एक कहानी यह भी (पठित गद्यांश)

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एक कहानी यह भी (पठित गद्यांश)






गद्यांश पर आधारित प्रश्न

प्रश्न 1. निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए-              2015

आए दिन विभिन्न राजनैतिक पार्टियों के जमावड़े होते थे और जमकर बहसें होती थीं। बहस करना पिता जी का प्रिय शगल था। चाय-पानी या नाश्ता देने जाती तो पिता जी मुझे भी वहीं बैठने को कहते। वे चाहते थे कि मैं भी वहीं बैठूँ, सुनूँ और जानूँ कि देश में चारों ओर क्या कुछ हो रहा है। देश में हो भी तो कितना कुछ रहा था। सन् 42 के आंदोलन के बाद से तो सारा देश जैसे खौल रहा था, लेकिन विभिन्न राजनैतिक पार्टियों की नीतियों, उनके आपसी विरोध या मतभेदों की तो मुझे दूर-दूर तक कोई समझ नहीं थी। हाँ, क्रांतिकारियों और देशभक्त शहीदों के रोमानी आकर्षण, उनकी कुर्बानियों से ज़रूर मन आक्रांत रहता था।

(क) लेखिका के पिता लेखिका को घर में होने वाली बहसों में बैठने को क्यों कहते थे?
(ख) घर के ऐसे वातावरण का लेखिका पर क्या प्रभाव पड़ा?
(ग) देश में उस समय क्या-कुछ हो रहा था?

उत्तर:
(क) लेखिका के पिता लेखिका को घर में होने वाली बहसों में बैठने के लिए इसलिए कहते थे, ताकि वह भी देश में घटित होने वाली घटनाओं और देश के आंदोलनों के विषय में जान सके।

(ख) घर में होने वाली राजनैतिक पार्टियों, क्रांतिकारियों व देशभक्तों के आने-जाने से उनके देशप्रेम व उनकी कुर्बानियों के प्रति लेखिका के संवेदनशील मन पर उसका व्यापक असर पड़ा और वह भी देश में होने वाली घटनाओं से जुड़ने लगीं।

(ग) देश में उस समय आज़ादी पाने के लिए संघर्ष चरमोत्कर्ष पर था। सन् 42 के आंदोलन के बाद से सारा देश आक्रोश से भरा था।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

इसने उन्हें यश और प्रतिष्ठा तो बहुत दी, पर अर्थ नहीं और शायद गिरती आर्थिक स्थिति ने ही उनके व्यक्तित्व के सारे सकारात्मक पहलुओं को निचोड़ना शुरू कर दिया। सिकुड़ती आर्थिक स्थिति के कारण और अधिक विस्फारित उनका अहं उन्हें इस बात तक की अनुमति नहीं देता था कि वे कम-से-कम अपने बच्चों को तो अपनी आर्थिक विवशताओं की भागीदार बनाएँ। नवाबी आदतें, अधूरी महत्त्वाकांक्षाएँ, हमेशा शीर्ष पर रहने के बाद हाशिए पर सरकते चले जाने की यातना क्रोध बनकर हमेशा माँ को कंपाती-थरथराती रहती थी। अपनों के हाथों विश्वासघात की जाने कैसी गहरी चोटें होंगी वे जिन्होंने आँख मूँदकर सबका विश्वास करने वाले पिता को बाद के दिनों में इतना शक्की बना दिया था कि जब-तब हम लोग भी उसकी चपेट में आते ही रहते।

(क) मन्नू भंडारी के पिता की गिरती आर्थिक स्थिति का उन पर क्या प्रभाव पड़ा?
(ख) पहले इंदौर में उनकी आर्थिक स्थिति कैसी रही होगी?
(ग) मन्नू के पिता का स्वभाव शक्की क्यों हो गया था?

