Important Questions CBSE Class 10 Hindi A-संस्कृति | संस्कृति (अति महत्त्वपूर्ण प्रश्न)

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Important Questions CBSE Class 10 Hindi A-संस्कृति | संस्कृति (अति महत्त्वपूर्ण प्रश्न)


संस्कृति (अति महत्त्वपूर्ण प्रश्न)






प्रश्न 1.
‘संस्कृति' पाठ में लेखक ने आग और सुई-धागे के आविष्कारों से क्या स्पष्ट किया है?           2016

उत्तर:
पाठ 'संस्कृति में लेखक भदंत आनंद जी ने आग और सुई-धागे के आविष्कारों से यह स्पष्ट करने का प्रयास किया है कि ये दोनों ही आविष्कार मानव की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए किए गए। अपने को ठंड से बचाने और भोजन व मांस को पकाकर खाने की प्रेरणा ने इस आविष्कार में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की होगी तथा बाद में अपनी अनेक उपयोगिताओं के कारण अग्नि को देवता माना गया होगा। सुई-धागे के आविष्कार के पीछे भी मानव की अपने को शीत से बचाने के लिए कपड़े सिलने व पहनने की आवश्यकता ही प्रमुख थी। इस आविष्कार से मानव अपने शरीर को कष्टों व मौसम के प्रहार से बचा सका।

प्रश्न 2.
‘संस्कृति' पाठ में लेखक के अनुसार सभ्यता क्या है?

उत्तर:
‘संस्कृति पाठ के अनुसार सभ्यता का विकास संस्कृत से ही होता है। सभ्यता, संस्कृति का ही परिणाम है। हमारे खाने-पीने के तरीके, ओढ़ने-पहनने के तरीके, हमारे गमन-आगमन के साधन, हमारे परस्पर कट-मरने के तरीके आदि सब हमारी सभ्यता ही है। संस्कृति एक आंतरिक संस्कार है और सभ्यता एक बाहरी संस्कार है। लेखक के अनुसार संस्कृति से ही सभ्यता का जन्म हुआ है।

प्रश्न 3.
रात के तारों को देखकर न सो सकने वाले मनीषी को प्रथम पुरस्कर्ता क्यों कहा गया है? 'संस्कृति' पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए।

उत्तर:
रात के तारों को देखकर न सो सकने वाले मनीषी को प्रथम पुरस्कर्ता इसलिए कहा गया है क्योंकि उसका पेट भरा होने और तन ढका होने के बावजूद भी वह यह जानने के लिए बेचैन था कि ये मोती भरा थाल आखिर है क्या? ऐसा संस्कृत व्यक्ति कभी खाली नहीं बैठ सकता। वह कोई नई खोज करके ही दम लेता है। वह अपनी बुद्धि और विवेक के बल पर अनुसंधान में जुट जाता है। वास्तव में, ऐसा व्यक्ति ही संस्कृत कहलाने का अधिकारी है और वह प्रथम पुरस्कर्ता कहलाता है। वह उन चीज़ों की खोज में नहीं लगता जो उसके जीवित रखने के लिए आवश्यक हैं, बल्कि उन नई वस्तुओं की खोज की तरफ़ अग्रसर होता है जो अपने अंदर की सहज संस्कृति के कारण प्राप्त हुए हैं।

प्रश्न 4.
संस्कृति कब असंस्कृति बन जाती है? पाठ के आधार पर लिखिए।

उत्तर:
संस्कृति का अर्थ केवल आविष्कार करना नहीं होता है। यह आविष्कार जब मानव कल्याण की भावना से जुड़ जाता है, तो हम उसे संस्कृति कहते हैं, किंतु जब आविष्कार करने की योग्यता का उपयोग विनाश करने के लिए किया जाता है, तब यह संस्कृति ही असंस्कृति बन जाती है। अतः यह कहना उचित होगा कि संस्कृति मानव के कल्याण के लिए होती है और उसके विकास तथा ज्ञान का मार्ग प्रशस्त करती है, जबकि असंस्कृति का रूप अकल्याणकारी होता है और वह मानवता को विनाश की ओर ले जाती है।

प्रश्न 5.
‘संस्कृति' पाठ के आधार पर बताइए कि हमें सभ्यता किनसे मिली है और किस तरह?

