Important Questions Class 11 Hindi-Galta Loha Class 11 Hindi Extra Questions गलता लोहा | गलता लोहा (अति महत्त्वपूर्ण प्रश्न)
गलता लोहा (अति महत्त्वपूर्ण प्रश्न)
प्रश्न 1:
'गलता लोहा' कहानी का प्रतिपादय स्पष्ट करें।
उत्तर-
गलता लोहा कहानी में समाज के जातिगत विभाजन पर कई कोणों से टिप्पणी की गई है। यह कहानी लेखक के लेखन में अर्थ की गहराई को दर्शाती है। इस पूरी कहानी में लेखक की कोई मुखर टिप्पणी नहीं है। इसमें एक मेधावी, किंतु निर्धन ब्राहमण युवक मोहन किन परिस्थितियों के चलते उस मनोदशा तक पहुँचता है, जहाँ उसके लिए जातीय अभिमान बेमानी हो जाता है। सामाजिक विधि-निषेधों को ताक पर रखकर वह धनराम लोहार के आफर पर बैठता ही नहीं, उसके काम में भी अपनी कुशलता दिखाता है। मोहन का व्यक्तित्व जातिगत आधार पर निर्मित झूठे भाईचारे की जगह मेहनतकशों के सच्चे भाईचारे के प्रस्तावित करता प्रतीत होता है, मानो लोहा गलकर नया आकार ले रहा हो।
प्रश्न 2:
मोहन के पिता के जीवन-संघर्ष पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर-
मोहन के पिता वंशीधर तिवारी गाँव में पुरोहित का काम करते थे। पूजा-पाठ धार्मिक अनुष्ठान करना करवाना उनका पैतृक पेशा था। वे दूर दूर तक यह कार्य करने जाते थे। इस कार्य से परिवार का गुजारा मुश्किल से होता था। वे अपने होनहार बेटे को भी नहीं पढ़ा पाए। यजमान उनकी थोड़ी बहुत सहायता कर देते थे।
प्रश्न 3:
कहानी में चित्रित सामाजिक परिस्थितियाँ बताइए।
उत्तर-
कहानी में गाँव के परंपरागत समाज का चित्रण किया गया है। ब्राहमण टोले के लोग स्वयं को श्रेष्ठ समझते थे तथा वे शिल्पकार के टोले में उठते-बैठते नहीं थे। कामकाज के कारण शिल्पकारों के पास जाते थे, परंतु वहाँ बैठते नहीं थे। उनसे बैठने के लिए कहना भी उनकी मर्यादा के विरुद्ध समझा जाता था। मोहन कुछ वर्ष शहर में रहा तथा बेरोजगारी की चोट सही। गाँव में आकर वह इस व्यवस्था को चुनौती देता है।
प्रश्न 4:
वंशीधर को धनराम के शब्द क्यों कचोटते रहे?
उत्तर-
वंशीधर को अपने पुत्र से बड़ी आशाएँ थी। वे उसके अफसर बनकर आने के सपने देखते थे। एक दिन धनराम ने उनसे मोहन के बारे में पूछा तो उन्होंने घास का एक तिनका तोड़कर दाँत खोदते हुए बताया कि उसकी सक्रेटेरियट में नियुक्ति हो गई है। शीघ्र ही वह बड़े पद पर पहुँच जाएगा। धनराम ने उन्हें कहा कि मोहन लला बचपन से ही बड़े बुद्धमान थे। ये शब्द वंशीधर को कचोटते रहे, क्योंकि उन्हें मोहन की वास्तविक स्थिति का पता चल चुका था। लोगों से प्रशंसा सुनकर उन्हें दुःख होता था।
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