उत्तर:
(क) पिता की गिरती आर्थिक स्थिति ने उनके व्यक्तित्व के सारे सकारात्मक पहलुओं को निचोड़ना शुरू कर दिया। सिकुड़ती आर्थिक तंगी के कारण उनका अहं, उन्हें अपने बच्चों को अपनी आर्थिक विवशता में भागीदार बनाने से रोकता।

(ख) इंदौर में उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी थी। वहीं उनकी बड़ी प्रतिष्ठा थी। दस-दस विद्यार्थियों को अपने घर में रखकर पढ़ाया करते थे। उन दिनों घर में खुशहाली थी।

(ग) मन्नू के पिता का स्वभाव शक्की इसलिए हो गया था क्योंकि उन्हें अपने लोगों के हाथों विश्वासघात झेलना पड़ा था।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए-

अपनी जिंदगी खुद जीने के इस आधुनिक दबाव ने महानगरों के फ्लैट में रहने वालों को हमारे इस परंपरागत 'पड़ोस-कल्चर' से विच्छिन्न करके हमें कितना संकुचित, असहाय और असुरक्षित बना दिया है। मेरी कम-से-कम एक दर्जन आरंभिक कहानियों के पात्र इसी मोहल्ले के हैं जहाँ मैंने अपनी किशोरावस्था गुज़ार अपनी युवावस्था का आरंभ किया था। एक-दो को छोड़कर उनमें से कोई भी पात्र मेरे परिवार का नहीं है। बस इनको देखते-सुनते, इनके बीच ही में बड़ी हुई थी लेकिन इनकी छाप मेरे मन पर कितनी गहरी थी, इस बात का अहसास तो मुझे कहानियाँ लिखते समय हुआ। इतने वर्षों के अंतराल ने भी उनकी भाव-भंगिमा, भाषा, किसी को भी धुंधला नहीं किया था और बिना किसी विशेष प्रयास के बड़े सहज भाव से वे उतरते चले गए थे।

(क) परंपरागत पड़ोस-कल्चर की कोई एक अच्छाई और कोई एक बुराई लिखिए।
(ख) मन्नू भंडारी अपने मोहल्ले से कैसे प्रभावित हुई?
(ग) “बिना किसी विशेष प्रयास के बड़े सहज भाव से वे उतरते चले गए थे। इस पंक्ति का संदर्भ स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:
(क) अच्छाई- परंपरागत पड़ोस में सभी के सुख-दुख साँझा होते हैं। एक घर की दीवारें दूसरे घरों तक फैली रहती हैं। अर्थात एक-दूसरे के घरों में खूब आना-जाना होता है। दकियानूसी बातें मानी जाती हैं कि लड़की को बाहर मत भेजो, लड़कों के समान मत पढ़ाओ।

(ख) मन्नू भंडारी को अपने मोहल्ले में बेहद प्यार और अपनापन मिला था। इसी कारण उनकी कहानियों के अनेक पात्र उसी मोहल्ले के हैं। उनकी किशोरावस्था बुजुर्गों के आशीर्वाद और अनुभवों के बीच गुजरी। अतः वे मोहल्ले के इस प्रेमपूर्ण वातावरण से उत्पन्न अपनेपन से प्रभावित थीं।

(ग) 'बिना किसी विशेष प्रयास के बड़े सहज भाव से वे उतरते चले गए थे'- पंक्ति में मन्नू भंडारी मोहल्ले के उन पात्रों के विषय में बात कर रही हैं, जो उनके मोहल्ले के थे और उनकी भाव-भंगिमा, भाषा व उनका प्यार उनके मानस पटल पर सदा के लिए अंकित हो गया था और वे उनकी कहानियों के पात्रों में अनायास ही उतरते चले गए थे।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

पिताजी की आज़ादी की सीमा यहीं तक थी कि उनकी उपस्थिति में घर में आए लोगों के बीच उठूँ-बैठूँ, जानूँ-समझूँ। हाथ उठा-उठाकर नारे लगाती, हड़ताले करवाती, लड़कों के साथ शहर की सड़कें नापती, लड़की को अपनी सारी आधुनिकता के बावजूद बर्दाश्त करना उनके लिए मुश्किल हो रहा था तो किसी की दी हुई आज़ादी के दायरे में चलना मेरे लिए। जब रगों में लहू की जगह लावा बहता हो तो सारे निषेध, सारी वर्जनाएँ और सारा भय कैसे ध्वस्त हो जाता है, यह तभी जाना और अपने क्रोध से सबको थरथरा देने वाले पिताजी से टक्कर लेने का जो सिलसिला तब शुरू हुआ था, राजेंद्र से शादी की, तब तक वह चलता ही रहा।

