NCERT Solutions for Class 12 Hindi Aroh Chapter 17 शिरीष के फूल | शिरीष के फूल (अभ्यास-प्रश्न)

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NCERT Solutions for Class 12 Hindi Aroh Chapter 17 शिरीष के फूल | शिरीष के फूल (अभ्यास-प्रश्न) 


शिरीष के फूल (अभ्यास-प्रश्न)





प्रश्न 1. लेखक ने शिरीष को कालजयी अवधूत (संन्यासी) की तरह क्यों माना है?

अवधूत सुख-दुख की परवाह न करते हुए हमेशा हर पल हर हाल में प्रसन्न रहता है। वह भीषण कठिनाई और कष्टों में भी जीवन की एकरूपता बनाए रखता है। शिरीष के वृक्ष भी उसी कालजयी अवधूत के समान है। आसपास फैली हुई गर्मी, ताप और लू में भी वह हमेशा पुष्पित और सरस रहता है। उसका पूरा शरीर फूलों से लदा हुआ बड़ा सुंदर दिखता है। इसीलिए लेखक ने शिरीष को अवधूत कहा है। शिरीष भी मानो अवधूत के समान मृत्यु और समय पर विजय प्राप्त करके लहराता रहता है।

प्रश्न 2. हृदय की कोमलता को बचाने के लिए व्यवहार की कठोरता भी कभी-कभी जरूरी हो जाती है- प्रस्तुत पाठ के आधार पर स्पष्ट करें।

हृदय की कोमलता को बचाने के लिए कभी-कभी व्यवहार में कठोरता लाना आवश्यक हो जाता है। इस संदर्भ में नारियल का उदाहरण ले सकते हैं जो बाहर से कठोर होता है और अंदर से कोमल। शिरीष का फूल भी अपनी सुरक्षा को बनाए रखने के लिए बाहर से कठोर हो जाता है। यद्यपि परवर्ती कवियों ने शिरीष को देखकर यही कहा था कि इसका तो सब कुछ कोमल है। परंतु इसके फूल बड़े मजबूत होते हैं। नए फूल, पत्ते आने पर अपने स्थान को नहीं छोड़ते। अतः अंदर की कोमलता को बनाए रखने के लिए कठोर व्यवहार भी जरूरी है।

प्रश्न 3. द्विवेदी जी ने शिरीष के माध्यम से कोलाहल व संघर्ष से भरी जीवन स्थितियों में अविचल रहकर जीजीविषु बने रहने की सीख दी है। स्पष्ट करें। 

निश्चय से आज का जीवन अनेक कठनाइयों से घिरा हुआ है। कदम-कदम पर कोलाहल व संघर्ष से घिरा हुआ हैं। लेकिन द्विवेदी जी ने हमें इन स्थितियों से अविचलित रहकर जिजीविशु बने रहने की शिक्षा दी है। शिरीष का फूल भयंकर गर्मी और लू में अनासक्ति योगी के समान विचलित खड़ा रहता है। और विषम परिस्थितियों में भी वे अपने जीवन जीने की इच्छा नहीं छोड़ता। आज हमारे देश में चारों ओर भ्रष्टाचार, अत्याचार फैला हुआ है। यह सब देखकर हमें निराश नहीं होना चाहिए बल्कि हमें स्थिर और शांत रहकर जीवन के संघर्षों का सामना करना चाहिए।

प्रश्न 4. "हाय वह अवधूत आज कहाँ है।" ऐसा कहकर लेखक ने आत्मबल पर देहबल के वर्चस्व की वर्तमान सभ्यता के संकट की ओर संकेत किया है।  कैसे? 

अवधूत आत्मबल का प्रतीक है। वे आत्मा की साधना में लीन रहते हैं। लेखक ने कबीर, कालिदास महात्मा गाँधी को अवधूत कहा है। परंतु आज के बड़े-बड़े संन्यासी देहबल, धनबल, मायाबल करने में लगे हुए हैं। लेखक का यह कहना सर्वथा उचित है कि आज भारत में सच्चे आत्मबल वाले संन्यासी नहीं रहे। लेखक यह भी स्पष्ट करना चाहता है कि आत्मबल की अपेक्षा देहबल को महत्त्व देने के कारण ही हमारे सामने सभ्यता का अंत हो चुका है।

प्रश्न 5. कवि(साहित्यकार) के लिए अनासक्त योगी की स्थिर प्रज्ञता और विदग्ध प्रेमी का हृदय एक आवश्यक है। ऐसा विचार कर लेखक ने साहित्य-कर्म के लिए बहुत ऊँचा मानदंड निर्धारित किया है। विचार पूर्वक समझाएँ।