उत्तर:
"संस्कृति' पाठ में लेखक ने बताया है कि संस्कृति जीवन का चिंतन और कलात्मक सृजन से भरा रूप है, जबकि लेखक के अनुसार मनुष्य के रहन-सहन का तरीका सभ्यता के अंतर्गत आता है। इस दृष्टि से सभ्यता को संस्कृति का विकसित रूप कहा जा सकता है। न्यूटन ने अपनी बुद्धि-शक्ति से गुरुत्वाकर्षण के रहस्य की खोज की। इसलिए उसे संस्कृत मानव कह सकते हैं। आज मनुष्य के पास भले ही इस विषय पर अधिक जानकारी होगी, पर उसमें वह बुद्धि-शक्ति नहीं है, जो न्यूटन के पास थी। वह इस विषय पर तो केवल न्यूटन द्वारा दी गई जानकारी को ही आगे बढ़ा रहा है। इसलिए वह न्यूटन से अधिक सभ्य तो है, किंतु संस्कृत नहीं। इस प्रकार हमें सभ्यता आग और सुई-धागे के गुमनाम आविष्कारकों तथा न्यूटन जैसे संस्कृत मानवों से उनके आविष्कारों या ज्ञान के द्वारा प्राप्त हुई है, जो निरंतर आधुनिक मानवों द्वारा आगे बढ़ रही है।


प्रश्न 6.
‘संस्कृति' पाठ का लेखक कल्याण की भावना को ही संस्कृति और सभ्यता का महत्वपूर्ण तत्व मानता है- स्पष्ट कीजिए।    2014

उत्तर:
संस्कृति से ही सभ्यता का जन्म होता है। संस्कृति मानव से किसी नई वस्तु का आविष्कार कराती है तथा मनुष्य में सब कुछ त्याग देने की भावना का भाव उत्पन्न करती है। यही संस्कृति, सभ्यता को उत्पन्न करती है। मानव संस्कृति एक अविभाज्य तत्व है। इसमें सदा ही लोक-कल्याण का भाव निहित होता है। महात्मा बुद्ध ने मानव-कल्याण के लिए अपना राज-पाठ छोड़कर शांति की प्रतिष्ठा की, ताकि तृषित जनता सुखी रह सके। कार्ल मार्क्स ने भी अपना सारा जीवन कष्टों में व्यतीत किया, ताकि मज़दूर वर्ग सुखी हो। अतः लोक कल्याण का भाव ही संस्कृति और सभ्यता का महत्त्वपूर्ण तत्व है, जिनके कारण ही भारतीय संस्कृति व सभ्यता अटूट है।

प्रश्न 7.
‘संस्कृति' पाठ के आधार पर दो उदाहरणों का उल्लेख कीजिए जिनके आधार पर लेखक ने संस्कृति का स्वरूप समझाया है।

उत्तर:
लेखक भदंत आनंद जी ‘संस्कृति के स्वरूप को समझाने के लिए निम्नलिखित उदाहरण देते हैं-
(1) जिस योग्यता, प्रवृत्ति अथवा प्रेरणा के बल पर आग व सुई-धागे का आविष्कार हुआ, वह ही व्यक्ति-विशेष की संस्कृति हैं। एक संस्कृत व्यक्ति ही नई चीज़ की खोज करता है। उसी व्यक्ति की बुद्धि तथा विवेक ही किसी नए तथ्य की खोजकर आविष्कार करता है।
(ii) संस्कृति ही मानव से किसी नई वस्तु का आविष्कार कराती है और मानव में लोक कल्याण की भावना व सर्वस्व त्याग की भावना भरती है। संस्कृति मन के भावों का परिष्कृत स्वरूप है और इसमें परोपकार व धैर्य का समावेश होता है। संस्कृति एक आंतरिक अनुभूति है।

