नौबतखाने में इबादत (पठित गद्यांश)
गद्यांश पर आधारित प्रश्न
प्रश्न 1. निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिएः 2016
शहनाई और डुमराँव एक-दूसरे के लिए उपयोगी हैं। शहनाई बजाने के लिए रीड का प्रयोग होता है। रीड अंदर से पोली होती है जिसके सहारे शहनाई को फूँका जाता है। रीड, नरकट (एक प्रकार की घास) से बनाई जाती है जो डुमराँव में मुख्यतः सोन नदी के किनारों पर पाई जाती है। इतनी ही महता है इस समय डुमराँव की, जिसके कारण शहनाई जैसा वाद्य बजता है। फिर अमीरुद्दीन जो हम सबके प्रिय हैं, अपने उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ साहब हैं। उनका जन्म-स्थान भी डुमराँव ही है। इनके परदादा उस्ताद सलार हुसैन खाँ डुमराँव निवासी थे। बिस्मिल्ला खाँ उस्ताद पैगंबर बख्श खाँ और मिट्ठन के छोटे साहबजादे हैं।
(क) शहनाई और डुमराँव एक-दूसरे के पूरक हैं, कैसे?
(ख) यहाँ रीड के बारे में क्या-क्या जानकारियाँ मिलती हैं?
(ग) अमीरुद्दीन के माता-पिता कौन थे?
उत्तर:
(क) शहनाई और डुमराँव एक दूसरे के पूरक हैं क्योंकि शहनाई बजाने के लिए प्रयोग की जाने वाली रीड़ डुमराँव में सोन नदी के किनारे पाई जाती है। शहनाई वादक बिस्मिल्ला खाँ साहब का जन्मस्थल भी डुमराँव ही है। अतः बिस्मिल्ला खाँ, उनकी शहनाई दोनों ही डुमराँव से जुड़े होने के कारण एक-दूसरे के पूरक हैं।
(ख) रीड का प्रयोग शहनाई बजाने के लिए किया जाता है। रीड अंदर से पोली अर्थात खोखली होती है जिसके सहारे शहनाई को फूँका जाता है। रीड़ नरकट से बनाई जाती है, जो एक प्रकार की घास है। यह घास डुमरांव में सोन नदी के किनारों पर बहुतायत में पाई जाती है, जिसकी सहायता के बिना शहनाई बजाने की कल्पना भी नहीं की जा सकती है।
(ग) अमीरुद्दीन, बिस्मिल्ला खाँ के बचपन का नाम है और इनके पिताजी का नाम उस्ताद पैगंबर बख्श खाँ और माताजी का नाम मिट्ठन था।
प्रश्न 2.
निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए-
वही पुराना बालाजी का मंदिर जहाँ बिस्मिल्ला खाँ को नौबतखाने रियाज़ के लिए जाना पड़ता है। मगर एक रास्ता है बालाजी मंदिर तक जाने का। यह रास्ता रसूलनबाई और बतूलनबाई के यहाँ से होकर जाता है। इस रास्ते से अमीरुद्दीन को जाना अच्छा लगता है। इस रास्ते न जाने कितने तरह के बोल-बनाव कभी ठुमरी, कभी ठप्पे, कभी दादरा के मार्फत ड्योढ़ी तक पहुँचते रहते हैं। रसूलन और बतूलन जब गाती हैं तब अमीरुद्दीन को खुशी मिलती है। अपने ढेरों साक्षात्कारों में बिस्मिल्ला खाँ साहब ने स्वीकार किया है कि उन्हें अपने जीवन के आरंभिक दिनों में संगीत के प्रति आसक्ति इन्हीं गायिका बहिनों को सुनकर मिली है।
(क) बिस्मिल्ला खाँ कौन थे? बालाजी मंदिर से उनका क्या संबंध है? ।
(ख) रसूलनबाई और चतूलनवाई के यहाँ से होकर बालाजी के मंदिर जाना बिस्मिल्ला खाँ को क्यों अच्छा लगता था?
(ग) “रियाज़' से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
(क) बिस्मिल्ला खाँ देश के सुप्रसिद्ध, शहनाई वादक थे। बालाजी मंदिर से उनका गहरा भावात्मक संबंध था। इसी बालाजी की दहलीज़ के नौबतखाने पर जाकर वे रोज़ शहनाई के द्वारा मंगल ध्वनि करते थे।
(ख) रसूलनबाई और बतूलनबाई के यहाँ से होकर बालाजी के मंदिर जाना बिस्मिल्ला खाँ को इसलिए अच्छा लगता था क्योंकि वे तरह-तरह के बोल, ठुमरी, ठप्पे, दादरा आदि मधुर स्वर में गाती थीं। इन दोनों ने ही खाँ साहब के जीवन में संगीत के प्रति आसक्ति पैदा की।
(ग) अपनी कला का बार-बार अभ्यास करना ही ‘रियाज़' है। खाँ साहब भी घंटों शहनाई वादन का रियाज़ करते थे और जीवन पर्यंत करते रहे, ताकि उनके सुर सधे रहें।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए-
किसी दिन एक शिष्या ने डरते-डरते खाँ साहब को टोका, “बाबा! आप यह क्या करते हैं, इतनी प्रतिष्ठा है आपकी । अब तो आपको भारतरत्न भी मिल चुका है, यह फटी तहमद न पहना करें। अच्छा नहीं लगता, जब भी कोई आता है आप इसी फटी तहमद में सबसे मिलते हैं।” खाँ साहब मुसकराए, लाड़ से भरकर बोले, “धत् ! पगली ई भारतरत्न हमको शहनईया पे मिला है, लुंगिया पे नाहीं । तुम लोगों की तरह बनाव सिंगार देखते रहते, तो उमर ही बीत जाती, हो चुकती शहनाई। तब क्या खाक रियाज़ हो पाता। ठीक है। बिटिया, आगे से नहीं पहनेंगे, मगर इतना बताए देते हैं कि मालिक से यही दुआ है, फटा सुर ने बख्शे। लुगिया का क्या है, आज फटी है, तो कल सी जाएगी।"
(क) “तुम लोगों की तरह बनाव सिंगार देखते रहते तो उमर ही बीत जाती, हो चुकती शहनाई। उपर्युक्त कथन में युवावर्ग के लिए क्या संदेश है?
