Badal Rag Class 12 | Class 12 Hindi Badal Rag | बादल राग कविता की व्याख्या | कक्षा 12 हिंदी बादल राग
बादल राग
कविता का सार
प्रश्न- 'बादल राग' कविता का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर- 'बादल राग' नामक कविता सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' की एक उल्लेखनीय कविता है। इसमें बादल क्रांति का प्रतीक है। कवि कहता है कि वायु रूपी सागर पर क्रांतिकारी बादलों की सेना इस प्रकार छाई हुई है जैसे क्षणिक सुखों पर दुखों के बादल मंडराते रहते हैं। संसार के दुखी लोगों के लिए अनेक संभावनाएँ उत्पन्न होने लगी हैं। लगता है कि एक क्रूर क्रांति होने जा रही है। बादल युद्ध की नौका के समान गर्जना तर्जना करते हुए, नगाड़े बजाते हुए उमड़ रहे हैं। दूसरी ओर पृथ्वी की कोख में दबे हुए आशा रूपी नए अंकुर इन बादलों को देख रहे हैं। उन सोये हुए अंकुरों के मन में नवजीवन की आशा है। अतः वे अपना सिर ऊपर उठाकर बार-बार क्रांति के बादलों की ओर देख रहे हैं ।
ऐ बादल तुम्हारी घनघोर गर्जन, मूसलाधार वर्षा तथा बिजली की 'कड़कन' को सुनकर बड़े-बड़े शूरवीर योद्धा भी धराशायी हो. जाते हैं। उनके शरीर क्षत-विक्षत हो जाते हैं और चट्टानें खिसकने लगती हैं। जबकि बादल आपस में होड़ लगाकर निरंतर आगे बढ़ते हैं, परंतु छोटे-छोटे पौधे बादलों को देखकर अत्यधिक प्रसन्न होते हैं। वे बार-बार अपना हाथ हिलाकर बादलों को अपने पास बुलाते हैं। कवि कहता है कि क्रांति की गर्जना से छोटे अथवा गरीब लोगों को लाभ प्राप्त होता है। परंतु ऊँची-ऊँची अट्टालिकाएँ आतंक भवन के समान हैं। उनमें रहने वाले अमीर लोग समाज का सारा पैसा इकट्ठा करके उस पर कुंडली मारकर बैठे हुए हैं। वे डर के मारे काँप रहे हैं, क्योंकि क्रांति की गर्जना सुनकर वे डर जाते हैं और अपनी पत्नी के अंगों से चिपटकर काँपने लगते हैं। गरीबों के बच्चे रोग, शोक और इस विप्लव में हँसते रहते हैं। अब कवि भारतीय किसानों की चर्चा करता हुआ कहता है कि किसान की भुजाएँ दुबली-पतली हैं और शरीर कमज़ोर हो चुका है और वह बेचैन होकर बादल को अपने पास बुलाता है। पूँजीपति ने उसके जीवन के रस को छीन लिया है। अब तो उसके शरीर में मात्र हड्डियाँ बची हैं। अतः कवि बादलों को क्रांति का दूत मानकर किसानों की सहायता करने के लिए कहता है ।
पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
सप्रसंग व्याख्या
1. तिरती है समीर-सागर पर
अस्थिर सुख पर दुख की छाया-
जग के दग्ध हृदय पर
निर्दय विप्लव की प्लावित माया–
यह तेरी रण-तरी
भरी आकांक्षाओं से,
घन, भेरी गर्जन से सजग सुप्त अंकुर
उर में पृथ्वी के, आशाओं से
नवजीवन की, ऊँचा कर सिर,
ताक रहे हैं, ऐ विप्लव के बादल !
