कवितावली, लक्ष्मण-मूर्च्छा और राम का विलाप (काव्य-सौंदर्य /शिल्प-सौंदर्य)

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कवितावली, लक्ष्मण-मूर्च्छा और राम का विलाप

काव्य सौंदर्य बोध संबंधी प्रश्न






पूरी कविता से काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य के कुछ कॉमन पॉइंट्स: 


●यहाँ कवि ने अपने युग की यथार्थता का प्रभावशाली वर्णन किया है।
● यहाँ सहज एवं सरल साहित्यिक ब्रज-अवधी भाषा का सफल प्रयोग हुआ है।
● शब्द-चयन उचित एवं भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
● कवित्त छंद का प्रयोग है।




निम्नलिखित काव्यशों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-



किसबी, किसान कुल बनिक, भिखारी भाट,
चाकर, चपल नट, चोर, चार, चेटकी।
पेटको पढ़त, गुन गढ़त, चढ़त गिरी,
अटत गहन-गन अन अखेटकी।।
ऊँचे-नीचे करम, धरम-अधरम करि,
पेट ही को पचत, बचत बेटा-बेंतेकी।
तुलसी' बुझाह एक राम घनस्याम ही ते
आगि बढ़वागिते बड़ी हैं आगि पेटको ।।

प्रश्न
(क) इन काव्य-शक्तियों का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए?
(ख) पेट की आग को कैसे शांति किया जा कीजिए।
(ग) काव्यांश के भाषिक सौंदर्य पर टिप्पणी कीजिए।

उत्तर-
(क) इस समाज में जितने भी प्रकार के काम हैं, वे सभी पेट की आग से वशीभूत होकर किए जाते हैं। पेट की अविवेक नष्ट करने वाली है। ईश्वर की कृपा के अतिरिक्त कोई इस पर नियंत्रण नहीं पा सकता।

(ख) पेट की आग भगवान राम की कृपा के बिना नहीं बुझ सकती। अर्थात राम की कृपा ही दह जल है, जिससे इस भाग का शमन हों सकता है।

ग)
•पेट की आग बुझाने के लिए मनुष्य द्वारा किए जाने वाले कार्यों का प्रभावपूर्ण वर्णन है।
• काव्यांश कवित्त छंद में रचित है।
• ब्रजभाषा का माधुर्य घनीभूत है।
• 'राम घनश्याम' में रूपक अलंकार है। किसी किसान-कुल, चाकर चपल बेचत बेटा-बेटकी आदि में अनुप्रास अलंकार कीबछटा दर्शनीय है।

2.
खेती न किसान को भिखारी को न भीख, अलि,
बनिक को जनज, न चाकर को चाकरी ।
कहैं एक एकन सों कहाँ जाड़, क्या करी ?"
साँकरे सर्ने मैं राम राब” कृपा करी ।
दारिद-दसानन दवाई दुनी, दीनबंधु
दुरित दहन देखि तुलसी हहा करी ।।

प्रश्न
(क) किसन व्यापारी, भिखारी और धाकर किस बात से परेशन है।
(ख) बेदहें पुरान कही..... कृपा करी' इस पंक्ति का भाव-सौदर्य स्पष्ट कीजिए।
ग) कवि ने दरिद्रता को किसके समान बताया है और क्यों?

उत्तर-
(क) किसान को खेती के अवसर नहीं मिलते, व्यापारी के पास व्यापार की कमी है, भिखारी को भीख नहीं मिलती और नौकर को नौकरी नहीं मिलती। सभी को खाने के लाले पड़े हैं। पेट की आग बुझाने के लिए सभी परेशान हैं।

(ख) के सुभ ह लता हैऔसंसारब्बाह देता गया है कभगवान श्रमिक कृपादृष्टपड्नेरह द्विता दूर होती है।

(ग) कवि ने दरिद्रता को दस मुख वाले रावण के समान बताया है क्योंकि वह भी रावण की तरह समाज के हर वर्ग को प्रभावित करते हुए अपना अत्याचार चक्र चला रही है।




(ख) लक्ष्मण-मूर्च्छा और राम का विलाप




पूरी कविता से काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य के कुछ कॉमन पॉइंट्स: 


● सहज एवं सरल साहित्यिक अवधी भाषा का प्रयोग किया गया है।
● शब्द चयन उचित एवं भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
● यहाँ कवि ने संवादात्मक और कथात्मक शैली का प्रयोग किया है।
● तत्सम प्रधान साहित्यिक भाषा का प्रयोग है।
● प्रसाद गुण का परिपाक है।



निम्नलिखित काव्यांशों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-


भरत बाहु बल सील गुन, प्रभु पद प्रीति अपारा।
मन महुँ जात सराहत, पुनि-पुनि पवनकुमार।। 

प्रश्न
(क) अनुप्रास अलकार के दो उदाहरण चुनकर लिखिए।
(ख) कविता के भाषिक सौंदर्य पर टिप्पणी कीजिए।
(ग) काव्याशा के भाव वैशिष्ट्रय को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-
(क) अनुप्रास अलंकार के दो उदाहरण-
(i) प्रभु पद प्रीति अपार।
(i) पुनि-पुनि पवनकुमार।

