Gandhi Nehru Aur Yasser Arafat Class 12 Question Answer | Class 12 Hindi Gandhi Nehru Aur Yasser Arafat Question Answer | गांधी नेहरू और यास्सेर अराफात Class 12 Question Answer
प्रश्न 1. लेखक सेवाग्राम कब और क्यों गया था ?
उत्तर - लेखक सन् 1938 के आसपास सेवाग्राम गया था। उन दिनों लेखक के भाई बलराज साहनी सेवाग्राम में ही रह रहे थे। वे वहाँ रहकर ‘नई तालीम’ पत्रिका के सह-संपादक के रूप में काम कर रहे थे। उस साल कांग्रेस का अधिवेशन हरिपुरा में हुआ था। तभी लेखक कुछ दिन भाई के साथ बिता पाने के लिए सेवाग्राम चला गया था। उन दिनों गाँधीजी भी वहीं थे। लेखक के मन में उनको नजदीक से देखने की इच्छा भी रही होगी।
प्रश्न 2. लेखक का गाँधीजी के साथ चलने का पहला अनुभव किस प्रकार का रहा ?
उत्तर - लेखक को सेवाग्राम पहुँचकर पता चला था कि गाँधी जी प्रातःध्रमण के लिए उनके भाई के क्वार्टर के आगे से ही निकलते हैं। गाँधी जी का वहाँ पहुँचने का समय ठीक सात बजे था। लेखक सुबह जल्दी उठकर सात बजने का इंतजार करने लगा। ठीक समय पर गाँधी जी आश्रम का फाटक लाँघकर अपने साथियों के साथ सड़क पर आ गए थे। गाँधी जी हूबहू वैसे ही लग रहे थे जैसा लेखक ने उन्हें चित्रों में देखा था। कमर के नीचे उनकी छड़ी भी लटक रही थी। लेखक के भाई ने उसका परिचय गाँधी जी से करवाया। लेखक ने गाँधी जी को उनकी रावलपिंडी यात्रा की याद दिलाई। गाँधी जी को रावलपिंडी यात्रा अच्छी प्रकार याद थी। उन्होंने उसके बारे में बातें की। उन्हें मिस्टर जॉन का भी स्मरण था। गाँधी जी बहुत धीमी आवाज में बोल रहे थे। वे बीच-बीच में हैंसी की बात भी कह देते थे।
प्रश्न 3. लेखक ने सेवाग्राम में किन-किन लोगों के आने का जिक्र किया है ?
उत्तर - लेखक ने सेवाग्राम में निम्नलिखित लोगों के आने का जिक्र किया है :
पृथ्वीसिंह आजाद : इन्होंने हथकड़ियों समेत भागती रेलगाड़ी से छलांग लगाई और भागकर गुमनाम हो गए।
मीरा बेन खान अब्दुल गफ्फार खाँ राजेंद्र बाबू
प्रश्न 4. रोगी बालक के प्रति गाँधीजी का व्यवहार किस प्रकार का था ?
उत्तर - सेवाग्राम आश्रम में एक बालक चिल्ला रहा था-‘मैं मर रहा हूँ, बापू को बुलाओ। मैं मर जाऊँगा, बापू को बुलाओ। लड़के का पेट फूला हुआ था। वह बहुत बेचैनी का अनुभव कर रहा था। बापू जी की उस समय जरूरी मीटिंग चल रही थी। आखिरकार गाँधीजी मीटिंग को बीच में छोड़कर उस रोगी बालक के पास जा पहुँचे। वे उसके पास जाकर खड़े हो गए। उनकी नजर बालक के फूले हुए पेट की ओर गई। उन्होंने उसके पेट पर हाथ फेरा और बोले-‘ईख पीता रहा है। इतनी ज्यादा पी गया। तू तो पागल है।’ फिर गाँधीजी ने उसे सहारा देकर उठाया और कहा कि मुँह में उँगली डालकर कै कर दो। लड़का नाली के किनारे बैठ गया। गाँधीजी उसकी पीठ पर हाथ रखकर झुके रहे। थोड़ी ही देर में उसका पेट हल्का हो गया और हाँफता हुआ बैठ गया। गाँधीजी ने उससे खोखे में जाकर चुपचाप लेटने को कहा। उन्होंने आश्रमवासी को कोई हिदायत भी दी। गाँधीजी का उस रोगी बालक के प्रति व्यवहार अत्यंत सहानुभूतिपूर्ण था।
प्रश्न 5. कश्मीर के लोगों ने नेहरूजी का स्वागत किस प्रकार किया ?
उत्तर - पंडित नेहरू कश्मीर यात्रा पर आए हुए थे। वहाँ कश्मीर के लोगों ने उनका भव्य स्वागत किया। शेख अब्दुल्ला के नेतृत्व में झेलम नदी पर, शहर के एक सिरे से दूसरे सिरे तक, सातवें पुल से अमीराकदल तक, नावों में उनकी शोभा यात्रा निकाली गई। यह देखने लायक थी। नदी के दोनों ओर हजारों कश्मीर निवासी अदम्य उत्साह के साथ नेहरूजी का स्वागत कर रहे थे। यह दृश्य अद्भुत था।
प्रश्न 6. अखबार वाली घटना से नेहरूजी के व्यक्तित्व की कौन-सी विशेषता प्रकट होती है?
