मानवीय करुणा की दिव्य चमक (पठित गद्यांश)
गद्यांश पर आधारित प्रश्न
प्रश्न 1. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
फादर की देह पहले कब्र के ऊपर लिटाई गई। मसीही विधि से अंतिम संस्कार शुरू हुआ। रांची के फ़ादर पास्कल तोयना के द्वारा। उन्होंने हिंदी में मसीही विधि से प्रार्थना की। फिर सेंट जेवियर्स के रेक्टर फ़ादर पास्कल ने उनके जीवन और कर्म पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा, 'फादर बुल्के धरती में जा रहे हैं। इस धरती से ऐसे रत्न और पैदा हों। डॉ. सत्यप्रकाश ने भी अपनी श्रदांजलि में इनके अनुकरणीय जीवन को नमन किया। फिर देह कब्र में उतार दी गई। मैं नहीं जानता इस संन्यासी ने कभी सोचा था या नहीं कि उसकी मृत्यु पर कोई रोएगा। लेकिन उस क्षण रोने वालों की कमी नहीं थी। (नम आंखों को गिनना स्याही फैलाना है।)
(क) फादर का अंतिम संस्कार किस विधि से करवाया गया और उसकी मुख्य बात क्या थी?
(ख) सेंट जेवियर्स के रेक्टर फादर पास्कल ने फादर बुल्के को किन शब्दों में श्रद्धांजलि अर्पित की?
(ग) फ़ादर की मृत्यु पर रोने बालों की कमी क्यों नहीं थी।
उत्तर:
(क) फ़ादर का अंतिम संस्कार मसीही विधि से करवाया गया। उसकी मुख्य बात यह थी कि फादर पास्कल तोयना ने हिंदी में मसीही विधि से प्रार्थना की।
(ख) सेंट जेवियर्स के रेक्टर फ़ादर पास्कल ने फादर बुल्के को श्रदांजलि देते हुए कहा कि फ़ादर बुल्के धरती में जा रहे हैं। उनकी यह प्रार्थना हैं कि उनके जैसे रत्न और इस धरती पर जन्म लें।
(ग) फ़ादर कामिल बुल्के की मृत्यु पर रोने वालों की कमी नहीं थी क्योंकि उनका सभी के प्रति मित्रवत् व्यवहार था। सभी के लिए दया व सहयोग की भावना थी व अपने हदय में सभी के प्रति कल्याण की भावना रखते थे। उनका यह सहृदय एवं मानवीय करुणा से परिपूर्ण व्यक्तित्व अनगिनत लोगों के हदय में उनके प्रति प्रेम की भावना को संजोए हुए था। यही कारण है कि जब उनकी मृत्यु हुई तो असंख्य लोगों की आँखों में आँसू थे।
प्रश्न 2.
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए।. 2010
मैं नहीं जानता इस संन्यासी ने कभी सोचा था या नहीं कि उसकी मृत्यु पर कोई रोएगा। लेकिन उस क्षण रोने वालों की कमी नहीं थी। (नम आँखों को गिनना स्याही फैलाना है। इस तरह हमारे बीच से वह चला गया जो हममें से सबसे अधिक छायादार, फल-फूल गंध से भरा और सबसे अलग, सबका होकर, सबसे ऊँचाई पर, मानवीय करुणा की दिव्य चमक में लहलहाता खड़ा था। जिसकी स्मृति हम सबके मन में जो उनके निकट थे; किसी यज्ञ की पवित्र आग की आँच की तरह आजीवन बनी रहेगी। मैं उस पवित्र ज्योति की याद में श्रद्धानत हैं।
(क) अर्थ स्पष्ट कीजिए- ‘नम आँखों को गिनना स्याही फैलाना है।
(ख) “सबसे अधिक छायादार, फल-फूल गंध से भरा...' किसे और क्यों कहा गया है?