(ख) काव्यांश में सरस, सरल अवधी भाषा का प्रयोग है। इसमें दोहा छद का प्रयोग है।

(ग) काव्यांश में हनुमान द्वारा भरत के बाहुबल, शील-स्वभाव तथा प्रभु श्री राम के चरणों में उनकी अपार भक्ति की सराहना का वर्णन

2
सुत वित नारि भवन परिवारा। होहि जाहिं ज? बारह बारा ।।
अस बिचारि जिय जपहु ताता। मिलह न जगत सहोदर भ्रात।।
जथा पंख बिनु खग अति दीना । मनि बिनु फनि करिबर कर हीना।।
अस मम जिवन बंधु बिनु तोही। जौ जड़ दैव जिआवै मोही।।
जैहउँ अवध कवन मुहुँ लाई। नारि हेतु प्रिय भाई गंवाई।।।
बरु अपजस सहतेउँ जग माहीं। नारि हानि बिसेष छति नाहीं।।

प्रश्न
(क) काव्यांश के भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(ख) इन पंक्तियों को पढ़कर राम-लक्ष्मण की किन-किन विशेषताओं का पता चलता है।
(ग) अंतिम दो पंक्तियों को पढ़कर हमें क्या सीख मिलती है।

उत्तर-
(क) विष्णु भगवान के अवतार भगवान श्री राम का मनुष्य के समान व्याकुल होना और राम, लक्ष्मण एवं भरत का यह परसार भ्रातृ-प्रेम हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत है।

(ख) दोनों भाइयों में अगाध प्रेम था। श्री राम अनुज से बहुत लगाव रखते थे तथा दोनों के बीच पिता पुत्र सा संबंध था। लक्ष्मण श्री राम का बहुत सम्मान करते थे।

(ग) भगवान श्री राम के अनुसार संसार के सब सुख भाई पर न्यौछावर किए जा सकते हैं। भाई के अभाव में जीवन व्यर्थ है और भाई जैसा कोई हो ही नहीं सकता। आज के युग में यह सीख अनेक सामाजिक कष्टों से मुक्त करवा सकती है।

3.
प्रभु प्रलाप सुनि कान, बिकल भए बानर निकरा
आई गयउ हनुमान जिमि करुना महाँ वीर रस। 

प्रश्न
(क) भाषा प्रयोग की दो विशेषताएँ लिखिए।
(ख) काव्यांश का भाव-सौंदर्य लिखिए।
(ग) काव्यांश की अलकार-योजना पर प्रकाश डालिए।

उत्तर-
(क) भाषा प्रयोग की दो विशेषताएँ हैं।
(i) सरस, सरल, सहज, मधुर अवधी भाषा का प्रयोग।
(ii) भाषा में दृश्य बिंब साकार हो उठा है।

(ख) काव्यांश में लक्ष्मण के मूर्चिछत होने पर श्री राम एवं वानरों की शोक संवेदना एवं दुख का वर्णन है। उसी बीच हनुमान के आ जाने से दुख में हर्ष के संचार हो जाने का वर्णन है, क्योंकि उनके संजीवनी बूटी लाने से अब लक्ष्मण के प्राण बच जाएँगे।

(ग) विकल भए वानर निकर में अनुप्रास तथा आइ गयउ हनुमान, जिमि करुना महँ वीर रस' में उत्प्रेक्षा अलंकार है।

4.
हरषि राम भेटेउ हनुमाना। अति कृतग्य प्रभु परम सुजाना।।
तुरत बैद तब कीन्हि उपाई। उठि बैठे लछिमन हराई।।
सदय लाइ प्रभु भेटेउ भ्राता। हरणे सकल भालु कपि ब्राता।।
कपि पुनि बैद तहाँ पहुँचाया। जेहि बिधि तबहिं ताहि लई आवा।।

प्रश्न
(क) काव्यांश का भाव-सौंदर्य लिखिए।
(ख) इन पंक्तियों के आधार पर हनुमान की विशेषताएँ बताईए।
(ग) काव्यांश की भाषागत विशेषताएँ लिखिए।

उत्तर-
(क) इसमें राम-भक्त हनुमान की बहादुरी व कर्मठता का, लक्ष्मण के स्वस्थ होने का श्री राम सहित भालू और वानरों के समूह के हर्षित होने का बहुत ही सजीव वर्णन किया गया है।

(ख) हनुमान जी की वीरता और कर्मनिष्ठा ऐसी है कि वे दुख में व्याकुल नहीं होते और हर्ष में कर्तव्य नहीं भूलते। इसीलिए लक्ष्मण के मूर्चिछत होने पर उन्होंने बैठकर रोने के स्थान पर संजीवनी लाये और काम होते ही वैद्य को यथास्थान पहुँचाया।

(ग)
(i) काव्यांश सरल, सहज अवधी भाषा में है, जिसमें चौपाई छंद है।
(ii) अनुप्रास अलंकार की छटा है।
(iii) भाषा प्रवाहमयी है।



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