गज़ल (काव्य-सौंदर्य /शिल्प-सौंदर्य)

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गज़ल 

काव्य सौंदर्य बोध संबंधी प्रश्न






पूरी कविता से काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य के कुछ कॉमन पॉइंट्स: 


● यहाँ कवि ने वर्तमान स्थिति पर करारा व्यंग्य किया है।
● कवि ने उर्दू मिश्रित खड़ी बोली का सफल प्रयोग किया है।
● शांत रस का परिपाक हुआ है।
● संगीतात्मकथा का गुण विद्यमान है।
● सहज, सरल, स्वाभाविक कथन के माध्यम से प्रभावपूर्ण अभिव्यक्ति हुई है।
● प्रतीकात्मक तथा लाक्षणिक पदावली का सफल प्रयोग है।




1.
कहाँ तो तय था चिरागाँ हरेक घर के लिए
कहाँ चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिए।
यहाँ दरखतों के साये में धूप लगती है।
चलो यहाँ से चल और उम्र भर के लिए।

प्रश्न
क) भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
ख) शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालें।

उत्तर -
क) कवि ने राजनेताओं की झूठी घोषणाओं व सरकारी संस्थाओं के भ्रष्ट तंत्र पर व्यंग्य किया है। वह आजादी के बाद के भारत में आम व्यक्ति की निराशा को व्यक्त करता है।

ख) प्रतीकों का सुंदर प्रयोग है। चिराग' व 'दरख्त' क्रमशः आशा व सुव्यवस्था के प्रतीक हैं।
० चिराग', मयस्सर, दरख्त, साये, उम्र, आदि उर्दू शब्दावली युक्त खड़ी बोली है।
० भाषा में प्रवाह है।
० साये में धूप' विरोधाभास अलंकार है।
० शांत रस है।
० संगीतात्मकता विद्यमान हैं।


2.
न हो कमीज़ तो पाँवों से पेट ढक लगे,
ये लोग कितने मुनासिब हैं इस सफ़र के लिए।

प्रश्न
क) गजल क्या है?
ख) शिल्प सौदर्य पर प्रकाश डालिए।

उत्तर -
क) गजल वह विधा है जिसमें सभी शेर अपना स्वतंत्र अस्तित्व रखते हैं। इसका शीर्षक नहीं होता। हर शेर अपने आप में पूर्ण होता है।

ख) शोषित वर्ग की पीड़ा को व्यक्त किया है। पाँवों से पेट ढंकना' की कल्पना अनूठी व नयी है।
० मुनासिब', 'सफ़र आदि उर्दू शब्दों का प्रयोग है।
० खड़ी बोली में सजीव अभिव्यक्ति है।
० 'सफ़र जीवन यात्रा का प्रतीक है।
० संगीतात्मकता है।


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