फिर-फिर
शब्दार्थ- सागर = समुद्र । अस्थिर = अस्थायी । जग= संसार । दग्ध = दुखी । निर्दय = क्रूर । प्लावित = पानी से भरा हुआ। माया = खेल, क्रीड़ा । रण-तरी = युद्ध की नौका । आकांक्षा = इच्छा, कामना | भेरी गर्जन = युद्ध में बजने वाले नगाड़ों की आवाज़। अंकुर = बीज | उर = हृदय, मन । नवजीवन = नया उत्साह । ताकना = अपेक्षा से निरंतर देखना ।
प्रसंग - प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक 'आरोह भाग 2' में संकलित कविता 'बादल राग' से लिया गया है। इसके रचयिता सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' हैं। यहाँ कवि ने बादलों को विप्लवकारी योद्धा के रूप में चित्रित किया है।
व्याख्या-कवि कहता है कि बादल वायु के रूप में समुद्र पर मंडरा रहे हैं। वे इस प्रकार उमड़-घुमड़कर सागर पर छाए हुए हैं जैसे क्षणिक सुखों पर दुखों की छाया मंडराती रहती है। ये बादल संसार के दुखों से पीड़ित हृदय पर एक क्रूर विनाशकारी क्रीड़ा करने जा रहे हैं। भाव यह है कि ये संसार के प्राणी शोषण तथा अभाव के कारण अत्यधिक दुखी हैं। बादल क्रांति का दूत बनकर उन दुःखों को नष्ट करना चाहते हैं ।
कवि बादल को संबोधित करता हुआ कहता है- हे विनाशकारी बादल! तुम्हारी यह युद्ध रूपी नौका असंख्य संभावनाओं से भरी हुई है। तुम अपनी गर्जना तर्जना के द्वारा क्रांति उत्पन्न कर सकते हो और विनाश भी कर सकते हो परंतु तुम्हारी गर्जना के नंगाड़े सुनकर पृथ्वी के गर्भ में छिपे हुए अंकुर नवजीवन की आशा लिए हुए सिर उठाकर तुम्हारी ओर बार-बार देख रहे हैं। कवि कहता है कि हे विनाश के बादल ! तुम्हारी क्रांतिकारी वर्षा ही पृथ्वी में दबे हुए अंकुरों को नया जीवन दे सकती है अतः तुम बार-बार गर्जना करके वर्षा करो। इस पद्य से यह अर्थ भी निकलता है कि क्रांति से ही समाज के शोषितों, पीड़ितों तथा दलितों का उद्धार हो सकता है और पूँजीपतियों का विनाश हो सकता है। अतः सामाजिक और आर्थिक विषमता को दूर करने के लिए क्रांति अनिवार्य है।
विशेष- (1) यहाँ कवि ने बादलों को विप्लवकारी योद्धा के रूप में चित्रित किया है
(2) कविता का मूल स्वर प्रगतिवादी है।
(3) छायावादी कविता होने के कारण इस कविता में लाक्षणिक पदावली का अत्यधिक प्रयोग हुआ है।
(4) 'समीर-सागर', 'रण-तरी', 'विप्लव के बादल' तथा 'दुःख की छाया' में रूपक अलंकार का सुंदर प्रयोग हुआ है।
(5) अन्यत्र अनुप्रास तथा पुनरुक्ति प्रकाश अलंकारों का भी सफल प्रयोग हुआ है।
(6) संस्कृतनिष्ठ साहित्यिक हिंदी भाषा का सफल प्रयोग किया गया है।
(7) शब्द चयन उचित और भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
(8) अंकुरों द्वारा सिर ऊँचा करके बादलों की ओर ताकने में दृश्य-बिंब की सुंदर योजना देखी जा सकती है।
(9) मुक्त छंद का सफल प्रयोग किया गया है।
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पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर-
प्रश्न - ( क ) कवि तथा कविता का नाम लिखिए ।
(ख) अस्थिर सुख पर दुःख की छाया से कवि का क्या अभिप्राय है?
(ग) 'जग के दग्ध हृदय' का प्रयोग किस अर्थ में किया गया है?
(घ) बादल निर्दय विप्लव की रचना क्यों कर रहे हैं?
(ङ) घन भेरी की गर्जना सुनकर सोये हुए अंकुरों पर क्या प्रतिक्रिया हुई है?
(च) पृथ्वी के गर्भ में सोये हुए अंकुर ऊँचा सिर करके क्यों ताक रहे हैं?
