मीरा के पद (काव्य-सौंदर्य /शिल्प-सौंदर्य)

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मीरा के पद


काव्य सौंदर्य बोध संबंधी प्रश्न









पूरी कविता से काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य के कुछ कॉमन पॉइंट्स: 


● कवयित्री ने राजस्थानी मिश्रित ब्रज भाषा का प्रयोग किया है।
● माधुर्य गुण तथा श्रृंगार रस का परिपाक हुआ है।
● मीरा ने कृष्ण के प्रति अपनी अनन्य प्रेम-भक्ति प्रकट किया है।
● मुक्तक गेय तत्व विद्यमान है।





1.
मेरे तो गिरिधर गोपाल दूसरो न कोई
जा के सिर मोर मुकुट मरो यति सोई
दियों ने की कान कह कर कोई
संतन द्विग बैठि-बैठि लोक-लाज खोयी।
असुवन जल सच सीचि प्रेम-बलि बोयीं
अब त बलि फैलि गयी. अगद-फल होगी
दूध की मथनियाँ बड़े प्रेम से विलायी
दथि मधि घृत कादि नियों डारि दयी छोयी
भगत देखि राजी हुयी जगत देखि रोसी
दासि मीरा नान गिरधर तारो अब मोही



प्रश्न

क) भाव-सौदर्य बताइए।
ख) शिल्प-संदर्य स्पष्ट कीजिए।

उत्तर
क) इस पद में मीरा का कृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम व्यक्त हुआ है। वे कुल की मर्यादा को भी छोड़ देती हैं तथा कृष्ण को अपना सर्वस्व मानती हैं। उन्होंने कृष्ण-प्रेम की बेल को आँसुओं से सींचकर बड़ा किया है और भक्ति रूपी मधानी से सार रूपी पी निकाला है। वे प्रभु से अपने उद्धार की प्रार्थना करती हैं और उससे विरह की पीड़ा सहती हैं।

ख)
• राजस्थानी मिश्रित ब्रजभाषा में सुंदर अभिव्यक्ति है।
• भक्ति रस है।
• दूध की मधनियाँ छोयी' में अन्योक्ति अलंकार है।
• प्रेम-डैलि, 'आणद-फल में रूपक अलंकार है।
• अनुप्रास अलंकार की छटा है।
- गिरधर गोपाल
- मोर-मुकुट
- कुल की कानि
- कहा करिहै कोई
- लोक-लाज
- बेलि बोयी
• 'बैठि-बेठि, सचि-सींचि में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
• कृष्ण के अनेक नामों से काव्य की सुंदरता बढ़ी है गिरधर गोपाल, लाल आदि।
• संगीतात्मकता व गेयता है।

2.
पग धुंधल बाधि मीरा नार्थी,
मैं तो मेरे नारायण सू, आपहि हो गई साधी
लोग कहें, मीरा भई बावरी न्यात कहे कुल-नासी
विस का प्याला राणा भंज्या, पीवत मीरा इसी
मीरां के प्रभु गिरधर नागर, सहज मिल अविनासी



प्रश्न

क) भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
ख) शिल्प-सौदर्य बताइए।

उत्तर
क) इस पद में मीरा की आनंदावस्था का प्रभावी वर्णन हुआ है। वे धुंघरू बाँधकर नाचती तथा प्रिय कृष्ण को रिझाती हैं। उन्हें लोकनिंदा की परवाह नहीं है। राणा का विष का प्याला भी उन्हें मार नहीं पाता है। वे अपनी सहज भक्ति से अपने प्रिय हो पाती हैं।

ख)
• राजस्थानी मिश्रित ब्रजभाषा में प्रभावी अभिव्यक्ति है।
• संगीतात्मकता व गेयता है।
• अनुप्रास अलंकार है-कहे कुल।
• भक्ति रस की अभिव्यक्ति हुई है।
• नृत्य करने का बिंन्द्र प्रत्यक्ष हो उठता है।
• कृष्ण के कई नामों का प्रयोग किया है नारायण, अविना, गिरधर, नागर!


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