(क) लेखिका और उसके पिता के मध्य मनमुटाव का क्या कारण था?
(ख) लेखिका की रगों में लहू की जगह लावा क्यों बह रहा था?
(ग) लेखिका के लिए निर्धारित निषेध और वर्जनाएँ क्या थीं? वे किसके कारण ध्वस्त हुई ?

उत्तर:
(क) लेखिका और उसके पिता के मध्य मनमुटाब का कारण वैचारिक अंतर था। पिताजी यह तो चाहते वे कि उनकी बेटी घर में आए लोगों के बीच उठे-बैठे, किंतु उन्हें लेखिका को हड़ताले करवाना, नारे लगाना, लड़कों के साथ आंदोलन करते हुए सड़कों पर घूमना बिलकुल पसंद नहीं था, जबकि लेखिका अपने पिताजी द्वारा दी गई केवल घर की आज़ादी के दायरे में नहीं चलना चाहती थीं।

(ख) 'रगों में लावा बहना' मुहावरा है, जिसका अर्थ है- मन में विरोध की चाह का उठना। लेखिका भी पिताजी द्वारा दी गई केवल घर की आज़ादी के दायरे में नहीं चलना चाहती थीं। वे निषेध, वर्जनाओं तथा भय को तोड़कर सामाजिक गतिविधियों एवं आज़ादी के आंदोलनों में खुलकर भाग लेना चाहती थीं। अतः पिताजी की बंदिशों को तोड़ने के लिए लेखिका की रगों में लावा बह रहा था।

(ग) लेखिका के पिताजी यह नहीं चाहते थे कि लेखिका हड़ताले करवाए, हाथ उठा-उठाकर नारे लगाए और लड़कों के साथ आंदोलन करते हुए सड़कों पर घूमे। इन कारण लेखिका के लिए निर्धारित निषेध और वर्जनाएँ यही थीं कि वह ऐसी गतिविधियों से स्वयं को दूर रखे, किंतु लेखिका आधुनिक विचारों की सशक्त युवती थीं इसलिए उन्होंने पिताजी द्वारा लगाई गई बंदिशों को तोड़ने की ठानी। इस प्रकार उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति व विरोधी स्वभाव के कारण ये बंदिशें ध्वस्त हुई।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए-

हमने भाइयों के साथ गिल्ली-डंडा भी खेला और पतंग उड़ाने, काँच पीसकर मांजा सुतने का काम भी किया, लेकिन उनकी इन गतिविधियों का दायरा घर के बाहर ही अधिक रहता था और हमारी सीमा थी घर। हाँ, इतना ज़रूर था कि उस ज़माने में घर की दीवारें घर तक ही समाप्त नहीं हो जाती थीं बल्कि पूरे मोहल्ले तक फैली रहती थीं इसलिए मोहल्ले के किसी भी घर में जाने पर कोई पाबंदी नहीं थी, बल्कि कुछ घर तो परिवार का हिस्सा ही थे। आज तो मुझे बड़ी शिद्दत के साथ यह महसूस होता है कि अपनी ज़िन्दगी खुद जीने के इस आधुनिक दबाव के महानगरों के फ्लैट में रहने वालों के हमारे इस परंपरागत पोस-कल्चर' से विच्छिन्न करके हमें कितना संकुचित, असहाय और असुरक्षित बना दिया है।

(क) भाइयों की गतिविधियों का दायरा घर से बाहर और लेखिका को घर तक ही सीमित क्यों था?
(ख) घर की दीवारों का मोहल्ले तक फैलने का क्या अभिप्राय है?
(ग) परंपरागत ‘पड़ोस-कल्चर' क्या है? उसके विच्छिन्न होने का समाज पर क्या दुष्प्रभाव दिखाई देता है।