उत्तर - (क) कवि- सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' कविता-बादल राग
(ख) वायु अस्थिर है और बादल घने हैं। इसी प्रकार सुख भी अस्थिर होते हैं परंतु दुःख स्थायी होते हैं । इसलिए कवि यह कहना चाहता है कि अस्थायी सुखों पर अनंत दुःखों की काली छाया मंडराती रहती है।
(ग) कवि का यह कहना है कि संसार के शोषित और गरीब लोग अभाव तथा शोषण के कारण दुखी और पीड़ित हैं। वे करुणा का जल चाहते हैं । इसलिए कवि ने बादल रूपी क्रांति से वर्षा करने की प्रार्थना की है।
(घ) बादल क्रांति का प्रतीक हैं। वह लोगों के निर्मम शोषण का देखकर ही विप्लव की रचना कर रहा है।
(ङ) बादलों की घनी गर्जना सुनकर पृथ्वी के गर्भ में अंकुर नवजीवन की आशा से जाग उठे हैं। वे पानी की आकांक्षा के कारण सिर ऊँचा करके बादलों को देख रहे हैं ।
(च) पृथ्वी के गर्भ में सोये हुए अंकुर ऊँचा सिर करके इसलिए ताक रहे हैं क्योंकि उन्हें यह आशा है कि बादलों रूपी क्रांति के कारण उन्हें सुखद तथा नवीन जीवन की प्राप्ति होगी तथा उनके सारे कष्ट दूर हो जाएँगे ।
सप्रसंग व्याख्या
2. बार-बार गर्जन
वर्षण है मूसलधार,
हृदय थाम लेता संसार,
सुन-सुन घोर बज्र- हुंकार ।
अशनि-पात से शापित उन्नत शत-शत वीर,
क्षत-विक्षत हत अचल-शरीर,
गगन-स्पर्शी स्पर्द्धा धीर ।
हँसते हैं छोटे पौधे लघुभार-
शस्य अपार,
हिल - हिल
खिल-खिल,
हाथ हिलाते,
तुझे बुलाते,
विप्लव - रव से छोटे ही हैं शोभा पाते।
शब्दार्थ- गर्जन = गरजना | मूसलधार मोटी-मोटी बारिश | हृदय थामना = डर जाना । घोर = घना, भयंकर । वज्र-हुंकार = वज्रपात के समान भीषण आवाज़ अशनि-पात = बिजली का गिरना। उन्नत = बड़ा, विशाल । शत-शत = सैकड़ों क्षत-विक्षत = घायल। हत = मरा हुआ। अचल = पर्वत। गगन-स्पर्शी = आकाश को छूने वाला। स्पर्द्धा धीर होड़ करने के लिए बेचैन । लघुभार = हल्के । शस्य = हरियाली । अपार = बहुत अधिक । विप्लव = क्रांति, विनाश रव = शोर ।
प्रसंग - प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक 'आरोह भाग 2' में संकलित कविता 'बादल राग' से लिया गया है। इसके रचयिता सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' जी हैं। प्रस्तुत कविता में कवि ने बादलों के माध्यम से क्रांति का आह्वान किया है।
व्याख्या - कवि कहता है कि हे बादल! तुम्हारे बार-बार गर्जने तथा मूसलाधार वर्षा करने से सारा संसार डर के कारण अपना कलेजा थाम लेता है क्योंकि तुम्हारी भयंकर गर्जन और वज्र जैसी घनघोर आवाज को सुनकर लोग काँप उठते हैं। सभी को तुम्हारी विनाश-लीला का डर लगा रहता है। भाव यह है कि क्रांति का स्वर सुनकर लोग आतंकित हो उठते हैं। कवि पुनः कहता है कि बादलों के भयंकर वज्रपात से उन्नति की चोटी पर पहुँचे हुए सैकड़ों योद्धा अर्थात् पूँजीपति भी पराजित होकर धूलि चाटने लगते हैं। आकाश को छूने की होड़ लगाने वाले ऊँचे-ऊँचे स्थिर पर्वत भी बादलों के भयंकर वज्रपात से घायल होकर खंड-खंड हो जाते हैं। अर्थात् जो पर्वत अपनी ऊँचाई के द्वारा आकाश से स्पर्धा करते हैं वे भी बादलों की बिजली गिरने से खंड-खंड होकर नष्ट हो जाते हैं। जो लोग जितने ऊँचे होते हैं उतने ही वे विनाश के शिकार बनते हैं। परंतु बादलों की इस विनाश-लीला में छोटे-छोटे पौधे हँसते हैं और मुस्कराते हैं, क्योंकि विनाश से उन्हें जीवन मिलता है। वे हरे-भरे होकर लहलहाने लगते हैं। वे छोटे-छोटे पौधे खिलखिलाते हुए और अपने हाथ हिलाते हुए तुम्हें निमंत्रण देते हैं। तुम्हारे आने से उन्हें एक नया जीवन मिलता है । हे बादल! क्रांति के विनाश से हमेशा छोटे तथा गरीब लोगों को ही लाभ होता है।
