर:
(क) “देह सुखी होने पर भी मन के दुख का अंत नहीं' कथन के द्वारा कवि हमें अतीत की यादों से मिलने वाली पीड़ा की ओर ध्यान दिलवाना चाहते हैं। उनका मानना है कि अतीत की सुखद यादों से मन को पीड़ा मिलती है और व्यक्ति के पास सुख-सुविधाएँ होने पर भी केवल शारीरिक सुख तो प्राप्त हो जाता है, किंतु मन में अतीत की सुखद स्मृतियाँ पीड़ा बनकर चुभती रहती हैं, जिनका अंत दिखाई नहीं देता।

(ख) उपर्युक्त पंक्तियों में कवि यह कहना चाहता है कि जिस प्रकार शरद पूर्णिमा की रात को चाँद न निकले, तो शरद पूर्णिमा का संपूर्ण सौंदर्य अधूरा प्रतीत होता है, उसी प्रकार मनुष्य को जीवन में अपेक्षित सुख न मिलने पर उसका दुख उसे जीवन भर सताता है। जैसे वसंत ऋतु में फूल न खिले तो वह सुखदायी प्रतीत नहीं होती, वैसे ही मनुष्य अपने अतीत में जो चाहे और वह उसे न मिले तो उदासी उसके जीवन को घेर लेती है। अतीत की यादों से मिली यह उदासी वर्तमान का सुख भी छीन लेती है। इसलिए जीवन में सच्चे सुख के लिए अतीत की यादों को बिसराना ही बेहतर है।

(ग) 'छाया' शब्द से तात्पर्य अतीत की मधुर स्मृतियों से है, जो वर्तमान एवं भविष्य दोनों को प्रभावित कर देती हैं। ये मन में पीड़ा बनकर चुभती रहती हैं। इनका कहीं अंत दिखाई नहीं देता इसलिए इनमें उलझकर व्यक्ति सुख-संपत्ति के होते हुए भी मानसिक शांति से दूर हो जाता है। अतः दुविधाओं से दूर एक अच्छा व सुखी जीवन व्यतीत करने के लिए कवि छाया छूने से मना कर रहा है।


प्रश्न 4.
निम्नलिखित काव्यांश पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

दुविधा-हत साहस है, दिखता है पंथ नहीं,
देह सुखी हो पर मन के दुख का अंत नहीं।
दुख है न चाँद खिला शरद-रात आने पर,
क्या हुआ जो खिला फूल रस-बसंत जाने पर?
जो न मिला भूल उसे कर तू भविष्य वरण,
छाया मत पूना ।
मन, होगा दुख दूना।



(क) कवि का साहस किस दुविधा से पीड़ित है?
(ख) “दिखता है पंथ नहीं' का आशय समझाइए।
(ग) कवि को किस बात का दुख है?
(घ) “क्या हुआ...' के रूप में कवि अपनी किस मानसिकता को व्यक्त कर रहा है?
(ड) 'छाया' शब्द का अर्थ समझाइए।

उत्तर:
(क) कवि का साहस असमंजस की स्थिति से पीड़ित है, उसे सही-गलत, सफलता-असफलता, शुभ-अशुभ के भ्रम दुविधा में रखते हैं और वह सही कदम उठाने का साहस नहीं जुटा पाता।

(ख) “दिखता है पंथ नहीं" का आशय है कि दुविधाग्रस्त होने के कारण उसे सही मार्ग दिखाई नहीं पड़ता। उसका शरीर तो सुखी है पर मन अतीत की अतृप्त वांछनाओं के कारण अत्यंत दुखी है।

(ग) कवि को इस बात का दुख है कि उसे समय रहते सुखों की प्राप्ति नहीं हुई। जिस प्रकार शरद काल आने पर भी चंद्रमा न दिखाई पड़े और वसंत बीत जाने पर फूल खिले तो क्या लाभ? ठीक उसी प्रकार कवि को अवसर आने पर भी प्रिया से मिलन न होने का दुख है।

(घ) 'क्या हुआ...' के रूप में कवि इस मानसिकता को व्यक्त कर रहा है कि समय बीत जाने के बाद प्राप्त सुख उसे उत्साहित नहीं कर रहे, ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार वसंत बीत जाने के बाद फूल खिलता है। पर कवि को यह समझना होगा कि समय बीत जाने के बाद भी प्राप्त वस्तु से हमें खुश होना चाहिए।

