Dukh ka Adhikar Class 9 Question Answers | Hindi Dukh ka Adhikar Class 9 Question Answer | NCERT Hindi Class 9 Chapter 2 Dukh ka Adhikar Question Answer
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों
में दीजिए-
1. किसी व्यक्ति की पोशाक को देखकर हमें क्या
पता चलता है?
उत्तर:- किसी व्यक्ति की पोशाक को देखकर हमें समाज में उसका दर्जा और अधिकार का पता चलता है तथा उसकी अमीरी-गरीबी श्रेणी का पता चलता है।
2. खरबूज़े बेचनेवाली स्त्री से कोई खरबूज़े
क्यों नहीं खरीद रहा था?
उत्तर:- उसके बेटे की मृत्यु के कारण लोग उससे
खरबूजे नहीं खरीद रहे थे।
3. उस स्त्री को देखकर लेखक को कैसा लगा?
उत्तर:- उस स्त्री को देखकर लेखक का मन व्यथित
हो उठा। उनके मन में उसके प्रति सहानुभूति की भावना उत्पन्न हुई थी।
4. उस स्त्री के लड़के की मृत्यु का कारण क्या
था?
उत्तर:- उस स्त्री का लड़का एक दिन मुँह-अंधेरे
खेत में से बेलों से तरबूजे चुन रहा था की गीली मेड़ की तरावट में आराम करते साँप पर
उसका पैर पड़ गया और साँप ने उस लड़के को डस लिया। ओझा के झाड़-फूँक आदि का उस पर कोई
प्रभाव न पड़ा और उसकी मृत्यु हो गई।
5. बुढ़िया को कोई भी क्यों उधार नहीं देता?
उत्तर:- बुढिया का बेटा मर गया था इसलिए बुढ़िया को दिए उधार को लौटने की कोई संभावना नहीं थीं। इस वजह से बुढ़िया को कोई उधार नहीं देता था।
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• प्रश्न अभ्यास (लिखित)
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों
में) लिखिए-
6. मनुष्य के जीवन में पोशाक का क्या महत्व
है?
उत्तर:- मनुष्य के जीवन में पोशाक का बहुत
महत्व है। पोशाकें ही व्यक्ति का समाज में अधिकार व दर्जा निश्चित करती हैं। पोशाकें
व्यक्ति को ऊँच-नीच की श्रेणी में बाँट देती है। कई बार अच्छी पोशाकें व्यक्ति के भाग्य
के बंद दरवाज़े खोल देती हैं। सम्मान दिलाती हैं।
7. पोशाक हमारे लिए कब बंधन और अड़चन बन जाती
है?
उत्तर:- जब हमारे सामने कभी ऐसी परिस्थिति
आती है कि हमें किसी दुखी व्यक्ति के साथ सहानुभूति प्रकट करनी होती है, परन्तु उसे
छोटा समझकर उससे बात करने में संकोच करते हैं। उसके साथ सहानुभूति तक प्रकट नहीं कर
पाते हैं। हमारी पोशाक उसके समीप जाने में तब बंधन और अड़चन बन जाती है।
8. लेखक उस स्त्री के रोने का कारण क्यों नहीं
जान पाया?
उत्तर:- वह स्त्री घुटनों में सिर गड़ाए फफक-फफककर
रो रही थी। इसके बेटे की मृत्यु के कारण लोग इससे खरबूजे नहीं ले रहे थे। उसे बुरा
भला कह रहे थे। उस स्त्री को देखकर लेखक का मन व्यथित हो उठा। उनके मन में उसके प्रति
सहानुभूति की भावना उत्पन्न हुई थी। परंतु लेखक उस स्त्री के रोने का कारण इसलिए नहीं
जान पाया क्योंकि उसकी पोशाक रुकावट बन गई थी।
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9. भगवाना अपने परिवार का निर्वाह कैसे करता
था?
उत्तर:- भगवाना शहर के पास डेढ़ बीघा भर ज़मीन में खरबूज़ों को बोकर परिवार का निर्वाह करता था। खरबूज़ों की डलियाँ बाज़ार में पहुँचाकर लड़का स्वयं सौदे के पास बैठ जाता था।
10. लड़के की मृत्यु के दूसरे ही दिन बुढ़िया
खरबूजे बेचने क्यों चल पड़ी?
उत्तर:- बुढ़िया बेटे की मृत्यु का शोक तो
प्रकट करना चाहती है परंतु उसके घर की परिस्थिति उसे ऐसा करने नहीं दे रही थी। इसका
सबसे बड़ा कारण है, धन का अभाव उसके बेटे भगवाना के बच्चे भूख के मारे बिलबिला रहे
थे। बहू बीमार थी। यदि उसके पास पैसे होते, तो वह कभी भी सूतक में सौदा बेचने बाज़ार
नहीं जाती।
11. बुढ़िया के दुःख को देखकर लेखक को अपने
पड़ोस की संभ्रांत महिला की याद क्यों आई?
