स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन (पठित गद्यांश)
गद्यांश पर आधारित प्रश्न
प्रश्न 1. निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लीखिए-
इस देश की वर्तमान शिक्षा-प्रणाली अच्छी नहीं। इस कारण यदि कोई स्त्रियों को पढ़ाना अनर्थकारी समझे तो उसे उस प्रणाली का संशोधन करना या कराना चाहिए, खुद पढ़ने-लिखने को दोष न देना चाहिए। लड़कों की ही शिक्षा-प्रणाली कौन-सी बड़ी अच्छी है। प्रणाली बुरी होने के कारण क्या किसी ने यह राय दी है कि सारे स्कूल और कॉलेज बंद कर दिए जाएँ? आप खुशी से लड़कियों और स्त्रियों की शिक्षा-प्रणाली का संशोधन कीजिए। उन्हें क्या पढ़ाना चाहिए, कितना पढ़ाना चाहिए, किस तरह की शिक्षा देनी चाहिए और कहाँ पर देनी चाहिए- घर में या स्कूल में- इन सब बातों पर बहस कीजिए, विचार कीजिए, जी में आए सो कीजिए; पर परमेश्वर के लिए यह न कहिए कि स्वयं पढ़ने-लिखने में कोई दोष है।
(क) स्त्रियों की पढ़ाई-लिखाई के पक्ष में लेखक के तर्क का आशय समझाइए।
(ख) शिक्षा-प्रणाली के दोषों के निराकरण के लिए लेखक ने कौन-से विकल्प दिए हैं?
(ग) आशय स्पष्ट कीजिए- ‘लड़कों की ही शिक्षा-प्रणाली कौन सी बड़ी अच्छी है।'
उत्तर:
(क) लेखक के तर्क का आशय यह है कि यदि शिक्षा प्रणाली में दोष है, तो उसका कुप्रभाव स्त्री-पुरुष दोनों की ही शिक्षा पर पड़ेगा। मात्र स्त्रियों की शिक्षा को समाप्त कर देना इसका समाधान नहीं है। क्योंकि इस स्थिति में तो लड़कों को भी पढ़ाना बंद कर देना चाहिए। इस समस्या का वास्तविक समाधान यह है कि शिक्षा-प्रणाली में सुधार लाया जाए।
(ख) शिक्षा-प्रणाली के दोषों के निराकरण के लिए लेखक ने विकल्प दिए हैं कि शिक्षा के उद्देश्य, विषय तथा स्थान और विकल्प आदि पर बहस करनी चाहिए, सोच-विचार करना चाहिए। पढ़ाई-लिखाई को दोष देना सर्वथा अनुचित है।
(ग) इस कथन के द्वारा लेखक ने उन पुरातनपंथियों की दूषित सोच पर व्यंग्य किया है जो सोचते हैं कि स्त्रियों को शिक्षा देना अनर्थकारी हो जाएगा। लेखक का मानना है कि यदि स्त्रियों को शिक्षा देने से उसका उन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है, तो फिर यह विश्वास के साथ कैसे कहा जा सकता है कि लड़कों के लिए बनाई गई शिक्षा-प्रणाली उन पर केवल सकारात्मक प्रभाव ही छोड़ रही है। लड़कों के अंदर आज जो नकारात्मक प्रभाव दिखाई दे रहा है, उसे देखकर तो उनके कॉलेजों को ही बंद कर देना चाहिए, किंतु अगर ऐसा लड़कों के साथ नहीं किया जा रहा, तो फिर स्त्री-शिक्षा को अनर्थकारी क्यों बताया जा रहा है?
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