(ङ) 'छाया' शब्द का अर्थ पुरानी स्मृतियों से है जो कवि को वर्तमान में भी दुखी कर रही हैं।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित काव्यांश पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

छाया मत छूना ।
मन, होगा दुख दूना।
यश है या न वैभव है, मान है न सरमाया;
जितना ही दौड़ा तू उतना ही भरमाया।
प्रभुता का शरण-बिंब केवल मृग-तृष्णा है,
हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है।
जो है यथार्थ कठिन उसका तू कर पूजन।



(क) कविता के संदर्भ में छाया शब्द का अर्थ बताइए।
(ख) कवि को यश या वैभव के प्रति आसक्ति क्यों नहीं है?
(ग) 'प्रभुता' का आशय समझाइए।
(घ) चंद्रिका' और 'कृष्णा' का प्रतीकार्य स्पष्ट कीजिए।
(ड) 'यथार्थ पूजन' को कवि श्रेयस्कार क्यों मानता है?

उत्तर:
(क) 'छाया' शब्द का प्रयोग ‘पुरानी स्मृतियों के संदर्भ में हुआ है।

(ख) कवि को 'यश' या 'वैभव' के प्रति आसक्ति इसलिए नहीं है क्योंकि इन चीज़ों को पाने के लिए वह जितना दौड़ा, उतना ही उसे मृगतृष्णा के समान ये चीजें भरमाती रहीं, उससे दूर भागती रही।

(ग) 'प्रभुता' का आशय अपने बड़प्पन से है, जिसको पाने की लालसा एक मृगतृष्णा के समान है।

(घ) 'चन्द्रिका' को खुशी के प्रतीक के रूप में और ‘कृष्णा' को दुख का प्रतीक माना है। जिसका अर्थ है कि हर सुख में एक दुख छिपा होता है। जीवन में सुख-दुख आते रहते हैं।

(ङ) 'यथार्थ पूजन' को कवि इसलिए श्रेयस्कर मानता है क्योंकि सच्चाई का सामना करने से ही खुशी और सफलता पाई जा सकती है। बीती बातों को याद करने से तो केवल दुख ही मिलते हैं।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित काव्यांश को पढ़ कर उस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-



छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना ॥
जीवन में है सुरंग सुधियाँ सुहावनी
छवियों की चित्र-गंध फैली मनभावनी;
तन सुगंध शेष रही, बीत गई यामिनी,
कुंतल के फूलों की याद बनी चाँदनी।



(क) कविता में ‘छवि' शब्द किस अर्थ के लिए प्रयुक्त हुआ है?
(ख) कवि के जीवन की सुरंग सुधियाँ क्या हैं?
(ग) 'कुंतल के फूलों की याद बनी चाँदनी'- आशय समझाइए।

उत्तर:
(क) कविता में ‘छवि' शब्द मनुष्य के बीते सुखमय दिनों की स्मृतियाँ हैं, जो मानस पटल पर गहराई से अंकित हैं। ये वे रंगीन यादें हैं, जो जाने-अनजाने में वर्तमान को महका जाती हैं। उन मधुर क्षणों की स्मृति ‘छवि' के समान हृदय पर छा जाती हैं और सुखमय क्षणों का आनंद भर जाती है।

(ख) कवि के जीवन की सुरंग सुधियाँ वे रंगीन यादें हैं, जिन्हें याद कर कवि आनंद का अनुभव कर रहा है। ये वे रंग-बिरंगी स्मृतियाँ हैं, जिनका मोहक, आकर्षक रूप जीवन को महका जाता है।

(ग) “कुंतल के फूलों की याद बनी चाँदनी" पंक्ति का आशय है- कवि को चाँदनी देखकर अपनी प्रिया की याद आ जाती है। जिसके बालों में सजे फूल सौंदर्य की सृष्टि करते थे। परंतु अब मधुर यादें ही शेष हैं, जो बार-बार उसके स्मृति पटल पर अंकित होती हैं एवं उसे कचोटती रहती हैं।


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