हे भूख मत मचल, हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर (काव्य-सौंदर्य /शिल्प-सौंदर्य)

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हे भूख मत मचल


काव्य सौंदर्य बोध संबंधी प्रश्न







पूरी कविता से काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य के कुछ कॉमन पॉइंट्स: 



● यहाँ कवयित्री प्रत्येक प्राणी को अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण करने की प्रेरणा देती है।
● सहज, सरल तथा भावानुकूल हिंदी भाषा का प्रयोग किया गया है।
● प्रसाद गुण शांत रस का परिपाक है।
● 'मत' शब्द की आवृत्ति से विषय-विकारों से बचने पर बल दिया गया है।



हे भूख' मत मचल
प्यास, तड़प मत हे
हे नींद मत सता
क्रोध मचा मत उथल-पुथल
है मोहपाश अपने ढील
लोभ मत ललचा
मदमत कर मदहोश
ईष्र्या जला मत ।
अ चराचर मत चूक अवसर
आई हूँ सदेश लेकर चन्नमल्लिकार्जुन का

प्रश्न
क) इस पद का भाव स्पष्ट करें।
ख) शिल्प व भाषा पर टिप्पणी कीजिए।

उत्तर =
क) इस पद में, कवयित्री ने इंद्रियों व भावों पर नियंत्रण रखकर ईश्वर-भक्ति में लीन होने की प्रेरणा दी है। मनुष्य को भूख, प्यास, नींद, क्रोध, मोह, लोभ, ईष्या, अहंकार आदि प्रवृत्तियाँ सांसारिक चक्र में उलझा देती हैं। इस कारण वह ईश्वर-भक्ति के मार्ग को भूल जाता है।

ख) यह पद कन्नड़ भाषा में रचा गया है। इसका यहाँ अनुवाद है। इस पद में संबोधन शैली का प्रयोग किया है। इंद्रियों व भावों को मानवीय तरीके से संबोधित किया गया है। अतः मानवीकरण अलंकार है। मत मचल मचा मत में अनुप्रास अलंकार है। प्रसाद गुण है। शैली में उपदेशात्मकता है। खड़ी बोली के माध्यम से सहज अभिव्यक्ति है।



हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर



पूरी कविता से काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य के कुछ कॉमन पॉइंट्स: 


● कवयित्री का यह वचन उपदेशात्मक है।
● यह वचन मूल रूप से कन्नड़ भाषा में लिखा गया है, जिसका हिंदी रूपांतरण किया गया है।
● सहज, सरल तथा भावानुकूल हिंदी भाषा का प्रयोग किया गया है।
● देशज शब्दों का प्रयोग किया गया है।
● प्रसाद गुण तथा शांत रस का परिपाक है।



हे मेरे जुही के फूल जैसे ईश्वर
मॅगवाओ मुझसे भीख
और कुछ ऐसा करो
कि भूल जाऊँ अपना घर पूरी तरह
झोली फैलाऊँ और न मिले भीख
कोई हाथ बढ़ाए कुछ देने को
तो वह गिर जाए नीचे
और यदि में झुकू उसे उठाने
तो कोई कुत्ता आ जाए
और उसे झपटकर छीन ले मुझसे।

प्रश्न
क) इस पद का भाव स्पष्ट करें।
ख) शिल्प-सौदर्य बताइए।

उत्तर -
क) इस वचन में, कवयित्री ने अपने आराध्य के प्रति पूर्णतः समर्पित भाव को व्यक्त किया है। वह अपने आराध्य के लिए तमाम भौतिक साधनों को त्यागना चाहती है वह अपने अहकार को खत्म करके ईश्वर की प्राप्ति करना चाहती है। कवयित्री निस्पृह जीवन जीने की कामना रखती है।

ख) कवयित्री ने ईश्वर की तुलना जूही के फूल से की है। अतः उपमा अलंकार है। 'मैंगवाओ मुझसे व 'कोई कुत्ता में अनुप्रास अलंकार है।अपना घर' यहाँ अह भाव का परिचायक है। सुंदर बिंब योजना है, जैसे भीख न मिलने, झोली फैलाने, भीख नीचे गिरने, कुत्ते द्वारा झपटना आदि। खड़ी बोली में सहज अभिव्यक्ति है। संवादात्मक शैली है। शांत रस का परिपाक है।



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