विशेष - (1) यहाँ कवि ने बादल को क्रांति का प्रतीक सिद्ध किया है और उन्हें 'विप्लव के वीर' की संज्ञा दी है।
(2) कवि ने प्रतीकात्मक शब्दावली अपनाते हुए क्रांति की भीषणता की ओर संकेत किया है। 'गर्जन', 'वज्र-हुंकार', 'छोटे-पीधे' 'अचल' आदि सभी प्रतीक हैं।
(3) संपूर्ण पद में मानवीकरण अलंकार का सफल प्रयोग किया गया है तथा पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
(4) 'हाथ हिलाते तुझे बुलाते' गतिशील बिंब है।
(5) यहाँ कवि ने संस्कृतनिष्ठ शुद्ध साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग किया है।
( 6 ) शब्द-चयन उचित और भावानुकूल है।
(7) ओज गुण है तथा मुक्त छंद का प्रयोग किया गया है ।
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पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर-
प्रश्न - (क) क्या आप बादल को क्रांति का प्रतीक मानते हैं?
(ख) बादलों की मूसलाधार वर्षा से सृष्टि पर क्या प्रभाव पड़ता है?
(ग) बादलों के अशनि-पात से किसे हानि होती है और क्यों ?
(घ) छोटे पौधे किसके प्रतीक हैं और वे क्यों हँसते हैं?
(ङ) कवि ने गगन-स्पर्शी स्पर्द्धा धीर किसे कहा है और क्यों ?
उत्तर- (क) निश्चित ही बादल क्रांति के प्रतीक हैं। कवि ने बादलों के क्रांतिकारी रूप को स्पष्ट करने के लिए उन्हें 'विप्लव के वीर' कहा है। जिस प्रकार क्रांति होने पर चारों ओर गर्जन-तर्जन और विनाश होता है उसी प्रकार विप्लवकारी बादल भी मूसलाधार वर्षा तथा अशनिपात से विनाश की लीला रचते हैं ।
(ख) बादलों की मूसलाधार वर्षा से संसार के से संसार के लोग घबरा जाते हैं और डर के मारे अपना हृदय थाम लेते हैं। बादलों की घोर वज्र हुंकार लोगों में भय उत्पन्न करती हैं।
(ग) बादलों के अशनि-पात अर्थात् बिजली गिरने से विशाल आकार के ऊँचे-ऊँचे पर्वतों को हानि होती है। निरंतर वर्षा होने से और ओले पड़ने से ये पर्वत क्षत-विक्षत हो जाते हैं।
(घ) छोटे पौधे शोषित तथा अभावग्रस्त लोगों के प्रतीक है। जल पाकर गरीब किसान और मजदूर प्रसन्न हो जाते हैं क्योंकि इससे उन्हें एक नया जीवन मिलता है।
(ङ) कवि ने गगन-स्पर्शी स्पर्धा धीर शब्दों का प्रयोग पूँजीपतियों के लिए किया है। क्योंकि वे अपने धन-वैभव के कारण समाज में ऊँचा स्थान पा चुके हैं। उनके ऊँचे-ऊँचे भवन आकाश को स्पर्श करने में होड़ लगा रहे हैं। धन-वैभव को लेकर उनमें होड़ मची हुई है।
सप्रसंग व्याख्या
3. अट्टालिका नहीं है रे
आतंक-भवन
सदा पंक पर ही होता
जल-विप्लव-प्लावन,
क्षुद्र प्रफुल्ल जलज से
सदा छलकता नीर,
रोग-शोक में भी हँसता है
शैशव का सुकुमार शरीर ।
रुद्ध कोष है, क्षुब्ध तोष
अंगना- अंग से लिपटे भी
आतंक अंक पर काँप रहे हैं।
धनी, वज्र गर्जन से बादल !