प्रश्न 8.
संस्कृति के स्वरूप के संदर्भ में लेखक का दृष्टिकोण स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:
संस्कृति के स्वरुप के संदर्भ में लेखक भदंत आनंद जी का दृष्टिकोण यह है कि संस्कृति मानव से नई वस्तु का आविष्कार कराती है और मानव में लोक-कल्याण व सर्वस्व त्याग की भावना का उदय करती है। सभ्यता इसी संस्कृति का परिणाम है। संस्कृति मन के भावों का परिष्कृत रूप है। इसमें परोपकार व धैर्य का समावेश होता है। संस्कृति एक आंतरिक अनुभूति है और सभ्यता एक बाहरी प्रभाव है। संस्कृति एक अविभाज्य तत्व है। जिस व्यक्ति की बुद्धि अथवा विवेक ने किसी भी नए तथ्य का दर्शन किया, वह व्यक्ति ही वास्तविक संस्कृत व्यक्ति है। लेखक ने उदाहरण देते हुए कहा है कि जिस योग्यता, प्रवृत्ति के बल के आधार पर सुई-धागे व आग का आविष्कार हुआ, वह व्यक्ति विशेष की संस्कृति है।

प्रश्न 9.
आग के आविष्कार के पीछे मानव की कौन-सी प्रेरणा रही होगी? अपने शब्दों में स्पष्ट कीजिए।          2013

उत्तर:
आग मानव जीवन की एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण खोज रही। आग के आविष्कार ने मानव-जीवन और सभ्यता को बदलकर रख दिया। इसके बाद मानव भोजन पकाकर खाने लगा। माँस भूनकर खाया जाने लगा। आग से प्रकाश भी मानव को मिला और कड़कड़ाती शीत में भी आग के ताप ने राहत प्रदान की। आग के आविष्कार के पीछे मानव के पेट की ज्वाला ही प्रेरणा रही होगी। इसके साथ-साथ प्रकाश व ताप पाने की अधीरता ने भी आग के आविष्कार के लिए मानव को प्रेरित किया होगा। आग के आविष्कार ने मानव-जीवन को सरल और सुगम व सभ्य बनाया। इसलिए आग को ‘अग्निदेवता' का दर्जा दिया गया है।

प्रश्न 10.
संस्कृति पाठ के लेखक की दृष्टि में भूखे को भोजन देने वाले, श्रमिकों और पीड़ित मानवता के उद्धारक भी संस्कृत व्यक्ति हैं। इस बात से आप कहाँ तक सहमत हैं। स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:
संस्कृति पाठ के लेखक भदंत आनंद जी के अनुसार जो व्यक्ति भूखे को भोजन दें, श्रमिकों और पीड़ित मानवता के उद्धारक हों, वे ही वास्तव में संस्कृत व्यक्ति हैं क्योंकि उनके इस कार्य में मानव-कल्याण की भावना निहित है जो मानव के लिए उपयोगी वस्तुओं का आविष्कार कराती है। जिस आविष्कार या कार्य में मानव का कल्याण न छिपा हो या जो आत्मविनाश के साधनों को बढ़ावा दें, ऐसे व्यक्ति कभी संस्कृत नहीं हो सकते हैं। वे तो असंस्कृति का रूप धारण कर लेते हैं। संस्कृत व्यक्ति केवल अपने बारे में न सोचकर सदा व्यापक हित का ध्यान रखते हैं।

प्रश्न 11.
"संस्कृति' निबंध में मानव की ज्ञान पाने की इच्छा और भौतिक प्रेरणा को किन उदाहरणों द्वारा स्पष्ट किया गया है?

उत्तर:
पाठ 'संस्कृति' में ज्ञान पाने की इच्छा को लेखक ने न्यूटन के उदाहरण द्वारा स्पष्ट किया है कि न्यूटन एक संस्कृत व्यक्ति था, जिसने मानव कल्याण हेतु गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत की खोज की थी। आज का विद्यार्थी उससे अधिक ज्ञान प्राप्त कर सकता है, पर न्यूटन जितना संस्कृत नहीं कहला सकता। काल मार्क्स ने अपना सारा जीवन दुख और ग़रीबी में बिता दिया, ताकि मज़दूर सुखी हों। ऐसे व्यक्ति किसी भौतिक प्रेरणा से त्याग नहीं करते, वरन वे तो मानव-कल्याण हेतु कार्य करते हैं। अतः भौतिक प्रेरणा और ज्ञान पाने की इच्छा भी संस्कृति का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है।

