आत्मपरिचय
काव्य सौंदर्य बोध संबंधी प्रश्न
पूरी कविता से काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य के कुछ कॉमन पॉइंट्स:
● वियोग श्रृंगार रस का प्रयोग हुआ है।
● सहज, सरल, प्रवाहमयी तथा संगीतात्मक भाषा का प्रयोग हुआ है।
● इस गीत पर उमर खय्याम की रुबाइयाँ का प्रभाव देखा जा सकता है।
● गीत की भाषा में विषय के अनुसार मस्ती, कोमलता, मादकता और मधुरता विद्यमान है।
● शब्द-चयन सर्वथा उचित एवं भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
निम्नलिखित काव्यांशों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
1.
मैं जग-जीवन का भार लिए फिरता हैं।
कीर भी जीवन में प्यार लिए फिरता हैं।
कर दिया किसी ने झंकृत जिनको छूकर
मैं साँसों के दो तार लिए फिरता हैं।
मैं स्नेह सुा का पान किया करता हूँ।
मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ।
जग पूछ रहा उनको, जो जग की गाते
मैं अपने मन का गान किया करता हूँ।
प्रश्न
(क) 'फिर भी और किसी ने का प्रयोग वैशिष्ट बताइए।
(ख) काव्याश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिएए ।
(ग) काव्यांश की अलंकार योजना बताइए।
उत्तर
(क) 'फिर भी पद का अर्थ यह है कि संसार में बहुत परेशानियों हैं। किसी ने पद का अर्थ है-पत्नी, प्रियजन या गुरु।
(ख) कवि अपने प्रेम को सार्वजनिक तौर पर स्वीकार करता है। वह कष्टों के बावजूद संसार को प्रेम बाँटता है। वह सांसारिक नियमों की परवाह नहीं करता। वह संसार की स्वार्थ प्रवृत्ति पर कटाक्ष करता है।
(ग) कवि ने 'जग-जीवन, साँसों के तार, स्नेह-सुरा में रूपक अलंकार का प्रयोग किया है। किया करता' तथा 'जो जग में अनुप्रास अलंकार है।
2.
में जला हृदय में अग्नि, दहा करता हूँ।
सुख दुख दोनों में मग्न रहा करता हैं,
जय भव सागर तरने की नाव बनाए,
मैं भव-मौज पर मस्त बहा करता हूँ।
प्रश्न
(क) काव्याशा का भाव संदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ख) रस एव अलकार सबधी सौंद्वय बताइए।
(ग) प्रयुक्त भाषा-शिल्य पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर =
(क) इस काव्यांश में कवि ने प्रेम की दीवानगी को व्यक्त किया है। वह हर स्थिति में मस्त रहने की बात कहता है। वह संसार के कष्ट में ही मस्ती-भरा जीवन जीता है।
(ख)
• कवि ने श्रृंगार रस को उन्मुक्त अभिव्यक्ति की है।
• 'भव-सागर व 'भव-मौजों में रूपक अलंकार है।
• 'नाव' व 'अग्नि में रूपकातिशयोक्ति अलंकार है।
• दोनों में मग्न रहा करता हूँ में अनुप्रास अलंकार है।
(ग)
• भावानुकूल, सहज एवं सरल खड़ी बोली में सजीव अभिव्यक्ति है।
• भाषा में तत्सम शब्दावली की प्रधानता है एवं प्रवाहमयता है।
• गेयता का गुण विद्यमान है।
3.
