यह दंतुरित मुस्कान और फसल (पठित काव्यांश)
काव्यांश पर आधारित प्रश्न
प्रश्न 1.
फसल क्या है?
और तो कुछ नहीं है वह।
नदियों के पानी का जादू है वह
हाथों के स्पर्श की महिमा है।
भूरी-काली संदली मिट्टी का गुण धर्म है।
रूपांतर है सूरज की किरणों का
सिमटा हुआ संकोच है हवा की थिरकन का!
(क) फसल के विकास में किसका असर जादुई होता है?
(ख) मनुष्य के हाथ फसल को क्या देते हैं?
(ग) खेतों की मिट्टी के बारे में काव्यांश में क्या कहा गया है?
(घ) कवि किस-किस प्रकार की मिट्टी का उल्लेख करता है?
(ङ) फसल किसका रूपांतरण प्रतीत होती है?
उत्तर:
(क) फ़सल के विकास में नदियों के पानी का जादुई असर होता है।
(ख) मनुष्य के हाथों के परिश्रम से ही फ़सल उगती है। इस प्रकार मनुष्य के हाथ फ़सल का अपना स्पर्श प्रदान करते हैं।
(ग) खेतों की मिट्टी के बारे में काव्यांश में यह कहा गया है कि तरह-तरह के रूप-रंग वाली मिट्टी के गुण-धर्म से भरपूर फसल उगती है।
(च) कवि ने काली, भूरी और संदली मिट्टी का उल्लेख किया है।
(ङ) फ़सल सूर्य की किरणों का रूपांतरण प्रतीत होती है। नदियों का पानी, धरती का गुण-धर्म, फसल द्वारा ग्रहण किए जाने पर सभी तत्त्व सूर्य की किरणों का स्पर्श पाकर फ़सल के लिए भोजन के रूप में परिवर्तित हो जाते हैं। इसी कारण सूर्य की किरणों को फ़सल का रूपांतरण कहा जाता है।
प्रश्न 2.
निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
फ़सल क्या है?
और तो कुछ नहीं है वह
नदियों के पानी का जादू है वह
हाथों के स्पर्श की महिमा है।
भूरी-काली-संदली मिट्टी का गुण धर्म है।
रूपांतर है सूरज की किरणों का
सिमटा हुआ संकोच है हवा की थिरकन का!
(क) फसल को नदियों के पानी का जादू क्यों कहा गया है?
(ख) फ़सल हाथों के स्पर्श की महिमा कैसे है?
(ग) भाव स्पष्ट कीजिए- सिमटा हुआ संकोच है हवा की थिरकन का!
उत्तर:
(क) फ़सल को नदियों के पानी का जादू इसलिए कहा गया है क्योंकि नदियों का जल फ़सल का पोषण करता है। एक नहीं, अनेक नदियों का पानी फ़सल को सींचता है। जल के तत्वों को ग्रहण कर फ़सल हरी-भरी एवं विकसित होती है। फसलों को खड़ी करने में नदियों का जल जादू के समान प्रभावकारी होता है।
(ख) फ़सल अनगिनत किसानों, श्रमिकों के हाथों के स्पर्श की महिमा है। लाखों-करोड़ों कृषकों के हाथों के कठोर परिश्रम के परिणाम स्वरूप फ़सल विकसित होती है। उसका लहलाना मनुष्य के कठिन मेहनत का ही परिणाम है।
(ग) सिमटा हुआ संकोच है हवा की थिरकन का! पंक्ति द्वारा कवि यह स्पष्ट करना चाहता है कि फसल के विकास में हवा का महत्वपूर्ण योगदान है। हवा का स्पर्श पाकर फसल में जीवनदायिनी शक्ति का संचार होता है। हवा का सिमटा हुआ रूप ही पौधों को जीवंतता प्रदान कर उसमें समा जाता है। हवा का कोमल स्पर्श पाकर फ़सल खुशहाल बनती है और लहलहा उठती है।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
तुम्हारी यह दंतरित मुसकान
मृतक में भी डाल देगी जान
धूल-धूसर तुम्हारे ये गात...
छोड़कर तालाब मेरी झोंपड़ी में खिल रहे जलजात
परस पाकर तुम्हारा ही प्राण,
पिघलकर जल बन गया होगा कठिन पाषाण।
(क) कवि ने बच्चे की मुसकान को ‘दंतुरित' क्यों कहा? उसे वह कैसी लग रही है?
(ख) बच्चे के अंग कैसे हैं? वे कवि को किसके समान प्रतीत हो रहे हैं?