उत्तर:
(क) लेखिका के पिताजी लड़कियों को घर के बाहर निकलने की आज़ादी देने के पक्षधर नहीं थे। इसी कारण भाइयों की गतिविधियों का दायरा घर से बाहर तक था क्योंकि वे लड़के थे और लेखिका का दायरा घर तक ही सीमित होने का कारण यह था कि वह एक लड़की थी। लड़का-लड़की में इसी अंतर के कारण वे मोहल्ले आदि से बाहर जाकर खेल सकते थे, परंतु लेखिका नहीं।

(ख) घर की दीवारों का मोहल्ले तक फैलने का अर्थ है- पड़ोस और मोहल्ले के अन्य घर भी एक की समझे जाते थे। घर का दायरा विस्तृत था। मोहल्ले के किसी भी अन्य घर में जाने पर पाबंदी नहीं थी।

(ग) परंपरागत 'पड़ोस-कल्चर' है आस-पड़ोस वालों को आत्मीय मानना। उनके साथ मिलजुल कर रहना, एक-दूसरे के सुख-दुख में साथ देना, लेन-देन करना, दिन-त्योहार मनाना आदि। उसके विच्छिन्न होने का समाज पर यह दुष्प्रभाव हुआ है कि हम संकुचित, असहाय और असुरक्षित हो गए हैं।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लीखिए-

गिरती आर्थिक स्थिति ने ही उनके व्यक्तित्व के सारे सकारात्मक पहलुओं को निचोड़ना शुरू कर दिया। सिकुड़ती आर्थिक स्थिति के कारण और अधिक विस्फारित उनका अहं उन्हें इस बात तक की अनुमति नहीं देता था कि वे कम-से-कम अपने बच्चों को तो अपनी आर्थिक विवशताओं का भागीदार बनाएँ। नवाबी आदतें, अधूरी महत्त्वाकांक्षाएँ, हमेशा शीर्ष पर रहने के बाद हाशिए पर सरकते चले जाने की यातना क्रोध बनकर हमेशा माँ को कंपाती, थरथराती रहती थी। ‘अपनों' के हाथों विश्वासघात की जाने की कैसी गहरी चोटें होंगी, वे जिन्होंने आँख मूंदकर सबका विश्वास करने वाले पिता को बाद के दिनों में इतना शक्की बना दिया था कि जब-तब हम लोग भी उसकी चपेट में आते ही रहते।

(क) “व्यक्तित्व के सकारात्मक पहलुओं से लेखिका का क्या आशय है?
(ख) सिकुड़ती आर्थिक स्थिति ने लेखिका के पिताजी को किस रूप में प्रभावित किया?
(ग) लेखिका के पिता क्रोधी और शक्की स्वभाव के क्यों हो गए थे?

उत्तर:
(क) “व्यक्तित्व के सकारात्मक पहलुओं से लेखिका का आशय अच्छी और उन्नत सोच, स्वस्थ एवं व्यापक विचार, प्रसन्नता, विश्वास तथा आत्मविश्वास आदि गुणों से है।

(ख) सिकुड़ती आर्थिक स्थिति ने लेखिका के पिताजी की विचारधारा और व्यक्तित्व दोनों ही बदल दिए। आशा निराशा बन गई, हर्ष के स्थान पर विषाद रहने लगा तथा विश्वास का स्थान अविश्वास ने ले लिया तथा अधूरी महत्त्वाकांक्षाओं और शीर्ष से हाशिए पर आ जाना, उन्हें मानसिक रूप से भी प्रताड़ित करने लगा।

(ग) लेखिका के पिता क्रोधी और शक्की स्वभाव के इसलिए हो गए क्योंकि अपनों ने उन्हें विश्वासघात की चोट दी थी। पहले वे आँख मूंदकर विश्वास करते थे, बाद में वे शक्की बन गए थे तथा आर्थिक स्थिति के चरमरा जाने से वे क्रोधी भी हो गए थे।


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