त्रस्त नयन-मुख ढाँप रहे हैं ।
शब्दार्थ- अट्टालिका = महल ।. आतंक भवन = भय का निवास । रुद्ध = रुका हुआ । कोष = खजाना । अंगना अंक पत्नी गोद। पंक = कीचड़। प्लावन = बाढ़ । क्षुद्र = तुच्छ | वज्र-गर्जन = वज्र के समान गर्जना । त्रस्त = डरा हुआ | नयन = नेत्र, आँख
प्रसंग - प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक 'आरोह भाग 2' में संकलित कविता 'बादल राग' से लिया गया है । इसके रचयिता सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' हैं। यहाँ कवि ने अट्टालिकाओं को आतंक भवन कहा है क्योंकि उनमें रहने वाले अमीर लोग गरीबों का खून चूसकर धन पर कुंडली मारे बैठे हैं। ऐसे लोग ही क्रांति के स्वर से डरते हैं ।
व्याख्या - कवि कहता है कि हमारे समाज में जो ऊँचे-ऊँचे भवन हैं, ये अट्टालिकाएँ नहीं हैं, बल्कि इनमें तो भय और त्रास का निवास है। इनमें रहने वाले अमीर लोग हमेशा क्रांति से आतंकित रहते हैं। बादलों की विनाश लीला तो हमेशा कीचड़ में ही होती है। उसी में बाढ़ और विनाश के दृश्य देखे जा सकते हैं । कवि के कहने का भाव है कि समाज के गरीब और शोषित लोग ही क्रांति करते हैं। अमीर लोग तो हमेशा भय के कारण डरे रहते हैं। गरीब लोगों को क्रांति से कोई फर्क नहीं पड़ता। कवि कहता है कि पानी में खिले हुए छोटे-छोटे कमलों से हमेशा पानी रूपी आँसू टपकते रहते हैं। यहाँ कमल पूँजीपतियों के प्रतीक हैं जो विप्लव से हमेशा डरते रहते हैं, परंतु समाज का गरीब वर्ग सुकुमार बच्चों के समान है जो रोग और शोक में भी हमेशा हंसता ओर मुस्कुराता रहता है। अतः क्रांति होने से उन्हें आनंद की प्राप्ति होती है।
परंतु पूँजीपति लोगों ने अपने खजाने को धन से परिपूर्ण करके उसे सुरक्षित रखा हुआ है। जिससे गरीब लोगों का संतोष उबलने को तैयार है। यही कारण है कि अमीर लोग हमेशा आतंकित रहते हैं और वे क्रांति रूपी बादल की गर्जना को सुनकर अपनी सुंदर स्त्रियों के अंगों से लिपटे हुए हैं लेकिन आतंक की गोद में वे काँप रहे हैं। बादलों की भयंकर गर्जना को सुनकर वे अपनी आँखें बंद किए हुए हैं और मुँह को छिपाए हुए हैं। भाव यह है कि क्रांति से पूँजीपति लोग ही डरते हैं, गरीब लोग नहीं डरते।
विशेष - (1) इस पद में कवि ने समाज के शोषकों के प्रति अपनी घृणा को व्यक्त किया है और शोपितों के प्रति सहानुभूति दिखाई है।
(2) यहाँ कवि क्रांति के प्रभाव को दिखाने में सफल रहा है।
(3) संपूर्ण पद में प्रतीकात्मक शब्दावली का खुलकर प्रयोग किया गया है; जैसे 'पंक' निम्न वर्ग का प्रतीक है और 'जलज' धनी वर्ग का प्रतीक है।
(4) अनुप्रास, स्वर मैत्री तथा अपहुति अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग किया गया है।
(5) तत्सम् प्रधान साहित्यिक हिंदी भाषा का सफल प्रयोग हुआ है।
(6) शब्द-चयन उचित और भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
(7) ओज गुण है तथा मुक्त छंद का सफल प्रयोग है।
पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर-
प्रश्न - (क) 'अट्टालिका नहीं है रे आतंक भवन' का आशय क्या है?