उत्तर - लेखक बरामदे में खड़ा होकर अखबार पर नजर डाल ही रहा था कि सीढ़ियों से नेहरूजी के उतरने की पदचाप सुनाई दी। उस दिन उन्हें अपने साथियों के साथ पहलगाम जाना था। उस समय अखबार लेखक के हाथ में था। लेखक को एक बचकानी हरकत सूझी। उसने फैसला किया कि मैं अखबार पढ़ता रहूँगा और तभी नेहरूजी के हाथ में दूँगा जब वह माँगेंगे। इसके बहाने एक छोटा-सा वार्तालाप तो हो जाएगा। नेहरूजी आए। लेखक के हाथ में अखबार देखकर चुपचाप एक ओर खड़े रहे। शायद वे इस इंतजार में थे कि उन्हें स्वयं अखबार मिल जाएगा। आखिरकार नेहरूजी धीरे से बोले-” आपने देख लिया हो तो क्या मैं एक नजर देख सकता हूँ ?” यह सुनते ही लेखक शर्मिदा हो गया और अखबार उनके हाथ में दे दिया। अखबार वाली इस घटना से नेहरूजी के व्यक्तित्व पर यह प्रकाश पड़ता है कि वे विनम्र स्वभाव के थे और दूसरों की भावनाओं का सम्मान करना जानते थे। उन्होंने अखबार माँगने में विनम्रता का परिचय दिया था।
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प्रश्न 7. फिलिस्तीन के प्रति भारत का रवैया बहुत सहानुभूति एवं समर्थन भरा क्यों था ?
उत्तर - फिलिस्तीन के प्रति साम्राज्यवादी शक्तियों का रवैया अन्यायपूर्ण था। भारत स्वयं साम्राज्यवादी शक्तियों के अन्याय का शिकार था। वह इस अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाने वालों के प्रति सहानुभूति रखता था। भारत के तत्कालीन नेताओं ने साम्राज्यवादी शक्तियों के दमन की घोर भर्त्सना की थी। भारत फिलिस्तीन आंदोलन के प्रति विशाल स्तर पर सहानुभूति रखता था। भारत किसी के भी प्रति हो रहे अन्याय का विरोध करने में आगे रहता था। फिलिस्तीन के नेता अराफात भी भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के प्रति अपनी सहानुभूति रखते थे।
प्रश्न 8. अराफात के आतिथ्य प्रेम से संबंधित किन्हीं दो घटनाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर - अराफात ने लेखक को सपत्नीक दिन के भोजन पर आमंत्रित किया था। अराफात स्वयं बाहर आकर लेखक और उसकी पत्नी को अंदर लिवा कर गए। उनके आतिथ्य के दो उदाहरण इस प्रकार हैं-
1. अराफात ने अपने हाथों से फल छील-छीलकर लेखक और उसकी पत्नी को खिलाए। उनके पीने के लिए स्वयं शहद की चाय बनाई।
2. लेखक माजन के समय से पूर्व अनुमान से गुसलखाने में गया। जब वह गुसलखाने से बाहर आया तब यास्सेर अराफात स्वयं हाथ में तौलिया लिए खड़े थे। यह देखकर लेखक झेंप गया।
ये दोनों घटनाएँ अराफात के आतिथ्य-प्रेम को झलकाती हैं।
प्रश्न 9. अराफात ने ऐसा क्यों बोला कि ‘वे आपके ही नहीं, हमारे भी नेता हैं। उतने ही आदरणीय जितने आपके लिए।’ इस कथन के आधार पर गाँधीजी के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर - अराफात ने ऐसॉ इसलिए बोला क्योंकि भारत के बड़े-बड़े सभी नेता फिलिस्तीन के आंदोलन का समर्थन कर रहे थे। वे फिलिस्तीन के प्रति साम्राज्यवादी शक्तियों के अन्यायपूर्ण रवैये की भर्स्सना करके फिलिस्तीनियों का उत्साहवर्धन कर रहे थे। यही कारण था कि फिलिस्तीनियों को भारत के नेता अपने नेता प्रतीत होते थे। वे गाँधीजी एवं नेहरूजी को आदरणीय मानते थे। इस कथन के आधार पर गाँधीजी के व्यक्तित्व पर यह प्रकाश पड़ता है कि वे हर अन्याय का विरोध करते थे। इसमें वे अपने देश या दूसरे देश के बीच कोई अंतर नहीं करते थे। उनकी सहानुभूति सदैव पीड़ित पक्ष की ओर होती थी। वे साम्राज्यवादी शक्तियों से लोहा ले रहे थे। गाँधीजी के व्यक्तित्व का जादू देश-विदेश में सिर चढ़कर बोल रहा था। अन्याय के शिकार देश उनकी ओर आशाभरी दृष्टि से देख रहे थे।
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