(ग) यज्ञ की आग की क्या विशेषता होती है? संन्यासी की स्मृति की तुलना इस आग की ‘आँच' से क्यों की गई है।
उत्तर:
(क) नम आँखों को गिनना स्याही फैलाना है- पंक्ति के द्वारा लेखक यह स्पष्ट करना चाहता है कि फ़ादर बुल्के की जब मृत्यु हुई, उस समय वहाँ उपस्थित लोगों की संख्या इतनी अधिक थी जिसकी गिनती नहीं की जा सकती। उन लोगों में उनके परिचित, मित्र, साहित्यकार इतनी अधिक संख्या में थे कि उनकी गणना करके लिखना अत्यंत कठिन कार्य था। उनकी मृत्यु पर आँसू बहाने वालों की अपार भीड़ थी, जिसके बारे में लिखना व्यर्थ स्याही फैलाने जैसा है।
(ख) 'सबसे अधिक छायादार, फल-फूल गंध से भरा...' फादर बुल्के को कहा गया है। यह एक ऐसे विशाल वृक्ष की भांति थे जो सर्वाधिक छायादार, फल-फूल एवं सुगंध से युक्त था। उन्हें ऐसा इसलिए कहा गया क्योंकि फ़ादर बुल्के मानवीय करूणा के दिव्य अवतार थे। प्रेम, करुणा, वात्सल्य, अपनत्व, ममता एवं सहृदयता उनमें कूट-कूट कर भरी हुई थी। उनके हृदय में अपने प्रियजनों के प्रति असीम स्नेह एवं ममत्व का भाव था। अपने आशीर्वादों से वे लोगों को लबालब कर देते थे। उनके मन में सबके प्रति कल्याण की भावना थी। इस रूप में उनका व्यक्तित्व अलौकिक छवि को लिए हुए था।
(ग) यज्ञ की आग की विशेषता यह होती है कि वह पवित्र होती है। संन्यासी अर्थात् फ़ादर बुल्के की स्मृति की तुलना लेखक ने इस आग की ‘आँच' से इसलिए की है जिस तरह यज्ञ की आँच सबके लिए पवित्र एवं कल्याणकारी होती है उसी तरह फ़ादर बुल्के का व्यक्तितव भी सदैव सबके लिए कल्याणकारी था। उनका हृदय सदैव दूसरों के लिए कल्याण की पवित्र भावना से ओत-प्रोत राहता था। प्रेम, वात्सल्य और ममत्व का पवित्र रूप सदैव सबके प्रति आत्मीयता से परिपूर्ण रहता था। यही कारण है कि वे ‘मानवीय करुणा की दिव्य चमक' के रूप में उभरकर सामने आए। उनका उज्ज्वल व्यक्तित्व सदा सभी को अविस्मरणीय रहेगा।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
फ़ादर को याद करना एक उदास शांत संगीत को सुनने जैसा है। उनको देखना करुणा के निर्मल जल में स्नान करने जैसा था और उनसे बात करना कर्म के संकल्प से भरना था। मुझे 'परिमल' के वे दिन याद आते हैं जब हम सब एक पारिवारिक रिश्ते में बँधे-जैसे थे जिसके बड़े फादर बुल्के थे। हमारे हंसी-मज़ाक में वह निर्लिप्त शामिल रहते, हमारी गोष्ठियों में वह गंभीर बहस करते, हमारी रचनाओं पर बेबाक राय और सुझाव देते और हमारे घरों के किसी भी उत्सव और संस्कार में वह बड़े भाई और पुरोहित जैसे खड़े हो, हमें अपने आशीषों से भर देते।
(क) फादर को याद करना, देखना और उनसे बातें करना किन अनुभूतियों को जगाने वाला होता था?
(ख) 'परिमल' की गोष्ठियों से जुड़ी फ़ादर की किन स्मृतियों को लेखक याद कर रहा है?
(ग) घर के उत्सवों में फ़ादर की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
(क) फ़ादर बुल्के को याद करना एक शांत, उदास संगीत को सुनने के समान प्रतीत होता है। उनको देखने से करुणा के निर्मल जल में स्नान करने जैसी अनुभूति प्राप्त होती है और उनसे बातें करने से अपने मन को कर्म के संकल्प से भरने की गहन अनुभूति का अनुभव प्राप्त होता है।
(ख) 'परिमल' की गोष्ठियों से जुड़ी फ़ादर की वो स्मृतियाँ लेखक को याद आती है, जब सभी साहित्यकार पारिवारिक संबंधों में बंधे अनुभव करते थे और उस परिवार के बड़े व्यक्ति फ़ादर बुल्के हुआ करते थे। सभी के बीच हँसी-मज़ाक चलता था, गंभीरता से परिपूर्ण बहस होती थी और निडर और निष्पक्ष होकर एक दूसरी की रचनाओं से संबंधित राय दी जाती थी।
(ग) घर के उत्सवों में फ़ादर बड़े भाई और पुरोहित की भूमिका को निभाते थे। सभी को स्नेहाशीष से भर देते थे। बड़े भाई के समान सभी के साथ स्नेहपूर्ण व्यवहार और पुरोहित के समान आशीर्वाद देते हुए वे देवदार वृक्ष के समान प्रतीत होते थे जो सबको शांति और शीतलता प्रदान करता है।
प्रश्न 4.
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
फादर बुल्के संकल्प से संन्यासी थे। कभी-कभी लगता है वह मन से संन्यासी नहीं थे। रिश्ता बनाते थे तो तोड़ते नहीं थे। दसियों साल बाद मिलने के बाद भी उसकी गंध महसूस होती थी। वह जब भी दिल्ली आते ज़रूर मिलते-खोजकर, समय निकालकर, गर्मी, सर्दी, बरसात झेलकर मिलते, चाहे दो मिनट के लिए ही सही। यह कौन संन्यासी करता है?