(ख) पंक और अट्टालिका किसके प्रतीक हैं?
(ग) रोग-शोक में कौन हँसता रहता है और क्यों?
(घ) 'क्षुद्र प्रफुल्ल जलज से सदा छलकता नीर' का भावार्थ स्पष्ट करें।
(ङ) कौन लोग आतंक अंक पर काँप रहे हैं और डर कर अपने नयन-मुख ढाँप रहे हैं?
उत्तर- (क) यहाँ कवि यह स्पष्ट करता है कि बड़े-बड़े पूँजीपतियों के भवन अट्टालिकाएँ नहीं हैं, बल्कि वे तो आतंक के भवन हैं अर्थात क्रांति का नाम सुनते ही वें डर के मारे काँपने लगते हैं। महलों में रहते हुए भी वे घबराए रहते हैं।
(ख) पंक समाज के शोपित व्यक्ति का प्रतीक है और अट्टालिका शोषक पूँजीपतियों का प्रतीक है।
(ग) समाज का निम्न वर्ग रूपी सुकुमार शिशु ही रोग और शोक में हमेशा हँसता रहता है क्योंकि वह संघर्षशील और जुझारू होता है। क्रांति होने से ही उसे लाभ पहुँचने की संभावना है।
(घ) जब वर्षा रूपी क्रांति होती है तो जल में उत्पन्न कमल रोते हैं और आँसू बहाते हैं। भाव यह है कि क्रांति के फलस्वरूप सुविधाभोगी लोग घबराकर आँसू बहाने लगते हैं। उन्हें इस बात का डर होता है कि उनसे उनकी पूँजी छीन ली जाएगी।
(ङ) पूँजीपति लोग अपने महलों में अपनी पत्नियो से लिपटे हुए भी काँप रहे हैं। उनके मन में क्रांति का डर है। उन्हें इस बात का भय लगा हुआ है कि क्रांति के कारण उनकी सुख-सुविधाएँ छिन जाएगी। इसलिए वे भयभीत होकर अपने नेत्रों और मुख को छिपाने का प्रयास कर रहे हैं।
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सप्रसंग व्याख्या
4. जीर्ण बाहु, है शीर्ण शरीर,
तुझे बुलाता कृषक अधीर,
ऐ विप्लव के वीर!
चूस लिया है उसका सार,
हाड़-मात्र ही है आधार,
ऐ जीवन के पारावार !
शब्दार्थ-जीर्ण = जर्जर। शीर्ण = कमज़ोर। कृषक = किसान। अधीर = बेचैन । विप्लव = विनाश। सार= प्राण । पारावार = सागर।
प्रसंग - प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक 'आरोह भाग 2' में संकलित कविता 'बादल राग' से लिया गया है। इसके रचविता सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' जी हैं। यहाँ कवि ने किसानों की दुर्दशा का यथार्थ वर्णन किया है। कवि बादलों का आह्वान करता हुआ कहता है कि वह मूसलाधार वर्षा करके गरीब तथा शोषित किसानों की सहायता करें।
व्याख्या - कवि बादलों को संबोधित करता हुआ कहता है, हे जीवन के सागर ! देखो, यह जर्जर भुजाओं तथा दुर्बल शरीर वाला किसान बेचैन होकर तुम्हें अपनी ओर बुला रहा है। हे विनाश करने में निपुण बादल! तुम वर्षा करके देश के गरीब तथा शोषित किसान की सहायता करो। उसकी भुजाएँ जर्जर हो चुकी हैं तथा शरीर कमजोर हो गया है। उसकी भुजाओं के बल को तथा उसके जीवन के रस को पूँजीपतियों ने चूस लिया है। भाव यह है कि देश के धनिक वर्ग ने ही किसान का शोषण करके उसकी बुरी हालत कर दी है। अब उस किसान में केवल हड्डियों का पिंजर शेष रह गया है। आज की पूँजीवादी शोषक अर्थव्यवस्था ने उसके खून और माँस को चूस लिया है। हे बादल! तुम तो जीवन के दाता हो, विशाल सागर के समान हो । तुम वर्षा करके एक ऐसी क्रांति पैदा कर दो जिससे कि वह किसान शोषण से मुक्त हो सके और सुखद जीवनयापन कर सके।
विशेष – (1) यहाँ कवि ने भारतीय किसानों की दुर्दशा के लिए आज की शोषण व्यवस्था को उत्तरदायी माना है। देश के पूँजीपतियों और महाजनों ने किसानों का भरपूर शोषण किया है।
(2) प्रस्तुत पद्यांश से प्रगतिवादी स्वर मुखरित हुआ है। कवि ने बादल को एक क्रांतिकारी योद्धा के रूप में प्रस्तुत किया है।
(3) संपूर्ण पद्य में बादल का सुंदर मानवीकरण किया गया है।
(4) तत्सम प्रधान संस्कृतनिष्ठ साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग है। शब्द चयन उचित और भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
(5) प्रसाद गुण होने के कारण करुण रस का परिपाक हुआ है और मुक्त छंद का प्रयोग हुआ है।
पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर-
प्रश्न – (क) जीर्ण बाहु, है शीर्ण शरीर, शब्दों का प्रयोग किसके लिए किया गया है और क्यों ?
