चंपा काले काले अच्छर नहीं चीन्हती (काव्य-सौंदर्य /शिल्प-सौंदर्य)

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चंपा काले काले अच्छर नहीं चीन्हती 

काव्य सौंदर्य बोध संबंधी प्रश्न






पूरी कविता से काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य के कुछ कॉमन पॉइंट्स: 


● मुक्तक छंद का सफल प्रयोग देखा जा सकता है।
● यहाँ कवि ने सामान्य बोलचाल भाषा का प्रयोग किया है।
गाँव की छवि अंकित की गई है।
● कवि ने नाटकीय शब्दावली का प्रयोग करते हुए भावपूर्ण अभिव्यक्ति को मुखरित किया है।
● ग्रामीण परिवेश में पली चंपा की यथार्थ छवि को उतारने में कवि सक्षम हुआ है।
● प्रसाद गुण तथा शांत रस का प्रयोग हुआ है।




1.
चंपा काल-काल अच्छर नहीं चन्हती
में जब पढ़ने लगता हूँ वह आ जाती है।
खड़ी खड़ी चुपचाप सुना करती है।
उसे बड़ा अचरज होता हैं।
इन काले चीन्हीं से कैसे ये सब स्वर
निकला करते हैं।

प्रश्न
क) इस काव्यांश का भाव सौंदर्य स्पष्ट करें।
ख) इस काव्यांश का शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट करें।

उत्तर =
क) कवि ने निरक्षर चंपा की हैरानी को स्वाभाविक तरीके से बताया है। वह कहता है कि अक्षरों व उनसे निकलने वाली ध्वनियों से चंपा आश्चर्यचकित होती है।

ख) ग्राम्य शब्द अच्छर, चीन्हती, चीन्हों, अचरज से ग्रामीण वातावरण का बिंब साकार हो उठता है।
० काले काले', खड़ी खड़ी' में पुनरुक्तिप्रकाश अंलकार है।
० सब स्वर में अनुप्रास अलंकार है।
० प्रसाद गुण है।
० मुक्त छद है।
० उर्दू देशज शब्दावली युक्त खड़ी बोली है।
० भाषा में सहजता व सरलता है।

2.
उस दिन चंपा आई मैंने कहा कि
चंपा, तुम भी पढ़ लो
हारे गाढ़ काम सरेगा
गाँधी बाबा की इच्छा है
सब जन पढ़ना-लिखना सीखें
चंपा ने यह कहा कि
मैं तो नहीं पढूंगी
तुम तो कहते थे गाँधी बाबा अच्छे हैं।
ये पढ़ने लिखने की कैसे बात कहेंगे
मैं तो नहीं पड़ेंगी

प्रश्न
क) इस काव्यांश का भाव सौंदर्य स्पष्ट करें।
ख) इस काव्यांश का शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट करें।

उत्तर =
क) इस काव्यांश में कवि चंपा को पढ़ने की सलाह देता है। वह गाँधी जी की भी यही इच्छा बताता है, परंतु चंपा स्पष्ट रूप से पढ़ने से इनकार कर देती है। उसे शिक्षित युवकों का परदेश में नौकरी करना तनिक भी पसंद नहीं है।

ख) संवादों के कारण कविता सजीव बन गई है।
० देशज शब्दों के प्रयोग से ग्रामीण जीवन साकार हो उठता है, जैसे हारे गाढे सरेगा आदि।
० गाँधी बाबा की इच्छा का अच्छा चित्रण है।
० खड़ी बोली में सहज अभिव्यक्ति है।
० मुक्त छंद होते हुए भी गतिशीलता है।
० शांत रस हैं।
० प्रसाद गुण है।


3.
चंपा बोली तुम कितने झूठे हो, देखा,
हाय राम, तुम पढ़ लिख कर इतने झूठे हो
में तो ब्याह कभी न करूंगी
और कहीं जो ब्याह हो गया
तो मैं अपने बालम को सँग साथ रखेंगी
कलकत्ता मैं कभी न जाने देंगी।
कलकत्ते पर बजर गिरे।

प्रश्न
क) काव्यांश की भाषा पर टिप्पणी कीजिए।
2 काव्यांश का शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट करें।

उत्तर -
क) त्रिलोचन ने ग्रामीण ठाठ को सहजता से प्रकट किया है। ब्याह, बालम, संग, बजर आदि शब्दों से अः चिलिकता का पुट मिलता है। खड़ी बोली में सहज अभिव्यक्ति है।

ख) संवाद शैली का प्रयोग है।
० मुक्त छंद होते हुए भी काव्य में प्रवाह है।
० कलकत्ते पर बजर गिरे कटु यथार्थ का परिचायक है।
० हाय राम कहने में नाटकीयता आई है।
० संग साथ' में अनुप्रास अलंकार है।


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