साये में धूप (पठित पद्यांश)
1. निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
कहाँ तो तय था चिरागाँ हरेक घर के लिए
कहाँ चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिए।
यहाँ दरखतों के साय में धूप लगती है।
चलो यहाँ से चल और उम्र भर के लिए।
प्रश्न
1. आजादी के बाद क्या तय हुआ था?
2. आज की स्थिति के विषय में कवि क्या बताना चाहता है?
3 कवि के पलायनवादी बनने का कारण बताइए।
4. कवि ने किरा व्यवस्था पर कटाक्ष किया है? इसका जनसामान्य पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर =
1. आजादी के बाद नेताओं ने जनता को यह आश्वासन दिया था कि हर घर में सुख-सुविधाएँ उपलब्ध होंगी।
2. आज स्थिति बेहद निराशाजनक है। प्रत्येक घर की बात छोड़िए, पूरे शहर में कहीं भी जनसुविधाएँ नहीं हैं, लोगों का निर्वाह मुश्किल से होता है।
3 कवि कहता है कि प्रशासन की अनेक संस्थाएँ लोगों का कल्याण करने की बजाय उनका शोषण कर रही हैं। चारों तरफ भ्रष्टाचार फैला हुआ है। इस कारण वह इस भ्रष्ट तंत्र से दूर जाना चाहता है।
4. कवि ने नेताओं की झूठी घोषणाओं तथा भ्रष्ट शासन पर करारा व्यंग्य किया है। झूठी घोषणाओं तथा भ्रष्टाचार के कारण आम व्यक्ति में घोर निराशा फैली हुई है।
2. निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
न हो कमीज़ तो पाँवों से पेट ढक लगे,
ये लोग कितने मुनासिब हैं इस सफ़र के लिए।
खुदा नहीं न सही, आदमी का ख्वाब सही
कोई हसीन नजारा तो हैं नजर के लिए।
प्रश्न
1, पाँवों से पेट ढंकने का अर्थ स्पष्ट करें।
2. पहले शेर के अनुसार सरकार जिनसे खुश रहती है और क्यों?
3. खुदा के बारे में कवि क्या व्यंग्य करता है। इसका आम आदमी के जीवन पर क्या असर होता है?
4. भारतीयों का भगवान के साथ कैसा संबंध होता है।
उत्तर =
1. इसका अर्थ यह है कि गरीबी व शोषण के कारण लोगों में विरोध करने की क्षमता समाप्त हो चुकी है। वे न्यूनतम वस्तुएँ उपलब्ध न होने पर भी अपना गुजारा कर लेते हैं।
2. सरकार ऐसे लोगों से खुश रहती है जो उसके कार्यों का विरोध न करें। ऐसे लोगों के कारण ही सरकार निरंकुश हो मनमाने फैसले लेती है जिसमें उसकी भलाई तथा जनता का शोषण निहित रहता है।
3, वादा के बारे में कवि व्यंग्य करता है कि खुदा का अस्तित्व नहीं है। यह मात्र कल्पना है, आम आदमी ईश्वर के बारे में लुभावनी कल्पना करता है. इसी कल्पना के सहारे उसका जीवन कट जाता है।
4. भारतीय लोग ईश्वर के अस्तित्व में पूरा विश्वास नहीं रखते परंतु इसके बहाने उन्हें सुंदर दृश्य देखने को मिलते हैं। इनकी कल्पना करके वे अपना जीवन जीते हैं।
3. निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
वे मुतमइन है कि पत्थर पिघल नहीं सकता
मैं बक़रार हूँ आवाज में असर के लिए।
तेरा निजाम है सिल दे जुबान शयर की
ये एहतियात जरूरी हैं इस बहर के लिए।
तिएँ तो अपने बगीचे में गुलमोहर के तले
मरें तो गैर की गलियों में गुलमोहर के लिए।
प्रश्न
1. वे कौन हैं तथा उनकी सोच क्या है?
2. कवि किसके लिए बेकरार है।
3. शासक किस कोशिश में रहता है?
4. शायर की हसरत क्या है।
उत्तर =
1. वे जाम व्यक्ति हैं। उनकी सोच हैं कि भ्रष्ट शासकों के कारण समस्याएँ कभी नहीं समाप्त होगी।
2, कवि का मानना है कि आवाज में प्रभाव हो तो पत्थर भी पिघल जाते हैं। यह क्रांति का समर्थक है।
3. शासक इस कोशिश में रहते हैं कि उनके खिलाफ विद्रोह की आवाज को दबा दिया जाए।
4, शायर की हरारत है कि वह बगीचे में सदैव गुलमोहर के नीचे रहे तथा मरते समय गुलमोहर के लिए दूसरों की गलियों में गरे अर्थात् वह मानवीय मूल्यों को अपनाए रखें तथा उनकी रक्षा के लिए अपना बलिदान दे दे।
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