बादल राग (काव्य-सौंदर्य /शिल्प-सौंदर्य)

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बादल राग

काव्य सौंदर्य बोध संबंधी प्रश्न






पूरी कविता से काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य के कुछ कॉमन पॉइंट्स: 


● कविता का मूल स्वर प्रकृतिवादी है।
● छायावादी कविता होने के कारण इस कविता में लाक्षणिक पदावली का अत्यधिक प्रयोग है।
● संस्कृतनिष्ठ साहित्यिक हिंदी भाषा का सफल प्रयोग किया गया है।
● शब्द-चयन उचित एवं भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
● मुक्तक छंद का सफल प्रयोग किया गया है।
● इस पद में मानवीकरण अलंकार का सफल प्रयोग हुआ है।




निम्नलिखित काव्यांशों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-


1.
रुद्ध कोष हैक्षुब्ध तोष
अंगना-अग से लिपट भी
आतंक अंक पर काँप रहे हैं।
धनी, वज्र गर्जन से बादल
त्रस्त नयन-मुख हाँप रहे हैं।
जीर्ण बाहु है शीर्ण शरीर,
तुझे बुलाता कृषक अधीर,
विप्लव के वीर'
चुरा लिया हैं उसका सार,
धनी, वज़-गजन से बादल
असत-नयन मुख ढाँप रहे हैं।
ऐ जीवन के पारावार ! 

प्रश्न
(क) धनिकों और कृषकों के लिए प्रयुक्त विशेषणों का सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ख) विल्पव के वीर' शब्द के सौंदर्य को उद्घाटित कीजिए।
(ग) इस काव्यांस को भाषिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।

उत्तर-
(क) कवि ने धनिकों के लिए रुद्र, आतंक, त्रस्त आदि विशेषणों का प्रयोग किया है। ये उनकी घबराहट की दशा को बताते हैं। कृषक के लिए जीर्ण, शीर्ण, अधीर आदि प्रयुक्त विशेषणों से किसानों की दीन-हीन दशा का चित्रण होता है।

(ख) 'विप्लव के वीर' शब्द का प्रयोग बादल के लिए किया गया है। बादल को क्रांति का अग्रणी माना गया है। बादल हर तरफ विनाश कर सकता है। इस विनाश के उपरांत भी बादल का अस्तित्व ज्यों-का-त्यों रह जाता है।

(ग) इरा काव्यांश में कवि ने विशेषणों का सुंदर प्रयोग किया है। आतंक, वज्र जीर्ण शीर्ण आदि विशेषण मन स्थिति को सटीक रूप से व्यक्त करते हैं। तत्सम शब्दावली का सुंदर प्रयोग है। खड़ी बोली में सहज अभिव्यक्ति है। संबोधन शैली भी है। अनुप्रास अलंकार की छटा है।

2.
अशान पात से शापित उन्नत शत शत वीर,
क्षत-विक्षत हत अचल शरीर,
गगन-स्पर्शी स्पर्धा घर,
हँसते हैं छोटे पैध लघुभार
शस्य अपार,
हिल हिल
खिलखिल,
हाथ हिलाते
तुझे बुलाते
विप्लब रन से छोटे ही हैं शोभा पाते।

प्रश्न
(क) आशय स्पष्ट कीजिए- विप्लव रव से छोटे ही है शोभा पाते ।
(ख) यवत के लिए प्रयुक्त विशेषणों का सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ग) वज्रपात करने वाले भीषण बादलों का छोटे पौधे कैसे आहवान करते हैं और क्यों ?

