कबीर के पद (काव्य-सौंदर्य /शिल्प-सौंदर्य)

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कबीर के पद


काव्य सौंदर्य बोध संबंधी प्रश्न








पूरी कविता से काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य के कुछ कॉमन पॉइंट्स: 


● शांत रस व माधुर्य गुण है।
● भाषा सधुक्कड़ी है।
● आत्मा में परमात्मा अर्थात सहज साधना पर बल दिया गया है।
● यहाँ कवि ने ईश्वर की सर्वव्यापकता पर प्रकाश डाला है।




1.
हम तो एक एक करि जाना।
दोइ कहैं तिनहीं कों दोजग जिन नाहिन पहिचाना।
एकै पवन एक ही पार्टी एके जोति समाना।
एकै खाक गर्दै सब भाड़े एकै कांहरा सना।
जैसे बाढ़ी काष्ट ही काटे अगिनि न काटे कोई।
सब घटि अंतरि तूही व्यापक धरे सरूपें सोई।
माया देखि के जगत लुभाना काहे रे नर गरबाना।
निरर्भ भया कछु नहि ब्याएँ कहैं कबीर दिवाना।



प्रश्न
1. भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
2. शिल्प सौदर्य बताइए।

उत्तर-
क) इस पद में कवि ने ईश्वर की एक सत्ता को माना है। संसार के हर प्राणी के दिल में ईश्वर है, उसका रूप चाहे कोई भी हो। कवि माया-मोह को निरर्थक बताता है।

ख)
• इस पद में कबीर की अक्खड़ता व निभीकता का पता चलता है।
• आम बोलचाल की सधुक्कड़ी भाषा है।
• जैसे बाढ़ी काटै। कोई' में उदाहरण अलंकार है। बढ़ई, लकड़ी व आग का उदाहरण प्रभावी है।
• 'एक एक में यमक अलंकार है-एक-परमात्मा, एक-एक।
• अनुप्रास अलंकार की छटा है काटै। कोई, सरूप सोई, कहै कबीर।
• खाक' व 'कोहरा' में रूपकातिशयोक्ति अलंकार है।
• पूरे पद में गेयता व संगीतात्मकता है।

2.
संतों देखत जग बौराना।
साँच कह तो मारन धावै, झूठे जग पतियाना।।
नेमी देखा धरमी देखा, प्राप्त करें असनाना।
आतम मारि पखानहि पूजे, उनमें कछु नहि ज्ञाना।।
बहुतक देखा पीर औलिया, पढे कितब कुराना।
कै मुरीद तदबीर बतावें, उनमें उहै जो ज्ञाना।।
आसन मारि डिभ धरि बैठे, मन में बहुत गुमाना।
पीपर पाथर पूजन लागे, तीरथ गर्व भुलाना।।
टोपी पहिरे माला पहिरे, छाप तिलक अनुमाना।
साखी सब्दहि गावत भूले, आतम खबरि न जाना।।
हिन्दू कहै मोहि राम पियारा, तुर्क कह रहमाना।
आपस में दोउ लरि लरि मूए, मम न काहू जाना।।
घर घर मन्तर देत फिरत हैं, महिमा के अभिमाना।
गुरु के सहित सिख्य सब बूड, अत काल पछिताना।।
कहैं कबीर सुनी हो सती, ई सब भम भुलाना।
केतिक कहीं कहा नहि माने, सहजै सहज समाना।।



प्रश्न
क) भाव सौंदर्य स्पष्ट करें।
ख) शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालें।

उत्तर-
क) इस पद में कवि ने संसार की गलत प्रवृत्ति पर व्यंग्य किया है। वे सांसारिक जीवन को सच मानते हैं। समाज में हिंदू-मुसलमान धर्म के नाम लड़ते हैं। वे तरह तरह के आडंबर रचाकर स्वयं को श्रेष्ठ जताने की कोशिश करते हैं। कवि संसार को इन आडंबरों की निरर्थकता के बारे में बार-बार बताता है, परंतु उन पर कोई प्रभाव नहीं होता। कबीर सहज भक्ति मार्ग को सही मानता है।

ख)
• कवि ने आत्मबल पर बल दिया है तथा बाहय आडंबरों को निरर्थक बताया है।
• अनुप्रास अलंकार की छटा है-
- पीपर पाथर पूजन
- कितेब कुराना
- भर्म भुलाना
- सहजै सहज समाना
- सहित शिष्य सब।
- साखी सब्दहि।
- केतिक कहाँ कहा
• 'घर घर', 'लरि लरि में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
• आम बोलचाल की सधुक्कड़ी भाषा है।
• भाषा में व्यंग्यात्मक है।
• पूरे पद में गेयता व संगीतात्मकता है।
• चित्रात्मकता है।
• शांत रस है।
• प्रसाद गुण विद्यमान है।




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