(ग) आशय स्पष्ट कीजिए- “पिघलकर जल बन गया होगा कठिन पाषाण'।
उत्तर:
(क) कवि ने बच्चे की मुसकान को ‘दंतुरित' इसलिए कहा है क्योंकि मुस्कुराते हुए शिशु के दाँत दिखाई दे रहे हैं जो उसकी मुसकान को और सुंदर बना रहे हैं। कवि को यह मुसकान आनंदित कर रही है। उसके मन में वात्सल्य का भाव उमड़ने लगा है। उसे लगता है कि बच्चे की यह मुसकान मृतक में भी जान डाल सकती है।
(ख) बच्चे के अंग धूल से सने हुए हैं। कवि को धूल से सना हुआ शिशु कमल के समान प्रतीत हो रहा है। उसे ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे कमल तालाब को छोड़कर उसकी झोपड़ी में आ गया है। उसे यह धूल धूसरित बालक कमल के समान सुंदर लग रहा है।
(ग) “पिघलकर जल बन गया होगा कठिन पाषाण'- पंक्ति का आशय यह है कि बालक की मधुर मुसकान सबको अपनी ओर आकर्षित करती है। पत्थर के समान कठोर हृदय भी ऐसे बालक की मुसकान देखकर, स्पर्श पाकर पिघल जाते हैं, भावुक हो जाते हैं। निष्ठुरता को त्यागकर सहृदय बन जाते हैं।
प्रश्न 4. निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
एक के नहीं,
दो के नहीं
ढेर सारी नदियों के पानी का जादूः
एक के नहीं
दो के नहीं ।
लाख-लाख कोटि-कोटि हाथों के स्पर्श की गरिमाः
एक की नहीं
दो की नहीं
हज़ार-हज़ार खेतों की मिट्टी का गुण धर्मः
(क) नदियों का पानी किसके लिए, किस तरह जादू का काम करता है?
(ख) “कोटि-कोटि हाथों के स्पर्श की गरिमा' से कवि का क्या अभिप्राय है?
(ग) मिट्टी का गुणधर्म क्या होता है? हम उस गुणधर्म की रक्षा कैसे कर सकते हैं?
उत्तर:
(क) कवि ने फसल को नदियों के जल का जादू इसलिए कहा है क्योंकि कोई भी फ़सल जब उपजती है, तो उसमें अनेक नदियों के जल का योगदान होता है। जल से फसलों की सिंचाई संभव है और फ़सल को अपना अस्तित्व प्राप्त होता है।
(ख) ‘कोटि-कोटि हाथों के स्पर्श की गरिमा से अभिप्राय है फसल को पैदा करने में किसी एक व्यक्ति का नहीं, अपितु लाखों-करोड़ों किसानों व मजदूरों का परिश्रम लगता है। अनेक लोगों के परिश्रम से ही फ़सल तैयार होती है।
(ग) मिट्टी में ऐसे अनेक तत्व हैं जो उसे उर्वरा बनाते हैं। उर्वरा होने की शक्ति फ़सल को मिट्टी से प्राप्त होती है। मिट्टी के स्वाभाविक व प्राकृतिक तत्वों को मिट्टी का गुणधर्म कहते हैं। इनकी रक्षा के लिए वृक्षों का लगाना व उनकी रक्षा करना आवश्यक है। प्राकृतिक संतुलन को बनाए रखना व प्रदूषण से मुक्ति ज़रूरी है।
प्रश्न 5.
निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
तुम्हारी यह दंतुरित मुसकान
मृतक में भी डाल देगी जान
धूलि-धूसर तुम्हारे ये गात...
छोड़ कर तालाब मेरी झोंपड़ी में खिल रहे जलजात
परस पाकर तुम्हारा ही प्राण,
पिघल कर जल बन गया होगा कठिन पाषाण
छू गया तुमसे कि झरने लग पड़े शेफालिका के फूल
बॉस था कि बबूल ?
(क) 'प्राण' शब्द का प्रयोग किसके लिए किया गया है? 'पाषाण' कैसे जल बन सकता है?
(ख) झोंपड़ी में जलजात खिलने का आशय स्पष्ट कीजिए।
(ग) “दंतुरित मुसकान' का क्या आशय है? कवि पर मुसकान का क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
(क) 'प्राण' शब्द का अर्थ है- जान। शिशु की मुसकान पत्थर के समान कठोर हृदय को भी प्रेम, स्नेह व वात्सल्य से भर देती है, वह व्यक्ति भावुक हो जाता है।
(ख) मिट्टी से सने शिशु को व उसकी मुसकान को देखकर कवि को ऐसा लगता है जैसे तालाब में खिलने वाला कमल, तालाब को छोड़कर झोपड़ी में खिल गया हो।
(ग) नये-नये दाँतों से युक्त मुसकान को कवि ने दंतुरित मुसकान कहा है। यह मुसकान कवि के हृदय को प्रसन्न कर देती है।
If you have any doubts, Please let me know