(ख) किसी भी कला या कार्य की सफलता में रियाज़ का कितना योगदान होता है, गद्यांश के आधार पर लिखिए।
(ग) शिष्या के टोकने को बिस्मिल्ला खाँ ने बुरा क्यों नहीं माना?
उत्तर:
(क) उपर्युक्त कथन में युवावर्ग के लिए लक्ष्य-प्राप्ति हेतु बनाव-सिंगार व फैशनबाजी के स्थान पर साधना व समर्पण का संदेश निहित है। वास्तव में, यदि युवावर्ग स्वयं को सच्चा साधक बनाकर अपने लक्ष्य को साधने का प्रयास करे और बाहरी आकर्षणों की अति से स्वयं को बचाए, तो उसे उस क्षेत्र में ऊँचाइयों तक पहुँचने से कोई नहीं रोक सकता। महान शहनाई वादक बिस्मिल्ला खाँ का जीवन भी बनाव-सिंगार से दूर सुरों की सच्ची साधना का प्रतीक है।
(ख) किसी भी कला या कार्य की सफलता में रियाज़ का बहुत अधिक योगदान होता है। आप किसी भी कला को थोड़े प्रयास से सीख तो सकते हैं, किंतु उसमें निपुणता प्राप्त नहीं कर सकते हैं। यह निपुणता केवल और केवल रियाज़ यानी अभ्यास द्वारा ही संभव होती है। आज अपने-अपने क्षेत्रों में शीर्ष पर बैठे हुए सफल व्यक्तियों से यदि पूछा जाए, तो उनमें से हर कोई यही कहेगा कि उसने स्वयं को यहाँ तक लाने के लिए जी तोड़ अभ्यास किया है।
(ग) बिस्मिल्ला खाँ बहुत ही उदार व हँसमुख व्यक्ति थे। वे अपने शिष्यों से बहुत पुले-मिले थे। इसलिए उन्होंने अपनी शिष्या द्वारा फटी लुंगी के लिए टोकने का बुरा नहीं माना और उसे प्यार से यह समझा दिया कि जीवन में बनाव-सिंगार से अधिक महत्त्व साधना का है तथा साथ ही उसकी भावनाओं का सम्मान करते हुए यह भी कह दिया कि बिटिया, आगे से फटी तुंगी नहीं पहनेंगे।
प्रश्न 4.
निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए-
अपने ऊहापोहों से बचने के लिए हम स्वयं किसी शरण, किसी गुफ़ा को खोजते हैं, जहाँ अपनी दुश्चिताओं, दुर्बलताओं को छोड़ सकें और वहाँ से फिर अपने लिए एक नया तिलिस्म गढ़ सकें। हिरन अपनी ही महक से परेशान पूरे जंगल में उस वरदान को खोजता है जिसकी गमक उसी में समाई है। अस्सी बरस से बिस्मिल्ला खाँ यही सोचते आए हैं कि सातों सुरों को बरतने की तमीज़ उन्हें सलीके से अभी तक क्यों नहीं आई।
(क) 'ऊहापोह' शब्द का क्या अर्थ है? किसी की शरण ओर गुफा को खोजने के पीछे व्यक्ति का क्या प्रयोजन होता है?
(ख) हिरन जंगल में किसकी खोज करता है? उसकी खोज व्यक्ति को क्या संदेश देती है?
(ग) बिस्मिल्ला खाँ के संदर्भ में हिरन का उदाहरण क्यों दिया गया है?
उत्तर:
(क) “ऊहापोह' का अर्थ है- अनिश्चितता की स्थिति अथवा मानसिक उलझन। किसी भी शरण और गुफा को खोजने के पीछे व्यक्ति का प्रयोजन मात्र अपनी मानसिक उलझन को समाप्त करना है। वह ऊहापोह की स्थिति को समाप्त कर उससे उबरना चाहता है ताकि कोई अन्य मार्ग तलाश कर सके।
(ख) हिरन जंगल में महक (कस्तूरी की) की खोज करता है, जबकि वह उसके अंदर ही समाई होती है। उसकी खोज व्यक्ति को संदेश देती है कि उसके गुण और कला उसी के अंदर उपस्थित हैं। वह उन्हें बाहर तलाशने की अपेक्षा अपने अंदर खोजे।
(ग) बिस्मिल्ला खाँ के संदर्भ में हिरन का उदाहरण इसलिए दिया गया है क्योंकि वे अपार कला और सारे सुरों के स्वामी थे, तथापि वे प्रतिदिन ईश्वर से एक सच्चा सुर माँगते थे। उन्हें लगता था कि वे अभी ठीक से शहनाई नहीं बजा सकते और यह स्थिति वैसे ही थी, जैसे हिरन की अपनी आंतरिक महक से अनभिज्ञता।
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