कवि अथवा साहित्यकार समाज में सर्वोपरि स्थान रखता है। उससे ऊँचे आदर्शों की अपेक्षा की जाती है। एक सच्चा कवि अनासक्त योगी की स्थिर प्रज्ञता होने के कारण कठोर व शुष्क नीतिज्ञ बन जाता है। परंतु कवि के पास विदग्ध प्रेमी का हृदय भी होना चाहिए जिससे वह नियम व मानदण्डों को महत्त्व न दें। साहित्यकारों में दोनों विपरीत गुणों का होना आवश्यक है। तुलसीदास, कालिदास आदि महान कवि थे। उन्होंने जहाँ एक और मर्यादाओं का समुचित पालन किया, वहीं दूसरी ओर वे मधुरता के रस में डूबे रहे। जो साहित्यकार इन दोनों का निर्वाह कर सकता है। वहीं साहित्यकार हो सकता है।

प्रश्न 6. सर्वग्रासी काल की मार से बचते हुए वही दीर्घजीवी हो सकता है जिसने अपने व्यवहार में जड़ता छोड़कर नित बदल रही स्थितियों में निरंतर अपनी गतिशीलता बनाए रखी है। पाठ के आधार पर स्पष्ट करें।

काल सर्वग्रासी और सर्वनाशी है वह सबको अपना ग्रास बना लेता है। काल की मार से बचते हुए दीर्घजीवी वही हो सकता है जो अपने व्यवहार में समय के साथ परिवर्तन लाता है। आज समय और समाज बदल चुका है। शिरीष के वृक्ष का उदाहरण इसी तथ्य को प्रमाणित करता है। वह अग्नि, लू तथा तपन के साम्राज्य में भी स्वयं को परिस्थितियों के अनुसार ढाल लेता है और प्रसन्न होकर फलता फूलता रहता है। इसी प्रकार जो व्यक्ति अपने व्यवहार में जड़ता को त्यागकर स्थितियों के अनुसार गतिशील बन जाता है वही दीर्घजीवी होकर जीवन का रस भोग सकता है।

प्रश्न 7. आशय स्पष्ट कीजिए क) दुरंत प्राणधारा और सर्वव्यापक कालाग्नि का संघर्ष निरंतर चल रहा है। मूर्ख समझते हैं कि जहाँ बने हैं, वहीं देर तक बने रहे तो काल देवता की आँख बचा पाएँगे। भोले हैं वे। हिलते-डुलते रहो,  स्थान बदलते रहो, आगे की ओर मुँह किए रहो तो कोड़े की मार से बच भी सकते हो। जमे कि मरे।

जीवनशक्ति और काल रूपी अग्नि का निरंतर संघर्ष चल रहा है। यह संघर्ष कभी समाप्त नहीं होता। जो लोग अज्ञानी हैं वे समझते हैं कि जहाँ पर बने हैं वहाँ देर तक बने रहेंगे तो काल देवता की मार से बच जाएँगे, परंतु उनकी यह सोच गलत है। यदि यमराज की मार से बचना है तो मनुष्य को हिलते डुलते रहना चाहिए, स्थान बदलते रहना चाहिए। ऐसा करने से काल की मार से बचा जा सकता है।

ख) जो कवि अनासक्त नहीं रह सका, जो फक्कड़ नहीं बन सका, जो किए-कराए का लेखा-जोखा मिलाने में उलझ गया, वह भी क्या कवि है? मैं कहता हूँ कि कवि बनना है तो मेरे दोस्तों, तो फक्कड़ बनो।

जो कवि अपने कविकर्म में लाभ-हानि सुख-दुख यश-अपयश की परवाह न करके जीवन यापन करता है। वही सच्चा कवि कहलाता है। इसके विपरीत जो कवि अनासक्त नहीं रह सकता, मस्त मौला नहीं बन सकता, बल्कि जो अपनी कविता के परिणाम, लाभ हानि के चक्कर में फँस जाता है; वह सच्चा कवि नहीं कहा जा सकता है। लेखक का विचार है कि सच्चा कवि वही है जो मस्तमौला है। जिसे न तो सुख-दुख, न लाभ-हानि की चिंता है।

ग) फल हो या पेड़ वह अपने-आप में समाप्त नहीं है। वह किसी अन्य वस्तु को दिखाने के लिए उठी हुई अंगुली है। वह इशारा है।

कोई फल का पेड़ अपने आप में समाप्त नहीं है बल्कि वह तो एक ऐसी अँगुली है जो किसी अन्य वस्तु को दिखाने के लिए इशारा कर रही है। वह पेड़, फल हमें यह बताने का प्रयास करता है कि उसको उत्पन्न करने वाली या बनाने वाली कोई और शक्ति है। हमें उसे जानने का प्रयास करना चाहिए।


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