(क) फादर बुल्के को संकल्प से संन्यासी क्यों कहा गया है? वे मन से संन्यासी क्यों नहीं लगते थे?
(ख) फादर रिश्ते बनाकर उनका निर्वाह कैसे करते थे?
(ग) फादर बुल्के का कौन-सा व्यवहार संन्यासियों के स्वभाव के अनुकूल नहीं लगता?
उत्तर:
(क) फ़ादर बुल्के में संन्यास लेने की भावना थी। उन्होंने इस कार्य के लिए संकल्प भी लिया, लेकिन अपने इस संकल्प को वह निभा नहीं पाए। जो व्यक्ति संन्यास लेता है वह सांसारिक रिश्तों से दूर हो जाता है, लेकिन फ़ादर बुल्के का स्वभाव इसके विपरीत था। वह जिसके साथ मन से जुड़ जाते थे उससे उन्हें गहरा लगाव हो जाता था। वह उस रिश्ते को अंत तक निभाते थे। जब भी दिल्ली आते यह लेखक से मिले बिना नहीं जाते थे। मन से, अपनत्व से, बंधने के कारण लेखक ने कहा है कि वह मन से संन्यासी नहीं थे।
(ख) फादर बुल्के जिससे रिश्ता बना लेते उससे आजीवन निभाते थे। लेखक के साथ उनका गहरा स्नेह संबंध था। वह जब भी दिल्ली आते उनसे मिले बिना कभी वापिस नहीं जाते थे। किसी भी स्थिति में उनकी अपने स्नेह-पात्र से आत्मीयता कम नहीं होती थी।
(ग) संन्यासी सांसारिक मोह-माया, संबंधों से नाता तोड़ लेता है। उसका जीवन आध्यात्मिक क्षेत्र तक ही सीमित रह जाता है, लेकिन फादर बुल्के का व्यवहार संन्यासियों से विपरीत था। वह देश व समाज की प्रक्रियाओं से जुड़े हुए थे। उन्हें हिंदी की उपेक्षा देखकर दुख होता था। वह हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में देखना चाहते थे। इसके अतिरिक्त उन्हें सांसारिक रिश्तों से गहरा लगाव था। उनका यह स्वभाव संन्यासियों के प्रतिकूल था।
प्रश्न 5.
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
फ़ादर को ज़हरबाद से नहीं मरना चाहिए था। जिसकी रगों में दूसरों के लिए मिठास भरे अमृत के अतिरिक्त और कुछ नहीं था उसके लिए इस ज़हर का विधान क्यों हो? यह सवाल किस ईश्वर से पूछे? प्रभु की आस्था ही जिसका अस्तित्व था, वह देह की इस यातना की परीक्षा उम्र की आखिरी देहरी पर क्यों दे?
(क) लेखक ऐसा क्यों कहता है कि फ़ादर को ज़हरबाद से नहीं मरना चाहिए था?
(ख) "प्रभु की आस्था ही जिसका अस्तित्व था" वाक्य से फ़ादर के व्यक्तित्व की किस विशेषता का परिचय प्राप्त होता है।
(ग) “उम्र की आखिरी देहरी" कथन से लेखक का क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
(क) फादर बुल्के के मन में दूसरों के प्रति तनिक सी भी ईष्या-द्वेष की भावना नहीं थी। उनके जीवन का उद्देश्य मात्र मानव-कल्याण था। उन्होंने अपने प्रियजनों को सदैव अपनत्व दिया। ऐसे महान व्यक्ति की मृत्यु ज़हराबाद के कारण कठिन यातना सहते हुए नहीं होनी चाहिए थी। लेखक के अनुसार मानवीय करुणा की साक्षात् मूर्ति को ज़हरबाद से नहीं मरना चाहिए था।
(ख) फ़ादर बुल्के की अध्यात्म के प्रति गहरी रुचि थी। प्रभु के प्रति अटूट आस्था व निष्ठा ही उनके जीवन का उद्देश्य था। जो ईश्वर के प्रति आस्था रखता है वही स्नेह, करुणा, वात्सल्य जैसे गुणों का सागर बन सकता है, वहीं मानव से प्रेम कर सकता है, वही मानवीय करुणा की फ़सल लहलहा सकता है तथा छायादार वृक्ष की तरह सबके लिए सुखकारी हो सकता है।
(ग) फादर बुल्के की मृत्यु ज़हराबाद के कारण कठिन यातना सहते हुए हुई थी। जिस व्यक्ति ने सदैव अपने व्यवहार से दूसरे के जीवन में प्रेम का रंग भरा, उसे उम्र की आखिरी-देहरी अर्थात् जीवन के अंतिम पड़ाव पर निर्मम यातना को झेलना पड़ा।
सबसे अधिक छायादार और फल-फ
ReplyDeleteू
ल- गंि से भरा कहकर लेखक
फादर की ककस विशेषता को उजागर करना चाहता है?