उत्तर:- लेखक के पड़ोस में एक संभ्रांत महिला
रहती थी। उसके पुत्र की भी मृत्यु हो गई थी और बुढ़िया के पुत्र की भी मृत्यु हो गई
थी परन्तु दोनों के शोक मनाने का ढंग अलग-अलग था। धन के अभाव में बेटे की मृत्यु के
अगले दिन ही वृद्धा को बाज़ार में खरबूज़े बेचने आना पड़ता है। वह घर बैठ कर रो नहीं
सकती थी। मानों उसे इस दुख को मनाने का अधिकार ही न था। आस-पास के लोग उसकी मजबूरी
को अनदेखा करते हुए, उस वृद्धा को बहुत भला-बुरा बोलते हैं। जबकि संभ्रांत महिला को
असीमित समय था। अढ़ाई मास से पलंग पर थी, डॉक्टर सिरहाने बैठा रहता था। लेखक दोनों
की तुलना करना चाहता था इसलिए उसे संभ्रांत महिला की याद आई।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों
में) लिखिए-
12. बाज़ार के लोग खरबूज़े बेचनेवाली स्त्री
के बारे में क्या-क्या कह रहे थे? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तरः- धन के अभाव में बेटे की मृत्यु के
अगले दिन ही वृद्धा को बाज़ार में खरबूज़े बेचने आना पड़ता है। बाज़ार के लोग उसकी
मजबूरी को अनदेखा करते हुए, उस वृद्धा को बहुत भला-बुरा बोलते हैं। कोई घृणा से थूककर
बेहया कह रहा था, कोई उसकी नीयत को दोष दे रहा था, कोई रोटी के टुकड़े पर जान देने
वाली कहता, कोई कहता इसके लिए रिश्तों का कोई मतलब नहीं है, परचून वाला कहता, यह धर्म
ईमान बिगाड़कर अंधेर मचा रही है, इसका खरबूज़े बेचना सामाजिक अपराध है। इन दिनों कोई
भी उसका सामान छूना नहीं चाहता था।
13. पास-पड़ोस की दुकानों से पूछने पर लेखक
को क्या पता चला?
उत्तर:- पास-पड़ोस की दुकानों में पूछने पर
लेखक को पता चला की उसका २३ साल का जवान लड़का था। घर में उसकी बहू और पोता-पोती हैं।
लड़का शहर के पास डेढ़ बीघा भर जमीन में कछियारी करके निर्वाह करता था। खरबूजों की
डलिया बाज़ार में पहुँचाकर कभी लड़का स्वयं सौदे के पास बैठ जाता, कभी माँ बैठ जाती
। परसों मुँह अंधेरे खेत में से बेलों से तरबूजे चुन रहा था कि गीली मेड़ की तरावट
में आराम करते साँप पर उसका पैर पड़ गया और साँप ने उस लड़के को डस लिया। ओझा के झाड़-फूँक
आदि का उस पर कोई प्रभाव न पड़ा और उसकी मृत्यु हो गई।
14. लड़के को बचाने के लिए बुढ़िया माँ ने क्या-क्या
उपाय किए?
उत्तर:- लड़के को बचाने के लिए बुढ़िया जो
कुछ वह कर सकती थी उसने वह सब सभी उपाय किए। वह पागल सी हो गई। झाड़-फूँक करवाने के
लिए ओझा को बुला लाई, साँप का विष निकल जाए इसके लिए नाग देवता की भी पूजा की, घर में
जितना आटा अनाज था वह दान दक्षिणा में ओझा को दे दिया परन्तु दुर्भाग्य से लड़के को
नहीं बचा पाई।
15. लेखक ने बुढ़िया के दुःख का अंदाज़ा कैसे
लगाया?