प्रश्न 12.
‘संस्कृति' पाठ में संस्कृति का मूल तत्त्व किसे माना गया है? उसके अभाव में संस्कृति क्या कहलाती है? उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:
पाठ ‘संस्कृति' में संस्कृति का मूल तत्व उसमें छिपी मानव-कल्याण की भावना है। यदि संस्कृति से कल्याण की भावना हट जाएगी, तो वह असंस्कृति कहलाएगी। ऐसी असंस्कृति का परिणाम असभ्यता होगी, जबकि संस्कृति से सभ्यता का जन्म व विकास होता है। मानव संस्कृति एक अविभाज्य वस्तु है। इसका बँटवारा नहीं किया जा सकता। इसके मूल में छिपी मानव-कल्याण की भावना मनुष्य से त्याग और आविष्कार कराती है, जिससे जन्मी सभ्यता से हमारे रहन-सहन व विकास का पता चलता है। सभ्यता और संस्कृति दो अलग-अलग वस्तुएँ होने पर भी एक-दूसरे से अभिन्न रूप से जुड़ी हैं। इनके मूल में मानव-कल्याण ही निहित है।

प्रश्न 13.
‘संस्कृति' पाठ में आग एवं सुई-धागे के आविष्कार को एक बहुत बड़ी खोज माना गया है। इस खोज के प्रेरणा-स्रोत क्या रहे होंगे? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:
पाठ संस्कृति में सुई-धागे के आविष्कार को एक बहुत बड़ी खोज माना गया है। इस खोज के प्रेरणा-स्रोत निम्नलिखित हो सकते हैं-
(i) जब मानव को सरदी और गरमी लगती होगी, तो वह इनसे बचने के उपाय सोचता होगा और कपड़े को सिलने और पहनने की कल्पना और आवश्यकता ने उसे सुई धागे की खोज के लिए प्रेरित किया होगा।
(ii) आदि मानव पहले अपने शरीर को पेड़ों की छाल, जानवरों की खाल व पत्तों आदि से ढकता होगा। पर जब मानव ने सभ्यता की तरफ कदम बढ़ाए होंगे, तो उसने स्वयं के शरीर को सजाने के लिए, सिली हुई पोशाकों के लिए सुई-धागे के आविष्कार के विषय में सोचा होगा।

प्रश्न 14.
आग की खोज एक बहुत बड़ी खोज क्यों मानी जाती है? इस खोज के पीछे रही प्रेरणा के मुख्य स्रोत क्या रहे होंगे?   2012

उत्तर:
आग की खोज मानव द्वारा की गई एक बड़ी खोज मानी जाती है, क्योंकि इस खोज से उसके जीवन में अमूलचूल परिवर्तन आया और उसके जीवन जीने का ढंग बदल गया। अभी तक वह अग्नि के स्वरूप से अनभिज्ञ था। परंतु जैसे ही उसने अग्नि का आविष्कार किया, वैसे ही उसके द्वारा की गई यह खोज उसके लिए एक विशिष्ट प्रसन्नता का आधार बनी। भोजन पका कर खाना, सर्दी से बचना, अंधकार से सुरक्षा- ये कुछ कारण उसकी खोज की प्रेरणा के स्रोत रहे होंगे। इसी प्रेरणा के बल पर उसने आग का आविष्कार किया होगा।

प्रश्न 15.
वास्तविक अर्थों में ‘सभ्य और संस्कृत व्यक्ति में क्या अंतर है?

उत्तर:
अपनी बुद्धि के बल पर किसी नए तथ्य का दर्शन करने वाला व्यक्ति, वास्तविक अर्थों में संस्कृत व्यक्ति है। एक संस्कृत व्यक्ति किसी नवीन वस्तु की खोज करता है और वह वस्तु उसकी संतान को सहजता से अनायास ही प्राप्त हो जाती है। ऐसी स्थिति में संतान अपने पिता की तरह सभ्य अवश्य ही बन जाए, किंतु अपने पिता की तरह सुसंस्कृत नहीं बन सकती। उदाहरणतया न्यूटन संस्कृत मनुष्य थे क्योंकि उन्होंने अपनी बुद्धि के बल पर गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत की खोज की। आज के विद्यार्थी भौतिकी के इस सिद्धांत से न केवल परिचित हैं, अपितु इससे जुड़ी अनेक बातों का ज्ञान रखते हैं। ऐसे विद्यार्थी न्यूटन की अपेक्षा अधिक सभ्य चाहे ही कहे जाएँ, परंतु न्यूटन जितना संस्कृत उन्हें नहीं कहा जा सकता।



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  1. Very very thank u sir ☺️☺️

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