Class 11 Hindi Aroh Important Questions Chapter 4 - Bidai Sambhasan | विदाई संभाषण (अति महत्त्वपूर्ण प्रश्न)

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Class 11 Hindi Aroh Important Questions Chapter 4 - Bidai Sambhasan | विदाई संभाषण (अति महत्त्वपूर्ण प्रश्न)


विदाई संभाषण (अति महत्त्वपूर्ण प्रश्न)





प्रश्न 1:
‘विदाई-संभाषण' पाठ का प्रतिपादय स्पष्ट करें।

उत्तर-
विदाई संभाषण पाठ वायसराय कर्जन जो 1899-1904 व 1904-1905 तक दो बार वायसराय रहे, के शासन में भारतीयों की स्थिति का खुलासा करता है। यह अध्याय शिवशंभु के चिट्टे का अंश है। कर्जन के शासनकाल में विकास के बहुत कार्य हुए, नए नए आयोग बनाए गए, किंतु उन सबका उद्देश्य शासन में गोरों का वर्चस्व स्थापित करना तथा इस देश के संसाधनों का अंग्रेजों के हित में सर्वाधिक उपयोग करना था। कर्ज़न ने हर स्तर पर अंग्रेजों का वर्चस्व स्थापित करने की चेष्टा की। वह सरकारी निरंकुशता का पक्षधर था। लिहाजा प्रेस की स्वतंत्रता तक पर उसने प्रतिबंध लगा दिया। अंततः कौंसिल में मनपसंद अंग्रेज सदस्य नियुक्त करवाने के मुद्दे पर उसे देश विदेश दोनों जगहों पर नीचा देखना पड़ा। क्षुब्ध होकर उसने इस्तीफा दे दिया और वापस इंग्लैंड चला गया। लेखक ने भारतीयों की बेबसी, दुख एवं लाचारी को व्यंग्यात्मक ढंग से लॉर्ड कर्जन की लाचारी से जोड़ने की कोशिश की है। साथ ही यह बताने की कोशिश की है कि शासन के आततायी रूप से हर किसी को कष्ट होता है चाहे वह सामान्य जनता हो या फिर लॉर्ड कर्जन जैसा वायसराय। यह निबंध भी उस समय लिखा गया है जब प्रेस पर पाबंदी का दौर चल रहा था। ऐसी स्थिति में विनोदप्रियता, चुलबुलापन, संजीदगी, नवीन भाषा प्रयोग एवं रवानगी के साथ यह एक साहसिक गद्य का नमूना भी है।

प्रश्न 2.
कैसर, ज़ार तथा नादिरशाह पर टिप्पणियाँ लिखिए।

उत्तर-
कैसर-
यह शब्द रोमन तानाशाह जूलियस सीजर के नाम से बना है। यह शब्द तानाशाह जर्मन शासकों के लिए प्रयोग होता था।
जार-
यह भी जूलियस सीजर से बना शब्द है जो विशेष रूप से रूस के तानाशाह शासकों (16वीं सदी से 1917 तक) के लिए प्रयुक्त होता था। इस शब्द का पहली बार बुल्गेरियाई शासक (913 में) के लिए प्रयोग हुआ था।
नादिरशाह -
यह 1736 से 1747 तक ईरान का शाह रहा। तानाशाही स्वरूप के कारण 'नेपोलियन ऑफ परशिया' के नाम से भी जाना जाता था। पानीपत के तीसरे युद्ध में अहमदशाह अब्दाली को नादिरशाह ने भी आक्रमण के लिए भेजा था।

प्रश्न 3:
राजकुमार सुल्तान ने नरवरगढ़ से किन शब्दों में विदा ली थी?

उत्तर-
राजकुमार सुल्तान ने नरवरगढ़ से विदा लेते समय कहा-प्यारे नरवरगढ़ मेरा प्रणाम स्वीकार कर। आज मैं तुझसे जुदा होता हैं। तू मेरा अन्नदाता है। अपनी विपद के दिन मैंने तुझमें काटे हैं। तेरे ऋण का बदला यह गरीब सिपाही नहीं दे सकता। भाई नरवरगढ़ यदि मैंने जानबूझकर एक दिन भी अपनी सेवा में चूक की हो, यहाँ की प्रजा की शुभ चिंता न की हो, यहाँ की स्त्रियों को माता और बहन की दृष्टि से न देखा हो तो मेरा प्रणाम न ले, नहीं तो प्रसन्न होकर एक बार मेरा प्रणाम ले और मुझे जाने की आज्ञा दे।'

प्रश्न 4: ‘विदाई-संभाषण' तत्कालीन साहसिक लेखन का नमूना है। सिद्ध कीजिए।

उत्तर-
विदाई संभाषण व्यंग्यात्मक, विनोदपूर्ण, चुलबुला, ताजगीवाला गद्य हैं। यह गद्य आततायी को पीड़ा की चुभन का अहसास कराता है। इससे यह नहीं लगता कि कर्जन ने प्रेस पर पाबंदी लगाई थी। इसमें इतने व्यंग्य प्रहार हैं कि कठोर-से-कठोर शासक भी घायल हुए बिना नहीं रह सकता। इसे साहसिक लेखन के साथ साथ आदर्श भी कहा जा सकता है।

प्रश्न 5:
कर्जन के कौन कौन से कार्य क्रूरता की सीमा में आते हैं?

उत्तर-
कर्जन के निम्नलिखित कार्य क्रूरता की सीमा में आते हैं।
(क) प्रेस पर प्रतिबंध।
(ख) करोड़ों लोगों की विनती के बावजूद बंगाल का विभाजन।
(ग) देश के संसाधनों का अंग्रेजी हित में प्रयोग।
(घ) अंग्रेजों का वर्चस्व स्थापित करना।

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