उत्तर:- लेखक उस पुत्र वियोगिनी के दुःख का
अंदाज़ा लगाने के लिए पिछले साल अपने पड़ोस में पुत्र की मृत्यु से दुःखी माता की बात
सोचने लगा। वह महिला अढ़ाई मास से पलंग पर थी, उसे १५-१५ मिनट बाद पुत्र वियोग से मूर्छा
आ जाती थी। डॉक्टर सिरहाने बैठा रहता था। शहर भर के लोगों के मन पुत्र- शोक से द्रवित
हो उठे थे।
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16. इस पाठ का शीर्षक 'दुःख का अधिकार कहाँ
तक सार्थक है ? स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर:- इस कहानी में उस बुढ़िया के विषय में
बताया गया है, जिसका बेटा मर गया है। धन के अभाव में बेटे की मृत्यु के अगले दिन ही
वृद्धा को बाज़ार में खरबूज़े बेचने आना पड़ता है। बाज़ार के लोग उसकी मजबूरी को अनदेखा
करते हुए, उस वृद्धा को बहुत भला-बुरा बोलते हैं। कोई घृणा से थूककर बेहया कह रहा था,
कोई उसकी नीयत को दोष दे रहा था, कोई रोटी के टुकड़े पर जान देने वाली कहता, कोई कहता
इसके लिए रिश्तों का कोई मतलब नहीं है, परचून वाला कहता, यह धर्म ईमान बिगाड़कर अंधेर
मचा रही है, इसका खरबूज़े बेचना सामाजिक अपराध है। इन दिनों कोई भी उसका सामान छूना
नहीं चाहता था। यदि उसके पास पैसे होते, तो वह कभी भी सूतक में सौदा बेचने बाज़ार नहीं
जाती । दूसरी ओर लेखक के पड़ोस में एक संभ्रांत महिला रहती थी जिसके बेटे की मृत्यु
हो गई थी। उस महिला का पास शोक मनाने का असीमित समय था । अढ़ाई मास से पलंग पर थी,
डॉक्टर सिरहाने बैठा रहता था। लेखक दोनों की तुलना करना चाहता था। इस कहानी से स्पष्ट
है कि दुख मनाने का अधिकार भी उनके पास है, जिनके पास पैसा हो । निर्धन व्यक्ति अपने
दुख को अपने मन में ही रख लेते हैं। वह इसे प्रकट नहीं कर पाते। इसलिए इस पाठ का शीर्षक
दुःख का अधिकार सार्थक है।
निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए-
17. जैसे वायु की लहरें कटी हुई पतंग को सहसा
भूमि पर नहीं गिर जाने देतीं उसी तरह खास परिस्थितियों में हमारी पोशाक हमें झुक सकने
से रोके रहती है।
उत्तर:- प्रस्तुत कहानी समाज में फैले अंधविश्वासों
और अमीर-गरीबी के भेदभाव को उजागर करती है। यह कहानी अमीरों के अमानवीय व्यवहार और
गरीबों की विवशता को दर्शाती है। मनुष्यों की पोशाकें उन्हें विभिन्न श्रेणियों में
बाँट देती हैं। प्रायः पोशाक ही समाज में मनुष्य का अधिकार और उसका दर्जा निश्चित करती
है। वह हमारे लिए अनेक बंद दरवाज़े खोल देती है, परंतु कभी ऐसी भी परिस्थिति आ जाती
है कि हम ज़रा नीचे झुककर समाज की निचली श्रेणियों की अनुभूति को समझना चाहते हैं।
उस समय यह पोशाक ही बंधन और अड़चन बन जाती है। जैसे वायु की लहरें कटी हुई पतंग को
सहसा भूमि पर नहीं गिर जाने देतीं, उसी तरह खास पारिस्थितियों में हमारी पोशाक हमें
झुक सकने से रोके रहती है।
18. इनके लिए बेटा-बेटी, खसम - लुगाई, धर्म-ईमान
सब रोटी का टुकड़ा है।
उत्तर:- समाज में रहते हुए प्रत्येक व्यक्ति
को नियमों, कानूनों व परंपराओं का पालन करना पड़ता है। दैनिक आवश्यकताओं से अधिक महत्व
जीवन मूल्यों को दिया जाता है। यह वाक्य गरीबों पर एक बड़ा व्यंग्य है। गरीबों को अपनी
भूख के लिए पैसा कमाने रोज़ ही जाना पड़ता है चाहे घर में मृत्यु ही क्यों न हो गई
हो। परन्तु कहने वाले उनसे सहानुभूति न रखकर यह कहते हैं कि रोटी ही इनका ईमान है,
रिश्ते- नाते इनके लिए कुछ भी नहीं है।
19. शोक करने, गम मनाने के लिए भी सहूलियत
चाहिए और... दु:खी होने का भी एक अधिकार होता है।
उत्तरः- यह व्यंग्य अमीरी पर है क्योंकि समाज
में अमीर लोगों के पास दुख मनाने का समय और सुविधा दोनों होती हैं। इसके लिए वह दुःख
मनाने का दिखावा भी कर पाता है और उसे अपना अधिकार समझता है। शोक करने, गम मनाने के
लिए सहूलियत चाहिए। दुःख में मातम सभी मनाना चाहते हैं चाहे वह अमीर हो या गरीब परंतु
गरीब विवश होता है। वह रोज़ी रोटी कमाने की उलझन में ही लगा रहता है। उसके पास दुःख
मनाने का न तो समय होता है और न ही सुविधा होती है। इस प्रकार गरीबों को रोटी की चिंता
उसे दुःख मनाने के अधिकार से भी वंचित कर देती है।
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sir last ke 3 ques ke 2 marks ke hisabh se answer dedo
ReplyDeleteI need it very quickly
DeleteThank you very much ch sir 🌹🌹
ReplyDeletethank u so much sir for e
ReplyDeleteetheseeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeee
😭😭😭😭😭😭😭😭😭😭😭😭😭😭😭😭😭😭😭😭aaaarigaatoo hozaiiimassu !!!!!!
ReplyDeleteits arigato gozaimasu blud 🥀
DeleteSir I have a doubt
ReplyDeleteYes
DeleteThank you very much sir
ReplyDeleteyour welcome
DeleteThank you very much sir
ReplyDeletepls say hello to me
ReplyDeletehello
DeleteUr the best and look like an actor in stree moive idk his name if saw this message thank u
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