(ख) कृषक को अधीर क्यों कहा गया है?
(ग) कवि ने 'विप्लव के वीर' किसे कहा है और क्यों ?
(घ) जीवन के पारावर किसे कहा गया है और क्यों?
(ङ) 'चूस लिया है उसका सार' का आशय स्पष्ट करो ।
उत्तर- (क) यहाँ कवि ने जीर्ण बाहु और शीर्ण शरीर शब्दों का प्रयोग किसान के लिए किया है । शोषण तथा अभाव के कारण उसकी भुजाएँ जीर्ण हो चुकी हैं और शरीर दुर्बल और हीन हो चुका है। इसलिए कवि ने किसान के लिए जीर्ण बाहु और शीर्ण शरीर शब्दों का प्रयोग किया है ।
(ख) शोषण तथा अभावों के कारण भारत का किसान दरिद्र और लाचार है। पूँजीपतियों ने उसका सब कुछ छीन लिया है। उसे आशा है कि क्रांति के फलस्वरूप परिवर्तन होगा और पूँजीवाद का विनाश होगा, इसलिए वह क्रांति के बादलों की ओर बड़ी बेचैनी से देख रहा है।
(ग) कवि ने बादलों को विप्लव के वीर कहा है क्योंकि कवि ने बादलों को क्रांति का प्रतीक माना है। जिस प्रकार बादल मूसलाधार वर्षा से समाज की व्यवस्था को भंग कर देते हैं, उसी प्रकार क्रांति भी पूँजीपतियों का विनाश कर देती है।
(घ) क्रांति रूपी बादल को ही जीवन का पारावार अर्थात् सागर कहा गया है। जिस प्रकार बादल वर्षा करके फसल को नया जीवन देते हैं, उसी प्रकार क्रांति भी पूँजीपतियों का विनाश करके गरीब लोगों को सहारा देती है और उनका विकास करती है।
(ङ) यहाँ कवि यह कहना चाहता है कि धनिक वर्ग ने किसान वर्ग का शोषण करके उसके शरीर के सारे रस को मानों चूस लिया है अर्थात् शोषण के कारण किसान की दशा बुरी हो चुकी है। अब तो किसान हड्डियों का पिंजर मात्र बनकर रह गया है।
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thanks sir 😊 it helps a lot
ReplyDeleteThank you so much. Sir .. It helps a lot❤️
ReplyDeleteSir apne itne tough chapter ko bahut easy way mein samjha diya... Thank you..
ReplyDeleteBhut acha 👍🙏sir
ReplyDeleteThank u so much sir for this beautiful explanation...
ReplyDeleteThank you so much sir, for your handsome explainations
ReplyDeleteVery nice and helpful explanation
ReplyDeleteBest. Explanation for 12 hindi
ReplyDeleteSir bhot mast explanation thi
ReplyDeleteNice explaination sir ue kavita muhje katin lag raha tha magar ab nhi
ReplyDeleteThankyou so much sir
ReplyDeletesuch a nice explanation sir.
ReplyDeleteNice sir Bahot badiya Bataya
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