लखनवी अंदाज़ (पठित गद्यांश)

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लखनवी अंदाज़ (पठित गद्यांश)






गद्यांश पर आधारित प्रश्न
प्रश्न 1. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

नवाब साहब खीरे की तैयारी और इस्तेमाल से थककर लेट गए। हमें तसलीम में सिर खम कर लेना पड़ा- यह है खानदानी तहज़ीब, नफ़ासत और नज़ाकत! हम गौर कर रहे थे, खीरा इस्तेमाल करने के इस तरीके को खीरे की सुगंध और स्वाद की कल्पना से संतुष्ट होने का सूक्ष्म, नफीस या एस्ट्रैक्ट तरीका ज़रूर कहा जा सकता है, परंतु क्या ऐसे तरीके से उदर की तृप्ति भी हो सकती है? नवाब साहब की ओर से भरे पेट के ऊँचे डकार का शब्द सुनाई दिया और नवाब साहब ने हमारी ओर देखकर कह दिया, 'खीरा लज़ीज़ होता है, लेकिन होता है सकील, नामुराद मेदे पर बोझ डाल देता है। ज्ञान-चक्षु खुल गये! पहचाना-ये हैं नयी कहानी के लेखक!

(क) नवाब साहब थककर क्यों लेट गए?
(ख) लेखक खीरा इस्तेमाल करने के कौन से तरीके पर गौर कर रहे थे?
(ग) लेखक के ज्ञानचक्षु किस प्रकार खुल गए?

उत्तर:
(क) नवाब साहब खीरे की तैयारी और इस्तेमाल से थक कर लेट गए थे। उन्होंने बहुत यत्न से खीरे को धोया, पौंछा, उसकी फाँकें बनाकर नमक-मिर्च छिड़का और उसे खाने योग्य बनाया। इस संपूर्ण प्रक्रिया में वह थक गए थे।

(ख) लेखक नवाब साहब द्वारा खीरा इस्तेमाल करने के विचित्र तरीके पर गौर कर रहे थे। नवाब साहब ने अत्यंत परिश्रम और यत्न से काटे गए खीरे की फाँकों पर नमक-मिर्च छिड़का और फाँकों को होठों तक ले जाकर सूंघते हुए पेट भरने या संतुष्टि का अभिनय किया और फिर खीरे की फांकों को खिड़की से बाहर फेंक दिया। वे इस बात पर गौर कर रहे थे कि क्या किसी खाने की वस्तु को केवल सूंघकर फेंक देने से उसका स्वाद या आनंद लिया जा सकता है? उनकी नज़र में स्वाद का बोध कराने का काम जिह्वा का है जो खाने से ही हो सकता है।

(ग) जब लेखक ने नवाब साहब द्वारा खीरे की सुगंध और स्वाद की कल्पना से संतुष्ट होते देखा तथा पेट भरने व तृप्ति का अनुभव करने का आचरण करते देखा, तो उनके ज्ञान-चक्षु खुल गए। उन्हें यह नई बात समझ में आई कि अगर खीरे को खाए बिना, सुगंध मात्र से पेट भर सकता है तो बिना विचार, घटना और पात्रों के लेखक की इच्छा मात्र से कहानी भी लिखी जा सकती है।


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