मैं और और जग और कहाँ का नाता,
में बना-बना कितने जग रोज मिटाता,
जग जिस पृथ्वी पर जोड़ा करता वैभव,
मैं प्रति पग से उस पृथ्वी को ठुकराता'
मैं निज रोदन में राग लिए फिरता हूँ
शीतल वाणी में आग लिए फिरता हैं।
हों जिस पर भूपों के प्रासाद निछावर
मैं वह खंडहर का भाग लिए फिरता हैं।
मैं और और जग और कहाँ का नाता,
में बना-बना कितने जग रोज मिटाता,
जग जिस पृथ्वी पर जोड़ा करता वैभव,
मैं प्रति पग से उस पृथ्वी को ठुकराता'
मैं निज रोदन में राग लिए फिरता हूँ
शीतल वाणी में आग लिए फिरता हैं।
हों जिस पर भूपों के प्रासाद निछावर
मैं वह खंडहर का भाग लिए फिरता हैं।
प्रश्न
(क) 'और जग और का भाव स्पष्ट कीजिए।
(ख) 'शीतल वाणी में आग लिए फिरता हूँ का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कजिए।
(ग) काव्यांश का शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर -
(क) 'और जग और' का अर्थ यह है कि सिार कवि की भावनाओं को नहीं समझता। कवि प्रेग की दुनिया में खोया रहता है, जबकि संसार संग्रहवृत्ति में विश्वास रखता है। अतः दोनों में कोई संबंध नहीं है, एकरूपता नहीं है।
(ख) इरा पंक्ति का भाव यह है कि कवि अपनी शीतल और मधुर आवाज में भी जोश, आत्मविश्वास, साहरा, दृढ़ता जैसी भावनाएँ बनाए रखता है ताकि वह अन्य लोगों को भी जाग्रत कर सके।
(ग)
• कवि ने श्रृंगार रस की सुंदर अभिव्यक्ति की है।
• जग जिस वैभव में विशेषण विपर्यय हैं।
• 'कहाँ का नाता' में प्रश्न अलंकार है तथा 'बना-बना' में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
• अनुप्रास अलंकार की छटा है-कहाँ का, जग जिस, ‘पृथ्वी पर', 'प्रति पग।
• और शब्द की आवृत्ति प्रभावी है। यहाँ यमक अलंकार है जिसके अर्थ हैं-भिन्न, व (योजक) ।
• लिए फिरता हूँ की आवृत्ति से मस्ती एवं लयात्मकता आई है।
• खड़ी बोली का प्रभावी प्रयोग है।
(ख) दिन जल्दी जल्दी ढलता है
पूरी कविता से काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य के कुछ कॉमन पॉइंट्स:
● 'जल्दी-जल्दी' में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार का प्रयोग हुआ है।
● सहज, सरल, साहित्यिक तथा प्रवाहमयी हिंदी भाषा का सफल प्रयोग हुआ है।
● शब्द-चयन सर्वथा उचित एवं भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
● कोमलकांत पदावली के कारण इस गीत में संगीतात्मकता का समावेश हुआ है।
● प्रसाद गुण तथा वात्सल्य भाव का सुंदर परिपाक हुआ है।
दिन जल्दी-जल्दी ढलता हैं।
हो जाए न पथ में रात कहीं
मंजिल भी तो है दूर नहीं
यह सोच थका दिन का पथ भी जल्दी-जल्दी चलता हैं।
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है।
बच्चे प्रत्याशा में होंगे,
नीडों से झाँक रहे होंगे
यह ध्यान परों में चिड़ियों के भरता कितनी चचलता है।
दिन जल्दी-जल्दी ढलता हैं।
प्रश्न
(क) काव्यांश की भाषागत दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
(ख) भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
बच्चे प्रत्याशा में होंगे,
नीड़ों से झाँक रहे होंगे।
(ग) 'पथ', 'मंजिल' और रात' शब्द किसके प्रतीक हैं?
उत्तर -
(क) इस काव्यांश की भाषा सरल, संगीतमयी व प्रवाहमयी है। इसमें दृश्य बिंध है।जल्दी जल्दी में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
(ख) इन पंक्तियों में पक्षियों के वात्सल्य भाव को दर्शाया गया है। बच्चे माँ बाप के आने की प्रतीक्षा में धौंसलों से झाँकने लगते हैं। वे माँ की ममता के लिए व्यग्न हैं।
(ग) पथ', 'मंजिल' और 'रात क्रमश 'मानव-जीवन के संघर्ष, परमात्मा से मिलने की जगह तथा मृत्यु के प्रतीक हैं।
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