उत्तर-
(क) इसका आशय यह है कि क्रांति से शोषक वर्ग हिल जाता है। उसे इससे अपना विनाश दिखाई देता है। किसान मजदूर वर्ग अर्थात शोषित वर्ग क्रांति से प्रसन्न होता है। क्योंकि उन्हें इससे शोषण से मुक्ति तथा खोया अधिकार मिलता है।

(ख) पर्वत के लिए निम्नलिखित शेणों का प्रयोग किया गया है
• अशनि-पात से शापित- यह विशेषण उन पर्वतों के लिए हैं जो बिजली गिरने से भयभीत हैं। झांति से बड़े लोग ही भयभीत होते हैं।
• इस विशेषण का प्रयोग संपूर्ण शोषक वर्ग के लिए किया गया है।
• क्षत-विक्षत हत अचल शरीर- यह विशेषण क्रांति से घायल, भयभीत व सुन्न होकर बिखरे हुए शोषकों के लिए प्रयुक्त हुआ है।

(ग) वज्रपात करने वाले भीषण बादलों का आहवान छोटे पौधे हिल-हिलकर खिल-खिलकर तथा हाथ हिलाकर करते हैं क्योंकि क्रांति से ही उन्हें न्याय मिलने की आशा होती है। उन्हें ही सर्वाधिक लाभ पहुँचता है।

3.
अट्टालिका नहीं है ?
आंतक-भवन
सदा पंक पर ही होता
जल-विप्लव-प्लावन,
क्षुद्र प्रफुल्ल जलजे से
सदा छलकता नीर,
रोग शोक में भी हँसता है।
शैशव का सुकुमार शरीर। 

प्रश्न
(क) काव्यांश की दो भाषिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
(ख) काव्यांश की अलकार-योजना पर प्रकाश डालिए।
(ग) काव्यांश की भाव-सौंदर्य लोखिए।

उत्तर-
(क) काव्य की दो भाषिक विशेषताएँ
(I) तत्सम शब्दावली की बहुलतायुक्त खड़ी बोली।
(II) भाषा में प्रतीकात्मकता है।

(ख) शोक में भी हँसता है-विरोधाभास अलंकार।
सदा पंक पर ही होता- अनुप्रास अलंकार
शैशव का सुकुमार शरीर -

(ग) कवि के अनुसार धनियों के आवारा शोषण के केंद्र हैं। यहाँ सदा शोषण के नए-नए तरीके ढूँढे जाते हैं। लेकिन शोषण की चरम सीमा के बाद होने वाली क्रांति शोषण का अंत कर देती है। साथ ही शोषित वर्ग के बच्चे भी संघर्षशील तथा जुझारू होते हैं। वे रोग तथा शोक में भी प्रसन्नचित्त रहते हैं।

4.
तिरती हैं समीर-सागर पर
अस्थिर सुख पर दुख की छाया-
जग के दग्ध हृदय पर
निदय विप्लव की प्लावित माया
यह तेरी रण-तरी
भरी आकाक्षा से
घन, भरी गजन से सजग सुप्त अकुर।

प्रश्न
(क) काव्याशा का भाव-सौंदर्य लिखिए।
(ख) प्रयुक्त अलकार का नाम लिखिए और उसका सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ग) काव्यांश की भाषा पर टिपण्णी कीजिए।

उत्तर-
(क) इस काव्यांश में कवि ने बादल को क्रांति का प्रतीक माना है। वह कहता है कि जीवन के सुखों पर दुखों की अदृश्य क्षति ही है। बालक शो सुलेह पृथ के पापं में बिजअंकुल हक आक्शक को निहारते हैं।

(ख) समीर सागर, 'विप्लव के बादल', 'दुख की छाया में रूपक अलंकार, फिर-फिर में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार तथा सजग सुप्त' में अनुप्रास अलंकार हैं। इन अलंकारों के प्रयोग से भाषिक सौंदर्य बढ़ गया है।

(ग) काव्यांश में प्रयुक्त भाषा संस्कृत शब्दावलीयुक्त खड़ी बोली है जिसमें दृश्य बिंब साकार हो उठा है। मेरी गर्जन' में बादलों की गर्जना से श्रव्य बिंब उपस्थित है।




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